धर्म-अध्यात्म : ज्ञान प्रकाश है और अज्ञान अंधकार!


विनय संकोची
अंधकार का सीधा सा अर्थ प्रकाश का अभाव, उजाले की अनुपस्थिति है। जहां प्रकाश नहीं होगा वही अंधकार हो सकता है, होता है। प्रकाश दो प्रकार का होता है - बाहरी और आंतरिक। बाह्य अंधकार को प्राकृतिक साधनों और कृत्रिम संसाधनों के माध्यम से दूर किया जा सकता है, इसमें बहुत ज्यादा कठिनाई नहीं होती है। इसके विपरीत जो अंधकार व्यक्ति के अंदर पलता है, उससे मुक्ति पाना आसान नहीं है। बाह्य संसाधनों से तो बिल्कुल भी नहीं। इसे तो सूर्य का प्रकाश भी मिटा पाने में समर्थ नहीं है।
आशा प्रकाश है और निराशा अंधकार। चिंतन उजाला है और चिंता अंधेरा। सकारात्मकता प्रकाश का ही एक रूप है और नकारात्मकता अंधकार का। ज्ञान रोशनी का पर्याय है, अज्ञान तिमिर का। सत्य प्रकाश का द्योतक है और असत्य अंधेरे का। व्यक्ति इन्हीं उजियारी - अंधियारों के बीच अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत करता है।
जिसके अंतर में अंधकार का 'वास' होता है, वही बेचैन भी रहता है और उसी के भटकने की आशंका भी सबसे अधिक रहती है। जिसके अंदर अंधकार का साम्राज्य स्थापित हो जाता है, वह दूसरों को छोड़ो स्वयं तक को पहचान नहीं पाता है। अंधकार में पलने वाले को प्रकाश चुभता है। अंदर का अंधेरा अज्ञान का पर्याय है और अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान के प्रकाश से ही भगाया जा सकता है।
एक सबसे बड़ी बात यह है कि जिसके भीतर अज्ञान का अंधेरा फैला होता है, वह अधिकांशतः उन लोगों से दूर - दूर रहता है, जिनका अंतर ज्ञान के प्रकाश से जगमग - जगमग कर रहा होता है। वह अज्ञानी अपने जैसों के पास जाकर ही बैठना पसंद करता है। उसे लगता है कि इसी में उसकी भलाई है। लेकिन उस पर पड़ता तो विपरीत प्रभाव ही है। उसके मन का अंधकार अपने जैसों की संगति से और अधिक गहराता चला जाता है और अज्ञान बढ़ता जाता है। इस सत्य से कौन परिचित नहीं है कि व्यक्ति जैसी संगति में बैठता है वैसा ही बनता चला जाता है। संगति का प्रभाव कम ज्यादा हो सकता है, लेकिन प्रभाव पड़े ही नहीं, ऐसा संभव नहीं है। जब अज्ञानियों के बीच में ही बैठेंगे तो ज्ञान का प्रकाश कहां से फुटेगा?
अज्ञानी धीरे-धीरे अंधेरों को पूजने लगते हैं और ज्ञान का प्रकाश बांटने वालों को अपना शत्रु मान कर बैठ जाते हैं। उन्हें लगता है कि ज्ञानी उनके अज्ञानी होने का उपहास करते हैं। ऐसी सोच हमें रोशनी से मुलाकात नहीं करने देती है यह एक बड़ी भारी विडंबना है।
अंधकार से भय उत्पन्न होता है और व्यक्ति अंधेरे में पड़ी रस्सी को भी सांप समझने की गलती कर बैठता है। ठीक इसी तरह जिसके मन में अंधकार पांव जमा लेता है, वह निर्णय करने में, सही गलत की पहचान करने में चूक कर जाता है। विश्वास प्रकाश का और अंधविश्वास अंधकार का प्रतीक है। अज्ञानी अविश्वास और अंधविश्वास के अंधकार में भटकते हुए, स्वयं अपने ऊपर तक विश्वास करने से बचता रहता है, बचने लगता है। ...और आत्मविश्वास प्रभावित होने का अर्थ उजाले से दूर होने के अतिरिक्त और क्या हो सकता है?
जिनके अंदर अज्ञान का अंधकार धुंधले से गहन और गहनतम स्थिति को प्राप्त होता जाता है, उनका विवेक उनका साथ छोड़ देता है। या यूं कहे कि उनका विवेक काम करना बंद कर देता है। विवेक प्रकाश है, जिसके लुप्त होने का अर्थ व्यक्ति का अविवेकी होना है और अविवेकी सही निर्णय कब ले पाता है? मूर्च्छित विवेक से कोई उचित निर्णय कैसे लिया जा सकता है। भटके हुए रही से मंजिल का पता पूछना, किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता है विवेक रूपी प्रकाश का आदर करने से अंधेरा छा जाता है। विवेक का अनादर उपेक्षा करने से अंधकार निरंतर गहराता चला जाता है। मूर्च्छित विवेक को कंधे पर लादे लोग भ्रम और अंधकार के वशीभूत होकर उन लोगों के पास जाने में हेठी समझते हैं, जिनको प्रकाश के स्रोत का सही पता मालूम होता है, जो उन्हें अंधेरे से निकालकर प्रकाश में लाकर खड़ा करने की क्षमता रखते हैं, जो उनके मन की अंधेरी कोठरी में ज्ञान का सूरज उगा सकते हैं, जो उनका हाथ पकड़कर उजियारे से सीधा परिचय करा सकते हैं।
अज्ञान हमेशा ज्ञान से मुंह चुराता है, दूर भागता है, क्योंकि अज्ञान में छिपा अंधकार उसे झुकने की इजाजत नहीं देता है और ज्ञान बिना झुके न तो प्राप्त होता है और न ही प्राप्त किया जा सकता है। अंधकार से मुक्ति के लिए प्रकाश की ओर चलना ही होगा।
अगली खबर पढ़ें

विनय संकोची
अंधकार का सीधा सा अर्थ प्रकाश का अभाव, उजाले की अनुपस्थिति है। जहां प्रकाश नहीं होगा वही अंधकार हो सकता है, होता है। प्रकाश दो प्रकार का होता है - बाहरी और आंतरिक। बाह्य अंधकार को प्राकृतिक साधनों और कृत्रिम संसाधनों के माध्यम से दूर किया जा सकता है, इसमें बहुत ज्यादा कठिनाई नहीं होती है। इसके विपरीत जो अंधकार व्यक्ति के अंदर पलता है, उससे मुक्ति पाना आसान नहीं है। बाह्य संसाधनों से तो बिल्कुल भी नहीं। इसे तो सूर्य का प्रकाश भी मिटा पाने में समर्थ नहीं है।
आशा प्रकाश है और निराशा अंधकार। चिंतन उजाला है और चिंता अंधेरा। सकारात्मकता प्रकाश का ही एक रूप है और नकारात्मकता अंधकार का। ज्ञान रोशनी का पर्याय है, अज्ञान तिमिर का। सत्य प्रकाश का द्योतक है और असत्य अंधेरे का। व्यक्ति इन्हीं उजियारी - अंधियारों के बीच अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत करता है।
जिसके अंतर में अंधकार का 'वास' होता है, वही बेचैन भी रहता है और उसी के भटकने की आशंका भी सबसे अधिक रहती है। जिसके अंदर अंधकार का साम्राज्य स्थापित हो जाता है, वह दूसरों को छोड़ो स्वयं तक को पहचान नहीं पाता है। अंधकार में पलने वाले को प्रकाश चुभता है। अंदर का अंधेरा अज्ञान का पर्याय है और अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान के प्रकाश से ही भगाया जा सकता है।
एक सबसे बड़ी बात यह है कि जिसके भीतर अज्ञान का अंधेरा फैला होता है, वह अधिकांशतः उन लोगों से दूर - दूर रहता है, जिनका अंतर ज्ञान के प्रकाश से जगमग - जगमग कर रहा होता है। वह अज्ञानी अपने जैसों के पास जाकर ही बैठना पसंद करता है। उसे लगता है कि इसी में उसकी भलाई है। लेकिन उस पर पड़ता तो विपरीत प्रभाव ही है। उसके मन का अंधकार अपने जैसों की संगति से और अधिक गहराता चला जाता है और अज्ञान बढ़ता जाता है। इस सत्य से कौन परिचित नहीं है कि व्यक्ति जैसी संगति में बैठता है वैसा ही बनता चला जाता है। संगति का प्रभाव कम ज्यादा हो सकता है, लेकिन प्रभाव पड़े ही नहीं, ऐसा संभव नहीं है। जब अज्ञानियों के बीच में ही बैठेंगे तो ज्ञान का प्रकाश कहां से फुटेगा?
अज्ञानी धीरे-धीरे अंधेरों को पूजने लगते हैं और ज्ञान का प्रकाश बांटने वालों को अपना शत्रु मान कर बैठ जाते हैं। उन्हें लगता है कि ज्ञानी उनके अज्ञानी होने का उपहास करते हैं। ऐसी सोच हमें रोशनी से मुलाकात नहीं करने देती है यह एक बड़ी भारी विडंबना है।
अंधकार से भय उत्पन्न होता है और व्यक्ति अंधेरे में पड़ी रस्सी को भी सांप समझने की गलती कर बैठता है। ठीक इसी तरह जिसके मन में अंधकार पांव जमा लेता है, वह निर्णय करने में, सही गलत की पहचान करने में चूक कर जाता है। विश्वास प्रकाश का और अंधविश्वास अंधकार का प्रतीक है। अज्ञानी अविश्वास और अंधविश्वास के अंधकार में भटकते हुए, स्वयं अपने ऊपर तक विश्वास करने से बचता रहता है, बचने लगता है। ...और आत्मविश्वास प्रभावित होने का अर्थ उजाले से दूर होने के अतिरिक्त और क्या हो सकता है?
जिनके अंदर अज्ञान का अंधकार धुंधले से गहन और गहनतम स्थिति को प्राप्त होता जाता है, उनका विवेक उनका साथ छोड़ देता है। या यूं कहे कि उनका विवेक काम करना बंद कर देता है। विवेक प्रकाश है, जिसके लुप्त होने का अर्थ व्यक्ति का अविवेकी होना है और अविवेकी सही निर्णय कब ले पाता है? मूर्च्छित विवेक से कोई उचित निर्णय कैसे लिया जा सकता है। भटके हुए रही से मंजिल का पता पूछना, किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता है विवेक रूपी प्रकाश का आदर करने से अंधेरा छा जाता है। विवेक का अनादर उपेक्षा करने से अंधकार निरंतर गहराता चला जाता है। मूर्च्छित विवेक को कंधे पर लादे लोग भ्रम और अंधकार के वशीभूत होकर उन लोगों के पास जाने में हेठी समझते हैं, जिनको प्रकाश के स्रोत का सही पता मालूम होता है, जो उन्हें अंधेरे से निकालकर प्रकाश में लाकर खड़ा करने की क्षमता रखते हैं, जो उनके मन की अंधेरी कोठरी में ज्ञान का सूरज उगा सकते हैं, जो उनका हाथ पकड़कर उजियारे से सीधा परिचय करा सकते हैं।
अज्ञान हमेशा ज्ञान से मुंह चुराता है, दूर भागता है, क्योंकि अज्ञान में छिपा अंधकार उसे झुकने की इजाजत नहीं देता है और ज्ञान बिना झुके न तो प्राप्त होता है और न ही प्राप्त किया जा सकता है। अंधकार से मुक्ति के लिए प्रकाश की ओर चलना ही होगा।
संबंधित खबरें
अगली खबर पढ़ें







