Ganga River: देवनदी गंगा स्त्री कैसे बनी,क्या था राजर्षी महाभिष को ब्रह्मा जी का श्राप

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Ganga River:
locationभारत
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calendar07 Jun 2023 04:27 PM
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Ganga River:  देवनदी गंगा ने जह्नु ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लिया । अपनी अलौकिक शक्तियों के कारण वह ब्रह्मा जी की सभा में एकबार सभी देवी देवताओं ‌के साथ उपस्थित थीं ।उस सभा में राजर्षि महाभिष भी उपस्थित थे। अचानक आये हवा के झौंके से गंगा के वस्त्र‌ ऊपर उठ गये । यह देख सभी देवताओं ने अपने नेत्र नीचे कर लिये परंतु राजर्षि महाभिष नि:शंक हो  कर उसकी ओर देखते ही रहे। यह देखकरब्रह्मा जी ने राजर्षी महाभिष को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप देते हुये कहा कि जिस गंगा ने तुम्हारे चित्त को भ्रमित कर दिया है वही मनुष्य लोक में तुम्हारे प्रतिकूल आचरण करेगी ।

देवनदी गंगा स्त्री कैसे बनी:-

[caption id="attachment_93975" align="aligncenter" width="1080"]Ganga River: Ganga River:[/caption] जब तुम उसके प्रतिकूल आचरण पर क्रोध करोगे तभी गंगा तुम्हारा त्याग कर देगी और तुम शाप मुक्त हो जाओगे । द्वापर युग में राजर्षी महाभिष ने शांतनु के रूप में जन्म लिया और गंगा। ने जह्नु पुत्री बनकर उनके साथ विवाह किया । भरतवंशी महाराज शांतनु हस्तिनापुर साम्राज्य के सम्राट थे। गंंगा ने  पहले सात पुत्रों को जन्म देकर गंगा में प्रवाहित कर दिया , ‌पहले तो शांतनु यह सब गंगा की विवाह के समय रखी शर्त की आप मुझे मेरे द्वारा किये जा रहे किसी कार्य को रोकेंग नही, जिस दिन आपने मुझे रोक कर क्रोध किया मैं उसी दिन आपको त्याग दूंगी ।

राजर्षी महाभिष को ब्रह्मा जी का श्राप 

जब वह अपने आठवें पुत्र को भी गंगा में प्रवाहित कर रही थीं तो महाराज शांतनु अपने वंश की रक्षा और संतति के मोह को नहीं रोक पाये और उन्होंने गंगा पर उनके इस कार्य के लिये क्रोध किया । तब गंगा ने इस रहस्य को प्रकट करते हुये कि -मुनि वशिष्ठ द्वारा अपनी गायों का वसु देवतओं द्वारा अपहरण किये जाने पर उन्होंने क्रोधित होकर इन्हें मनुष्य योनि मे जन्म लेने का शाप दिया था । जब वह पतित होकर स्वर्ग से नीचे गिर रहे थे तब मार्ग में जाती हुई मैंनें देवनदी के रूप में उनसे इस पतन का कारण पूंछा । तबउन्होंने वशिष्ठ जी के द्वारा दिये शाप का कारण बता कर मुझसे प्रार्थना की थी कि जब आप राजर्षि महाभिष के शांतनु रूप में जन्म लेने पर उनकी पत्नी बनोगी

महाभारत के नारी पात्र:- 

उस समय हम वसुओ को अपने पुत्र रूप में जन्म देकर हमारा उद्धार करना । आपके यह सभी पुत्र वसु ही थे जिनको मैनें शापमुक्त किया । अब इसे आपने रोक लिया है । अत: इसका लालन पालन कर स्वर्ग में इसकी शिक्षा पूर्ण होते ही मैं स्वयं इसे अपने साथ लाकर आपको सौंप दूंगी । यह कहती हुई गंगा अपने देवव्रत पुत्र को लेकर महाराज शांतनु का त्याग कर स्वर्ग लोक चली गई । बाद में 16वर्ष की आयु में देवव्रत को देवगुरु बृहस्पति से संपूर्ण शिक्षापूर्ण करने के बाद लाकर महाराज शांतनु को उनके पुत्र देवव्रत जो बाद में अपने पिता की इच्छापूर्ण करने के लिये सत्यवती से विवाह को लेकर आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत धारण की भीषण प्रतिज्ञा कर भीष्म बने । परशुराम जी के साथ अम्बा के कारण हो रहे युद्ध के समय भी गंगा ने दोनों के मध्य आकर इस युद्ध को रोका था । अंत में महाभारत युद्ध के पश्चात इच्छा मृत्यु का वरदान पाये भीष्म के पास वह उनकी शरशैया के समय निरंतर उनके पास रहीं और एक श्रेष्ठ माता का धर्म निभा भीष्म के  अंत समय तक अपने पुत्र के साथ रहीं । जै गंगा मैया सर्वपापनाशिनी सर्वहितैषणी सभी का उद्धार करें । उषा सक्सेना

Ujjain Mahakal: उज्जैन का महाकाल मंदिर जहा दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है 

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Ganga River: देवनदी गंगा स्त्री कैसे बनी,क्या था राजर्षी महाभिष को ब्रह्मा जी का श्राप

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Ganga River:  देवनदी गंगा ने जह्नु ऋषि की पुत्री के रूप में जन्म लिया । अपनी अलौकिक शक्तियों के कारण वह ब्रह्मा जी की सभा में एकबार सभी देवी देवताओं ‌के साथ उपस्थित थीं ।उस सभा में राजर्षि महाभिष भी उपस्थित थे। अचानक आये हवा के झौंके से गंगा के वस्त्र‌ ऊपर उठ गये । यह देख सभी देवताओं ने अपने नेत्र नीचे कर लिये परंतु राजर्षि महाभिष नि:शंक हो  कर उसकी ओर देखते ही रहे। यह देखकरब्रह्मा जी ने राजर्षी महाभिष को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप देते हुये कहा कि जिस गंगा ने तुम्हारे चित्त को भ्रमित कर दिया है वही मनुष्य लोक में तुम्हारे प्रतिकूल आचरण करेगी ।

देवनदी गंगा स्त्री कैसे बनी:-

[caption id="attachment_93975" align="aligncenter" width="1080"]Ganga River: Ganga River:[/caption] जब तुम उसके प्रतिकूल आचरण पर क्रोध करोगे तभी गंगा तुम्हारा त्याग कर देगी और तुम शाप मुक्त हो जाओगे । द्वापर युग में राजर्षी महाभिष ने शांतनु के रूप में जन्म लिया और गंगा। ने जह्नु पुत्री बनकर उनके साथ विवाह किया । भरतवंशी महाराज शांतनु हस्तिनापुर साम्राज्य के सम्राट थे। गंंगा ने  पहले सात पुत्रों को जन्म देकर गंगा में प्रवाहित कर दिया , ‌पहले तो शांतनु यह सब गंगा की विवाह के समय रखी शर्त की आप मुझे मेरे द्वारा किये जा रहे किसी कार्य को रोकेंग नही, जिस दिन आपने मुझे रोक कर क्रोध किया मैं उसी दिन आपको त्याग दूंगी ।

राजर्षी महाभिष को ब्रह्मा जी का श्राप 

जब वह अपने आठवें पुत्र को भी गंगा में प्रवाहित कर रही थीं तो महाराज शांतनु अपने वंश की रक्षा और संतति के मोह को नहीं रोक पाये और उन्होंने गंगा पर उनके इस कार्य के लिये क्रोध किया । तब गंगा ने इस रहस्य को प्रकट करते हुये कि -मुनि वशिष्ठ द्वारा अपनी गायों का वसु देवतओं द्वारा अपहरण किये जाने पर उन्होंने क्रोधित होकर इन्हें मनुष्य योनि मे जन्म लेने का शाप दिया था । जब वह पतित होकर स्वर्ग से नीचे गिर रहे थे तब मार्ग में जाती हुई मैंनें देवनदी के रूप में उनसे इस पतन का कारण पूंछा । तबउन्होंने वशिष्ठ जी के द्वारा दिये शाप का कारण बता कर मुझसे प्रार्थना की थी कि जब आप राजर्षि महाभिष के शांतनु रूप में जन्म लेने पर उनकी पत्नी बनोगी

महाभारत के नारी पात्र:- 

उस समय हम वसुओ को अपने पुत्र रूप में जन्म देकर हमारा उद्धार करना । आपके यह सभी पुत्र वसु ही थे जिनको मैनें शापमुक्त किया । अब इसे आपने रोक लिया है । अत: इसका लालन पालन कर स्वर्ग में इसकी शिक्षा पूर्ण होते ही मैं स्वयं इसे अपने साथ लाकर आपको सौंप दूंगी । यह कहती हुई गंगा अपने देवव्रत पुत्र को लेकर महाराज शांतनु का त्याग कर स्वर्ग लोक चली गई । बाद में 16वर्ष की आयु में देवव्रत को देवगुरु बृहस्पति से संपूर्ण शिक्षापूर्ण करने के बाद लाकर महाराज शांतनु को उनके पुत्र देवव्रत जो बाद में अपने पिता की इच्छापूर्ण करने के लिये सत्यवती से विवाह को लेकर आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत धारण की भीषण प्रतिज्ञा कर भीष्म बने । परशुराम जी के साथ अम्बा के कारण हो रहे युद्ध के समय भी गंगा ने दोनों के मध्य आकर इस युद्ध को रोका था । अंत में महाभारत युद्ध के पश्चात इच्छा मृत्यु का वरदान पाये भीष्म के पास वह उनकी शरशैया के समय निरंतर उनके पास रहीं और एक श्रेष्ठ माता का धर्म निभा भीष्म के  अंत समय तक अपने पुत्र के साथ रहीं । जै गंगा मैया सर्वपापनाशिनी सर्वहितैषणी सभी का उद्धार करें । उषा सक्सेना

Ujjain Mahakal: उज्जैन का महाकाल मंदिर जहा दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है 

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Ujjain Mahakal: उज्जैन का महाकाल मंदिर जहा दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है 

Mahakal
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userचेतना मंच
calendar03 Jun 2023 04:13 PM
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  Ujjain Mahakal: उज्जैन का महाकाल मंदिर भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों मे से एक है ।यह एक ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणमुखी और स्वयंभू  है । ये मंदिर अपने रहस्यों को लेकर काफी चर्चा मे बना रहता है । ऐसी मान्यता है  कि इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है । इस मंदिर की प्रशंसा महाकवि  कालिदास जी ने मेघदूत मे की थी। प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है। उज्जैन पांच हजार साल पुराना नगर माना जाता है। इसे अवंती, अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, नंदिनी, अमरावती, पद्मावती, प्रतिकल्पा, कुशस्थली जैसे नामों से जाना जाता है। महाकालेश्वर मंदिर की भस्म-आरती भक्तों के बीच बेहद लोकप्रिय है। इसमें ओंकारेश्वर और नागचंद्रेश्वर के शिलालेख और गणेश, कार्तिकेय और पार्वती के चित्र भी हैं।इसे पृथ्वी का नाभिस्थल भी कहा जाता है क्योंकि इस मंदिर के शिखर से कर्क रेखा भिन्न है।

महाकालेश्वर स्वयंभू होने की कथा:

[caption id="attachment_93256" align="aligncenter" width="564"]उज्जैन का महाकाल उज्जैन का महाकाल[/caption] Ujjain Mahakal: माना जाता है कि भगवान शिव को उज्जैन नगरी बेहद प्रिय है । उज्जैन मे भगवान शिव के काफी भक्त निवास करते थे,वही इसी नगरी मे दूषण नामक दैत्य ने बहुत आतंक मचा रखा था। उसके आतंक से बचने के लिये भक्तों ने भगवान शिव की अराधना करने लगे। भक्तों की पूजा और तपस्या से प्रसन्न हो कर महाकाल स्वयं वहा प्रकट हुए और राक्षस का वध किया। इसके बाद भक्तों ने भगवान शिव से हमेशा के लिए उज्जैन में निवास करने की प्रार्थना की और तभी भगवान शिव वहाँ महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। सभी ज्योतिर्लिंगों मे से महाकाल ऐसा ज्योतिर्लिंग  है जिसकी प्रतिष्ठा पूरी पृथ्वी के राजा और मृत्यु के देवता मृत्युंजय महाकाल के रूप में की जाती है। कहा जाता है कि पृथ्वी के केंद्र उज्जैन में इसी शंकु यंत्र पर महाकालेश्वर लिंग स्थित है। यहीं से पूरी पृथ्वी की काल गणना की जाती है।

महाकाल मंदिर के सामने से कोई बारात नहीं निकलती क्योंकि बाबा के सामने कोई घोड़े पर सवारी नहीं कर सकता ।

बाबा की सुबह होने वाली भस्म आरती शमशान कि चिता की राख से की जाती। महाकालेश्वर को उज्जैन का राजा माना जाता है और इसलिए राजाओं को यहाँ आना वर्जित है। ऐसी मान्यता है कि अगर राजा इस नगरी में रात में ठहरने की जहमत उठाते हैं तो उनका राजपाट हाथ से निकल जाता है। प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री आज भी रात के वक्त उज्जैन में नहीं ठहरते।

Ujjain Mahakal: भस्म आरती की परंपरा:

[caption id="attachment_93259" align="aligncenter" width="449"]उज्जैन का महाकाल उज्जैन का महाकाल[/caption] जब दूषण नामक राक्षस ने आक्रमण किया था। दैत्य के इस आक्रमण से महाकाल ने भक्तों की रक्षा की थी। इसके पीछे राक्षस की राख से अपना श्रृंगार किया और हमेशा के लिए वहीं बस गए। तभी से उज्जैन में भस्म आरती की परंपरा आने लगी है।महाकालेश्वर मंदिर में आरती के समय कपाट बंद हो जाते हैं और केवल मंदिर के पुजारी ही बाबा का शृंगार करते हैं। आजकल बंद कमरे में आरती की पूरी प्रक्रिया को रिकॉर्ड भी किया जाता है। महाकाल की भस्म आरती का समय ब्रह्म महूर्त में सूर्योदय से 2 घंटे पहले और शाम को आरती का समय 6.30 से 7 बजे तक ईव आरती की जाती है।

Pune: पुणे के दगड़ू सेठ गणपति मंदिर मे दर्शन करने के 30 दिनों के अंदर पूरी होतीं है मनोकामना