Saraswati Devi Story : बसंत पंचमी विद्या की देवी,माता सरस्वती का प्राकट्य दिवस :-
या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता,
या वीणाकरदण्डमंडित करा,या श्वेत पद्मासना।।
या ब्रह्माच्युत शंकर प्रभृतिभि:देवै:सदावन्दिता
सा मांपातु सरस्वतीभगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
आईये जाने सरस्वती देवी और महासरस्वती की कथा :-देवी सरस्वती के अवतरण दिवस पर
सरस्वती जी कौन हैं। सर्वप्रथम जिज्ञासा का प्रश्न वह सृष्टि कर्ता ब्रह्मा जी की पुत्री हैं या उनकी पत्नी अथवा दोनों ही । इसके लिये देवीभागवत में कहा गया है कि जब सिवाय अंधकार के इस सृष्टि में कुछ नही था तब अंधकार के शून्य को भरती एक नारी आकृति धीरे धीरे आकार लेती हुई साकार हुई । उसने जब आंख खोलकर देखा तो वह वहां अकेली ही थी और कोई नही था । तब सृजन की इच्छा से अपने अकेले पन को दूर कर सृष्टि के विस्तार के लिये सत् रूप से तपस्या कर वैचारिक चिंतन किया । उनके इस सात्विक चिंतन से ब्रह्मा जी प्रकट हुये और उन्होंने देवी को प्रणाम करते हुये कहा कि -आप मुझे आज्ञा दें कि मैं क्या करूं । तब देवी ने मुस्कुराते हुये कहा मैं अकेली हूँ और सृष्टि का विस्तार करने की इच्छा से चिंतन करते हुये मैनें तुम्हें प्रकट किया । अत:तुम मेरे साथ रहकर सृष्टि का सृजन करो ।
ब्रह्माजी ने नत मस्तक होकर कहा -देवी आपने मुझे सात्विक भाव से बुद्धि से चिंतन करते हुये जन्म दिया है । आप मेरी माॅं हैं और मैं आपका पुत्र । आपकी आज्ञानुसार सृष्टि का विस्तार मैं अवश्य करूंगा ,पर आपके साथ नही। देवी ने कुछ सोचते और क्रुद्ध होते हुये कहा -जाओ तो पुत्र ही बने रहो । कहकर उन्हें एक पाषाण की पिंडी बना दिया । अब वह पुन:हृदय से रजोगुणी होकर विचार करने लगीं तो विष्णु जी प्रकट हुये । देवी ने उनसे भी वही कहा । जिसके उत्तर में विष्णु जी ने कहा मैं आपके हृदय से राजसी भाव लेकर प्रकट हुआ आपका भाई हूं । एक भाई के रूप मे ही मैं आपको अपनी बहिन के रूप में स्वीकार करूंगा । आप मेरी बहिन हैं । देवी ने यह कह कर की तो भाई ही बने रहो उन्हें भी एक पिण्डी बना दिया । अब वह नाभिस्थल से नीचे तमोगुणी होकर चिंतन करने लगी। जिससे शिव जी का जन्म हुआ । देवी ने उनसे भी वही कहा तो शिव जी ने कहा-यदि मैं इंकार करूंगा तो आप मुझे भी दण्ड दे पिण्डी बना देगीं । जैसा कि आपने मेरे इन दोनों बड़े भाईयों के साथ किया ।
शिव जी का जन्म हुआ
आपने मुझे तामस रूप तमोगुणी होकर उत्पन्न किया है अत:मैं आपसे विवाह अवश्य करूंगा, किंतु मेरी भी एक शर्त है जिसे आपको मानना होगा । देवी ने प्रसन्न होते हुये कहा-कहो! क्या शर्त है । इस पर शिव जी ने कहा-पहले तो आप मेरे इन भाईयों को जीवनदान देकर साकार करिये । देवी ने तथास्तु कहते हुये प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी और विष्णु जी को उनका साकार रूप दे प्रकट कर दिया। इसके पश्चात शिव जी से फिर उन्होंने कहा अपनी शर्त कहो! शिवजी -वचन दिया है तो अवश्य ही पूरा करूंगा किंतु इसके लिये आपको योनिजा रूप में जन्म लेना पड़ेगा । तब तक आप मेरे हृदय में मेरी शक्ति बनकर निवास करेंगी। देवी वचन बद्ध थीं ।
ब्रह्मा जी के पीत वर्ण भाग से महालक्ष्मी जी प्रकट हुई
उन्होंने कहा-तब तुम्हारे इन दोनों भाईयों को भी इन्हीं के अनुरूप सहचरी चाहिये । अत:तुम तीनों ही इसके लिये अपने अपने अंश को दाहिने भाग से नारी रूप में प्रकट करो । तब ब्रह्मा जी के पीत वर्ण भाग से महालक्ष्मी जी ,विष्णु जी के श्याम वर्ण होने से महाकाली और स्वयं शिवजी के गौर वर्ण से महासरस्वती प्रकट हुईं । अब देवी ने ब्रह्मा जी को सतोगुण प्रधान सरस्वती को सौपते हुये कहा आज से यह आपकी अर्द्धांगिनी हुईं जो कि शिव जी की बहिन थी । विष्णु जी को ब्रह्मा जी की बहिन महालक्ष्मी सौपते हुये कहा विश्व के कणकण में समाये संपूर्ण जगत का पालन करने वाले को लक्ष्मी ही चाहिये । अंत में विष्णु की बहिन काली को शिव जी को सौंपत हुये कहा यह सदैव तमोगुणी रूप से तुम्हारे ही हृदय में निवास करेगी । कुछ समय पश्चात तुम्हारी शर्त के अनुसार मैं ब्रह्मा जी के पुत्र के यहां जन्म लूंगी और तब योनिजा रूप में तुमसे विवाह करूंगी । सृष्टि का सृजन ब्रह्मा जी करेंगे । विष्णु के ऊपर उसके पालन का भार होगा और रक्षा का भार वहन करते संहार के देवता महाकाली के पति के रूप में महाकाल शिव ही होंगे ।
मैं स्वयं त्रिगुणत्मक प्रकृति के रूप में सदा विद्यमान रहूंगी । इस प्रकार से महासरस्वती ब्रह्मा जी की अर्द्धांगिनी हुईं । यह कथायें सरस्वती पुराण और मत्स्य पुराण में अलग अलग रूप में कही गई हैं । सत्य यही है कि महासरस्वती उनकी पत्नी और सरस्वती उनकी पुत्री थीं जिन्होंने सरस् रूप से प्रवाहित होकर विष्णु जी का वरण किया।बाद में लक्ष्मी जी से विवाद के पश्चात विष्णु जी ने उन्हें ब्रह्मा जी को सौप दिया।
पौराणिक कथा:-
एक बार ब्रह्मा जी जब अपने मानस पुत्रों के साथ यज्ञ कर रहे थे। यज्ञ के अंत में पूर्णाहुति के समय जब देवी महासरस्वती को बुलाया गया तो उन्होंने तैयार होकर आने में देर कर दी । मुहूर्त निकला जा रहा था इसीलिए सभी ने पास बैठी गायन कर रही कन्या को ही उनकी पत्नी के रूप में बिठा कर यज्ञ पूरा किया । जब सावित्री रूपी सरस्वती ने यह देखा तो वह क्रोधित होकर ब्रह्मा जी को शाप देकर आकांक्षा में विलुप्त हो गईं । इस तरह सावित्री महासरस्वती के रूप में पराविद्या हैं और गायत्री अपरा ।
ब्रह्मा जी की शक्ति चली जाने से वह अकेले होगये । अपने मानस पुत्रों के साथ भ्रमण करते जब वह अपनी सृष्टि को देख रहे थे तो वह उन्हें मूक और नीरस दिखाई दी उसको सरस करने के लिये वह पुन:तप करने बैठ गये । अचानक उनके कमंडल से जल छिटककर पृथ्वी पर गिरा और उससे एक सुंदर नारी की हाथ में वीणा पुस्तकधारिणी ब्रह्मवादिनी की उत्पत्ति हुई ।
वीणा पुस्तकधारिणी ब्रह्मवादिनी की उत्पत्ति
उन्होंने अपने जनक ब्रह्मा जी की वंदना करते हुये वीणा के स्वर झंकृत किये । जिसे सुन कर ब्रह्मा जी उनके अनिंद्य सौंदर्य पर मोहित हो गये। देवी उनकी परिक्रमा करते स्तुति कर रही थी और ब्रह्मा जी कामदेव के द्वारा आहत किये जाने से केवल उन्हें निहार रहे थे । यह देख सरस्वती जी आकाश में चली गईं । ब्रह्मा जी पांचवा सिर उत्पन्न कर आकाश में उनकी ओर निहारते रहे यह देख शिवजी ने क्रोधित होकर उनके पांचवे सिर का छेदन कर दिया । उस समय ब्रह्मा जी ने काम को शाप दिया कि तेरा अहंकार शिव ही नष्ट करेंगे । अपने इस कृत्य पर ग्लानिवश ब्रह्मा जी ने अपनी देह त्याग कर दूसरा शरीर धारण किया। सरस्वती ने नदी रूप धारण कर विष्णु जी का वरण किया । उधर ब्रह्मा जी भी सरस्वती के प्रति अपनी आसक्ति नहीं त्याग पाये । लक्ष्मी जी से विवाद होने पर विष्णु जी ने सरस्वती जी को पुन:उनके प्राकृतिक सतोगुणी रूप में परिवर्तित कर ब्रह्मा जी को सौप दिया । सरस्वती जी के उत्पन्न होने से जब वह सरस होकर प्रवाहित हुई तभी शब्द की उत्पत्ति हुई जिसे वाक् कहा गया इसलिए वह वाग्वादिनी हैं वीणा के झंकृत स्वर ने नाद कर निनाद किया संगीत की उत्पत्ति हुई ब्रह्म का ज्ञान देने के कारण वह ब्रह्मवादिनी कहलाई। पुस्तकधारिणी होने से ज्ञान का अकूत भंडार विद्या की देवी कहलाईं । यह सभी पौराणिक कथायें हैं सत्य क्या है इसके ज्ञान के पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्य को समझने की आवश्यकता है काल के गर्त में क्या है यह कोई नही जानता ?
उषा सक्सेना