विज्ञापन जगत ने खोया अपना जादूगर: भारतीय विज्ञापन जगत के मशहूर नाम पीयूष पांडे का निधन हो गया है। उन्होंने विज्ञापन की दुनिया में नई सोच, नया अंदाज़ और नया आत्मविश्वास भरा था। उनके बनाए कई विज्ञापन न केवल ब्रांड्स को पहचान दिलाते थे, बल्कि आम लोगों की ज़िंदगी में भी जगह बना लेते थे।
‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ से ‘अबकी बार मोदी सरकार’ तक
पीयूष पांडे वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने देश को एकजुट करने वाले प्रसिद्ध गीत ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ को लिखा था। यह गीत दूरदर्शन का थीम सॉन्ग बन गया और आज भी लोगों के दिलों में बसता है। वहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रचार अभियान के लिए चर्चित नारा ‘अबकी बार, मोदी सरकार’ भी दिया, जो राजनीति के इतिहास में यादगार बन गया।
हर ब्रांड में बसती थी उनकी रचनात्मकता
विज्ञापन की दुनिया में पीयूष पांडे ने ऐसे कैंपेन बनाए जिन्हें लोग आज भी याद करते हैं।
एशियन पेंट्स का स्लोगन “हर खुशी में रंग लाए”,
कैडबरी का ऐड “कुछ खास है जिंदगी में”,
फेविकोल का अटूट जोड़ और
हच का प्यारा डॉग — ये सभी उनके दिमाग की उपज थे।
उनके विज्ञापनों में भारतीयता की झलक, सादगी और भावनाओं का सुंदर मेल होता था।
चार दशक ओगिल्वी इंडिया के साथ
पीयूष पांडे ने अपने करियर की शुरुआत 1982 में Ogilvy India से की थी और चार दशक से अधिक समय तक वहीं जुड़े रहे। वे एजेंसी के चेयरमैन और चीफ क्रिएटिव ऑफिसर भी बने।
उनसे पहले अंग्रेज़ी का वर्चस्व रखने वाली विज्ञापन दुनिया में उन्होंने हिंदी और भारतीय भावनाओं को सम्मान दिलाया।
क्रिकेटर से बना ऐड गुरु
1955 में जयपुर में जन्मे पीयूष पांडे नौ भाई-बहनों में से एक थे। उनके भाई प्रसून पांडे एक प्रसिद्ध डायरेक्टर हैं, जबकि बहन ईला अरुण जानी-मानी सिंगर और एक्ट्रेस हैं।
विज्ञापन की दुनिया में कदम रखने से पहले पीयूष कुछ समय क्रिकेटर, चाय चखने वाले और निर्माण मजदूर के रूप में काम कर चुके थे।
दोस्तों और प्रशंसकों ने जताया शोक
उनके निधन पर सोशल मीडिया पर शोक की लहर है। ऐडमैन सुहेल सेठ ने अपने एक्स (X) अकाउंट पर लिखा, “भारत ने एक महान विज्ञापन जगत की हस्ती ही नहीं, बल्कि एक सच्चे देशभक्त को खो दिया। अब जन्नत में भी गूंजेगा ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’।”
भारतीय विज्ञापन को दी नई पहचान
पीयूष पांडे ने यह साबित किया कि सादे शब्दों में भी गहराई और असर हो सकता है। उन्होंने भारतीय संस्कृति, भावना और जुड़ाव को विज्ञापन की भाषा में ढाला। उनके जाने से भारतीय क्रिएटिव इंडस्ट्री में एक युग का अंत हो गया है।
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