Tariff : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ऑटो सेक्टर के बाद अब फार्मास्युटिकल उत्पादों पर टैरिफ लगाने की योजना बनाई जा रही है। इस निर्णय का प्रभाव न केवल वैश्विक दवा बाजार पर पड़ेगा, बल्कि भारतीय दवा कंपनियों के लिए भी नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है। अमेरिका में भारतीय दवाओं की मांग काफी अधिक है, और इस टैरिफ का असर अमेरिकी हेल्थकेयर सिस्टम और भारतीय निर्यातकों पर गहरा पड़ सकता है।
भारतीय दवाओं पर अमेरिका की निर्भरता
अमेरिका भारतीय दवाओं का एक प्रमुख उपभोक्ता है और वहां की स्वास्थ्य सेवाओं में भारतीय फार्मा कंपनियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वर्ष 2022 में अमेरिका में डॉक्टर्स द्वारा लिखे गए 40% पर्चों में भारतीय दवाओं का उपयोग किया गया था। इन दवाओं की कम लागत के कारण अमेरिकी हेल्थकेयर सेक्टर को अरबों डॉलर की बचत होती है। अनुमान के मुताबिक, 2013 से 2022 के बीच भारतीय दवाओं ने अमेरिका को 1,300 अरब डॉलर की बचत कराई।
टैरिफ का संभावित प्रभाव
- अमेरिकी उपभोक्ताओं पर प्रभाव: टैरिफ बढ़ने से अमेरिकी बाजार में दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे मरीजों की जेब पर अतिरिक्त भार पड़ेगा। इससे हेल्थकेयर सेवाओं तक पहुंच भी प्रभावित हो सकती है।
- भारतीय दवा कंपनियों के लिए चुनौती: अमेरिकी बाजार भारतीय दवा निर्यात के लिए सबसे बड़ा बाजार है, और यहां टैरिफ लगने से कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता पर असर पड़ सकता है।
- अन्य अंतरराष्ट्रीय कंपनियों पर प्रभाव: भारतीय कंपनियों की तुलना में इजराइल और स्विट्जरलैंड जैसी कंपनियों की उत्पादन लागत अधिक होती है, इसलिए वे इस टैरिफ से ज्यादा प्रभावित हो सकती हैं।
क्या भारतीय कंपनियों को भी मिल सकता है फायदा?
जेपी मॉर्गन की एक रिपोर्ट के अनुसार, अगर टैरिफ लागू होता है, तो भारतीय कंपनियां अपनी लागत प्रभावशीलता के कारण अन्य वैश्विक प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले बेहतर स्थिति में रह सकती हैं। इससे अमेरिकी बाजार में उनकी हिस्सेदारी बढ़ सकती है। इसके अलावा, अगर टैरिफ के कारण अमेरिकी दवाओं की कीमतें बढ़ती हैं, तो इसका बोझ उपभोक्ताओं को उठाना पड़ेगा, जिससे भारतीय कंपनियों के लिए ज्यादा अवसर खुल सकते हैं। Tariff :
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