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नई दिल्ली। केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के तत्वावधान में “शिक्षा महर्षि दयानंद की दृष्टि में” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया।
मुख्य वक्ता आचार्या श्रुति सेतिया ने कहा कि शिक्षा व्यक्ति के जीवन विकास में साधन है शिक्षित व्यक्ति कुरीतियों में नहीं फंसता और समाज सुधार में सहायक होता है। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद सरस्वती ने शिक्षा पर विशेष बल दिया है कि शिक्षा सभी के लिए अनिवार्य हो। स्वामी ने सकारात्मक की झलक देखी और जन-जन में शैक्षिक चेतना का होना आवश्यक माना।
उनका विश्वास था कि शिक्षा एक ऐसा शक्तिशाली शस्त्र है जिसके द्वारा समाज में प्रचलित कुरीतियों को अधिक प्रभावशाली ढंग से समाप्त करना संभव है।अतः सुधार आंदोलन में शिक्षा को समाज में पुनरुत्थान का प्रभावशाली अंग बनाया गया।
स्वामी दयानंद के विचार शिक्षा के प्रति आदर्शवादी थे। वे शिक्षा को आत्म विकास का साधन मानते थे। उनके अनुसार जिसमें विद्या,सभ्यता,धर्मात्मा बढ़ती हो, अविद्या दोष छूटे उसको शिक्षा कहते हैं। स्वामी विद्या को बहुत अधिक महत्व देते थे।
उससे वे सर्वांगीर्ण विकास के लिए आवश्यक मानते थे। विद्या धन सभी धनों से श्रेष्ठ है। स्वामी शिक्षा के द्वारा सबका विकास चाहते थे। उन्होंने शिक्षा में शारीरिक,मानसिक तथा नैतिक सभी पक्षों को प्रधानता दी है। स्वामी के युग में लोग पौराणिक हिंदू धर्म में अविश्वास उत्पन्न हो जाने और ईसाई धर्म को स्वीकार करते जा रहे थे। स्वामी दयानंद ने लोगों को इस धर्म संकट से बचाने के लिए शिक्षा का उद्देश्य वैदिक धर्म तथा संस्कृति का पुनरुत्थान घोषित किया। उनका विश्वास था कि इस उद्देश्य के अनुसार शिक्षा देने से लोगों को अपने प्राचीन वैदिक धर्म तथा संस्कृति का ज्ञान हो जाएगा। स्वामी का मत था कि बालक की मानसिक दृष्टि विकसित करने के लिए माता को 5 वर्ष तथा पिता को 8 वर्ष की आयु तक घर पर ही शिक्षा देनी चाहिए।
स्वामी बालक के चरित्र निर्माण को शिक्षा का एक उद्देश्य मानते हैं। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि माता-पिता तथा गुरुजन सभी चरित्रवान हो। वे सभी अपने उच्च विचारों,आदर्शों तथा उपदेशों के द्वारा बालक के चारित्रिक विकास की ओर ध्यान दें। वे शिक्षा के द्वारा मनुष्य में ऐसी शक्ति के विकास पर बल देते थे जिससे वह समाज सुधार कर सके। स्वामी विद्यालय के संबंध में वैदिक आश्रम एवं गुरुकुलों के समर्थक थे।द्विज अपने लड़के एवं लड़की का यथा योग्य संस्कार करके आचार्यकुलम में भेज दें।
विद्यालय गांव और नगर से 4 कोस दूर हो। स्वामी जी सह शिक्षा के घोर विरोधी थे। शिक्षा का माध्यम हिंदी तथा पाठ्यक्रम में हिंदी व संस्कृत के साथ-साथ सभी आधुनिक शास्त्रों व विज्ञान को स्थान दिया गया है।स्वामी जी का मानना था कि शिक्षक का चरित्र अत्यंत उच्च कोटि का होना चाहिए।शिक्षक योग्य तथा सर्वगुण संपन्न होना चाहिए।तीसरे समुल्लास में स्वामी जी के अनुसार विद्यार्थी का जीवन राग ,द्वेष से रहित होना चाहिए।स्वामी जी विद्यार्थी के कठोर शारीरिक व मानसिक अनुशासन के पक्ष में थे।लाडन से संतान और शिष्य दोष युक्त तथा ताड़न से गुण युक्त होते हैं। स्वामी जी स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक थे।स्त्रियों को भी ब्रह्मचर्य और विद्या का ग्रहण अवश्य करना चाहिए।वे धार्मिक शिक्षा की पद्धति पर जोर देते थे।देश को सुदृढ़ व प्रगतिशील बनाने हेतु शिक्षा ही वह माध्यम है जो राष्ट्रीयता की भावना मानव तक पहुंचा सकने में समर्थ है।
केन्द्रीय आर्य युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कहा कि शिक्षा बिना व्यक्ति पशु के समान है शिक्षा से ही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। मुख्य अतिथि आर्य नेत्री राज गुलाटी व अध्यक्ष राजश्री यादव ने भी शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला। राष्ट्रीय मंत्री प्रवीन आर्य ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
गायिका कौशल्या अरोड़ा,ईश्वर देवी,कमला हंस,रजनी गर्ग,उषा सूद,जनक अरोड़ा, नरेन्द्र आर्य सुमन,प्रतिभा खुराना आदि के मधुर भजन हुए।