असली धुरंधर को नहीं जानते हैं आप, पाकिस्तान का काल था वह
भारत के धुरंधर लाड़ले बेटे रविन्द्र कौशिक को थिएटर में एक्टिंग करने का शौक था। उसका यही शौक उसे धुरंधर बनाने का कारण बना। आपको बता दें कि एक थिएटर प्रस्तुति के दौरान रविंद्र की अभिनय प्रतिभा पर भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (R&AW) की नजर पड़ी।

धुरंधर शब्द आपने जरूर सुना होगा। हाल ही में आई धुरंधर नाम की एक फिल्म की खूब चर्चा हो रही है। धुरंधर फिल्म को खूब पसंद भी किया जा रहा है। फिल्म में जिस धुरंधर को आप पर्दे पर देखते हैं वह वास्तव में असली धुरंधर नहीं है। असली धुरंधर तो भारत माता का वह लाड़ला बेटा था जिसे पाकिस्तान अपना काल समझता था। हम आपको भारत के उस असली धुरंधर से परिचित करा रहे हैं।
भारत के असली धुरंधर का नाम था रविन्द्र कौशिक
भारत के असली धुरंधर का नाम रविन्द्र कौशिक था। रविन्द्र कौशिक का पूरा जीवन किसी बड़ी फिल्मी कहानी से कम दिलचस्प नहीं है। आपको बता दें कि भारत में योद्धाओं की भूमि कहे जाने वाले राजस्थान में जन्म लेने वाले भारत के असली धुरंधर रविन्द्र कौशिक से पाकिस्तान की पुलिस, पाकिस्तान की सेना यहां तक कि पाकिस्तान की सरकार तक भी डरती थी। यह अलग बात है कि भारत माता की सेवा करते हुए भारत के इस लाड़ले धुरंधर रविन्द्र कौशिक को पाकिस्तान की जेल में ही अपनी शाहदत देनी पड़ी। भारत का लाड़ला धुरंधर रविन्द्र कौशिक शहीद तो हो गया किन्तु एक महान व्यक्तित्व की पूरी कहानी हमारे लिए छोड़ कर चला गया।
जब भारत की खुफिया एजेंसी ‘‘रॉ” की नजर पड़ी इस धुरंधर पर
भारत के धुरंधर लाड़ले बेटे रविन्द्र कौशिक को थिएटर में एक्टिंग करने का शौक था। उसका यही शौक उसे धुरंधर बनाने का कारण बना। आपको बता दें कि एक थिएटर प्रस्तुति के दौरान रविंद्र की अभिनय प्रतिभा पर भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (R&AW) की नजर पड़ी। अपने एकल नाटक में उन्होंने भारतीय सेना के एक अधिकारी की भूमिका निभाई थी, जिसे दुश्मन देश की सेना पकड़ लेती है, लेकिन वह किसी भी परिस्थिति में देश से जुड़ी गोपनीय जानकारी देने से इनकार कर देता है। उनकी सशक्त प्रस्तुति से प्रभावित होकर रॉ अधिकारियों ने उन्हें गुप्त सेवाओं के लिए उपयुक्त माना। चयन के बाद रविंद्र कौशिक को लगभग दो वर्षों तक कड़ी और गोपनीय प्रशिक्षण प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।इस्लामी परंपराओं और सामाजिक व्यवहार की सूक्ष्म जानकारी दी गई। उर्दू से पहले से परिचित होने के कारण उन्होंने नई भाषाएं और संस्कृति बेहद तेजी से आत्मसात कर लीं। इसके पश्चात उन्हें विभिन्न देशों में गुप्त अभियानों पर भेजा गया, जहां उन्होंने सौंपे गए प्रत्येक दायित्व को कुशलता और निष्ठा से निभाया। उनकी सफलता को देखते हुए एजेंसी ने उन्हें पाकिस्तान में स्थायी मिशन पर तैनात करने का निर्णय लिया। वर्ष 1975 में उन्हें एक अति संवेदनशील मिशन के तहत पाकिस्तान भेजा गया। इस मिशन का उद्देश्य छद्म पहचान के साथ पाकिस्तान में रहकर भारत को अहम सैन्य और रणनीतिक सूचनाएं उपलब्ध कराना था। रॉ ने उन्हें ‘नबी अहमद शाकिर’ नाम से नई पहचान दी। सत्तर के दशक के मध्य में रविंद्र को नई पाकिस्तानी पहचान के साथ सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराए गए। जन्म प्रमाणपत्र से लेकर शैक्षणिक प्रमाण-पत्र और पासपोर्ट तक, हर कागज़ात पूरी तरह वैध रूप में तैयार किए गए। इसी पहचान के तहत वह इस्लामाबाद निवासी नबी अहमद के रूप में जाने जाने लगे।
धुरंधर शब्द आपने जरूर सुना होगा। हाल ही में आई धुरंधर नाम की एक फिल्म की खूब चर्चा हो रही है। धुरंधर फिल्म को खूब पसंद भी किया जा रहा है। फिल्म में जिस धुरंधर को आप पर्दे पर देखते हैं वह वास्तव में असली धुरंधर नहीं है। असली धुरंधर तो भारत माता का वह लाड़ला बेटा था जिसे पाकिस्तान अपना काल समझता था। हम आपको भारत के उस असली धुरंधर से परिचित करा रहे हैं।
भारत के असली धुरंधर का नाम था रविन्द्र कौशिक
भारत के असली धुरंधर का नाम रविन्द्र कौशिक था। रविन्द्र कौशिक का पूरा जीवन किसी बड़ी फिल्मी कहानी से कम दिलचस्प नहीं है। आपको बता दें कि भारत में योद्धाओं की भूमि कहे जाने वाले राजस्थान में जन्म लेने वाले भारत के असली धुरंधर रविन्द्र कौशिक से पाकिस्तान की पुलिस, पाकिस्तान की सेना यहां तक कि पाकिस्तान की सरकार तक भी डरती थी। यह अलग बात है कि भारत माता की सेवा करते हुए भारत के इस लाड़ले धुरंधर रविन्द्र कौशिक को पाकिस्तान की जेल में ही अपनी शाहदत देनी पड़ी। भारत का लाड़ला धुरंधर रविन्द्र कौशिक शहीद तो हो गया किन्तु एक महान व्यक्तित्व की पूरी कहानी हमारे लिए छोड़ कर चला गया।
जब भारत की खुफिया एजेंसी ‘‘रॉ” की नजर पड़ी इस धुरंधर पर
भारत के धुरंधर लाड़ले बेटे रविन्द्र कौशिक को थिएटर में एक्टिंग करने का शौक था। उसका यही शौक उसे धुरंधर बनाने का कारण बना। आपको बता दें कि एक थिएटर प्रस्तुति के दौरान रविंद्र की अभिनय प्रतिभा पर भारत की खुफिया एजेंसी रॉ (R&AW) की नजर पड़ी। अपने एकल नाटक में उन्होंने भारतीय सेना के एक अधिकारी की भूमिका निभाई थी, जिसे दुश्मन देश की सेना पकड़ लेती है, लेकिन वह किसी भी परिस्थिति में देश से जुड़ी गोपनीय जानकारी देने से इनकार कर देता है। उनकी सशक्त प्रस्तुति से प्रभावित होकर रॉ अधिकारियों ने उन्हें गुप्त सेवाओं के लिए उपयुक्त माना। चयन के बाद रविंद्र कौशिक को लगभग दो वर्षों तक कड़ी और गोपनीय प्रशिक्षण प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।इस्लामी परंपराओं और सामाजिक व्यवहार की सूक्ष्म जानकारी दी गई। उर्दू से पहले से परिचित होने के कारण उन्होंने नई भाषाएं और संस्कृति बेहद तेजी से आत्मसात कर लीं। इसके पश्चात उन्हें विभिन्न देशों में गुप्त अभियानों पर भेजा गया, जहां उन्होंने सौंपे गए प्रत्येक दायित्व को कुशलता और निष्ठा से निभाया। उनकी सफलता को देखते हुए एजेंसी ने उन्हें पाकिस्तान में स्थायी मिशन पर तैनात करने का निर्णय लिया। वर्ष 1975 में उन्हें एक अति संवेदनशील मिशन के तहत पाकिस्तान भेजा गया। इस मिशन का उद्देश्य छद्म पहचान के साथ पाकिस्तान में रहकर भारत को अहम सैन्य और रणनीतिक सूचनाएं उपलब्ध कराना था। रॉ ने उन्हें ‘नबी अहमद शाकिर’ नाम से नई पहचान दी। सत्तर के दशक के मध्य में रविंद्र को नई पाकिस्तानी पहचान के साथ सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराए गए। जन्म प्रमाणपत्र से लेकर शैक्षणिक प्रमाण-पत्र और पासपोर्ट तक, हर कागज़ात पूरी तरह वैध रूप में तैयार किए गए। इसी पहचान के तहत वह इस्लामाबाद निवासी नबी अहमद के रूप में जाने जाने लगे।
























