जनता ढूंढ रही, कहां है डिप्टी रजिस्ट्रार का दफ्तर!

जनता ढूंढ रही, कहां है डिप्टी रजिस्ट्रार का दफ्तर!
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 09:35 AM
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दरअसल 2 जुलाई को नोएडा के विधायक पंकज सिंह ने ट्वीट करके जानकारी दी थी कि उनके प्रयासों के बाद अंतत: शासन ने नोएडा में डिप्टी रजिस्ट्रार (पंजीयन फम्र्स सोसाइटी) मेरठ का दफ्तर नोएडा तथा गाजियाबाद में खोलने पर मोहर लगा दी है। नोएडा में दो दिन तथा गाजियाबाद में एक दिन डिप्टी रजिस्ट्रार बैठेंगे। लेकिन आज दो माह 12 दिन बीत गये हैं लेकिन अभी तक नोएडा में यह दफ्तर नहीं खुल पाया है। युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष पुरूषोत्तम नागर ने बताया कि भाजपा सरकार की ऐसी ही कार्यप्रणाली है। भाजपा के नेताओं, मंत्रियों तथा विधायकों की कथनी-करनी में काफी अंतर है। कांग्रेस के उपाध्यक्ष व मीडिया प्रभारी पवन शर्मा का कहना है कि प्रदेश तथा देश में इसी झूठे वादों पर सरकार चल रही है। इसलिए नोएडा का उदाहरण इससे इतर नहीं है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता कुंवर बिलाल बर्नी का कहना है कि दूसरे के किये कार्यों तथा उपलब्धियों को अपना बताकर श्रेय लेना तथा झूठे वादों के जरिए आम जनता के साथ छलावा करना तो भाजपा के डीएनए में है। ऐसे में यदि भाजपा के विधायक के दावे झूठे साबित हुए तो इसमें जनता को हैरानी नहीं होनी चाहिए।
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35 दरोगा इधर से उधर

35 दरोगा इधर से उधर
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 05:02 AM
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नोएडा (चेतना मंच)। पुलिस कमिश्नरेट गौतमबुद्धनगर के ग्रेटर नोएडा जोन में 3 वर्ष से ऊपर की समय अवधि पूरा कर चुके 35 दारोगाओं का तबादला किया गया है। इनमें कई चौकी इंचार्ज भी शामिल हैं। डीसीपी ग्रेटर नोएडा जोन अभिषेक ने बताया कि इन सभी दारोगाओं को दूसरे सब डिवीजन में स्थानांतरित किया गया है। इसमें कोतवाली बीटा-2 के परी चौक चौकी इंचार्ज अखिलेश दीक्षित को कोतवाली नॉलेज पार्क, चौकी इंचार्ज अल्फा कमर्शियल बेल्ट अनु प्रताप सिंह को कोतवाली दादरी चौकी इंचार्ज ऐच्छर शैलेंद्र सिंह तोमर को कोतवाली दनकौर, चौकी इंचार्ज बीटा-2 अनुज कुमार को कोतवाली कासना, चौकी इंचार्ज  एडब्ल्यूएचओ कृष्णवीर कुंतल को कोतवाली .जारचा स्थानांतरित किया गया है। इस तरह वीरेंद्र सिंह को कोतवाली बीटा-2 से कोतवाली नॉलेज पार्क, रितेश कुमार को दादरी, कपिल देव को जारचा, अशोक कुमार को दादरी, नसीम अहमद को कोतवाली नॉलेज पार्क से कोतवाली जेवर, नरेंद्र कुमार शर्मा को रबूपुरा, महिला दारोगा रेखा चौधरी को कासना, देशपाल सिंह को कोतवाली दादरी से कोतवाली दनकौर, यशपाल शर्मा को जेवर, महिला दारोगा प्रीति चहल को रबूपुरा, जौहर सिंह को दनकौर, सत्यवीर सिंह को कासना, सुधाकर सिंह को दनकौर, रविंद्र गौतम को कोतवाली जारचा से कोतवाली जेवर, रामकिशोर को रबूपुरा, मैनपाल को कासना, अनिल कुमार को दनकौर, सुरेंद्र पाल सिंह को जेवर, बृजेश पाल सिंह को कोतवाली कासना से कोतवाली दादरी,रविन्द्र सिंह को कोतवाली इकोटेक-1 से कोतवाली जारचा, विजय सिंह को कोतवाली जेवर से कोतवाली नॉलेज पार्क, सोनू बाबू को दादरी, राजवीर सिंह को जारचा, शरद यादव को नॉलेज पार्क,महिला दारोगा श्वेता को दादरी, देवेंद्र को जारचा, रवि कुमार को नॉलेज पार्क, अशोक कुमार नौहवार को कोतवाली रबूपुरा से कोतवाली दादरी और कोतवाली कासना,जगत फार्म चौकी इंचार्ज राकेश बाबू कोकोतवाली जेवर स्थानांतरित किया गया है। एसएसआई दनकौर फिरोज खान को कोतवाली नॉलेज पार्क में स्थानांतरित किया गया है। आदेश जारी करते हुए डीसीपी ग्रेटर नोएडा जोन अभिषेक ने सभी दारोगाओं को तत्काल प्रभाव से नई तैनाती को ज्वाइन करने के आदेश दिए हैं।
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गुर्जर समाज में बढ़ रही है बेचैनी!

गुर्जर समाज में बढ़ रही है बेचैनी!
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 10:35 AM
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उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव 2022 का चुनावी समर शुरू हो चुका है। सभी राजनीतिक दल वोटर्स को लुभाने के लिए अपनी-अपनी तरह से जातीय समीकरण साधने के प्रयास में जुट गए हैं। कोई पिछड़ी जातियों को साधने में जुटा हुआ है, तो कोई मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए प्रयास करता नजर आ रहा है। कोई ब्राह्मण समाज को संतुष्ट करने पर लगा हुआ है, तो कोई अनुसूचित जातियों के बिखराव को इक_ा करने पर लग गया है। कोई किसान आंदोलन के कारण जाट समाज में फैले असंतोष को साधने में लगा है तो कोई प्रदेश में निवास करने वाली जातियों को जोडऩे के लिए सामाजिक सम्मेलनों में जुट गया है। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी राजनीतिक दल अपने अपने तरीके से विभिन्न जातियों को साधने में जुट गए हैं। क्योंकि उत्तर प्रदेश में जातिगत राजनीति ही सत्ता पर पहुंचाने का काम करती रही है। ऐसे में सभी जातियों के नेताओं को मोर्चा बंदी पर लगा दिया गया है। लेकिन इस सबके बीच पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई दर्जन सीटों पर चुनावी परिणाम देने और परिणाम बदलने की क्षमता रखने वाले गुर्जर समाज में असंतोष और बेचैनी का माहौल इसलिए नजर आ रहा है क्योंकि अभी तक कोई भी दल इस समाज को अपने साथ जोडऩे के लिए लालायित नजर नहीं आ रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अधिकतर सीटों पर चुनावी परिणाम बदलने की हैसियत रखने वाले इस गुर्जर समाज को राजनीति हाशिये पर पहुंचाने का जिम्मेदार कौन है? यह तो बहस का लंबा विषय है। लेकिन मेरी निजी राय के मुताबिक गुर्जर समाज के अग्रणीय लोगों अथवा राजनेताओं को इसके लिए दोषी ठहराया जा सकता हैं।  जिन्हें समाज ने किसी न किसी रूप में आगे बढ़ाने का काम किया है लेकिन उन्होंने मौका पाने के बाद भी इस समाज को संगठित करने पर फोकस नहीं किया। यहां मेरा तात्पर्य किसी को दोषारोपित करने का नहीं बल्कि गुर्जर समाज में बढ़ती राजनीतिक बेचैनी और असंतोष को बयां करना है। नि:संदेह दिल्ली और दिल्ली के आसपास के राज्यों में आर्थिक रूप से समृद्ध माने जाने वाला गुर्जर समाज राजनीतिक रूप से पूरी तरह से हाशिए पर पहुंच गया है। ऐसा भी नहीं की किसी राजनीतिक दल ने इस समाज के लोगों को आगे बढऩे का मौका न दिया हो असलियत यह है कि जिन लोगों को सत्तासीन राजनीतिक दलों ने आगे बढऩे का मौका दिया, गुर्जर समाज के प्रति उनकी सोच और मानसिकता विस्तृत नहीं रही। बल्कि देश और प्रदेश स्तर पर बदले राजनीतिक परिवेश और बदली सत्ता के साथ गुर्जर समाज के इन अग्रणीय लोगों ने भी अपनी राजनीतिक आस्थायें बदलीं, लेकिन यह आस्थायें गुर्जर समाज के हित में नहीं बल्कि निजी हित में लाभ अर्जित करने के लिए परिवर्तित की गई नजर आती हैं। शायद यह भी गुर्जर समाज के राजनीतिक हाशिए पर पहुंचने का एक कारण रहा है। क्योंकि इससे गुर्जर समाज के प्रति राजनीतिक दलों का विश्वास डगमगाया है। हालांकि अगर अन्य समाज और जातियों पर नजर डाली जाए तो उनके नेता भी अलग-अलग दलों में रहकर राजनीति कर रहे हैं। लेकिन उन सब का फोकस सामाजिक संगठन पर और अपने समाज को राजनीतिक ताकत देने का रहता है। सतपाल मलिक राज्यपाल का ताजा तरीन उदाहरण आप सबके समक्ष है। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि राजेश पायलट की समालखा में आयोजित रैली के बाद, राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन के अतिरिक्त, गुर्जर समाज अपनी ताकत और संगठन का सत्ता और सरकारों को एहसास नहीं करा पाया है। यह बात कोई नई नहीं है बल्कि हम सब जानते हैं लेकिन लाख टके की बात यह है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे"। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं इस काम को करने का बीड़ा और जिम्मेदारी केवल वह लोग उठा सकते हैं जिन्हें गुर्जर समाज ने आज तक अपनी वोट रूपी ताकत से सींचा है। जिस दिन गुर्जर समाज अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास करा देगा उस दिन सभी राजनीतिक दल इस समाज के प्रति लालायित नजर आएंगे। हालांकि गुर्जर समाज के राजनीतिक हाशिए पर आने का यह भी एक बड़ा कारण रहा है कि विभिन्न राजनीतिक दलों ने जिन लोगों को राजनीतिक ताकत देकर आगे बढ़ाने का काम किया उनमें से प्राय: अधिकतर विचार शून्य रहे हैं। इसीलिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गुर्जर समाज के लिए आगामी विधानसभा चुनाव एक बड़ी राजनीतिक चुनौती की परीक्षा है । देखना यह है कि राजनीतिक हाशिए पर पहुंची गुर्जर समाज की राजनीति को इस समाज के अग्रणीय नेता क्या दिशा और दशा देने का काम करेंगे?