Dankaur Temple: आज हम आपको उत्तर प्रदेश के एक ऐसे कस्बे (नगर) से परिचित कराते हैं जहां महाभारत काल का जीवंत इतिहास आज भी कायम है। इस नगर के विषय में अनेक कही-अनकही कहानियां प्रचलित हैं। यह नगर महाभारत कालीन कौरव व पांडवों के शिक्षक रहे गुरू द्रोणाचार्य की राजधानी के रूप में विख्यात है। कहा तो यहां तक जाता है कि इस नगर में स्थित द्रोणाचार्य मंदिर के पास आज भी रात के समय घोड़ों की टॉपों की आवाज साफ-साफ सुनी जा सकती है।
Dankaur Temple: जानिए गुरू द्रोण की नगरी दनकौर के बारे में

यमुना के किनारे वन क्षेत्र में बसा दनकौर कस्बा अपने अंदर धार्मिक व ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए हुए है। महाभारत के प्रमुख चरित्र पांडवों और कौरवों के गुरू द्रोणाचार्य की कर्मस्थली दनकौर प्राचीन ऐतिहासिक नगरी है। द्रोणनगरी, द्रोणकोर के बाद अपभ्रश होकर धनकौर तथा फिर इसका नाम दनकौर पड़ा। दनकौर नगरी अपने आप में एक लम्बे इतिहास व धार्मिक मान्यताओं को संजोए हुए है। पूरे देश में गुरू द्रोणाचार्य का एकमात्र मंदिर और प्रतिमा इसी नगर दनकौर के प्राचीन दनकौर मंदिर में स्थापित है। इस दुर्लभ मूर्ति को भील जाति के राजकुमार एकलव्य ने बनाकर यहीं पर धनुर्विद्या प्राप्त की थी और सर्वश्रेष्ठ धुर्नधर बन गया था। दनकौर कस्बे में मान्यता है कि गुरू द्रोणाचार्य के मंदिर के पास रात में आज भी घोड़े की टापों की आवाज आती है।

अश्वथामा आते थे दर्शन करने
कस्बे वासियों का कहना है कि गुरू द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा जिनके मस्तिष्क पर मणि थी वह अपने पिता के दर्शन करने यहां आते हैं। श्री द्रोण पर्यटन संघर्ष समिति के अध्यक्ष पंकज कौशिक ने चेतना मंच को बताया कि मंदिर परिसर के समीप ही गुरू द्रोण तालाब प्राचीन काल से क्षेत्र और देश दुनिया में आकर्षण का केन्द्र है। ताज्जुब की बात यह है कि कितनी भी बारिश हो जाए इसमें भरा पानी महज 3 दिनों में सूख जाता है। कस्बे में मान्यता है कि प्राचीन काल में एक साधु तालाब से पानी भर रहे थे इस दौरान उनकी लुटिया तालाब में डूब गई। जिससे क्रोधित होकर उन्होंने तालाब को हमेशा सूखा रहने का श्राप दे दिया। पुरातत्व विभाग ने वर्ष-2013 में प्राचीन द्रोण मंदिर व तालाब को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया था। अब इस स्थान को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा प्राप्त है।
द्रोणाचार्य का आशीर्वाद हितकारी
श्री कौशिक ने बताया कि दनकौर में गुरू द्रोणाचार्य को लेकर इस क्षेत्र के नागरिकों में विशेष आस्था है। शादी-जन्मदिन व अन्य विशेष अवसरों पर गुरू द्रोणाचार्य का आशीर्वाद निवासियों के लिए हितकारी होता है। प्रतिमाह गुरू द्रोणाचार्य की लगभग 8 किलोमीटर लम्बी विशेष परिक्रमा की जाती है जिसमेंं आसपास के सैकड़ों गांवों के श्रद्धालु शामिल होते हैं।
इसी तरह रविवार का दिन गुरू द्रोण का माना गया है इसलिए रविवार को प्राचीन मंदिर में गुरू द्रोणाचार्य की प्राचीन मूर्ति का विशेष श्रृंगार और आरती की जाती है। मंदिर प्रांगण के पास ही श्री द्रोणाशाला स्थापित हैं जिसमें 1 हजार गायों का बेहतर ढंग से रखरखाव किया जाता है। यहां द्रोण रंगशाला भी स्थापित है जिसमें धार्मिक व शिक्षाप्रद नाटकों का मंचन करके समाज में संदेश दिया जाता है।
कृष्ण जन्मोत्सव पर लगता है मेला
उन्होंने बताया कि नौ दशकों से प्रतिवर्ष श्री कृष्ण जन्म उत्सव पर दनकौर में प्रसिद्ध द्रोण मेला आयोजित किया जाता है। इस मेले का ऐतिहासिक महत्व होने के कारण शासन स्तर पर पूरे जनपद में सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। मेले में दिल्ली-एनसीआर से ही नहीं देश के अन्य हिस्सों से भी श्रद्धालु आते हैं। यहां प्रसिद्ध दंगल भी होता है।
दनकौर में श्री द्रोण गौशाला के प्रबंधक रजनीकांत अग्रवाल हैं। उनके द्वारा कस्बे में मंदिर, अस्पताल, श्री द्रोणाचार्य उच्चतर माध्यमिक विद्यालय व गौशाला का संचालन किया जाता है। यहां भील राजकुमार एकलव्य पार्क भी है। उप्र के पूर्व राजस्व मंत्री रवि गौतम ने तालाब की बाउंड्री कराने के लिए अनुदान दिया था। इसके अलावा पूर्व केन्द्रीय मंत्री व गौतमबुद्धनगर लोकसभा क्षेत्र से सांसद डा. महेश शर्मा ने मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए भी सहायता राशि दी थी।
धर्म, इतिहास व परंपराओं की हजारों किदवंतियों को समेटे हुए दनकौर देश की प्राचीन संस्कृति का बखूबी बयान करता है।
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