Sunday, 30 June 2024

‘सतानत सभ्यता, भारत और राजनीति’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन

Delhi News / राष्ट्र प्रेम को समर्पित स्वयं सेवी संस्था राष्ट्रचिंतना की ओर से रविवार को ‘सतानत सभ्यता, भारत और…

‘सतानत सभ्यता, भारत और राजनीति’ विषय पर गोष्ठी का आयोजन

Delhi News / राष्ट्र प्रेम को समर्पित स्वयं सेवी संस्था राष्ट्रचिंतना की ओर से रविवार को ‘सतानत सभ्यता, भारत और राजनीति’ विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस वृहद स्तरीय गोष्ठी में वक्ताओं ने विषयानुसार अपना अपना व्याख्यान दिया।

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दिल्ली के वर्ल्ड पब्लिक स्कूल में आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए राष्ट्रचिंतना के अध्यक्ष प्रोफेसर बलवंत राजपूत ने कहा कि सनातन के संदर्भ में अनेक अज्ञानी एवम अहंकारी राजनीतिज्ञों द्वारा अनर्गल व्यक्तव्य दिए जा रहे हैं। इन ईर्ष्याजनित मिथ्या प्रलापों का चिरंतन एवं सास्वत सनातन जीवन पद्धति और मौलिक दर्शन पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। सनातन को समस्त विश्व के कल्याण एवं शांति के जीवन दर्शन के रूप में बताया जा सकता है जिसमें सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामय और अंतरिक्ष से लेकर पृथ्वी, जल और औषधि की शांति की बात कही गई है। वसुधैव कुटुंबकम् की बात कही गई है। ऐसी परिकल्पना विश्व के किसी अन्य जीवन दर्शन में नहीं है।

उन्होंने कहा कि सनातन वैदिक धर्म है, चिरंतन एवं सास्वत है, सरल शब्दों में सनातन का अर्थ गौ, गंगा एवम गायत्री की पूजा, अनहत नाद (ॐ) को सदा ह्रदय में धारण रखना तथा पुनर्जन्म के सिद्धांत पर विश्वास है। जो अज्ञानी सनातन (और उसके मानने वाले हिंदू) को समाप्त करने के अनर्गल प्रलाप करते हैं, वे जीभ से महासागर को सोखने की मूर्खतापूर्ण कल्पना करते हैं। सनातन संस्कृति से ही विश्व में शांति स्थापित हो सकती है और विश्व बंधुत्व स्थापित हो सकता है।

गोष्ठी के मुख्य वक्ता, भृगु पीठाधीश्वर स्वामी सुशील ने कहा कि भगवान राम के चरित्र को सारी दुनिया में प्रचारित प्रसारित करने में अपनी जिंदगी लगा दी। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व के मायने व्यक्ति को अपने परिवार को समझाने में समय लगाना चाहिए जैसे भारतीय संस्कृति का अनुभव स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व को करवाया जब उनके पास टिकट के पैसे नहीं थे लेकिन आत्म बल था विश्वास था। उन्हीं को अपना आदर्श मानकर स्वामी सुशील ने भी मोरक्को में भारतीय सभ्यता संस्कृति का विस्तार से परिचय करवाया वहां अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि भारत की जो जीवन पद्धति है वह हमारे अंतर्मन में है। परिवार में बच्चे अपने धर्मस्थल में कभी कभी ही जाते हैं। इन सब समस्याओं का निवारण हमें अपने घर से ही करना पड़ेगा। जो भी देश पूर्व में अखंड भारत का हिस्सा थे, वहां आज भी भारतीय सभ्यता संस्कृति के अंश दिखाई देते हैं। मंदिर के पुजारी को धर्म के कार्य करने के लिए कोई मानदेय नहीं दिया जाता लेकिन मस्जिद और चर्च में नमाज व प्रेयर करने वालों को सरकार मानदेय देती है, जो आज भी दी जा रही है, यह कहां तक सही है।

कैप्टन शशि भूषण त्यागी ने अपने वक्तव्य में कहा कि ॐ सनातन का बीज मंत्र है। सकारात्मकता के साथ बोलने पर सभी के कल्याण का कारण है, जैसे शांति पाठ में हम सभी की भलाई की कामना करते हैं। उन्होंने मेजर जनरल जीडी बक्शी साहब की पुस्तकों का वर्णन किया और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के डॉक्टर ए एन चौधरी द्वारा सरस्वती नदी से संबंधित किए गए तथ्यात्मक शोध के बारे में प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे सरस्वती नदी का उद्गम हड़प्पा संस्कृति से भी प्राचीन है।

गोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. बलवंत सिंह राजपूत तथा संचालन प्रो. विवेक कुमार ने किया। गोष्ठी में राष्ट्रचिंतना के उपाध्यक्ष राजेंद्र सोनी, संयुक्त सचिव मेजर निशा सिंह, सह व्यवस्था प्रमुख उमेश पांडे, कोषाध्यक्ष मेजर सुदर्शन, मीडिया प्रमुख डॉ. नीरज कौशिक, अरविन्द कुमार साहू, कैप्टन अजय पाल सिंह, डॉ. बी के श्रीवास्तव, दीवान सिंह, रवेन्द्र पाल सिंह, उमेश ठाकुर, विजेंद्र सिंह, जूली शर्मा, कैप्टन शशि भूषण, धर्मपाल भाटिया, भोला ठाकुर आदि उपस्थित थे।

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