Delhi News : सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने हाल ही में भारतीय न्यायपालिका की विश्वसनीयता और कार्यप्रणाली पर महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ की हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि आम आदमी का न्यायपालिका पर विश्वास कम हुआ है और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम यह समझें कि हम कहाँ गलत हुए हैं।
गुणवत्तापूर्ण और शीघ्र न्याय मिलना मुश्किल
न्यायमूर्ति ओका ने न्याय तक पहुँच की अवधारणा पर बल देते हुए कहा कि यह केवल अदालत में मामला दायर करने या पुलिस में शिकायत दर्ज कराने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उचित लागत पर गुणवत्तापूर्ण और शीघ्र न्याय प्रदान करने से संबंधित है। उन्होंने सुझाव दिया कि हमें पीछे मुड़कर देखना चाहिए और यह मूल्यांकन करना चाहिए कि न्यायालयों ने आम आदमी की अपेक्षाओं को कितना पूरा किया है।
लोगों में मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि संविधान के 75 वर्षों के बावजूद, मौलिक अधिकारों और शक्तियों पर चर्चा अभी भी तथाकथित अभिजात्य वर्ग तक सीमित है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन चचार्ओं को जमीनी स्तर तक ले जाने और लोगों में मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
अदालतों में धार्मिक अनुष्ठानों को समाप्त किया जाए
इसके अलावा, न्यायमूर्ति ओका ने अदालतों में धार्मिक अनुष्ठानों को समाप्त करने और संविधान की प्रस्तावना के प्रति सम्मान प्रकट करने की वकालत की। उन्होंने सुझाव दिया कि अदालतों के कार्यक्रमों में पूजा-अर्चना के बजाय संविधान की प्रस्तावना की एक तस्वीर रखी जाए और उसके सामने सिर झुकाया जाए, ताकि धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा दिया जा सके। इन टिप्पणियों से स्पष्ट है कि न्यायमूर्ति ओका न्यायपालिका की खामियों को स्वीकार करने, उनमें सुधार करने और संविधान के मूल्यों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दे रहे हैं, ताकि आम आदमी का न्यायपालिका पर विश्वास पुन: स्थापित हो सके। Delhi News
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