पहली बार कब और कहां जलाया गया था रावण का पुतला? पढ़ें दिलचस्प जानकारी

रावण दहन की शुरुआत कब और कहां हुई?
हालांकि रावण दहन की परंपरा को लेकर कोई प्रामाणिक ऐतिहासिक तिथि नहीं मिलती लेकिन उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, भारत में पहली बार रावण का पुतला वर्ष 1948 में रांची में जलाया गया था। बताया जाता है कि यह आयोजन पाकिस्तान से आए शरणार्थियों द्वारा किया गया था जो उस समय के माहौल में सांस्कृतिक जुड़ाव और धार्मिक आस्था का प्रतीक बन गया। इसके कुछ वर्षों बाद, दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में पहली बार रावण दहन 17 अक्टूबर 1953 को हुआ जो आज देश के सबसे बड़े दशहरा आयोजनों में से एक माना जाता है।दशहरा को ‘विजयदशमी’ क्यों कहते हैं?
दशहरा को ‘विजयदशमी’ कहा जाता है क्योंकि यह अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को मनाया जाता है। इस दिन से जुड़े दो प्रमुख धार्मिक प्रसंग हैं। भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण का वध किया था यह सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है। मां दुर्गा ने इसी दिन महिषासुर का वध कर दुष्टता का अंत किया था नवरात्रि की समाप्ति पर यह विजय का पर्व बन गया। इसलिए इस दिन को विजय की दसवीं तिथि यानी ‘विजयादशमी’ कहा जाता है।रावण दहन का महत्व क्या है?
दशहरे पर रावण दहन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि यह सामाजिक और नैतिक संदेश का प्रतीक भी है। रावण के पुतले में अहंकार, लोभ, अन्याय और अधर्म का प्रतीकात्मक रूप होता है। जब उसका दहन होता है तो यह संदेश जाता है कि, "चाहे बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो अंत में जीत सच्चाई और अच्छाई की ही होती है।"यह भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश के इस गाँव में नहीं जलेगा रावण, कारण है बहुत बड़ा
इस साल कब है दशहरा?
इस वर्ष दशहरा (विजयादशमी) 2 अक्टूबर 2025 बुधवार को मनाया जाएगा। देशभर में रामलीलाओं के मंचन के बाद रावण दहन के भव्य आयोजन होंगे। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है बल्कि सांस्कृतिक एकता और नैतिक मूल्यों की भी याद दिलाता है। First Ravan Dahan Historyअगली खबर पढ़ें
रावण दहन की शुरुआत कब और कहां हुई?
हालांकि रावण दहन की परंपरा को लेकर कोई प्रामाणिक ऐतिहासिक तिथि नहीं मिलती लेकिन उपलब्ध जानकारियों के अनुसार, भारत में पहली बार रावण का पुतला वर्ष 1948 में रांची में जलाया गया था। बताया जाता है कि यह आयोजन पाकिस्तान से आए शरणार्थियों द्वारा किया गया था जो उस समय के माहौल में सांस्कृतिक जुड़ाव और धार्मिक आस्था का प्रतीक बन गया। इसके कुछ वर्षों बाद, दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में पहली बार रावण दहन 17 अक्टूबर 1953 को हुआ जो आज देश के सबसे बड़े दशहरा आयोजनों में से एक माना जाता है।दशहरा को ‘विजयदशमी’ क्यों कहते हैं?
दशहरा को ‘विजयदशमी’ कहा जाता है क्योंकि यह अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि को मनाया जाता है। इस दिन से जुड़े दो प्रमुख धार्मिक प्रसंग हैं। भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण का वध किया था यह सत्य की असत्य पर जीत का प्रतीक है। मां दुर्गा ने इसी दिन महिषासुर का वध कर दुष्टता का अंत किया था नवरात्रि की समाप्ति पर यह विजय का पर्व बन गया। इसलिए इस दिन को विजय की दसवीं तिथि यानी ‘विजयादशमी’ कहा जाता है।रावण दहन का महत्व क्या है?
दशहरे पर रावण दहन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि यह सामाजिक और नैतिक संदेश का प्रतीक भी है। रावण के पुतले में अहंकार, लोभ, अन्याय और अधर्म का प्रतीकात्मक रूप होता है। जब उसका दहन होता है तो यह संदेश जाता है कि, "चाहे बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो अंत में जीत सच्चाई और अच्छाई की ही होती है।"यह भी पढ़ें: उत्तर प्रदेश के इस गाँव में नहीं जलेगा रावण, कारण है बहुत बड़ा
इस साल कब है दशहरा?
इस वर्ष दशहरा (विजयादशमी) 2 अक्टूबर 2025 बुधवार को मनाया जाएगा। देशभर में रामलीलाओं के मंचन के बाद रावण दहन के भव्य आयोजन होंगे। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करता है बल्कि सांस्कृतिक एकता और नैतिक मूल्यों की भी याद दिलाता है। First Ravan Dahan Historyसंबंधित खबरें
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