महाभारत काल का इतिहास समेट रखा है यूपी के एक नगर ने, आप भी जानिए

22g
Dankaur Temple
locationभारत
userचेतना मंच
calendar23 Feb 2023 11:52 PM
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Dankaur Temple: आज हम आपको उत्तर प्रदेश के एक ऐसे कस्बे (नगर) से परिचित कराते हैं जहां महाभारत काल का जीवंत इतिहास आज भी कायम है। इस नगर के विषय में अनेक कही-अनकही कहानियां प्रचलित हैं। यह नगर महाभारत कालीन कौरव व पांडवों के शिक्षक रहे गुरू द्रोणाचार्य की राजधानी के रूप में विख्यात है। कहा तो यहां तक जाता है कि इस नगर में स्थित द्रोणाचार्य मंदिर के पास आज भी रात के समय घोड़ों की टॉपों की आवाज साफ-साफ सुनी जा सकती है।

Dankaur Temple: जानिए गुरू द्रोण की नगरी दनकौर के बारे में

[caption id="attachment_69726" align="alignnone" width="205"]Dankaur Temple एकलव्य द्वारा बनाई गई गुरु द्रोणाचार्य की प्राचीन मूर्ति[/caption]

यमुना के किनारे वन क्षेत्र में बसा दनकौर कस्बा अपने अंदर धार्मिक व ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए हुए है। महाभारत के प्रमुख चरित्र पांडवों और कौरवों के गुरू द्रोणाचार्य की कर्मस्थली दनकौर प्राचीन ऐतिहासिक नगरी है। द्रोणनगरी, द्रोणकोर के बाद अपभ्रश होकर धनकौर तथा फिर इसका नाम दनकौर पड़ा। दनकौर नगरी अपने आप में एक लम्बे इतिहास व धार्मिक मान्यताओं को संजोए हुए है। पूरे देश में गुरू द्रोणाचार्य का एकमात्र मंदिर और प्रतिमा इसी नगर दनकौर के प्राचीन दनकौर मंदिर में स्थापित है। इस दुर्लभ मूर्ति को भील जाति के राजकुमार एकलव्य ने बनाकर यहीं पर धनुर्विद्या प्राप्त की थी और सर्वश्रेष्ठ धुर्नधर बन गया था। दनकौर कस्बे में मान्यता है कि गुरू द्रोणाचार्य के मंदिर के पास रात में आज भी घोड़े की टापों की आवाज आती है।

[caption id="attachment_69725" align="alignnone" width="119"]Dankaur Temple प्राचीन गुरु द्रोणाचार्य मंदिर में स्थापित गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति[/caption]

अश्वथामा आते थे दर्शन करने

कस्बे वासियों का कहना है कि गुरू द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा जिनके मस्तिष्क पर मणि थी वह अपने पिता के दर्शन करने यहां आते हैं। श्री द्रोण पर्यटन संघर्ष समिति के अध्यक्ष पंकज कौशिक ने चेतना मंच को बताया कि मंदिर परिसर के समीप ही गुरू द्रोण तालाब प्राचीन काल से क्षेत्र और देश दुनिया में आकर्षण का केन्द्र है। ताज्जुब की बात यह है कि कितनी भी बारिश हो जाए इसमें भरा पानी महज 3 दिनों में सूख जाता है। कस्बे में मान्यता है कि प्राचीन काल में एक साधु तालाब से पानी भर रहे थे इस दौरान उनकी लुटिया तालाब में डूब गई। जिससे क्रोधित होकर उन्होंने तालाब को हमेशा सूखा रहने का श्राप दे दिया। पुरातत्व विभाग ने वर्ष-2013 में प्राचीन द्रोण मंदिर व तालाब को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया था। अब इस स्थान को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा प्राप्त है।

Dankaur Temple

द्रोणाचार्य का आशीर्वाद हितकारी

श्री कौशिक ने बताया कि दनकौर में गुरू द्रोणाचार्य को लेकर इस क्षेत्र के नागरिकों में विशेष आस्था है। शादी-जन्मदिन व अन्य विशेष अवसरों पर गुरू द्रोणाचार्य का आशीर्वाद निवासियों के लिए हितकारी होता है। प्रतिमाह गुरू द्रोणाचार्य की लगभग 8 किलोमीटर लम्बी विशेष परिक्रमा की जाती है जिसमेंं आसपास के सैकड़ों गांवों के श्रद्धालु शामिल होते हैं।

Dankaur Temple

इसी तरह रविवार का दिन गुरू द्रोण का माना गया है इसलिए रविवार को प्राचीन मंदिर में गुरू द्रोणाचार्य की प्राचीन मूर्ति का विशेष श्रृंगार और आरती की जाती है। मंदिर प्रांगण के पास ही श्री द्रोणाशाला स्थापित हैं जिसमें 1 हजार गायों का बेहतर ढंग से रखरखाव किया जाता है। यहां द्रोण रंगशाला भी स्थापित है जिसमें धार्मिक व शिक्षाप्रद नाटकों का मंचन करके समाज में संदेश दिया जाता है।

Dankaur Temple

कृष्ण जन्मोत्सव पर लगता है मेला

उन्होंने बताया कि नौ दशकों से प्रतिवर्ष श्री कृष्ण जन्म उत्सव पर दनकौर में प्रसिद्ध द्रोण मेला आयोजित किया जाता है। इस मेले का ऐतिहासिक महत्व होने के कारण शासन स्तर पर पूरे जनपद में सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। मेले में दिल्ली-एनसीआर से ही नहीं देश के अन्य हिस्सों से भी श्रद्धालु आते हैं। यहां प्रसिद्ध दंगल भी होता है।

Dankaur Temple

दनकौर में श्री द्रोण गौशाला के प्रबंधक रजनीकांत अग्रवाल हैं। उनके द्वारा कस्बे में मंदिर, अस्पताल, श्री द्रोणाचार्य उच्चतर माध्यमिक विद्यालय व गौशाला का संचालन किया जाता है। यहां भील राजकुमार एकलव्य पार्क भी है। उप्र के पूर्व राजस्व मंत्री रवि गौतम ने तालाब की बाउंड्री कराने के लिए अनुदान दिया था। इसके अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री व गौतमबुद्धनगर लोकसभा क्षेत्र से सांसद डा. महेश शर्मा ने मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए भी सहायता राशि दी थी।

धर्म, इतिहास व परंपराओं की हजारों किदवंतियों को समेटे हुए दनकौर देश की प्राचीन संस्कृति का बखूबी बयान करता है।

Meditation : इन दो विधियों से करें भगवान शिव का ध्यान, पूरी होगी हर मनोकामना

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महाभारत काल का इतिहास समेट रखा है यूपी के एक नगर ने, आप भी जानिए

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Dankaur Temple: आज हम आपको उत्तर प्रदेश के एक ऐसे कस्बे (नगर) से परिचित कराते हैं जहां महाभारत काल का जीवंत इतिहास आज भी कायम है। इस नगर के विषय में अनेक कही-अनकही कहानियां प्रचलित हैं। यह नगर महाभारत कालीन कौरव व पांडवों के शिक्षक रहे गुरू द्रोणाचार्य की राजधानी के रूप में विख्यात है। कहा तो यहां तक जाता है कि इस नगर में स्थित द्रोणाचार्य मंदिर के पास आज भी रात के समय घोड़ों की टॉपों की आवाज साफ-साफ सुनी जा सकती है।

Dankaur Temple: जानिए गुरू द्रोण की नगरी दनकौर के बारे में

[caption id="attachment_69726" align="alignnone" width="205"]Dankaur Temple एकलव्य द्वारा बनाई गई गुरु द्रोणाचार्य की प्राचीन मूर्ति[/caption]

यमुना के किनारे वन क्षेत्र में बसा दनकौर कस्बा अपने अंदर धार्मिक व ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए हुए है। महाभारत के प्रमुख चरित्र पांडवों और कौरवों के गुरू द्रोणाचार्य की कर्मस्थली दनकौर प्राचीन ऐतिहासिक नगरी है। द्रोणनगरी, द्रोणकोर के बाद अपभ्रश होकर धनकौर तथा फिर इसका नाम दनकौर पड़ा। दनकौर नगरी अपने आप में एक लम्बे इतिहास व धार्मिक मान्यताओं को संजोए हुए है। पूरे देश में गुरू द्रोणाचार्य का एकमात्र मंदिर और प्रतिमा इसी नगर दनकौर के प्राचीन दनकौर मंदिर में स्थापित है। इस दुर्लभ मूर्ति को भील जाति के राजकुमार एकलव्य ने बनाकर यहीं पर धनुर्विद्या प्राप्त की थी और सर्वश्रेष्ठ धुर्नधर बन गया था। दनकौर कस्बे में मान्यता है कि गुरू द्रोणाचार्य के मंदिर के पास रात में आज भी घोड़े की टापों की आवाज आती है।

[caption id="attachment_69725" align="alignnone" width="119"]Dankaur Temple प्राचीन गुरु द्रोणाचार्य मंदिर में स्थापित गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति[/caption]

अश्वथामा आते थे दर्शन करने

कस्बे वासियों का कहना है कि गुरू द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा जिनके मस्तिष्क पर मणि थी वह अपने पिता के दर्शन करने यहां आते हैं। श्री द्रोण पर्यटन संघर्ष समिति के अध्यक्ष पंकज कौशिक ने चेतना मंच को बताया कि मंदिर परिसर के समीप ही गुरू द्रोण तालाब प्राचीन काल से क्षेत्र और देश दुनिया में आकर्षण का केन्द्र है। ताज्जुब की बात यह है कि कितनी भी बारिश हो जाए इसमें भरा पानी महज 3 दिनों में सूख जाता है। कस्बे में मान्यता है कि प्राचीन काल में एक साधु तालाब से पानी भर रहे थे इस दौरान उनकी लुटिया तालाब में डूब गई। जिससे क्रोधित होकर उन्होंने तालाब को हमेशा सूखा रहने का श्राप दे दिया। पुरातत्व विभाग ने वर्ष-2013 में प्राचीन द्रोण मंदिर व तालाब को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया था। अब इस स्थान को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा प्राप्त है।

Dankaur Temple

द्रोणाचार्य का आशीर्वाद हितकारी

श्री कौशिक ने बताया कि दनकौर में गुरू द्रोणाचार्य को लेकर इस क्षेत्र के नागरिकों में विशेष आस्था है। शादी-जन्मदिन व अन्य विशेष अवसरों पर गुरू द्रोणाचार्य का आशीर्वाद निवासियों के लिए हितकारी होता है। प्रतिमाह गुरू द्रोणाचार्य की लगभग 8 किलोमीटर लम्बी विशेष परिक्रमा की जाती है जिसमेंं आसपास के सैकड़ों गांवों के श्रद्धालु शामिल होते हैं।

Dankaur Temple

इसी तरह रविवार का दिन गुरू द्रोण का माना गया है इसलिए रविवार को प्राचीन मंदिर में गुरू द्रोणाचार्य की प्राचीन मूर्ति का विशेष श्रृंगार और आरती की जाती है। मंदिर प्रांगण के पास ही श्री द्रोणाशाला स्थापित हैं जिसमें 1 हजार गायों का बेहतर ढंग से रखरखाव किया जाता है। यहां द्रोण रंगशाला भी स्थापित है जिसमें धार्मिक व शिक्षाप्रद नाटकों का मंचन करके समाज में संदेश दिया जाता है।

Dankaur Temple

कृष्ण जन्मोत्सव पर लगता है मेला

उन्होंने बताया कि नौ दशकों से प्रतिवर्ष श्री कृष्ण जन्म उत्सव पर दनकौर में प्रसिद्ध द्रोण मेला आयोजित किया जाता है। इस मेले का ऐतिहासिक महत्व होने के कारण शासन स्तर पर पूरे जनपद में सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। मेले में दिल्ली-एनसीआर से ही नहीं देश के अन्य हिस्सों से भी श्रद्धालु आते हैं। यहां प्रसिद्ध दंगल भी होता है।

Dankaur Temple

दनकौर में श्री द्रोण गौशाला के प्रबंधक रजनीकांत अग्रवाल हैं। उनके द्वारा कस्बे में मंदिर, अस्पताल, श्री द्रोणाचार्य उच्चतर माध्यमिक विद्यालय व गौशाला का संचालन किया जाता है। यहां भील राजकुमार एकलव्य पार्क भी है। उप्र के पूर्व राजस्व मंत्री रवि गौतम ने तालाब की बाउंड्री कराने के लिए अनुदान दिया था। इसके अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री व गौतमबुद्धनगर लोकसभा क्षेत्र से सांसद डा. महेश शर्मा ने मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए भी सहायता राशि दी थी।

धर्म, इतिहास व परंपराओं की हजारों किदवंतियों को समेटे हुए दनकौर देश की प्राचीन संस्कृति का बखूबी बयान करता है।

Meditation : इन दो विधियों से करें भगवान शिव का ध्यान, पूरी होगी हर मनोकामना

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Meditation : इन दो विधियों से करें भगवान शिव का ध्यान, पूरी होगी हर मनोकामना

Meditation : इन दो विधियों से करें भगवान शिव का ध्यान, पूरी होगी हर मनोकामना
locationभारत
userचेतना मंच
calendar21 Feb 2023 05:02 PM
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ध्यान का महत्व :

  Meditation : ध्यान, किसी भी पूजा-पाठ या व्रत की आत्मा होती है। यदि पूजा पाठ के साथ भक्ति में हम 'ध्यान' का समावेश करें तो हम अपने आराध्य देव को बहुत आसानी से प्रसन्न कर सकते हैं लेकिन ध्यान के सही तरीके का ज्ञान न होने से साधक इस लाभ से वंचित रह जाते हैं। बहुत लोगों से अक्सर ऐसे प्रश्न सुनने को मिलते हैं, जैसे ध्यान कैसे करें? ध्यान का सही तरीका क्या है? हम ध्यान और योग पर आचार्य प्रशांत और ओशो जैसे आध्यात्मिक लोगों के विचार को भी पढ़ते और समझते हैं। कहा गया है, "योग और ध्यान परमात्मा तक पहुंचने का रास्ता है।" चलिए इसे समझते हैं।

Meditation :

  प्रिय पाठकों, सनातन धर्म में तैंतीस कोटि देवी देवताओं का महत्व है, लेकिन पशुपति नाथ भगवान शिव का स्थान देवों के देव महादेव के रुप में शीर्ष पर आता है। अतः चेतना मंच के इस लेख में हम भोलेनाथ शिव जी की आराधना के साथ, ध्यान के ऐसे दो तरीके बताने वाले हैं जिसे अगर आप सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ करें तो आपकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जायेगी। आपको बता दें, भगवान भोलेनाथ को बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवों में से एक माना जाता है। यहां तक की राक्षस भी उन्हें अपनी तपस्या या अपने ध्यान से बड़ी आसानी से प्रसन्न कर लेते थे और उनसे मनचाहा वरदान पा लेते थे। शिव पुराण में बताया गया है कि दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करने पर भगवान भोलेनाथ अति प्रसन्न होते हैं। अतः उनकी विधिवत पूजा के बाद उन्हें प्रसन्न करने के लिए ध्यान के इन तरीकों का अनुसरण करें। 1 . त्राटक साधना : त्राटक साधना का अर्थ है, एक टक निहारना। अतः अपने आराध्य देव को एक टक लंबे समय तक बिना पलक झपकाए देखते हुए सिर्फ उनका ही ध्यान करें। इस साधना से ना सिर्फ मन को शांति मिलेगी बल्कि मन के कई विकार दूर हो जायेंगे और भक्त, अपने भगवान से सीधा जुड़ाव महसूस करेंगे। त्राटक अभ्यास से स्मरण शक्ति में अप्रत्याशित सुधार होता है। अतः यदि कोई विद्यार्थी इस ध्यान को करे तो निश्चित तौर पर उन्हें अपने पाठ याद करने में भी सहायता मिलेगी इसलिए इस साधना को गुरु योग भी कहा जाता है। पूर्व के समय में कठिन त्राटक अभ्यास से ऋषि-मुनि मन की अवचेतन शक्ति को जगा लेते थे और मस्तिष्क की शक्ति से बड़े बड़े चमत्कार कर जाते थे। त्राटक साधना की प्रक्रिया इस प्रकार है, सर्वप्रथम त्राटक अभ्यास के लिए आप अपने आराध्य देव भगवान शिव की तस्वीर सामने रखें। आसन पर पूरी तरह सीधी और योग मुद्रा में बैठ जाएं। कमरे में ठीक-ठाक रोशनी का प्रबंध जरूर रखें ताकि आपको आराध्य देव को देखने और मनन करने में कोई समस्या न हो। अब भगवान शिव की तस्वीर को बिना पलक झपकाए, शांत मन से देखें और उनकी कल्पना करें। पलक झपकते ही ध्यान रोक दें, अगले दिन फिर इसका अभ्यास करें।

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2. मंत्र साधना : मंत्र की ध्वनि, मस्तिष्क के स्पंदन में सहायक होती है। भगवान शिव की साधना मंत्रों से भी की जाती है। साधक, भगवान शिव की विधिवत पूजा के बाद उनके समक्ष योग मुद्रा में बैठ कर खुद को शून्य में महसूस करें और धीरे धीरे ॐ नमः शिवाय का जाप शुरू करें। 5 से 10 मिनट तक मंत्र साधना करने के बाद आप स्वयं को हल्का महसूस करने लगेंगे और शरीर में नई ताजगी का अनुभव कर पाएंगे। शैव परंपरा में माना जाता है कि भगवान शिव पूरी सृष्टि के ऊर्जा के केंद्र हैं। चूंकि ॐ शब्द भगवान शिव का सूचक है, अतः इस मंत्र साधना से न सिर्फ भगवान प्रसन्न होंगे बल्कि आपको मानसिक शांति के साथ साथ असीम ऊर्जा का भी अनुभव होगा। ऐतिहासिक तथ्य : भारतीय संस्कृति और सभ्यता के कुछ जानकार विद्वान एवं पुरातत्वविद बताते हैं कि इतिहास में भगवान शिव की पूजा का प्रमाण हड़प्पा काल से ही नजर आता है। हड़प्पा की खुदाई में पशुपति नाथ महादेव की कई ऐसी मूर्तियां आई है जो बताती है कि आज से 10 हजार साल पहले भी भगवान शिव की पूजा हुआ करती थी। प्रिय पाठकों, हम सब जानते हैं कि भगवान शिव आदि-गुरु हैं। वे इतिहास की सभी सीमाओं से परे हैं। जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा और हृदय से भगवान शिव से जुड़ जाता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। आशा करता हूं कि ये लेख आपको अच्छा लगा होगा। इसी तरह की और भी ज्ञानवर्धक जानकारी हेतु जुड़े रहें चेतना मंच के साथ…!

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