नि:संकोच : कब ट्यूशन मुक्त होगी शिक्षा

नि:संकोच : कब ट्यूशन मुक्त होगी शिक्षा
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 05:39 PM
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 विनय संकोची

एक जमाना था जब गिने-चुने बच्चे की ट्यूशन पढ़ते थे। इन ट्यूशन पढ़ने वालों में बड़ी संख्या उनकी होती थी, जिनके बाप के पास पैसा होता था और वह सोचता था कि ट्यूशन के बल पर बच्चे को कलेक्टर बनवा लेगा। दूसरी तरह के वे बच्चे वो थे, जिन्हें माता पिता इसलिए ट्यूशन पढ़ाते थे, ताकि बड़ा होकर अपने पैरों पर खड़ा हो सके। अगर बहुत ध्यान से देखें तो उस समय ट्यूशन पढ़ने वालों का प्रतिशत मुश्किल से 5-6 प्रतिशत ही रहा होगा। लेकिन आज यह प्रतिशत 25 से 30% तक जा पहुंचा है। ट्यूशन पढ़ना फैशन के साथ मजबूरी भी बन चुका है। बड़े-बड़े स्कूलों में बड़ी-बड़ी फीस भरकर, फिर भी किसी बड़े मास्टर जी के पास बच्चे का ट्यूशन लगाकर लोग बड़े खुश हो रहे हैं। जब ट्यूशन ही लगवाना पड़ रहा है, तो स्कूल कालेज में ट्यूशन फीस किस बात की वसूली जा रही है, इस बारे में कोई नहीं सोचता। स्कूली शिक्षा की गिरती साख के बीच देश में प्राइवेट ट्यूशन का चलन कहें या कारोबार लगातार जोर पकड़ता चला जा रहा है। इस बात को पुष्ट करती है, नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन की 2016 की एक रिपोर्ट। रिपोर्ट कहती है देशभर में 7 करोड़ 10 लाख छात्र प्राइवेट ट्यूशन ले रहे हैं, जो कुछ छात्रों की संख्या का 26% है। 2011 की जनगणना में देश में छात्रों की संख्या 31 करोड़ 50 लाख बताई गई थी, जबकि उक्त ऑर्गनाइजेशन ने यह संख्या 27 करोड़ 30 लाख मानी थी। इस दृष्टि से देखें तो प्राइवेट ट्यूशन लेने वाले छात्रों की संख्या का प्रतिशत 26 से ज्यादा ही होगा, शायद 30 प्रतिशत के आसपास।

अब सवाल पैदा होता है कि जब बच्चे को तथाकथित अच्छे स्कूल में पढ़ाया जा रहा है तो ट्यूशन की जरूरत क्यों आन पड़ी। इसका उत्तर भी सर्वे रिपोर्ट पेश करती है। 2014 की शुरुआत में 66 हजार परिवारों का सर्वे हुआ, तो 89% अभिभावकों का उत्तर था - 'हमारी कोशिश अपने बच्चों की बुनियादी शिक्षा का स्तर सुधारने की है।' क्या इसे इस रूप में नहीं देखा जाना चाहिए कि अभिभावकों को नहीं लगता कि स्कूलों में शिक्षा का स्तर ठीक है, इसलिए प्राइवेट ट्यूशन जरूरी है।

आप सोचिए कि 30% छात्रों का भविष्य तो प्राइवेट ट्यूशन की बैसाखियों का मोहताज है और बाकी 70 परसेंट स्टूडेंट्स का भविष्य उस ट्यूशन पर टिका है जिसकी (ट्यूशन) फीस स्कूल वाले वसूलते हैं। सबसे दु:खद विषय तो यह भी है कि जो बच्चे ट्यूशन नहीं पढ़ते, उन्हें कथित रूप से शिक्षकों द्वारा प्रताड़ित करने, फेल कर देने की धमकी देने, भविष्य बिगाड़ने की बात कहकर उन्हें अपनी शरण में लाकर ट्यूशन पढ़ने के लिए बाध्य किया जाता है। आखिर कब शिक्षा का स्तर सुधरेगा और शिक्षा ट्यूशन मुक्त होगी आपको पता हो या पता चले तो हमें भी बताना।

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जानकारी : सभ्यता से कोसों दूर हैं पापुआन!

जानकारी : सभ्यता से कोसों दूर हैं पापुआन!
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 03:02 PM
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विनय संकोची

प्रशांत महासागर में स्थित न्यू गिनी द्वीप के निवासी पापुआन सभ्यता से कोसों दूर हैं और ऐसा जीवन व्यतीत करते हैं, जिसकी कल्पना किसी सभ्य समाज में किया जाना असंभव है। आश्चर्य होता है कि ये आदिवासी सुरक्षित कैसे हैं?

पापुआनों का कद नाटा, त्वचा गहरे कत्थई रंग की और डीलडोल बड़ा ही बेतुका होता है। हड्डियों की बनी गोलाकार आकृति की चीजें ही इनका आभूषण हैं। हड्डी से बने बदशक्ल सूंये से यह अपनी चटाई बन लेते हैं और प्रकृति से जो कुछ भी उपयोग की चीजें मिलती हैं, उन्हें यह हड्डियों के चाकुओं से काटकर व्यवहार में लाते हैं। इनके बड़े हथियार पत्थर के होते हैं। संभवत: अपने प्रारंभिक विकास काल में सभी मनुष्य इस प्रकार ही रहते होंगे।

पापुआनों को अपने जानवरों से इतना अधिक प्रेम होता है कि यह उनकी मृत्यु पर शोक मनाते हैं। किसी पालतू सूअर के मरने पर संसार के किसी और हिस्से की स्त्रियां शायद ही कीचड़ चुपड़कर शोक मनाती होंगी। वह घरेलू जानवरों के मरने पर अपने सगे संबंधियों जैसा ही शोक मनाते हैं।

इनके समाज में विधवाओं के शोक मनाने की प्रथा भी अजीब है। विधवा औरतें बाल कटा लेती हैं, अपने सारे शरीर में कीचड़ चुपड़ा करती हैं और एक जाली के भीतर अपने मृत पति की खोपड़ी लटकाए हमेशा उसे साथ-साथ लिए फिरती हैं।

उनकी एक विशेषता और है कि इनके युवाओं को एक विशेष तरीके से अपनी बहादुरी और सहनशीलता साबित करना पड़ती है। वह अपने गले में लचकदार बैंत के टुकड़े बांधकर चलते हैं। उन टुकड़ों को भिगोकर नरम बनाते हैं और तब उन्हें मोड़कर मुंह से उन्हें पेट तक पहुंचाते हैं। इससे बमन की प्रवृत्ति होती है, पर वे जबरन उसे रोके रहते हैं, जिससे उनकी आंखें लाल हो जाती हैं। इस प्रकार आत्म यंत्रणा द्वारा वे साबित करते हैं कि वह कठिनाइयां झेलने में समर्थ हैं। इस शर्त को पूरा करने पर वे समाज में आदर पाते हैं।

लड़ना झगड़ना, खून करना, पापुआनी समाज में खाना खाने जैसी रोजमर्रा की साधारण सी बात है। यह लड़ते समय अपने साथ दो तीन बच्चों को भी पीठ पर बांध कर ले जाते हैं, ताकि जन्म से ही वे सख्ती बर्दाश्त कर सके और लड़ाई कला में पूरी तरह से प्रवीण हो सकें। एक गांव के व्यक्ति का दूसरे गांव के व्यक्ति से झगड़ा बहुधा ही दोनों पूरे गांवों के झगड़े का रूप ले लेता है। शत्रु को पराजित करने के बाद विजयी दल पहरा देता है और उनकी औरतें हारने वालों की संपत्ति को अपने साथ ले जाने के लिए बटोरती हैं। इनकी लड़ाई लुक छिप कर हमला करने और अंधेरे में छापा मार तरीके से होती है।

पापुआनों के दो मुख्य वर्ग होते हैं, वनवासी और समुद्र तट वासी अर्थात् एक जंगलों में रहते हैं और दूसरे समुद्र किनारे बसते हैं। दोनों ही वर्गों में मुर्दों को अपने बगीचे में गाड़ कर रखने की प्रथा है। कब्र की निगरानी के लिए यह उसके चारों तरफ चटाई का एक घेरा डाल देते हैं। पापुआनों के गांव बड़े छोटे-छोटे होते हैं। एक गांव में अधिक से अधिक 2 से लेकर 6 घर तक होते हैं, जिसके कारण शादी विवाह में परेशानी होती है। इनके यहां बिल्कुल निकट के रिश्तेदारी में शादी नहीं करने की प्रथा है।

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Dadri News: समीर भी बनेंगे भाजपाई?

Sameer bhati
locationभारत
userचेतना मंच
calendar25 Nov 2025 05:11 PM
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दादरी। एक तरफ जहां प्रदेश चुनावी रंग में रंगता जा रहा है। वहीं गौतमबुद्धनगर जिला भी इससे अछूता नहीं है। जिले की राजनीति में नित नए समीकरण बन रहे हैं। इन्हीं समीकरणों के बीच खबर आ रही है कि स्व. महेन्द्र सिंह भाटी के पुत्र व पूर्व विधायक समीर भाटी भी भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो सकते हैं। इस खबर की अभी तक कोई अधिकारिक पुष्टि नहीं हो पायी है। सूत्रों का दावा है कि अपने कुछ शुभचिंतकों की राय पर समीर भाटी ने भाजपा में जाने का मन बना लिया है। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो वे जल्द ही भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम सकते हैं। श्री भाटी अधिकारिक रूप से अभी तक कांग्रेस में हैं। पिछला विधानसभा का चुनाव भी उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर ही लड़ा था। उनके भाजपा में जाने से दादरी विधानसभा सीट पर नए राजनीतिक समीकरणा बन सकते हैं।