Mithun Sankranti 2023 : देशभर में मनाई जाएगी मिथुन संक्रांति, होती हैं भूदेवी रजस्वला, जाने इस संक्रांति के रहस्य और इसके महत्व को

Mithun Sankranti 2023 (आचार्या राजरानी) सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाने का समय संक्रांति कहलाता है। वैसे तो साल में आने वाली एक संक्रांति जिसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है के बारे में अधिकांश: सभी लोग जानते हैं लेकिन इस संक्रांति के अलावा साल में कुल मिलाकर 12 संक्रांतियां होती है। सौर मास अनुसार प्रत्येक माह में आने वाली संक्रांति किसी न किसी नाम से जानी जाती है। जब आषाढ़ माह मध्य के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है तब इस संक्रांति को मिथुन संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इसे मिथुन संक्रांति इस कारण से कहा जाता है क्योंकि सूर्य इस समय वृष राशि से निकल कर मिथुन राशि में प्रवेश करता है। अत: राशि के नाम के अनुसार इस समय की संक्रांति मिथुन संक्रांति कहलाती है। अब इस नाम के अतिरिक्त भी इसके अनेक नाम हैं क्योंकि सौर संक्रांति का पर्व देशभर में अलग अलग रुप में अवश्य मनाया जाता है। आईये जानते हैं इस संक्रांति के नाम और इसकी विशेषताओं के बारे में :-
Mithun Sankranti 2023
मिथुन संक्रांति 2023 पुण्यकाल समय
मिथुन संक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त इस प्रकार रहेगा। 15 जून 2023 को बृहस्पतिवार के दिन यह संक्रांति मनाई जाएगी। मिथुन संक्रांति का समय शाम 18:16 का होगा। इस समय सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करेगा। मिथुन संक्रांति पुण्य काल संध्या 18:16 से 19:20 तक रहेगा, जिसकी अवधि 52 मिनट की होगी। मिथुन संक्रांति महापुण्य काल समय 18:29 से 19:20 तक रहेगा। इसके अलावा दोपहर 11:52 बाद से ही स्नान दान से संबंधित कार्य आरंभ किए जा सकते हैं।
मिथुन संक्रांति के विभिन्न नाम
मिथुन संक्रांति का समय 15 जून के आस पास का समय होता है। इस संक्रांति के समय हिंदू माह आषाढ़ मास चल रहा होता है, इस कारण से इसे आषाढ़ संक्रांति के नाम से पुकारा जाता है। देश के कुछ भाग में विशेष रुप से उड़ीसा में इस संक्रांति को राजा पर्व या रज पर्व के नाम से जाना जाता है। यह एक विशेष समय होता है जो कुछ दिनों तक चलता है। केरल में मिथुनम होंठ संक्रांति तो वहीं दक्षिण के कुछ स्थानों में संक्रमणम के रुप में जाना जाता है। अब इस संक्रांति का नाम चाहे जो भी हो लेकिन इसकी एक विशेषता सभी में दिखाई देती है।
मिथुन संक्रांति से संबंधित लोक धार्मिक मान्यताएं
इस संक्रांति का वैज्ञानिक आधार इस बात पर है कि सौर चक्र से है, वहीं धार्मिक एवं लोक प्रचलित मान्यताओं का आधार भी काफी विस्तार लिए है। ज्योतिष की अवधारण अनुसर सूर्य प्रत्येक माह एक राशि से निकल कर दूसरी राशि में जब प्रवेश करता है तो वह काल समय संक्रमण का होता है, अत: इस कारण इसे संक्रांति के नाम से पुकारा जाता है। संक्रमण काल होने के कारण इस समय को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है, इस समय पर प्रकृति में वातावरण में भी बदलाव होता है। अत: इस समय पर कुछ कार्यों को करना जरुरी माना गया है जिसमें विशेष रुप से स्नान का कार्य है जो शरीर की सुरक्षा के संदर्भ में है और जिसे धार्मिक रुप देकर स्नान दान एवं अन्य प्रकार की धार्मिक क्रियाओं से जोड़ दिया गया है जिसके चलते हम इस कार्य को और अधिक गंभिरता के साथ करें।
Mithun Sankranti 2023वहीं कुछ स्थानों में इस समय को राजा या रज संक्रांति के रुप में मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस समय पर पृथ्वी रजस्वला होती है। धर्म ग्रंथों में पृथ्वी को धरती एवं भूदेवी नाम से पुकारा जाता है अत: कुछ स्थानों पर ये समय पृथ्वी के मासिक धर्म से जुड़ा होने के प्रतीक स्वरुप विकास को दर्शाता है अत: इस समय पर पृथ्वी को खोदा नहीं जाता है किसी भी प्रकार का खुदाई का कार्य नहीं होता है और इस समय पर पूजन कार्य संपन्न किए जाते हैं। लोक भाषा में इस समय को वसुमती गढ़आ कहा जाता है, और सिल बट्टा जैसी वस्तु को भूदेवी का प्रतीक मानकर इसकी पूजा की जाती है। ओडिशा के पुरी जगन्नाथ मंदिर में इस समय को महत्वपूर्ण रुप से पूजा जाता है जिसे देखने के लिए देशभर से भक्तों का आगमन भी होता है। Mithun Sankranti 2023
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Mithun Sankranti 2023
मिथुन संक्रांति 2023 पुण्यकाल समय
मिथुन संक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त इस प्रकार रहेगा। 15 जून 2023 को बृहस्पतिवार के दिन यह संक्रांति मनाई जाएगी। मिथुन संक्रांति का समय शाम 18:16 का होगा। इस समय सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करेगा। मिथुन संक्रांति पुण्य काल संध्या 18:16 से 19:20 तक रहेगा, जिसकी अवधि 52 मिनट की होगी। मिथुन संक्रांति महापुण्य काल समय 18:29 से 19:20 तक रहेगा। इसके अलावा दोपहर 11:52 बाद से ही स्नान दान से संबंधित कार्य आरंभ किए जा सकते हैं।
मिथुन संक्रांति के विभिन्न नाम
मिथुन संक्रांति का समय 15 जून के आस पास का समय होता है। इस संक्रांति के समय हिंदू माह आषाढ़ मास चल रहा होता है, इस कारण से इसे आषाढ़ संक्रांति के नाम से पुकारा जाता है। देश के कुछ भाग में विशेष रुप से उड़ीसा में इस संक्रांति को राजा पर्व या रज पर्व के नाम से जाना जाता है। यह एक विशेष समय होता है जो कुछ दिनों तक चलता है। केरल में मिथुनम होंठ संक्रांति तो वहीं दक्षिण के कुछ स्थानों में संक्रमणम के रुप में जाना जाता है। अब इस संक्रांति का नाम चाहे जो भी हो लेकिन इसकी एक विशेषता सभी में दिखाई देती है।
मिथुन संक्रांति से संबंधित लोक धार्मिक मान्यताएं
इस संक्रांति का वैज्ञानिक आधार इस बात पर है कि सौर चक्र से है, वहीं धार्मिक एवं लोक प्रचलित मान्यताओं का आधार भी काफी विस्तार लिए है। ज्योतिष की अवधारण अनुसर सूर्य प्रत्येक माह एक राशि से निकल कर दूसरी राशि में जब प्रवेश करता है तो वह काल समय संक्रमण का होता है, अत: इस कारण इसे संक्रांति के नाम से पुकारा जाता है। संक्रमण काल होने के कारण इस समय को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है, इस समय पर प्रकृति में वातावरण में भी बदलाव होता है। अत: इस समय पर कुछ कार्यों को करना जरुरी माना गया है जिसमें विशेष रुप से स्नान का कार्य है जो शरीर की सुरक्षा के संदर्भ में है और जिसे धार्मिक रुप देकर स्नान दान एवं अन्य प्रकार की धार्मिक क्रियाओं से जोड़ दिया गया है जिसके चलते हम इस कार्य को और अधिक गंभिरता के साथ करें।
Mithun Sankranti 2023वहीं कुछ स्थानों में इस समय को राजा या रज संक्रांति के रुप में मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस समय पर पृथ्वी रजस्वला होती है। धर्म ग्रंथों में पृथ्वी को धरती एवं भूदेवी नाम से पुकारा जाता है अत: कुछ स्थानों पर ये समय पृथ्वी के मासिक धर्म से जुड़ा होने के प्रतीक स्वरुप विकास को दर्शाता है अत: इस समय पर पृथ्वी को खोदा नहीं जाता है किसी भी प्रकार का खुदाई का कार्य नहीं होता है और इस समय पर पूजन कार्य संपन्न किए जाते हैं। लोक भाषा में इस समय को वसुमती गढ़आ कहा जाता है, और सिल बट्टा जैसी वस्तु को भूदेवी का प्रतीक मानकर इसकी पूजा की जाती है। ओडिशा के पुरी जगन्नाथ मंदिर में इस समय को महत्वपूर्ण रुप से पूजा जाता है जिसे देखने के लिए देशभर से भक्तों का आगमन भी होता है। Mithun Sankranti 2023



