क्या आप रामायण (Ramayan) के कुछ ऐसे अनोखे चरित्र के बारे में जानना चाहेंगे जिनकी चर्चा शायद ही कभी होती हों? दोस्तों, अनजाने में ही सही लेकिन हम उन अचर्चित चरित्रों से कुछ ना सीखकर अपने नैतिक मूल्यों में बहुत कुछ जोड़ना भूल जाते हैं। जो असीम ज्ञान, प्रेरणा हमें उन चरित्रों से लेना चाहिए वो हम नहीं ले पाते। ‘रामायण’ एक ऐसा महाकाव्य है, जो मात्र एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं बल्कि धर्म का एक समग्र रूप और अमृतवाणी है। जिसके नायक भगवान विष्णु के मनुष्य अवतार ‘श्री राम’ हैं। मानव रूप में किए गए अद्भुत, अविश्वसनीय, मर्यादित एवं लोक कल्याणकारी कार्यों के फलस्वरूप पूरे विश्व में उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के नाम से जाना गया। वहीं संपूर्ण महाकाव्य की नायिका देवी लक्ष्मी की अवतार माता सीता हैं। रामायण (Ramayan) से जो हमें सीख मिलती है, वो कुछ इस प्रकार है जैसे विविधता में एकता, रिश्तों का महत्व, अच्छी संगति का महत्व, सच्ची भक्ति, क्षमा करने की भावना, सबसे समान व्यवहार करना, छुआछूत जैसी कुरीतियों से दूर होना और हमेशा स्वयं को मर्यादित रखना। प्रिय पाठकों, रामायण के सभी प्रमुख पात्रों से हम सब अवगत हैं लेकिन रामायण में कई ऐसे अनोखे चरित्र हैं जिनकी बहुत कम चर्चा होती है। चेतना मंच के इस विशेष आर्टिकल में हम उन्हीं बहुत कम चर्चा में रहने वाले 5 विशेष चरित्रों का विश्लेषण करेंगे और उनसे मिली सीख का अध्ययन करेंगे।
Ramayan –
1 . जामवंत : किसी भी सभा में, संस्था में, परिवार में या समाज में बड़े बुजुर्ग लोगों की महत्ता को समझना हो, तो आपको रामायण में जामवंत जी से ज्यादा उपयुक्त शायद ही कोई चरित्र लगे। इसे हम दो स्थिति से समझ सकते हैं। पहली स्थिति में जब श्री राम जी के सेना के समक्ष 100 योजन समुद्र लांघ कर माता सीता का पता लगाने की चुनौती आई तो ये कार्य किसे सौंपा जाए ये तय नहीं हो पा रहा था। जामवंत जी, श्री राम जी के सेना के सबसे वृद्ध और अनुभवी व्यक्ति थे, उन्होंने ही इस कार्य के लिए हनुमान जी को उपयुक्त समझा और उन्होंने उनकी भूली हुई असीम शक्ति का स्मरण दिलाया। गोस्वामी तुलसीदास जी अपने रचित हनुमान अष्टक में इस घटना का बहुत ही सुंदर चित्रण करते हैं।
“बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ।”
अतः जामवंत जी के इस चरित्र से हमें ये प्रेरणा मिलती है कि हम सब को बड़े बुजुर्ग के अनुभव का लाभ जरूर उठाना चाहिए और हमेशा उनका आदर करना चाहिए।
वहीं दूसरी स्थिति में, जब माता सीता का पता लगाने के लिए हनुमान जी को लंका भेजा जा रहा था, तो वे अति उत्साह में थे। हनुमान जी रावण का संहार कर, माता सीता को ले आने की बात करते हैं, लेकिन जामवंत जी उन्हें समझाते हैं कि “ये कार्य आपका नहीं है, इसका श्रेय प्रभु को ही जाना चाहिए।” हनुमान जी को जामवंत जी की ये बात बहुत भाती है। बाबा तुलसीदास जी रामचरितमानस में एक चौपाई के माध्यम से इस घटना का उल्लेख करते हैं।
“जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥
तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दु:ख कंद मूल फल खाई॥”
2 . निषादराज और शबरी : रामायण के चरित्र निषादराज, शबरी और मुख्य नायक भगवान श्री राम के चरित्र को देखने के बाद आपको लगेगा कि जो छुआछूत और जातिवाद की कुरीति हमारे समाज में वर्षों से बनी हुई है, उसका कोई आधार नहीं है। निषाद समाज आज भारत के कई राज्यों में एससी या एसटी वर्ग के अंतर्गत आते हैं। रामायण (Ramayan) में बताया गया है कि निषादराज और भगवान श्री राम दोनों एक ही गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करते हैं, और जब भगवान वन-गमन करते हैं, उस समय भी निषादराज उनका अपने राज्य में भव्य स्वागत करते हैं। इसके अतिरिक्त एक और पात्र शबरी माता, जो भील जाति से आती हैं। माता शबरी की कथा के अनुसार श्री राम चंद्र जी शबरी के जूठे बेर स्वयं बहुत प्रेम से खाते हैं। ये दोनों चरित्र हमें ये प्रेरित करती है कि जो कुरीतियां, छुआछूत और जातिवाद के रूप में समाज में निराधार फैली हुई है, उसे खत्म कर हम सभी व्यक्ति को गले लगाएं और उन्हें मुख्य धारा में लाएं।
3. लंकाधिपति रावण : रावण एक कुशल राजनीतिज्ञ, कुशल राजा के रूप में लंका को बेहद समृद्ध करते हैं। रावण, रामायण (Ramayan) के एक ऐसे चरित्र हैं, जो परम ज्ञानी, शक्तिशाली, बुद्धिमान, बहु-विद्याओं के जानकार हैं लेकिन अहंकार और कुछ गलत निर्णयों की वजह से वो अपना सर्वनाश कर बैठते हैं। रावण के चरित्र से हमें ये सीखने को मिलता है कि हम कभी भी चुनौतियों को छोटा नहीं समझें। जब रावण, ब्रह्मा जी की तपस्या करके उनसे अजेय होने का वरदान मांगते हैं तो वे मनुष्य और वानर इन दो प्रजातियों को भूल जाते हैं। ये उनकी बहुत बड़ी गलती थी। अतः हम किसी भी क्षेत्र में हो चाहें वो कोई भी कार्य हो, कोई भी चुनौती हो उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। पूरी ताकत से और गंभीरता से चुनौतियों का सामना करना चाहिए।
4. विभीषण : कई विद्वानों का ये मानना है कि विभीषण जी का चरित्र भ्राता-द्रोही का है। वहीं कई विद्वान ये भी मानते हैं कि विभीषण जी, भगवान राम के परम भक्त थे, इसलिये उनके चरित्र में कोई दोष नहीं है। अगर हम नकारात्मक पहलुओं को उपेक्षित कर सिर्फ सकारात्मक पहलुओं पर गौर करें तो विभीषण जी का चरित्र हमें बहुत प्रेरित करता है। उनके चरित्र से देश के एक ज्ञानी और बुद्धिजीवी वर्ग के दायित्व का पता चलता है। वे हमेशा अपने राजा के गलत कार्यों का विरोध करते हैं और अपने परिवार का त्याग और भाई से बिछड़ने का विरह सहते हुए भी सम्पूर्ण राक्षस जाति के सर्वनाश को रोक लेते हैं। अतः विभीषण जी से हमें न्याय, सत्य और धर्म पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
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