मांसाहार के प्रति बढ़ता आकर्षण चिंता का विषय

Non Veg Food
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calendar30 Nov 2025 11:32 PM
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 विनय संकोची

कल तक पश्चिम को शाकाहार के फायदे गिनाने वाला भारत आज स्वयं मांसाहार के चंगुल में जकड़ता जा रहा है। इस परिवर्तन को देखकर शाकाहार की ओर झुकते पश्चिम के लोग हैरान हैं कि शाकाहार की जबरदस्त पैरवी करने वाले भारत में मांसाहारियों का भारी बहुमत कैसे हो चला है। 2018 के शोध का नतीजा चौंकाने वाला है कि अब भारत में केवल 20 फ़ीसदी भारतीय शाकाहारी हैं। इसका मतलब यह भी तो है कि 100 में से 80 भारतीय मांसभक्षी हो गए हैं। रिपोर्ट का साफ-साफ कहना है कि 18 करोड़ भारतीय गौ मांस का सेवन भी करते हैं।

भारत में लोग मांसाहारी होते जा रहे हैं और ब्रिटेन में एक तिहाई ब्रिटिश नागरिक मांस खाना छोड़ने का दावा करते हैं। इसी तरह अमेरिका में दो तिहाई लोग दावे से कहते हैं कि उन्होंने पहले से बहुत कम मांस खाना शुरु कर दिया है।

अगर आंकड़ों पर जाएं तो 1960 के मुकाबले मांस का उत्पादन 5 गुना बढ़ गया है। वर्ष 1960 में मांस का उत्पादन 70 मिलियन टन था जो 2017 तक बढ़कर 330 मिलियन टन हो गया। निश्चित रूप से यह आंकड़ा 2017 के बाद के 3 वर्षों में भी घटा तो नहीं ही होगा अपितु बढ़ा ही होगा। मांस की खपत बढ़ने का एक कारण आबादी बढ़ना भी है। 1960 के प्रारंभ में वैश्विक जनसंख्या करीब 3 अरब थी जबकि इस समय दुनिया की जनसंख्या 7.6 अरब हो चुकी है। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मांस उत्पादन में 5 गुना वृद्धि केवल आबादी बढ़ने का ही नतीजा तो नहीं ही है, इसके लिए लोगों की वेतन वृद्धि भी जिम्मेदार है, जिसने मांस के शौक को बढ़ाया है। एक अध्ययन के अनुसार जिन देशों में लोग ज्यादा समृद्ध हैं, उन देशों में मांस की खपत भी अधिक है। इसके विपरीत गरीब देशों में मांस की खपत अपेक्षाकृत काफी कम है। भारत में प्रति व्यक्ति मांस की खपत 4 किलोग्राम है जो कि दुनिया भर में सबसे कम है।

भारत में तेलंगाना सबसे ज्यादा मीट खाने वाला राज्य है वहां पर 99 प्रतिशत लोग मीट खाते हैं। एक सर्वे जिसमें 15 वर्षों से ऊपर के लोगों को ही शामिल किया गया था, यह पाया गया कि तेलंगाना में 98.8 प्रतिशत पुरुष और 98.6 फीसदी महिलाएं मांसाहारी हैं। तेलंगाना के बाद पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और केरल का नंबर आता है। अगर शाकाहारी राज्यों पर दृष्टि डालें तो राजस्थान टॉप पर है। उसके बाद पंजाब और हरियाणा का नंबर आता है। इसी सूची में चौथे नंबर पर गुजरात और पांचवें नंबर पर मध्य प्रदेश का कब्जा है।

एग्रीकल्चर एंड प्रोसैस्ड फूड एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी के अनुसार भारत में चार हजार से ज्यादा पंजीकृत बूचड़खाने हैं। इसके अलावा देश में छब्बीस हजार से ज्यादा अवैध बूचड़खाने भी हैं, जो सरकार द्वारा निर्धारित 95 नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। स्लाटर हाउस चलाने के लिए एक दर्जन विभागों से अनुमति लेनी होती है लेकिन हजारों की संख्या में स्लाटर हाउस न तो पंजीकृत है और न ही किसी नियम का पालन कर रहे हैं। अवैध बूचड़खानों की जानकारी संबंधित विभागों को न हो ऐसा संभव नहीं है। लेकिन कोई कार्यवाही नहीं होती है, क्यों नहीं होती है यह बताने की आवश्यकता नहीं है।

अगर स्वस्थ रहना है तो नव मांसाहारियों को शाकाहार की तरफ लौटना होगा, क्योंकि शाकाहारी भोजन पूरा पोषण देता है। शाकाहारी भोजन दिल की बेहतर सेहत के लिए उपयोगी है। शाकाहार से शरीर में बेहतर प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। मांसाहार से कैंसर का खतरा बढ़ता है। शाकाहारियों को यह जानलेवा बीमारी अपेक्षाकृत काफी कम होती है। शाकाहारी भोजन पर्यावरण के भी अनुकूल होता है, लोग इस बात को समझते हैं फिर भी मांसाहार के प्रति बढ़ता आकर्षण चिंता का विषय तो है ही कम से कम भारत जैसे संस्कारी देश में।

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धर्म-अध्यात्म : हम ठहरे इच्छा के दास

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locationभारत
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calendar02 Dec 2025 02:38 AM
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विनय संकोची

मनुष्य इच्छा का दास है और उसे यह बंधन अति प्रिय है। मनुष्य इच्छा रहित जीवन की कल्पना भी नहीं करना चाहता है क्योंकि उसका मन कहता है कि इच्छाएं ही जीवन की ऊर्जा हैं। इच्छाओं की पूर्ति का प्रयास जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। जबकि शास्त्र इसके ठीक उलट बात कहते हैं कि कर्म फल की इच्छा को त्याग कर केवल भगवत पथ कर्तव्य पालन स्वरूप किए गए हुए कर्म, निष्काम कर्म होते हैं और निष्काम कर्म में कामना, आसक्ति, इच्छा व ममता के लिए कोई स्थान नहीं है।

निष्काम कर्म में कामना, इच्छा आदि त्याज्य हैं। परंतु मनुष्य इच्छाओं कामनाओं का दास है, यह वह स्वेच्छा से अंगीकार करता है, पहनता है। कितने लोग हैं जो निष्काम कर्म को जीवन में महत्व देते हैं। बहुत कम लोग हैं जो इच्छाओं को अपनी दासी बनाने में सक्षम होते हैं और इच्छा रहित, स्वार्थ रहित होकर निष्काम कर्म में प्राण पण से संलग्न रहते हैं।

प्रश्न यह उठता है कि क्या मनुष्य कोई भी कर्म इच्छा भाव से नहीं कर सकता है, अवश्य कर सकता है - धार्मिक कर्म करने की इच्छा करने में कोई बुराई नहीं है। परोपकार, परमार्थ की इच्छा से भी कर्म करना अनुचित नहीं है। लेकिन इन कर्मों को करते हुए भी फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। यदि परमात्मा को प्रसन्न करने की इच्छा से कोई कर्म किया जाए तो कोई बुराई नहीं है, परंतु शर्त यही है कि फल की चिंता और चिंतन न किया जाए। शास्त्र इस विषय को सुस्पष्ट करते हैं - स्वार्थ रहित उत्तम कर्म करने की इच्छा निर्मल व पवित्र इच्छा है यह कर्मों को सकाम नहीं बनाती है।

क्या स्वार्थ रहित कर्म हो सकते हैं? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है। स्वार्थ, इच्छा, कामना, आसक्ति को आत्मबल और अभ्यास से कम किया जा सकता है। इसका अर्थ यह भी हुआ कि जिसे कम किया जा सकता है, उसे समाप्त भी किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए मन की गहराइयों से प्रबल प्रयास की आवश्यकता होती है। परंतु पहली बात तो लोग यह प्रयास करते नहीं है और प्रयास करते भी हैं तो उनमें से अधिकांश सफल नहीं होते हैं। इच्छा कामना में आसक्ति, ममता का त्याग निश्चित रूप से कठिन है, बहुत कठिन और आम मानव के लिए तो किसी हद तक असंभव ही है।

साधारण मनुष्य इच्छा मुक्ति के बारे में सोचता ही नहीं है। वह तो संसार को प्रेम करता है, संसार को पाना चाहता है। उसकी यह इच्छा उसे बंधन में कसती रहती है। नाशवान को महत्व देने का अर्थ बंधन को अपनाना है और संसार तो नाशवान है ही, तो बंधन स्वाभाविक है, अनिवार्य है।

मनुष्य परमात्मा का अंश है और देह संसार का अंश है। यदि देह को संसार को समर्पित कर दिया जाए और स्वयं को परमात्मा को अर्पित कर दिया जाए तो कल्याण सुनिश्चित है, मुक्ति निश्चित है। लेकिन ऐसा होता नहीं है, हम और हमारा शरीर दोनों ही संसार को अर्पित समर्पित रहते हैं और यह अर्पण समर्पण हमें परमात्मा से दूर करता चला जाता है। संसार से निकटता और ईश्वर से दूरी हमारे तमाम दु:खो कष्टों का सबसे बड़ा कारण है। सबसे बड़ी बात है कि हम इस कारण को स्वयं ही उत्पन्न करते हैं और दोष परमात्मा को तथा प्रारब्ध को देते हैं।

एक सीधा सा सिद्धांत शास्त्र में निर्देशित है, जब तक मनुष्य अपने लिए कर्म करता है तब तक कर्म की समाप्ति नहीं होती है और वह कर्मों से बंधता चला जाता है। इस बंधन से मुक्ति का एकमात्र उपाय है, कामना का त्याग। बंधन और दु:ख के लिए परमात्मा की बनाई सृष्टि को दोष देना मूर्खता है, क्योंकि सृष्टि कभी बांधती नहीं है, बांधती तो जीव की बनाई हुई सृष्टि ही है, जिसमें इच्छा, ममता, आसक्ति की प्रधानता होती है।

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शेयर बाजार उछाल पर हुआ बंद, सेंसेक्स 60,138.46 और निफ्टी 17,929.65 पर पहुंचा

Share market 1
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 08:38 AM
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मुंबई: शेयर बाजार में बंद होने के समय बढ़त देखने को मिली है। कारोबार के अंत में सेसेंक्स (SENSEX) 831.53 अंक यानी 1.40 फीसदी की बढ़त होने के बाद 60,138.46 के स्तर पर पहुंचकर बंद हुआ। वहीं निफ्टी (NIFTY) 258.00 अंक यानी 1.46 फीसदी की मजबूती के साथ 17,929.65 के स्तर पर बंद हो गया।

नवंबर के पहले और हफ्ते के पहले दिन बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का सेंसेक्स करीबन 401 पॉइंट्स बढ़त के साथ 59,577 अंक पहुंचकर खुल गया था। जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी 17,783 पर खुला।

बाजार में आज शानदार बढ़त देखी गई है। मेटल, पावर, कैपिटल गुड्स   (CAPITAL GOODS),आयल एंड गैस (OIL & GAS), रियल्टी शेयरों में शानदार बढ़त होती नज़र आई। वहीं छोटे-मझोले शेयरों में भी शानदार बढ़त हुई। बीएसई (BSE) का मिड कैप इंडेक्स 1.79 फीसदी और स्मॉलकैप इंडेक्स में 1.13 फीसदी की बढ़त हुई।

शेयर मार्केट (SHARE MARKET) के दिग्गज निवेशक और बिग बुल के नाम से मशहूर राकेश झुनझुनवाला ने बताया कि वह मौजूदा वैल्यूएशन मार्केट पर नए आईपीओ में निवेश नहीं करने जा रहे हैं। राकेश झुनझुनवाला (RAKESH JHUNJHUNWAALA) ने कहा कि वह शेयर मार्केट में दस्तक देने जा रहे आईपीओ और उनकी भारी वैल्यूएशन को लेकर सोच रहे हैं।

मुनाफे वाले कंपनियों में इंडस्लैंड बैंक, एचसीएल, भारती एयरटेल और हिंडल्को ने जगह बनाई। वही एमएंडएम, बजाज और नेस्ले में नुकसान देखने को मिला है।