यूपी में मानसून सत्र की शुरुआत आज से, पक्ष-विपक्ष में घमासान के आसार




स्वतंत्रता दिवस की चारों तरफ धूम है। स्वतंत्रता दिवस भारत का सबसे बड़ा पर्व है। आजादी की लड़ाई के दौरान भारत विदेशी ताकतों से लड़ रहा था। स्वतंत्रता के 78 साल बाद भी भारत को विदेशी ताकतों के साथ लडऩा पड़ रहा है। स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हम आपको बता रहे हैं कि कैसे एक बार फिर भारत विदेशी ताकतों से जीतने वाला है। स्वतंत्रता दिवस की खुशी को दोगुना करने वाला यह लेख आपको जरूर पढऩा चाहिए। Independence Day
9 अगस्त 1925 का वह दिन इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है, जब काकोरी ट्रेन एक्शन के वीर क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के ख़ज़ाने पर धावा बोला। मात्र 4600/- की इस धनराशि को आजादी की लड़ाई में लगाने के लिए छुड़ाया गया, लेकिन अंग्रेज़ सरकार ने इन्हें पकड़ने में 10 लाख से ज़्यादा ख़र्च कर डाले। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्रनाथ लाहिड़ी जैसे राष्ट्रभक्तों ने हंसते-हंसते फांसी को गले लगाया, जबकि चंद्रशेखर आज़ाद आख़िरी दम तक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इन क्रांतिकारियों ने देशभक्ति की ऐसी ज्वाला जलाई जिसकी आंच 1947 में आजादी हासिल होने तक मंद नहीं पड़ी। इनका संदेश स्पष्ट था – भारत का धन भारत में रहे, विदेशियों की लूट न चले।
दरअसल, काकोरी की घटना स्वदेशी आंदोलन की भावना का ही विस्तार थी। इससे बीस साल पहले 1905 में बंग-भंग के विरोध में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था, जिसने विदेशी सामान के बहिष्कार और देसी उद्योग के समर्थन से अंग्रेज़ों पर आर्थिक दबाव बनाया था। उस आंदोलन ने देशवासियों में आर्थिक आजादी की चेतना भर दी थी और ब्रिटिश वस्तुओं की बिक्री घटाकर उन्हें झुका दिया था। स्वदेशी केवल एक आर्थिक नीति नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और स्वाभिमान का आंदोलन था जिसने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया। Independence Day
आज स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग 78 वर्ष बाद, देश फिर उसी स्वदेशी भावना को जगाने की ज़रूरत महसूस कर रहा है। लखनऊ में आयोजित काकोरी ट्रेन एक्शन शताब्दी समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हुए वर्तमान पीढ़ी से उसी जुनून और त्याग की प्रेरणा लेने का आह्वान किया। उन्होंने भावुक अपील की कि “स्वदेशी हमारे जीवन का ध्येय बने, स्वदेशी हमारे जीवन का मंत्र बने। हम जियेंगे स्वदेशी के लिए, हम मरेंगे अपने देश के लिए।” ऐसी अटूट राष्ट्रभक्ति के साथ भारत आगे बढ़ेगा तो “दुनिया की कोई ताकत भारत का बाल भी बांका नहीं कर पाएगी”। योगी आदित्यनाथ के इस उद्गार ने मानो शताब्दी पुराने स्वदेशी आंदोलन की गूंज को फिर से जीवंत कर दिया।
मुख्यमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि आर्थिक आत्मनिर्भरता ही सशक्त राष्ट्र का मार्ग है। उन्होंने चेताया कि विदेशी वस्तुएं ख़रीदने से हमारा पैसा देश से बाहर जाता है और वही पैसा बाद में हमारे ख़िलाफ़ आतंकवाद और उग्रवाद को पोषित करने में उपयोग होता है। इसीलिए हमें अपने त्योहारों में उपहार से लेकर रोजमर्रा की जरूरतों तक स्वदेशी वस्तुओं को ही अपनाना चाहिए। मुख्यमंत्री योगी के अनुसार “जब हम स्वदेशी चीज़ें ख़रीदते हैं तो अपने कारीगरों और उद्यमियों को रोज़गार मिलता है और धन देश के विकास में लगता है। भले स्वदेशी सामान थोड़ा महंगा हो, पर वह सीधे देश की प्रगति में योगदान देता है।” आज़ादी के अमृतकाल में हर घर तिरंगा लहराने और तिरंगा यात्राओं के माध्यम से राष्ट्रप्रेम की भावना जन-जन तक पहुंचाने का उनका संदेश भी इसी उद्देश्य को मजबूत करता है। Independence Day
दुर्भाग्यवश, जिस समय हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत का जश्न मना रहे हैं, ठीक उसी समय वैश्विक मंच पर भारत एक आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। अमेरिका ने हाल ही में भारत के खिलाफ टैरिफ का हथियार निकालते हुए कुछ भारतीय उत्पादों पर आयात शुल्क 50% तक बढ़ा दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल ख़रीदने को बहाना बनाकर भारतीय सामान पर 25% अतिरिक्त टैक्स लगाने का आदेश दिया, जिससे कुछ उत्पादों पर कुल शुल्क इतिहास में अभूतपूर्व स्तर तक पहुंच गया। भारत सरकार ने इस कदम को “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण” करार दिया है और साफ कहा है कि अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। यह घटनाक्रम भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ा रहा है और हमारे निर्यातकों के सामने मुश्किलें खड़ी कर रहा है।
यह परिस्थिति कहीं न कहीं औपनिवेशिक काल की याद दिलाती है, जब ब्रिटिश हुकूमत आर्थिक नीतियों से भारतीय उद्योग को दबाने का प्रयास करती थी और भारतीय जनता ने स्वदेशी आंदोलन के जरिए जवाब दिया था। आज एक सदी बाद फिर भारत को आर्थिक दबाव में लाने की कोशिश की जा रही है, तो देश में स्वदेशी की आवाज़ का उठना स्वाभाविक है। जब बाहरी ताकतें हमारे आत्मसम्मान को चुनौती दें, तो उसका उत्तर भी वही होना चाहिए जो हमारे पूर्वजों ने दिया था – अपनी आर्थिक आजादी पर आंच नहीं आने देना। Independence Day
अमेरिका शायद यह भूल रहा है कि भारत केवल एक निर्यातक ही नहीं, बल्कि विश्व के सबसे बड़े उपभोक्ता बाज़ारों में से एक है। आज भारतीय बाज़ार में दैनिक उपयोग की वस्तुओं से लेकर तकनीक तक अनेकों क्षेत्रों में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबदबा है। कोल्ड ड्रिंक्स से लेकर टूथपेस्ट तक, मोबाइल फोन से लेकर ई-कॉमर्स तक, हर जगह विदेशी ब्रांड हमें घेर रहे हैं। इन अमेरिकी कंपनियों को भारत से होने वाला मुनाफ़ा इतना बड़ा है कि यह प्रति वर्ष 80 अरब अमेरिकी डॉलर से भी अधिक आँक लिया गया है। साफ है कि भारतीय उपभोक्ताओं की बदौलत ये कम्पनियाँ अपनी जेबें भर रही हैं और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी ताकत मिल रही है।
लेकिन तस्वीर का दूसरा रुख यह है कि यही भारत की ताकत भी है। यदि हम चाहें तो अपनी क्रय शक्ति से इन दिग्गज कंपनियों को घुटनों पर ला सकते हैं। हाल ही में एक भारतीय सांसद ने अमेरिकी राष्ट्रपति को खुले पत्र में सवाल किया कि यदि 146 करोड़ भारतीय अमेरिका की कंपनियों का बहिष्कार कर दें तो क्या होगा? यह सीधा संदेश है कि जिस बाज़ार से आप कमाई कर रहे हैं, वहीं की जनता अगर आपको नकार दे तो आपका आर्थिक संतुलन बिगड़ सकता है। स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन तो ट्रंप के टैरिफ बढ़ाने के अगले ही दिन से मैदान में उतर आए हैं। उन्होंने देशभर में “विदेशी कंपनियां भारत छोड़ो” जैसे नारे लगाते हुए अमेज़न, वॉलमार्ट और फ्लिपकार्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों का बहिष्कार करने की अपील की है। ये संकेत हैं कि भारत में जनभावना तेज़ी से आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वतंत्रता की ओर मुड़ रही है।
दिलचस्प बात यह है कि ठीक 7 अगस्त 1905 को बंगाल में शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन ने ब्रिटिश व्यापारिक हितों को चुनौती दी थी। आज 2025 में, अगस्त के इसी सप्ताह में, भारतवासियों ने एक बार फिर उसी स्वदेशी भावना को जगाकर अमेरिका को चेतावनी दी है। इतिहास गवाह है कि जब-जब हमने विदेशी शक्तियों के आर्थिक अन्याय के खिलाफ स्वदेशी का अस्त्र उठाया है, उन्हें झुकना पड़ा है। आज भी यदि हम संगठित होकर अपनी विशाल उपभोक्ता शक्ति का उपयोग स्वदेशी के समर्थन में करते हैं, तो अमेरिकी कंपनियों को एहसास होगा कि भारत को नजरअंदाज़ करना आसान नहीं। Independence Day
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हालिया घटनाओं के बाद आत्मनिर्भर भारत का आह्वान और जोर-शोर से किया है। उनका कहना है कि भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है तो हर नेता, हर नागरिक को मिलकर स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देना होगा। यह आह्वान कोई नया नहीं, बल्कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम की विरासत का पुनर्जागरण है। स्वदेशी आंदोलन ने जिस आर्थिक स्वतंत्रता की नींव डाली थी, वही आज आत्मनिर्भर भारत अभियान के रूप में पल्लवित हो रही है। अंतर सिर्फ इतना है कि तब लड़ाई ब्रिटिश साम्राज्यवाद से थी और आज चुनौती वैश्विक आर्थिक शक्तियों से है – लेकिन मंत्र वही है: स्वदेशी अपनाओ, राष्ट्र को मजबूत बनाओ। Independence Day
अगर 100 साल पहले सीमित साधनों के बावजूद हमारे क्रांतिकारी अपने दुश्मन से धन छीन सकते थे, विदेशी माल का बहिष्कार कर सकते थे, तो आज 21वीं सदी के भारत के पास तो असीमित शक्ति है। हमारी 140 करोड़ की आबादी जब मेकिन इंडिया उत्पाद अपनाने का ठान लेगी, तो दुनिया की कोई भी बड़ी कंपनी या देश हमें नजरअंदाज़ नहीं कर सकेगा। स्वदेशी अपनाने का अर्थ है न केवल अपना उत्पादन बढ़ाना, बल्कि वैश्विक मंच पर आत्मसम्मान के साथ खड़ा होना। यह वह भावना है जो हर भारतीय के मन में आजादी के दीवानों ने जगाई थी। Independence Day
इस स्वतंत्रता दिवस पर काकोरी के अमर शहीदों की स्मृति हमें फिर उसी त्याग और स्वाभिमान की राह दिखा रही है। “हम जिएंगे स्वदेशी के लिए, मरेंगे देश के लिए” – यह सिर्फ नारा नहीं, एक संकल्प है हर भारतीय के लिए। जब प्रत्येक घर पर तिरंगा शान से लहराएगा, हर हाथ देसी उत्पाद को प्राथमिकता देगा और हर दिल में राष्ट्रप्रेम की लौ प्रज्वलित होगी, तब भारत वाकई अपने बलबूते दुनिया में सिर उठाकर चल सकेगा। स्वदेशी को जीवन का मंत्र बनाकर और राष्ट्रप्रेम को सर्वोपरि रखकर ही हम अपने पूर्वजों के बलिदानों का सच्चा मान रख पाएंगे। आज दुनिया को संदेश देने का समय है कि भारत अपने पैरों पर खड़ा होकर आत्मनिर्भरता के पथ पर आगे बढ़ चुका है – और इस मार्ग पर कोई भी ताकत हमारे कदम नहीं रोक सकती। स्वदेशी अपनाएं, देश को मजबूत बनाएं, यही काकोरी के वीरों की प्रेरणा है और यही आज के भारत का उद्घोष। Independence Day
स्वतंत्रता दिवस की चारों तरफ धूम है। स्वतंत्रता दिवस भारत का सबसे बड़ा पर्व है। आजादी की लड़ाई के दौरान भारत विदेशी ताकतों से लड़ रहा था। स्वतंत्रता के 78 साल बाद भी भारत को विदेशी ताकतों के साथ लडऩा पड़ रहा है। स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हम आपको बता रहे हैं कि कैसे एक बार फिर भारत विदेशी ताकतों से जीतने वाला है। स्वतंत्रता दिवस की खुशी को दोगुना करने वाला यह लेख आपको जरूर पढऩा चाहिए। Independence Day
9 अगस्त 1925 का वह दिन इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है, जब काकोरी ट्रेन एक्शन के वीर क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के ख़ज़ाने पर धावा बोला। मात्र 4600/- की इस धनराशि को आजादी की लड़ाई में लगाने के लिए छुड़ाया गया, लेकिन अंग्रेज़ सरकार ने इन्हें पकड़ने में 10 लाख से ज़्यादा ख़र्च कर डाले। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्रनाथ लाहिड़ी जैसे राष्ट्रभक्तों ने हंसते-हंसते फांसी को गले लगाया, जबकि चंद्रशेखर आज़ाद आख़िरी दम तक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इन क्रांतिकारियों ने देशभक्ति की ऐसी ज्वाला जलाई जिसकी आंच 1947 में आजादी हासिल होने तक मंद नहीं पड़ी। इनका संदेश स्पष्ट था – भारत का धन भारत में रहे, विदेशियों की लूट न चले।
दरअसल, काकोरी की घटना स्वदेशी आंदोलन की भावना का ही विस्तार थी। इससे बीस साल पहले 1905 में बंग-भंग के विरोध में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था, जिसने विदेशी सामान के बहिष्कार और देसी उद्योग के समर्थन से अंग्रेज़ों पर आर्थिक दबाव बनाया था। उस आंदोलन ने देशवासियों में आर्थिक आजादी की चेतना भर दी थी और ब्रिटिश वस्तुओं की बिक्री घटाकर उन्हें झुका दिया था। स्वदेशी केवल एक आर्थिक नीति नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और स्वाभिमान का आंदोलन था जिसने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया। Independence Day
आज स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग 78 वर्ष बाद, देश फिर उसी स्वदेशी भावना को जगाने की ज़रूरत महसूस कर रहा है। लखनऊ में आयोजित काकोरी ट्रेन एक्शन शताब्दी समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हुए वर्तमान पीढ़ी से उसी जुनून और त्याग की प्रेरणा लेने का आह्वान किया। उन्होंने भावुक अपील की कि “स्वदेशी हमारे जीवन का ध्येय बने, स्वदेशी हमारे जीवन का मंत्र बने। हम जियेंगे स्वदेशी के लिए, हम मरेंगे अपने देश के लिए।” ऐसी अटूट राष्ट्रभक्ति के साथ भारत आगे बढ़ेगा तो “दुनिया की कोई ताकत भारत का बाल भी बांका नहीं कर पाएगी”। योगी आदित्यनाथ के इस उद्गार ने मानो शताब्दी पुराने स्वदेशी आंदोलन की गूंज को फिर से जीवंत कर दिया।
मुख्यमंत्री ने ज़ोर देकर कहा कि आर्थिक आत्मनिर्भरता ही सशक्त राष्ट्र का मार्ग है। उन्होंने चेताया कि विदेशी वस्तुएं ख़रीदने से हमारा पैसा देश से बाहर जाता है और वही पैसा बाद में हमारे ख़िलाफ़ आतंकवाद और उग्रवाद को पोषित करने में उपयोग होता है। इसीलिए हमें अपने त्योहारों में उपहार से लेकर रोजमर्रा की जरूरतों तक स्वदेशी वस्तुओं को ही अपनाना चाहिए। मुख्यमंत्री योगी के अनुसार “जब हम स्वदेशी चीज़ें ख़रीदते हैं तो अपने कारीगरों और उद्यमियों को रोज़गार मिलता है और धन देश के विकास में लगता है। भले स्वदेशी सामान थोड़ा महंगा हो, पर वह सीधे देश की प्रगति में योगदान देता है।” आज़ादी के अमृतकाल में हर घर तिरंगा लहराने और तिरंगा यात्राओं के माध्यम से राष्ट्रप्रेम की भावना जन-जन तक पहुंचाने का उनका संदेश भी इसी उद्देश्य को मजबूत करता है। Independence Day
दुर्भाग्यवश, जिस समय हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत का जश्न मना रहे हैं, ठीक उसी समय वैश्विक मंच पर भारत एक आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। अमेरिका ने हाल ही में भारत के खिलाफ टैरिफ का हथियार निकालते हुए कुछ भारतीय उत्पादों पर आयात शुल्क 50% तक बढ़ा दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस से तेल ख़रीदने को बहाना बनाकर भारतीय सामान पर 25% अतिरिक्त टैक्स लगाने का आदेश दिया, जिससे कुछ उत्पादों पर कुल शुल्क इतिहास में अभूतपूर्व स्तर तक पहुंच गया। भारत सरकार ने इस कदम को “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण” करार दिया है और साफ कहा है कि अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। यह घटनाक्रम भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव बढ़ा रहा है और हमारे निर्यातकों के सामने मुश्किलें खड़ी कर रहा है।
यह परिस्थिति कहीं न कहीं औपनिवेशिक काल की याद दिलाती है, जब ब्रिटिश हुकूमत आर्थिक नीतियों से भारतीय उद्योग को दबाने का प्रयास करती थी और भारतीय जनता ने स्वदेशी आंदोलन के जरिए जवाब दिया था। आज एक सदी बाद फिर भारत को आर्थिक दबाव में लाने की कोशिश की जा रही है, तो देश में स्वदेशी की आवाज़ का उठना स्वाभाविक है। जब बाहरी ताकतें हमारे आत्मसम्मान को चुनौती दें, तो उसका उत्तर भी वही होना चाहिए जो हमारे पूर्वजों ने दिया था – अपनी आर्थिक आजादी पर आंच नहीं आने देना। Independence Day
अमेरिका शायद यह भूल रहा है कि भारत केवल एक निर्यातक ही नहीं, बल्कि विश्व के सबसे बड़े उपभोक्ता बाज़ारों में से एक है। आज भारतीय बाज़ार में दैनिक उपयोग की वस्तुओं से लेकर तकनीक तक अनेकों क्षेत्रों में अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का दबदबा है। कोल्ड ड्रिंक्स से लेकर टूथपेस्ट तक, मोबाइल फोन से लेकर ई-कॉमर्स तक, हर जगह विदेशी ब्रांड हमें घेर रहे हैं। इन अमेरिकी कंपनियों को भारत से होने वाला मुनाफ़ा इतना बड़ा है कि यह प्रति वर्ष 80 अरब अमेरिकी डॉलर से भी अधिक आँक लिया गया है। साफ है कि भारतीय उपभोक्ताओं की बदौलत ये कम्पनियाँ अपनी जेबें भर रही हैं और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी ताकत मिल रही है।
लेकिन तस्वीर का दूसरा रुख यह है कि यही भारत की ताकत भी है। यदि हम चाहें तो अपनी क्रय शक्ति से इन दिग्गज कंपनियों को घुटनों पर ला सकते हैं। हाल ही में एक भारतीय सांसद ने अमेरिकी राष्ट्रपति को खुले पत्र में सवाल किया कि यदि 146 करोड़ भारतीय अमेरिका की कंपनियों का बहिष्कार कर दें तो क्या होगा? यह सीधा संदेश है कि जिस बाज़ार से आप कमाई कर रहे हैं, वहीं की जनता अगर आपको नकार दे तो आपका आर्थिक संतुलन बिगड़ सकता है। स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन तो ट्रंप के टैरिफ बढ़ाने के अगले ही दिन से मैदान में उतर आए हैं। उन्होंने देशभर में “विदेशी कंपनियां भारत छोड़ो” जैसे नारे लगाते हुए अमेज़न, वॉलमार्ट और फ्लिपकार्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों का बहिष्कार करने की अपील की है। ये संकेत हैं कि भारत में जनभावना तेज़ी से आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वतंत्रता की ओर मुड़ रही है।
दिलचस्प बात यह है कि ठीक 7 अगस्त 1905 को बंगाल में शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन ने ब्रिटिश व्यापारिक हितों को चुनौती दी थी। आज 2025 में, अगस्त के इसी सप्ताह में, भारतवासियों ने एक बार फिर उसी स्वदेशी भावना को जगाकर अमेरिका को चेतावनी दी है। इतिहास गवाह है कि जब-जब हमने विदेशी शक्तियों के आर्थिक अन्याय के खिलाफ स्वदेशी का अस्त्र उठाया है, उन्हें झुकना पड़ा है। आज भी यदि हम संगठित होकर अपनी विशाल उपभोक्ता शक्ति का उपयोग स्वदेशी के समर्थन में करते हैं, तो अमेरिकी कंपनियों को एहसास होगा कि भारत को नजरअंदाज़ करना आसान नहीं। Independence Day
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हालिया घटनाओं के बाद आत्मनिर्भर भारत का आह्वान और जोर-शोर से किया है। उनका कहना है कि भारत को तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना है तो हर नेता, हर नागरिक को मिलकर स्वदेशी वस्तुओं को बढ़ावा देना होगा। यह आह्वान कोई नया नहीं, बल्कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम की विरासत का पुनर्जागरण है। स्वदेशी आंदोलन ने जिस आर्थिक स्वतंत्रता की नींव डाली थी, वही आज आत्मनिर्भर भारत अभियान के रूप में पल्लवित हो रही है। अंतर सिर्फ इतना है कि तब लड़ाई ब्रिटिश साम्राज्यवाद से थी और आज चुनौती वैश्विक आर्थिक शक्तियों से है – लेकिन मंत्र वही है: स्वदेशी अपनाओ, राष्ट्र को मजबूत बनाओ। Independence Day
अगर 100 साल पहले सीमित साधनों के बावजूद हमारे क्रांतिकारी अपने दुश्मन से धन छीन सकते थे, विदेशी माल का बहिष्कार कर सकते थे, तो आज 21वीं सदी के भारत के पास तो असीमित शक्ति है। हमारी 140 करोड़ की आबादी जब मेकिन इंडिया उत्पाद अपनाने का ठान लेगी, तो दुनिया की कोई भी बड़ी कंपनी या देश हमें नजरअंदाज़ नहीं कर सकेगा। स्वदेशी अपनाने का अर्थ है न केवल अपना उत्पादन बढ़ाना, बल्कि वैश्विक मंच पर आत्मसम्मान के साथ खड़ा होना। यह वह भावना है जो हर भारतीय के मन में आजादी के दीवानों ने जगाई थी। Independence Day
इस स्वतंत्रता दिवस पर काकोरी के अमर शहीदों की स्मृति हमें फिर उसी त्याग और स्वाभिमान की राह दिखा रही है। “हम जिएंगे स्वदेशी के लिए, मरेंगे देश के लिए” – यह सिर्फ नारा नहीं, एक संकल्प है हर भारतीय के लिए। जब प्रत्येक घर पर तिरंगा शान से लहराएगा, हर हाथ देसी उत्पाद को प्राथमिकता देगा और हर दिल में राष्ट्रप्रेम की लौ प्रज्वलित होगी, तब भारत वाकई अपने बलबूते दुनिया में सिर उठाकर चल सकेगा। स्वदेशी को जीवन का मंत्र बनाकर और राष्ट्रप्रेम को सर्वोपरि रखकर ही हम अपने पूर्वजों के बलिदानों का सच्चा मान रख पाएंगे। आज दुनिया को संदेश देने का समय है कि भारत अपने पैरों पर खड़ा होकर आत्मनिर्भरता के पथ पर आगे बढ़ चुका है – और इस मार्ग पर कोई भी ताकत हमारे कदम नहीं रोक सकती। स्वदेशी अपनाएं, देश को मजबूत बनाएं, यही काकोरी के वीरों की प्रेरणा है और यही आज के भारत का उद्घोष। Independence Day
