पालक की खेती से पाएं निरंतर आमदनी, जानिए पूरी विधि
हरी सब्जियों में सबसे अधिक लोकप्रिय पालक (Spinacia oleracea) आज हर भारतीय रसोई का अहम हिस्सा बन चुकी है। इसका मूल स्थान ‘ईरान’ माना जाता है। चाहे गृह वाटिका हो या खेत, पालक एक ऐसी फसल है जिसे सालभर उगाकर पोषण और आमदनी दोनों प्राप्त किए जा सकते हैं।

बता दे कि पालक का वैज्ञानिक नाम “ स्पिनेसिया ओलरेसी” है। पालक घर के आस-पास के जमीन में गृह वाटिका के रूप में तैयार भूमि पर भी उगाया जा सकता है। पालक की खेती गृह वाटिका में लगभग सालों भर की जाती है। पालक की खेती आप गृह वाटिका के अलावा व्यापारिक रूप से करके एक अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। पालक सिर्फ स्वाद में ही नहीं बल्कि औषधीय गुणों में भी समृद्ध है। यह पाचन संबंधी रोगों और कब्ज के लिए रामबाण मानी जाती है। सौ ग्राम पालक की पत्तियों में प्रोटीन (1.7 ग्राम), विटामिन A (2578 IU), कैल्शियम (60 मि.ग्रा.), आयरन (5 मि.ग्रा.), और फॉलिक एसिड (127 मि.ग्रा.) सहित कई आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं।
बोआई का सही समय और किस्में
पालक की बोआई का आदर्श समय सितंबर से दिसंबर तक माना जाता है। भारत में इसकी कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जिनमें पूसा हरित, पूसा ज्योति, अर्ली स्मूथ लीफ, वर्जीनिया और जोवनेर ग्रीन प्रमुख हैं। बिहार में विशेष रूप से पूसा हरित और पूसा ज्योति ने बेहतर उत्पादन दिया है।
मिट्टी और खेत की तैयारी
बेहतर पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। खेत को अच्छी तरह जोतकर मिट्टी पलटें और अंतिम जुताई के समय एल्ड्रिन कीटनाशक 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाएं।
खाद और सिंचाई प्रबंधन
प्रति हेक्टेयर निम्न खादों का प्रयोग करें:
- कम्पोस्ट (सड़ा गोबर): 150 क्विंटल
- यूरिया: 1.50–2.00 क्विंटल
- सिंगल सुपर फास्फेट: 2.00–2.50 क्विंटल
- म्यूरेट ऑफ पोटाश: 1.00 क्विंटल
यूरिया की एक चौथाई मात्रा बुवाई के बीस दिन बाद, फिर पहली और दूसरी कटाई के बाद दें। पालक को नाइट्रोजन की विशेष आवश्यकता होती है, इसलिए कटाई के बाद इसका प्रयोग अवश्य करें।
बीज दर और बोआई विधि
प्रति हेक्टेयर 25–30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाकर छिटकाव विधि से बीज बोएं। बुवाई के 15 दिन बाद से हर सप्ताह सिंचाई करें।
आय का साधन भी
पालक की खेती न केवल गृह उपयोग के लिए बल्कि व्यावसायिक स्तर पर भी की जा सकती है। कम लागत में अधिक उत्पादन और तेज कटाई के कारण यह किसानों और शहरी बागवानों दोनों के लिए लाभकारी फसल साबित हो रही है।
बता दे कि पालक का वैज्ञानिक नाम “ स्पिनेसिया ओलरेसी” है। पालक घर के आस-पास के जमीन में गृह वाटिका के रूप में तैयार भूमि पर भी उगाया जा सकता है। पालक की खेती गृह वाटिका में लगभग सालों भर की जाती है। पालक की खेती आप गृह वाटिका के अलावा व्यापारिक रूप से करके एक अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं। पालक सिर्फ स्वाद में ही नहीं बल्कि औषधीय गुणों में भी समृद्ध है। यह पाचन संबंधी रोगों और कब्ज के लिए रामबाण मानी जाती है। सौ ग्राम पालक की पत्तियों में प्रोटीन (1.7 ग्राम), विटामिन A (2578 IU), कैल्शियम (60 मि.ग्रा.), आयरन (5 मि.ग्रा.), और फॉलिक एसिड (127 मि.ग्रा.) सहित कई आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं।
बोआई का सही समय और किस्में
पालक की बोआई का आदर्श समय सितंबर से दिसंबर तक माना जाता है। भारत में इसकी कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जिनमें पूसा हरित, पूसा ज्योति, अर्ली स्मूथ लीफ, वर्जीनिया और जोवनेर ग्रीन प्रमुख हैं। बिहार में विशेष रूप से पूसा हरित और पूसा ज्योति ने बेहतर उत्पादन दिया है।
मिट्टी और खेत की तैयारी
बेहतर पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। खेत को अच्छी तरह जोतकर मिट्टी पलटें और अंतिम जुताई के समय एल्ड्रिन कीटनाशक 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाएं।
खाद और सिंचाई प्रबंधन
प्रति हेक्टेयर निम्न खादों का प्रयोग करें:
- कम्पोस्ट (सड़ा गोबर): 150 क्विंटल
- यूरिया: 1.50–2.00 क्विंटल
- सिंगल सुपर फास्फेट: 2.00–2.50 क्विंटल
- म्यूरेट ऑफ पोटाश: 1.00 क्विंटल
यूरिया की एक चौथाई मात्रा बुवाई के बीस दिन बाद, फिर पहली और दूसरी कटाई के बाद दें। पालक को नाइट्रोजन की विशेष आवश्यकता होती है, इसलिए कटाई के बाद इसका प्रयोग अवश्य करें।
बीज दर और बोआई विधि
प्रति हेक्टेयर 25–30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाकर छिटकाव विधि से बीज बोएं। बुवाई के 15 दिन बाद से हर सप्ताह सिंचाई करें।
आय का साधन भी
पालक की खेती न केवल गृह उपयोग के लिए बल्कि व्यावसायिक स्तर पर भी की जा सकती है। कम लागत में अधिक उत्पादन और तेज कटाई के कारण यह किसानों और शहरी बागवानों दोनों के लिए लाभकारी फसल साबित हो रही है।







