SIR अभियान में भारी भागीदारी, सुप्रीम कोर्ट में दस्तावेजों पर गरमाई बहस

Supreme Court of India
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calendar12 Jul 2025 09:08 AM
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Supreme Court : बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के मद्देनजर चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान ने रफ्तार पकड़ ली है। निर्वाचन आयोग के अनुसार, अब तक करीब 74.39% मतदाताओं ने अपने गणना फॉर्म जमा कर दिए हैं। यह आंकड़ा 7.90 करोड़ मतदाताओं में से 5.87 करोड़ से अधिक का है।

सुप्रीम कोर्ट में दस्तावेजों को लेकर सवाल

इस बीच सुप्रीम कोर्ट में इस पुनरीक्षण प्रक्रिया को लेकर एक याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया में आधार कार्ड को दस्तावेज सूची से हटाने का विरोध किया और गरीबों, प्रवासी मजदूरों तथा बाढ़ प्रभावित इलाकों के लोगों के लिए दस्तावेजों की अनिवार्यता को भेदभावपूर्ण बताया। सुनवाई के दौरान जस्टिस सुधांशु धूलिया ने चुनाव आयोग से तीखे सवाल किए। उन्होंने कहा, "इस देश में जहां कई लोगों के पास बुनियादी कागजात भी नहीं हैं, हर किसी से सारे दस्तावेज कैसे मांगे जा सकते हैं? मेरे पास भी जन्म प्रमाणपत्र नहीं है।"

साफ-सुथरी वोटर लिस्ट जरूरी

वहीं, चुनाव आयोग का पक्ष है कि स्वच्छ मतदाता सूची लोकतंत्र की मजबूती के लिए अनिवार्य है। मतदाताओं की पहचान सत्यापित करने के लिए EPIC (वोटर ID), आधार और अन्य दस्तावेजों की मदद ली जा रही है। आयोग ने स्पष्ट किया कि दस्तावेजों की सूची "संकेतात्मक लेकिन पूर्ण नहीं" है, यानी यह सुझाव मात्र है बाध्यता नहीं।

जमीनी स्तर पर चल रहा व्यापक अभियान

एसआईआर के दूसरे चरण में बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) घर-घर जाकर मतदाताओं की मदद कर रहे हैं और उनके फॉर्म एकत्र कर रहे हैं। 38 जिलों के 243 विधानसभा क्षेत्रों में तैनात 77,895 बीएलओ, 20,603 नए बीएलओ, और 4 लाख से अधिक स्वयंसेवक इस काम में जुटे हैं। अब तक 3.73 करोड़ गणना फॉर्म डिजिटलीकृत और अपलोड किए जा चुके हैं। नए तकनीकी मॉड्यूल के जरिए ईसीआईनेट में अपलोड किए गए फॉर्मों का सत्यापन भी शुरू हो चुका है।

25 जुलाई तक जमा हो सकेंगे फॉर्म

गणना फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि 25 जुलाई 2025 निर्धारित है। निर्वाचन आयोग द्वारा 24 जून को दिशा-निर्देश जारी किए गए थे और मात्र 17 दिनों में यह उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है। जहां एक ओर आयोग इस पुनरीक्षण को लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी बता रहा है, वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में चल रही बहस इस प्रक्रिया की समावेशिता और न्यायसंगतता को लेकर महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर रही है। आने वाले दिनों में अदालत का निर्णय और आयोग की अगली कार्रवाई इस अभियान की दिशा तय करेंगे।

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संघ प्रमुख मोहन भागवत के विषय में यह नहीं जानते लोग

RSS
RSS Chief
locationभारत
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calendar11 Jul 2025 05:15 PM
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RSS Chief : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को केवल संघ अथवा RSS के नाम से जाना जाता है। RSS के सर्वोच्च पद पर तैनात पदाधिकारी को RSS का सर संघ चालक कहा जाता है। प्रसिद्ध व्यक्तित्व के धनी मोहन भागवत RSS में सर संघ चालक हैं। RSS में प्रमुख मोहन भागवत आए दिन चर्चा में बने रहते हैं। RSS चीफ मोहन भागवत इस बार अपने 75 साल वाले बयान के कारण चर्चा में हैं। RSS प्रमुख मोहन भागवत ने साफ-साफ कहा है कि 75 साल की उम्र होते ही नेताओं को रिटायर हो जाना चाहिए। इस बयान के बाद से RSS प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) की खूब चर्चा हो रही है।

संघ में अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं मोहन भागवत

आमतौर पर दुनिया भर के नागरिक RSS चीफ मोहन भागवत को RSS प्रमुख के रूप में ही जानते हैं। वास्तव में RSS प्रमुख मोहन भागवत RSS में अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। RSS प्रमुख मोहन भागवत का जन्म 11 सितंबर 1950 को महाराष्ट्र प्रदेश के सांगली जिले में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। RSS प्रमुख मोहन भागवत की व्यवसायिक शिक्षा एक पशु चिकित्सक के तौर पर हुई है। RSS प्रमुख मोहन भागवत के दादा जी का नाम नाना साहेब था। नाना साहेब RSS के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे। RSS के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के साथ नाना साहेब की बड़ी निकटता थी। RSS प्रमुख मोहन भागवत के पिता का नाम मधुकर राव था। मधुकर राव गुजरात प्रदेश में RSS के प्रचारक थे। इतना ही नहीं RSS प्रमुख मोहन भागवत की माता जी श्रीमती मालती देवी RSS की महिला विंग की सदस्य थीं। RSS प्रमुख मोहन भागवत को RSS में काम करने की दीक्षा अपने दादा जी, पिता जी तथा माता जी से विरासत में मिली थी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले गुरू थे RSS प्रमुख मोहन भागवत के पिता

यह बात कोई नहीं जानता कि RSS प्रमुख मोहन भागवत के पिता मधुकर राव भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी के पहले राजनीतिक गुरू थे। गुजरात प्रदेश में RSS का प्रचारक रहते हुए मोहन भागवत के पिता मधुकर राव ने ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को RSS में भर्ती करने तथा RSS का प्रशिक्षण देने का काम किया था। इस बात की जानकारी खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी किताब ज्योतिपुंज में दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ज्योतिपुंज में लिखा है कि वें (मोदी) मात्र 20 वर्ष की उम्र में RSS प्रमुख मोहन भागवत के पिता मधुकर राव से मिलकर RSS में दीक्षित हुए थे। इतना ही नहीं वें (मोदी) नागपुर स्थित RSS के मुख्यालय में संघ के तीसरे प्रशिक्षण के दौरान एक महीने तक RSS प्रमुख मोहन भागवत के पिता मधुकर राव के साथ रहे थे।

RSS प्रमुख मोहन भागवत के पिता को आदर्श मानते हैं प्रधानमंत्री मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी RSS प्रमुख मोहन भागवत के पिता मधुकर राव को आदर्श व्यक्तित्व मानते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि RSS प्रमुख मोहन भागवत लोगों का मन जीतने में माहिर हैं। उन्हें यह गुण अपने पिता मधुकर राव से विरासत में मिला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी किताब ज्योतिपुंज में RSS प्रमुख मोहन भागवत के पिता मधुकर राव के विषय में विस्तार से लिखा है। उन्होंने किताब में लिखा है कि-"उनके पहनावे में मराठी-गुजराती संस्कृतियों का मिश्रण था। वह गुजराती शैली की गांधी धोती और उसके ऊपर विदर्भ की सिंगलेट पहनते थे। उनके हाथ में हमेशा पान का डिब्बा रहता था। जिन लोगों से हम मिलते हैं उनमें से कुछ हम पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। लेकिन मधुकररावजी तो ऐसे घुल मिल जाते थे जैसे दूध में चीनी।" मोदी लिखते हैं कि लाल कृष्ण आडवाणी को भी मधुकर राव भागवत ने ही प्रशिक्षित किया था, "1943-44 में आरएसएस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने उन्हें उत्तर भारत और सिंध (आज का पाकिस्तान) के सभी कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने का काम सौंपा था। लाल कृष्ण आडवाणी जैसे कई स्वयंसेवकों ने इस काल में मधुकरराव के सानिध्य में शिक्षा प्राप्त की।" मधुकर राव से प्रेरित होने की बात स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लिखते हैं, "वह संघ परंपरा की जीवंत पाठशाला की तरह थे। वह राष्ट्र-निर्माण की राह पर चलने वाले एक महान यात्री थे। उनके पदचिन्हों ने कई लोगों को प्रेरित किया है और मैं भी उनमें से एक हूं।"

अनेक प्रकार की समानताएं हैं मोदी और मोहन भागवत के बीच

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा RSS प्रमुख और मोहन भागवत दोनों का जन्म छह दिन के अंतर पर सितंबर 1950 में हुआ था। दोनों संघ में प्रचारक रहे। ऐसा माना जाता है कि खुद मोहन भागवत ने ही प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी का नाम आगे किया था। दरअसल, सरसंघचालक बनने के बाद भागवत ने ही 75 वर्ष की आयु सीमा निर्धारित की थी। द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आडवाणी को बताया गया कि 2009 का आम चुनाव सत्ता के लिए उनका आखिरी मौका होगा। हार के बाद आडवाणी को साइड कर दिया गया था। नरेंद्र मोदी ने अपनी किताब में RSS प्रमुख मोहन भागवत की तारीफ करते हुए उन्हें पारसमणि बताया है। वह लिखते हैं, "मधुकरराव स्वयं प्रचारक थे और फिर उन्होंने अपने बेटे मोहनराव भागवत को भी प्रचारक के रूप में देश के आगे किया (वे आज सरसंघचालक हैं)। पारसमणि का स्पर्श लोहे को सोने में बदल देता है। लेकिन कोई पारसमणि लोहे के टुकड़े को दूसरे पारसमणि में नहीं बदल सकता। मधुकरराव और मोहनराव की कहानी इसे पलट देती है। पारसमणि मधुकरराव ने पारसमणि मोहनराव को तैयार किया।" चार भाई-बहनों में सबसे बड़े मोहन भागवत ने बचपन में ही अपना जीवन RSS को समर्पित करने का फैसला कर लिया था। ग्रामीण चंद्रपुर में बतौर पशुचिकित्सक छह महीने काम करने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और जिला RSS प्रचारक बनने के लिए अकोला चले गए। बाद में उन्होंने विदर्भ और फिर बिहार में भी RSS के लिए काम किया है। RSS के भीतर वह तेजी से आगे बढ़े। सन् 2000 में वह आरएसएस के सरकार्यवाह (महासचिव) बन गए थे।

RSS प्रमुख बनना था बहुत महत्वपूर्ण

मोहन भागवत का RSS का प्रमुख बनना बहुत महत्वपूर्ण घटना है। मोहन भागवत के RSS के प्रमुख के पद पर स्थापित होने के बाद से RSS तथा भाजपा की उन्नति होती जा रही है। आपको बता दें कि वर्ष-2004 में भाजपा आम चुनाव बुरी तरह से हार गई थी। 2004 में भाजपा को मिली चुनावी हार के बाद RSS को ‘बुजुर्गों का संगठन’ कहा जाने लगा था। भाजपा के शासनकाल (1999-2004) में RSS परिवार के भीतर कलह देखी गई। RSS के पूर्व स्वंयसेवक दिलीप देवधर का दावा है कि "2004 में भाजपा की हार सुदर्शन-दत्तोपंत ठेंगड़ी समूह और वाजपेयी समूह के बीच आंतरिक टकराव के कारण हुई थी।" वर्ष-2009 में RSS के भीतर बदलाव करने का फैसला किया गया। मार्च 2009 में जब RSS के पदाधिकारी सरकार्यवाह के चुनाव के लिए नागपुर में जुटे, तो बतौर सरकार्यवाह भागवत ने तीन-तीन साल का तीन कार्यकाल पूरा कर लिया था। द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक, RSS विचारक एमजी वैद्य को चुनाव प्रबंधक बनाया गया था। वैद्य, सरकार्यवाह के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करने वाले थे, तभी उन्हें RSS के तत्कालीन सरसंघचालक केएस सुदर्शन ने रोका दिया। उन्होंने वैद्य को अपनी खराब तबीयत के बारे में बताया, फिर सरसंघचालक पद के लिए मोहन भागवत का नाम प्रस्तावित कर दिया। तब भागवत 59 वर्ष के थे। RSS के मानकों के अनुसार वह इस शीर्ष पद के लिए युवा थे। बाहरी दुनिया RSS के फैसले से भले ही आश्चर्यचकित हुई हो। लेकिन अंदरूनी लोग जानते हैं कि RSS ने ‘पीढ़ीगत बदलाव’ की सावधानीपूर्वक योजना बनाई थी जो पूरी तरह सफल रही। इस प्रकार RSS प्रमुख मोहन भागवत की तीन-तीन पीढिय़ों ने RSS के लिए अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया।
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शैतानी स्माइल वाली गुड़िया बिक रही करोड़ों में, लोगों के सिर क्यों चढ़ रहा Labubu का बुखार?

Labubu Dolles
Labubu Dolls
locationभारत
userचेतना मंच
calendar11 Jul 2025 04:35 PM
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Labubu Dolls : इन दिनों सोशल मीडिया पर एक अजीब-सी, डरावनी लेकिन उतनी ही आकर्षक डॉल छाई हुई है। इस अजीबो गरीब और अनोखी डॉल का नाम है लाबुबू (Labubu)। बड़ी-बड़ी आंखें, शैतानी सी मुस्कान और नुकीले दांतों वाली लाबुबू डॉल न सिर्फ दिखने में अनोखी है बल्कि इसकी लोकप्रियता ने लाबुबू की कीमत को भी आसमान पर पहुंचा दिया है। हालत यह है कि लाबुबू डॉल (Labubu Doll) अब लाखों-करोड़ों रुपये में बिक रही है और फैशन स्टेटमेंट बन चुकी है।

क्या है Labubu डॉल?

लाबुबू दरअसल एक काल्पनिक कैरेक्टर है जिसे 2015 में हांगकांग के फेमस आर्टिस्ट Kasing Lung ने रचा था। इसकी प्रेरणा नॉर्डिक लोककथाओं और परियों की कहानियों से ली गई है। भले ही इसका लुक डरावना लगे लेकिन इसके पीछे छिपी कल्पना और क्रिएटिविटी ने इसे कला का एक स्टाइलिश नमूना बना दिया है।

कैसे छाया ट्रेंड में Labubu?

इस डॉल को अंतरराष्ट्रीय पहचान चीन की कंपनी Pop Mart ने दिलाई जिसने 2019 में इसे 'ब्लाइंड बॉक्स' कॉन्सेप्ट के तहत बाजार में उतारा। यानी ग्राहक को नहीं पता होता कि बॉक्स में कौन-सी डॉल है जिससे खरीददारी एक 'लकी ड्रा' का अनुभव देती है। लोग बार-बार बॉक्स खरीदते हैं जब तक कि उन्हें अपनी पसंद की Labubu डॉल न मिल जाए। यही उत्सुकता इस डॉल को कलेक्टर आइटम में बदल देती है।

सेलेब्रिटीज से लेकर आम जनता तक हो रही दीवानगी

Labubu डॉल की प्रसिद्धि को असली पंख तब लगे जब K-Pop स्टार Lisa (Blackpink) ने इसे सोशल मीडिया पर दिखाया। इसके बाद रिहाना, दुआ लीपा और अनन्या पांडे जैसी हस्तियों ने भी इसे अपनाया, जिससे यह ट्रेंड और तेजी से फैशन की दुनिया में फैल गया। युवा इसे बैग पर टांगने वाले कीचेन, शोपीस या सोशल मीडिया के लिए एक्सेसरी के तौर पर अपना रहे हैं।

क्रेज इतना कि लोग बना रहे हैं निवेश का जरिया

सिर्फ शौक के लिए नहीं, लोग इसे निवेश के रूप में भी खरीद रहे हैं। हाल ही में बीजिंग में Labubu डॉल का 131 सेमी ऊंचा वर्जन 1.08 मिलियन युआन (लगभग 1.2 करोड़ रुपये) में नीलाम हुआ। इसके छोटे वर्जन भी लाखों में बिक रहे हैं।

क्यों खास है Labubu?

अगर हम लाबुबू की खासियत की बात करें तो लाबुबू एक अनोखा और डरावना तो है कि लेकिन साथ ही ये काफी क्यूट लुक भी दे रहा है। लाबुबू के लिमिटेड एडिशन ने कलेक्टर्स में हाई डिमांड बढ़ा दी है। इसके अलावा ब्लाइंड बॉक्स के कारण हर बार एक नया सरप्राइज मिलना एक अलग ही एक्सपीरियंस दे रहा है। जिसके कारण सोशल मीडिया यूजर्स और सेलेब्रिटी इस ट्रेंड को अपना रहे हैं। नोट: यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्य के लिए है। चेतना मंच किसी उत्पाद की खरीद या निवेश की सलाह नहीं देता।