Lakhimpur Kheri Case: जमानत के बावजूद जेल से बाहर नहीं आ सके आशीष मिश्रा

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Lakhimpur Kheri Case
locationभारत
userचेतना मंच
calendar26 Jan 2023 02:39 AM
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Lakhimpur Kheri Case: सुप्रीम कोर्ट की तरफ से अंतरिम जमानत मिलने के बाद भी लखीमपुर खीरी कांड के आरोपी आशीष मिश्रा (Ashish Mishra) की आज जेल से रिहाई नहीं हो सकी। उसे दो रात और जेल में ही गुजारना पड़ेगी। कोर्ट ने आशीष मिश्रा को जमानत देते हुए कहा कि फिलहाल आशीष को 8 सप्ताह के लिए रिहा किया जा रहा है, लेकिन शर्तों के उल्लंघन पर जमानत रद्द हो सकती है।

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रिहाई के साथ-साथ कोर्ट ने यह शर्त भी रखी है कि उसे एक सप्ताह के भीतर उत्तर प्रदेश छोड़ना होगा। वह फिलहाल दिल्ली में भी नहीं रह सकता। उधर, जमानत का आदेश जेल नहीं पहुंचने की वजह से आशीष मिश्रा की आज रिहाई नहीं हो सकी।

जेल सुपरिटेंडेंट वीके मिश्रा ने बताया कि आशीष मिश्रा की रिहाई का आदेश अभी तक नहीं मिला है। इसलिए उन्हें आज रिहा नहीं किया जाएगा। मुझे लगता है कि गणतंत्र दिवस के चलते कल रिलीज ऑर्डर नहीं आएगा। जब भी हमें उसकी रिहाई का आदेश मिलेगा, उसे छोड़ दिया जाएगा।’

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की पीठ ने निर्देश दिया कि आशीष अंतरिम जमानत की अवधि के दौरान न तो उत्तर प्रदेश और न ही दिल्ली में रह सकेगा। पीठ ने कहा कि वह न्याय के हित को आगे बढ़ाने के लिए और एक तरह से ‘प्रायोगिक आधार’ पर यह फैसला करने के लिए कुछ अंतरिम निर्देश जारी कर रही है कि राज्य और अन्य द्वारा जताई गई आशंकाओं में कोई दम है या नहीं। पीठ ने अपनी संवैधानिक शक्तियों का स्वत: प्रयोग किया और चार आरोपियों गुरुविंदर सिंह, कमलजीत सिंह, गुरुप्रीत सिंह और विचित्र सिंह को अगले आदेश तक अंतरिम जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया। इन आरोपियों को एक अलग प्राथमिकी के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था।

क्या है मामला लखीमपुर खीरी जिले के तिकुनिया में तत्कालीन उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के दौरे का किसानों द्वारा विरोध किए जाने के दौरान तीन अक्टूबर, 2021 को हुई हिंसा में आठ लोगों की मौत हो गई थी। उत्तर प्रदेश पुलिस की प्राथमिकी के अनुसार, एक एसयूवी ने चार किसानों को कुचल दिया था और इस एसयूवी में आशीष बैठा था। इस घटना के बाद एसयूवी के चालक और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दो कार्यकर्ताओं को गुस्साए किसानों ने कथित रूप से पीट-पीट कर मार डाला था। हिंसा में एक पत्रकार की भी मौत हो गई थी।

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Gujarat riots: हत्या का आरोप लगाने से पहले शव होना चाहिए-अदालत

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Gujarat riots
locationभारत
userचेतना मंच
calendar26 Jan 2023 01:07 AM
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Gujarat riots: अहमदाबाद। गुजरात की एक अदालत ने 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद हुए दंगों के एक मामले में सभी आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि हत्या का आरोप लगाते समय पुलिस के पास कम से कम एक शव या उससे जुड़ा कोई सबूत होना चाहिए। इस मामले में लापता 17 व्यक्तियों में से किसी का भी शव नहीं मिला था।

Gujarat riots

गुजरात के पंचमहाल जिले के हलोल कस्बे की अदालत ने मंगलवार को पारित अपने आदेश में कॉर्पस डेलिक्ती (अपराध से संबंधित शव के बारे में लैटिन वाक्यांश) के नियम का हवाला दिया और कहा कि यह सभी अपराधों, विशेष तौर पर किसी हत्या की जांच में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। अदालत ने कहा कि जब तक शव नहीं मिल जाता तब तक किसी को दोषी नहीं ठहराना एक सामान्य नियम है। गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद 27 फरवरी, 2002 को पंचमहाल के देलोल गांव में भड़की हिंसा में 150 से 200 लोगों की भीड़ ने अल्पसंख्यक समुदाय के दो बच्चों सहित 17 सदस्यों पर कथित तौर पर हमला करके उन्हें मार डाला था। पुलिस ने इस मामले में 22 आरोपियों को गिरफ्तार किया था और 2004 में उनके खिलाफ दो अलग-अलग आरोपपत्र दायर किए थे। इनमें से पहले आरोपपत्र में तीन और दूसरे आरोपपत्र में 19 का नाम था। हलोल की अदालत ने मंगलवार को दूसरे आरोपपत्र में 19 में से 14 आरोपियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया। इस मामले के आठ अन्य आरोपियों की 18 साल से अधिक समय तक चले मुकदमे की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई थी और उनके खिलाफ मामला समाप्त कर दिया गया। सभी आरोपी 2006 से जमानत पर थे। पुलिस 17 लापता व्यक्तियों में से किसी के भी शव नहीं खोज सकी, अभियोजन पक्ष ने अदालत के समक्ष आरोप लगाया कि सबूत नष्ट करने के प्रयास में उनमें से कुछ को जिंदा जला दिया गया था और अन्य को हत्या के बाद मिट्टी का तेल और लकड़ी का उपयोग करके जला दिया गया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हर्ष त्रिवेदी की अदालत ने सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि जांच के दौरान बरामद ‘‘पूरी तरह से जली हुई हड्डी के टुकड़ों’’ की डीएनए प्रोफाइलिंग भी नहीं की जा सकी। अदालत ने ‘‘कॉर्पस डेलिक्ती’’ के नियम का हवाला दिया और कहा कि यह सभी अपराधों पर लागू होता है, लेकिन यह हत्या की जांच में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। अदालत ने अपने आदेश में कहा, किसी पर हत्या का आरोप लगाने से पहले पुलिस के पास एक शव या उससे जुड़ा कम से कम एक सबूत होना चाहिए। जब कोई लापता हो जाता है और पुलिस के पास शव नहीं होता है या कोई सबूत नहीं होता, तो पुलिस आगे कैसे आगे बढ़ सकती है? अदालत ने कहा, यह एक सामान्य नियम है कि किसी को तब तक दोषी नहीं ठहराया जा सकता है जब तक कि कॉर्पस डेलिक्ती नहीं हो, यानि जब तक कि मृत का शरीर नहीं मिल जाता। सात जनवरी, 2004 को, जब एफएसएल (फोरेंसिक) विशेषज्ञ ने रिपोर्ट दी कि पूरी तरह से जले हुए हड्डी के टुकड़ों (जो कथित तौर पर लापता व्यक्तियों के थे) से कोई डीएनए प्रोफाइलिंग प्राप्त नहीं की जा सकती, तो स्वत: रूप से कॉर्पस डेलिक्ती के नियम पर विचार करने की आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि पुलिस को कथित हत्या पीड़ितों के शव नहीं मिले, न ही यह अपराध करने में मिले हथियारों की भूमिका या अपराध के स्थान पर आरोपी व्यक्तियों की मौजूदगी को स्थापित कर सकी। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह भी स्थापित नहीं कर सका कि भीड़ ने अपराध के स्थान तक मुस्लिम समुदाय के सदस्यों का पीछा किया, न ही किसी ज्वलनशील तरल पदार्थ की उपस्थिति स्थापित की जा सकी। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि कुछ पीड़ितों को जलाकर मार डाला गया था और अन्य को हत्या के बाद जला दिया गया था। मामले के विवरण के अनुसार, एक मार्च, 2002 को, गोधरा ट्रेन अग्निकांड को लेकर देलोल और पड़ोसी गांवों से धारदार हथियारों और लाठियों से लैस 150-200 लोगों की भीड़ ने मुस्लिम समुदाय के लोगों पर हमला किया था। अभियोजन पक्ष ने कहा कि लगभग दो हफ्ते बाद, एक राहत शिविर से 17 लोग लापता थे और उन पर भीड़ ने हमला किया था। उसने कहा कि उस साल मई में पुलिस ने गांव के पास एक खेत से कुछ हड्डियों के अवशेष बरामद किए थे। एक फोरेंसिक जांच के बाद, ये बात सामने आयी थी कि वे जली हुई हड्डियां थीं। पुलिस के अनुसार, धारदार हथियारों से लैस और मिट्टी तेल लिये लोगों की भीड़ ने 17 लोगों पर हमला किया गया और उन्हें जला दिया था। पुलिस ने बाद में 22 आरोपियों को गिरफ्तार किया और उनमें से तीन के खिलाफ 14 अप्रैल, 2004 को और 19 अन्य के खिलाफ 31 अगस्त, 2004 को आरोप पत्र दायर किया। दोनों मामलों में न्यायिक कार्यवाही एक साथ की गई। मुकदमे के लंबित रहने के दौरान तीन आरोपियों की मृत्यु हो जाने के बाद गोधरा की एक अदालत ने पहले मामले को समाप्त कर दिया। दूसरे मामले को बाद में हलोल स्थानांतरित कर दिया गया था जिनमें 19 व्यक्ति आरोपी थे

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PM Modi Brothers Sombhai खुद को PM का भाई नहीं कहते, उनके ही बड़े भाई

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PM Modi Brothers
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 01:41 AM
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PM Modi Brothers Sarabhai: मेहसाणा। गुजरात राज्य का एक शानदार जनपद मेहसाणा। इस जनपद में बसा है एक गांव जिसे वडनगर के नाम से जाना जाता हैं। इस गांव की ढाई हजार साल पुरानी अपनी संस्कृति है, लेकिन इस सबसे बढ़कर यदि यहां कुछ है तो PM Modi का बचपन की यादें। यह गांव पीएम मोदी की तमाम तरह की यादों को संजोएं हुए हैं। इस गांव में एक शख्स ऐसा भी है, जो कहता है कि मैं PM का भाई नहीं, मैं नरेंद्र मोदी का भाई हूं। PM के लिए पूरे देश की जनता भाई बहन है।

PM Modi Brothers Sombhai

पिछले दिनों चेतना मंच की टीम ने इस गांव का भ्रमण किया और PM नरेंद्र मोदी के जीवन से जुड़ी तमाम तरह की यादों को संग्रहित किया। पीएम मोदी के बचपन के अल्हडपन से उनके बड़े भाई, सोम भाई से चेतना मंच की टीम ने विस्तार से बातचीत की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बड़े भाई सोम दादा गांव में एक वृद्धाश्रम चलाते हैं। वह खेल विभाग में डिस्ट्रिक्ट सैनेटरी इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत थे, लेकिन उन्होंने 1993 में नौकरी छोड़ दी और सीनियर सिटीजन की सेवा में लग गए। खास बात यह है कि देश की इतनी बड़ी शख्सियत पीएम के बड़े भाई होने के बावजूद उन्हें इस बात का जरा भी गुमान नहीं है कि वह प्रधानमंत्री के बड़े भाई है। वह स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि मैं नरेंद्र मोदी का बड़ा भाई हूं, प्रधानमंत्री का नहीं।

यादें ताजा करते हुए भावुक हो जाते है सोमाभाई

सोम भाई ने चेतना मंच से बातचीत करते हुए सोमा भाई भावुक हो जाते हैं, उनकी आंखों से आंसू छलक आते हैं। पीएम मोदी की स्कूल लाइफ की कुछ यादें शेयर करते हुए बताया कि उत्तरायण का दिन था। गांव के सभी बच्चे पतंग उड़ा रहे थे। इसी दौरान एक कबूतर पतंग की डोर में फंस गया और पेड़ पर जाकर बैठ गया। नरेंद्र मोदी यह सब देख रहे थे तो उनसे रहा नहीं गया। चूंकि कबूतर के पंखों में पतंग की डोर फंस गई थी, और वह उड़ नहीं सकता था, एक बेजुबान जीव का यह दर्द नरेंद्र मोदी से नहीं देखा गया और वह तुरंत पेड़ पर चढ़ गया, अन्य बच्चों ने सोचा कि नरेंद्र पतंग की डोर के लिए पेड़ पर चढ़ा है तो बच्चों इसकी शिकायत स्कूल के प्रिंसिपल से कर दी। प्रिंसिपल ने नरेंद्र मोदी को बुलाया और डांट लगाई तो नरेंद्र ने सफाई देते हुए कहा कि वह पतंग की डोर के लिए नहीं, बल्कि कबूतर की जान बचाने के लिए पेड़ पर चढ़े थे। जिसके बाद प्रिंसिपल को भी बड़ा दुख हुआ।

परिवार से कोई मॉनिटर तक नहीं बना सोम दादा बताते हैं, कि उनके परिवार से कोई सरपंच तक नहीं बना। सरपंच तो दूर परिवार का कोई बच्चा स्कूल में मॉनिटर तक नहीं बना। परिवार के किसी भी सदस्य ने यह नहीं सोचा था कि नरेंद्र मोदी एक दिन इतना बड़ा आदमी बनेगा कि पूरा देश ही नहीं विश्व में भी पहचान बनाएगा। सोम दादा बताते हैं कि वो संघ के साथ जुड़े हुए थे, संघ प्रचारक के तौर पर उनका प्रवास भी ज्यादा रहता था।

किताबें पढ़ना और डिसप्लीन सोम भाई बताते हैं कि नरेंद्र मोदी को किताबें पढ़ने को बहुत शौक है। किताब पढ़ने के लिए वह पब्लिक लाइब्रेरी भी जाते थे। पढ़ाई में वह एवरेज थे। हिस्ट्री, साइंस, मैथमेटिक्स, इन सब विषयों पर उनकी ज्यादा पकड़ है। बचपन में उनकी किताबों के साथ मित्रता थी। स्कूल कभी दो मिनट लेट नहीं गए, स्कूल टीचर की ओर से कभी कोई कप्लेन नहीं आई। अपना काम स्वयं करते थे, स्वावलंबी थे। कभी दूसरों पर डिपेंट नहीं रहे। स्कूल में कभी भी पांच मिनट लेट नहीं गए।

बच्चों के साथ खेलना था शौक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बच्चों के साथ खेलने का बहुत शौक था। वह बड़ा होने के बाद भी बच्चों के साथ खेलना नहीं भूले। सोमा भाई बताते हैं कि गांव में आरएसएस की शाखा चलती थी, तो वहां पर चले जाते थे। तालाब में तैरने का बहुत शौक था पीएम को। वह रोजाना गांव के तालाब में तैरने के लिए जाते थे।

परिवार ने कभी कोई प्रश्न नहीं किया प्रधानमंत्री अपने सभी भाईयों में तीसरे नंबर हैं। उनके परिवार ने उन पर कभी किसी तरह को काई दबाव नहीं बनाया। अपनी खुशी के लिए जो मन में आए, वो सब करते रहते थे। परिवार में कभी कोई ऐसा सवाल नहीं उठता था कि ऐसा क्यों नहीं किया।

​आज भी चिट्ठी लिखकर देते हैं सूचना सोमा भाई बताते हैं कि जब से नरेंद्र पीएम बने हैं, तब से बहुत व्यस्त हो गए हैं। लेकिन परिजनों ने या उन्होंने स्वयं कभी कोई फोन नहीं किया। उनको कभी परेशान नहीं किया। कोई आवश्कता होती है तो खत लिख देते हैं, जब फुर्सत होगी तो पढ़ लेंगे। सोमा भाई बताते हैं कि वह नरेंद्र से मिलने के लिए दिल्ली जाने की जरुरत क्या है। कोई बात होती है तो खत लिख देता हूं।

पीएम को सैनिकों से बड़ा लगाव सोमाभाई के अनुसार, पीएम मोदी को देश के सैनिकों से बड़ा लगाव है। जब भारत और चायना का युद्ध हुआ न, तो उस टाइम पर मेहसाणा होके मिलट्री के जो सोल्जर थे, सैनिक ट्रेन से जाते थे। तो नरेंद्र मेहसाणा पहुंच गया था, सब सोल्जरों को चाय पिलाने के लिए। आज भी वह सैनिकों के कैंप में जाकर सैनिकों के साथ मिलकर दीवाली मनाते हैं। कारगिल को युद्ध हुआ। युद्ध समाप्त हुआ, उसी दिन वो हैलीकाप्टर से कारगिल गए थे। सैनिकों को मिलने के लिए यह उनकी जिंदादिली है।

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