UP Assembly Election 2022 : इस बार छोटे दल तय करेंगे हार-जीत के नतीजे
भारत
चेतना मंच
02 Dec 2025 04:42 AM
लखनऊ (Chetna Manch Election Desk): इस बार 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव (UP Assembly Election 2022) में कई नए राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं. इन सबके बीच चुनावी नतीजों का पूरा दारोमदार छोटे दलों पर केन्द्रित होता जा रहा है. प्रदेश में लगभग डेढ़ दर्जन छोटे-छोटे राजनीतिक दल सक्रिय हैं. अचानक ये दल केन्द्रीय भूमिका में आ गए हैं. सब जानते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की घोषणा (Uttar Pradesh Assembly Election Announcement) किसी भी समय हो सकती है. निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) ने तमाम चुनावी तैयारियों की समीक्षा कर ली है. राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि अगले सप्ताह (10 जनवरी से 18 जनवरी 2022) किसी भी दिन चुनावी कार्यक्रम (Election Program) घोषित हो जाएगा. चुनाव का पूरा प्रोग्राम घोषित होते ही राजनीतिक दल (Political Parties) अपनी पूरी ताकत चुनावी अभियान में झोंक देंगे. अभी तक के हालात पर गौर करें तो प्रदेश में नित नए समीकरणा बन रहे हैं. इन तमाम समीकरणों में एक समीकरण तो यह है कि अभी तक उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Vidhan Sabha Chunav 2022) में वर्तमान में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) व मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के बीच सीधा मुकाबला है. बहुजन समाज पार्टी (BSP) व कांग्रेस (Congress) इस मुकाबले को त्रिकोणीय अथवा चर्तुकोणीय बनाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं.
चुनाव से ठीक पहले यूपी में बना बंगाल जैसा माहौल, क्या नतीजा वही होगा!
राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव के नतीजों का पूरा दारोमदार छोटे-छोटे दलों पर रहेगा. यह कड़वा सच है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव (UP Chunav) में हमेशा जातिगत समीकरण हावी रहे हैं. कुछ अवसरों पर अवश्य धार्मिक ध्रुवीकरण (Religious Polarization) जातिवादी समीकरणों पर भारी पड़ा था. इस बार के चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण की संभावनाएं कम नजर आ रही हैं. यह अलग बात है कि मतदान की तारीख तक समीकरण बनते बिगड़ते रहते हैं. अभी तक यह साफ है कि इस बार का चुनाव जातीय समीकरणों पर केन्द्रित होगा. इसी कारण छोटे-छोटे राजनीतिक दल व गुट बेहद अहम हो गए हैं.
Noida Politics : जानें, UP Elections से पहले अचानक कैसे बदले नोएडा के राजनीतिक समीकरण…
प्रदेश में प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा, सपा, बसपा व कांग्रेस के अलावा डेढ़ दर्जन छोटे-छोटे राजनीतिक दल हैं. जिनमें राष्ट्रीय लोकदल (रालोद), भारतीय सुहेल देव समाजवादी पार्टी (सुभासपा), महान दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा), राष्ट्रीय जनवादी पार्टी, गोंडवाना पार्टी, अपना दल (कमेरावादी), कांशीराम बहुजन मूल निवासी पार्टी, अपना दल (एस), आजाद समाज पार्टी एवं निषाद पार्टी जैसे दल प्रमुख हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में ये दल क्या करिश्मा दिखाएंगे? यह तो भविष्य का प्रश्न है किन्तु विश्लेषक यही मान रहे हैं कि इस बार के चुनावी नतीजों में इन दलों की भूमिका निर्णायक होने वाली है.
उप्र में तय समय पर होंगे चुनाव
इन छोटे-छोटे दलों के इतिहास व वर्तमान को देखें तो यह तथ्य सामने आता है कि ये दल अकेले -अकेले अपने दम पर चुनाव में उतरते हैं तो इन्हें कुछ खास हासिल नहीं होता है. किसी बड़े राजनीतिक दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर इन छोटे दलों को तो फायदा होता ही है. अपने साथ गठबंधन करने वाले दल को भी ये दल फायदा पहुंचाते हैं. वर्ष-2017 के विधानसभा चुनाव में अपना दल (एस) तथा सुभासपा के साथ भाजपा के गठबंधन के नतीजे इस बात की गवाही देते हैं कि गठबंधन से इन दलों को व्यापक लाभ हुआ तो भाजपा को भी पूरा फायदा मिला था. इस बार अपना दल (एस) तो पूर्व की भांति ही भाजपा के साथ है, किन्तु ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) की पार्टी सुभासपा समाजवादी पार्टी के साथ चली गयी है.
यूपी में बीजेपी को बदलनी पड़ी चुनावी रणनीति, ये है सबसे बड़ी वजह
छोटे-छोटे दलों का सबसे बड़ा गठबंधन समाजवादी पार्टी ने बनाया है. राष्ट्रीय लोकदल (रालोद), सुहेलदेव समाजपार्टी (सुभासपा), महान दल प्रसपा, राष्ट्रीय जनवादी पार्टी, गोंडवाना पार्टी, अपना दल (के) एवं कांशीराम बहुजन मूल निवास पार्टी के साथ समाजवादी पार्टी ने चुनाव से बहुत पहले ही समझौता कर लिया है. विश्लेषक मान रहे हैं कि इन दलों से गठबंधन के कारण ही सपा पूरी ताकत के साथ भाजपा को टक्कर देती हुई नजर आ रही है. सब मान रहे हैं कि यदि इन छोटे-छोटे दलों ने अपनी-अपनी बिरादरी के पूरे वोट गठबंधन के पक्ष में एकजुट कर दिए तो उत्तर प्रदेश में चौंकाने वाले नतीजे आएंगे.
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव (UP Assembly Election 2022) की सभी खबरें यहां पढ़ें...
अगली खबर पढ़ें
भारत
चेतना मंच
02 Dec 2025 04:42 AM
लखनऊ (Chetna Manch Election Desk): इस बार 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव (UP Assembly Election 2022) में कई नए राजनीतिक समीकरण बन रहे हैं. इन सबके बीच चुनावी नतीजों का पूरा दारोमदार छोटे दलों पर केन्द्रित होता जा रहा है. प्रदेश में लगभग डेढ़ दर्जन छोटे-छोटे राजनीतिक दल सक्रिय हैं. अचानक ये दल केन्द्रीय भूमिका में आ गए हैं. सब जानते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की घोषणा (Uttar Pradesh Assembly Election Announcement) किसी भी समय हो सकती है. निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) ने तमाम चुनावी तैयारियों की समीक्षा कर ली है. राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि अगले सप्ताह (10 जनवरी से 18 जनवरी 2022) किसी भी दिन चुनावी कार्यक्रम (Election Program) घोषित हो जाएगा. चुनाव का पूरा प्रोग्राम घोषित होते ही राजनीतिक दल (Political Parties) अपनी पूरी ताकत चुनावी अभियान में झोंक देंगे. अभी तक के हालात पर गौर करें तो प्रदेश में नित नए समीकरणा बन रहे हैं. इन तमाम समीकरणों में एक समीकरण तो यह है कि अभी तक उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Vidhan Sabha Chunav 2022) में वर्तमान में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) व मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के बीच सीधा मुकाबला है. बहुजन समाज पार्टी (BSP) व कांग्रेस (Congress) इस मुकाबले को त्रिकोणीय अथवा चर्तुकोणीय बनाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं.
चुनाव से ठीक पहले यूपी में बना बंगाल जैसा माहौल, क्या नतीजा वही होगा!
राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव के नतीजों का पूरा दारोमदार छोटे-छोटे दलों पर रहेगा. यह कड़वा सच है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव (UP Chunav) में हमेशा जातिगत समीकरण हावी रहे हैं. कुछ अवसरों पर अवश्य धार्मिक ध्रुवीकरण (Religious Polarization) जातिवादी समीकरणों पर भारी पड़ा था. इस बार के चुनाव में धार्मिक ध्रुवीकरण की संभावनाएं कम नजर आ रही हैं. यह अलग बात है कि मतदान की तारीख तक समीकरण बनते बिगड़ते रहते हैं. अभी तक यह साफ है कि इस बार का चुनाव जातीय समीकरणों पर केन्द्रित होगा. इसी कारण छोटे-छोटे राजनीतिक दल व गुट बेहद अहम हो गए हैं.
Noida Politics : जानें, UP Elections से पहले अचानक कैसे बदले नोएडा के राजनीतिक समीकरण…
प्रदेश में प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा, सपा, बसपा व कांग्रेस के अलावा डेढ़ दर्जन छोटे-छोटे राजनीतिक दल हैं. जिनमें राष्ट्रीय लोकदल (रालोद), भारतीय सुहेल देव समाजवादी पार्टी (सुभासपा), महान दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा), राष्ट्रीय जनवादी पार्टी, गोंडवाना पार्टी, अपना दल (कमेरावादी), कांशीराम बहुजन मूल निवासी पार्टी, अपना दल (एस), आजाद समाज पार्टी एवं निषाद पार्टी जैसे दल प्रमुख हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव में ये दल क्या करिश्मा दिखाएंगे? यह तो भविष्य का प्रश्न है किन्तु विश्लेषक यही मान रहे हैं कि इस बार के चुनावी नतीजों में इन दलों की भूमिका निर्णायक होने वाली है.
उप्र में तय समय पर होंगे चुनाव
इन छोटे-छोटे दलों के इतिहास व वर्तमान को देखें तो यह तथ्य सामने आता है कि ये दल अकेले -अकेले अपने दम पर चुनाव में उतरते हैं तो इन्हें कुछ खास हासिल नहीं होता है. किसी बड़े राजनीतिक दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर इन छोटे दलों को तो फायदा होता ही है. अपने साथ गठबंधन करने वाले दल को भी ये दल फायदा पहुंचाते हैं. वर्ष-2017 के विधानसभा चुनाव में अपना दल (एस) तथा सुभासपा के साथ भाजपा के गठबंधन के नतीजे इस बात की गवाही देते हैं कि गठबंधन से इन दलों को व्यापक लाभ हुआ तो भाजपा को भी पूरा फायदा मिला था. इस बार अपना दल (एस) तो पूर्व की भांति ही भाजपा के साथ है, किन्तु ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) की पार्टी सुभासपा समाजवादी पार्टी के साथ चली गयी है.
यूपी में बीजेपी को बदलनी पड़ी चुनावी रणनीति, ये है सबसे बड़ी वजह
छोटे-छोटे दलों का सबसे बड़ा गठबंधन समाजवादी पार्टी ने बनाया है. राष्ट्रीय लोकदल (रालोद), सुहेलदेव समाजपार्टी (सुभासपा), महान दल प्रसपा, राष्ट्रीय जनवादी पार्टी, गोंडवाना पार्टी, अपना दल (के) एवं कांशीराम बहुजन मूल निवास पार्टी के साथ समाजवादी पार्टी ने चुनाव से बहुत पहले ही समझौता कर लिया है. विश्लेषक मान रहे हैं कि इन दलों से गठबंधन के कारण ही सपा पूरी ताकत के साथ भाजपा को टक्कर देती हुई नजर आ रही है. सब मान रहे हैं कि यदि इन छोटे-छोटे दलों ने अपनी-अपनी बिरादरी के पूरे वोट गठबंधन के पक्ष में एकजुट कर दिए तो उत्तर प्रदेश में चौंकाने वाले नतीजे आएंगे.
उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव (UP Assembly Election 2022) की सभी खबरें यहां पढ़ें...
चुनाव से ठीक पहले यूपी में बना बंगाल जैसा माहौल, क्या नतीजा वही होगा!
UP Election 2022
भारत
चेतना मंच
30 Nov 2025 05:48 PM
पश्चिम बंगाल चुनाव और उसके नतीजों से पहले जिस तरह की परिस्थितियां बनीं थीं, कुछ वैसे ही हालात एक बार फिर से बन रहे हैं। देखना यह है कि क्या इस बार इतिहास खुद को दोहराता है या नहीं।
आईआईटी कानपुर की भविष्यवाणी
देश में एक बार फिर से कोरोना और उसके नए वैरिएंट, ओमिक्रॉन (Omicron) को लेकर दहशत का माहौल है। इस वैरिएंट के सामने आने के बाद विशेषज्ञों ने सबसे पहली बात यही कही थी कि कोरोना (Covid-19) के अब तक के किसी भी वैरिएंट की तुलना में इसका संक्रमण कई गुना तेजी से फैलता है।
यह बात अमेरिका, यूरोप और अब भारत में भी सही साबित हो रही है। आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) ने भी अपने एक शोध में यह आशंका जाहिर कर दी थी कि भारत में कोरोना की तीसरी लहर आना तय है और फरवरी में यह चरम पर होगी।
आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) के प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल (Prof Manindra Agrawal) के मुताबिक, जनवरी से मार्च के बीच भारत में रोजाना डेढ़ से दो लाख मामले आ सकते हैं। प्रोफेसर अग्रवाल का कहना है कि तीसरी लहर (Third Wave) अप्रैल तक खिंच सकती है और इसमें चुनावी रैलियां सुपर स्प्रेडर (Super Spreader) का काम करेंगी।
दो आयोजन और एक वायरस
सब जानते हैं कि यूपी, पंजाब और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में इस साल विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2022) होने वाले हैं। यूपी और पंजाब में सभी राजनीतिक दल जोर-शोर से चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। रोड शो, जनसभाएं और भारी भीड़ के साथ सार्वजनिक कार्यक्रम किए जा रहे हैं ताकि, वोटरों को लुभाया जा सके।
इस बीच नए साल का स्वागत उत्सव मनाने के लिए देश के लगभग हर पर्यटक स्थल पर बड़ी संख्या में लोग जमा हुए और ओमिक्रॉन (Omicron) की परवाह किए बिना जमकर पार्टी की। कोरोना, ओमिक्रॉन (Omicron) और तीसरी लहर (Third Wave) की आशंकाओं के बावजूद आखिर क्यों लोग सावधानी बरतने को तैयार नहीं हैं?
क्योंकि, नेताओं ने दिया यह संदेश
यह सवाल जितना स्वाभाविक है उसका जवाब भी उतना ही सहज है। उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi), योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath), अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav), अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal), नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu), प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) शामिल हैं।
तीसरी लहर की आशंकाओं के बावजूद इनमें से किसी भी नेता ने अपने सार्वजनिक व्यवहार से यह जाहिर नहीं किया कि हमें क्या सावधानी बरतनी चाहिए। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने दिसंबर में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Dham Corridor) का उद्घाटन किया जिसमें हजारों की भीड़ जमा हुई।
अखिलेश यादव लगातार रोड शो कर रहे हैं जिसमें हजारों की संख्या में लोग उन्हें देखने और उनसे हाथ मिलाने के लिए उनकी गाड़ी के पीछे दौड़ते नजर आते हैं। ऐसे अनेको नाम और उदाहरण गिनाए जा सकते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इसमें कोई दल या नेता किसी से पीछे नहीं है।
क्या सारा दोष नेताओं का है
नेताओं की बात इसलिए क्योंकि, आम लोग इन नेताओं को देखकर यह अंदाजा लगाते हैं कि कोरोना (Covid-19) को लेकर जो डर पैदा किया जा रहा है उसमें दम है या नहीं। लोगों को लगता है कि जब इतने बड़े नेता जो रोज हजारों या लाखों लोगों के बीच आ-जा रहे हैं, अगर उन्हें कुछ नहीं हो रहा है तो, हमें क्या होगा। हम कौन सा रोज हजारों-लाखों के संपर्क में आते हैं।
नेताओं की रैलियों और उनके पीछे चल रहे रेले से आम जनता में यह संदेश जाता है कि अभी सबकुछ ठीक है। क्योंकि, कुछ भी गड़बड़ होने पर नेता ही सबसे पहले आवाज उठाते हैं। चाहे प्याज की कीमत हो या पेट्रोल के बढ़ते दाम। अगर किसी भी दल का कोई भी नेता कोरोना (Covid-19), भीड़ या रैली का विरोध नहीं कर रहा है तो, इसका मतलब है कि डरने की कोई बात नहीं है।
मीडिया और महामारी से ज्यादा इनका होता है असर
कोरोना भगाने के लिए थाली पीटना, महिला मैराथन में हजारों लड़कियों का सड़कों पर दौड़ना और चोटिल होना जैसी घटनाएं बताती हैं कि नेताओं का आम जनता पर कितना प्रभाव होता है। नेताओं के व्यवहार और उनके संदेश का असर किसी भी मीडिया, रिसर्च या चेतावनी से कहीं ज्यादा गहरा होता है।
उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों में पिछले कुछ महीनों से नेताओं का पूरा ध्यान चुनाव पर है तो, जाहिर है आम जनता का ध्यान भी कोरोना (Covid-19) या तीसरी लहर (Third Wave) पर तो बिलकुल नहीं है। इसी का नतीजा है नये साल का जश्न और बाजारों में उमड़ रही बेपरवाह भीड़।
थाली पीटने और टीका लगवाने के पीछे की लॉजिक
नेताओं के असर का सबसे बड़ा प्रमाण है कोरोना (Covid-19) की पहली लहर। पहली लहर से पहले पूरे देश में कोरोना के प्रति जो माहौल पैदा किया गया उसी का असर था कि जब अमेरिका और यूरोप में कोरोना (Covid-19) कहर बरपा रहा था तब भारत में स्थिति नियंत्रण में थी।
देश में कोरोना के टीकाकरण (Vaccination) के प्रति सकारात्मक माहौल पैदा करने में भी नेताओं का बड़ा योगदान है। हालांकि, दूसरी लहर के दौरान कोरोना (Covid-19) के प्रति नेताओं के लचर रवैये का असर आम जन पर भी पड़ा और पूरे देश को इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ा।
फिर बना बंगाल चुनाव से पहले वाला माहौल
पहले लॉकडाउन (Lockdown) के बाद कोरोना संक्रमण की गंभीरता के आधार पर लॉकडाउन या पाबंदियों पर फैसला करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया गया है। 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव, यूपी पंचायत चुनाव या उत्तराखंड में कुंभ जैसे आयोजन से पहले क्या सख्ती की जानी चाहिए, यह तय करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि तत्कालीन राज्य सरकारों और नेताओं ने राजनीतिक फायदे के चलते महामारी की अनदेखी की जिसकी परिणति दूसरी लहर की भयावह त्रासदी के रूप में सामने आई।
देश में एक बार फिर से कुछ वैसे ही हालात बन रहे हैं। इस बार बंगाल की जगह यूपी और पंजाब के विधानसभा चुनाव हैं और कोरोना (Covid-19) की तीसरी लहर (Third Wave) दस्तक दे चुकी है। पिछली बार होली का त्योहार बीता था और इस बार नए साल का उत्सव। तो, क्या इस बार भी महामारी पर चुनाव भारी पड़ेगा या चुनाव के बाद लाशों के ढेर पर आरोप-प्रत्यारोप का वही गंदा खेल खेला जाएगा?
इन सवालों का जवाब तो आने वाला वक्त ही देगा। देखना बस यह है कि चुनाव नतीजों को अपने पक्ष में करने के लिए, तीसरी लहर के सामने कितने इंसानों की बलि चढ़ाई जाती है।
- संजीव श्रीवास्तव
अगली खबर पढ़ें
भारत
चेतना मंच
30 Nov 2025 05:48 PM
पश्चिम बंगाल चुनाव और उसके नतीजों से पहले जिस तरह की परिस्थितियां बनीं थीं, कुछ वैसे ही हालात एक बार फिर से बन रहे हैं। देखना यह है कि क्या इस बार इतिहास खुद को दोहराता है या नहीं।
आईआईटी कानपुर की भविष्यवाणी
देश में एक बार फिर से कोरोना और उसके नए वैरिएंट, ओमिक्रॉन (Omicron) को लेकर दहशत का माहौल है। इस वैरिएंट के सामने आने के बाद विशेषज्ञों ने सबसे पहली बात यही कही थी कि कोरोना (Covid-19) के अब तक के किसी भी वैरिएंट की तुलना में इसका संक्रमण कई गुना तेजी से फैलता है।
यह बात अमेरिका, यूरोप और अब भारत में भी सही साबित हो रही है। आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) ने भी अपने एक शोध में यह आशंका जाहिर कर दी थी कि भारत में कोरोना की तीसरी लहर आना तय है और फरवरी में यह चरम पर होगी।
आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) के प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल (Prof Manindra Agrawal) के मुताबिक, जनवरी से मार्च के बीच भारत में रोजाना डेढ़ से दो लाख मामले आ सकते हैं। प्रोफेसर अग्रवाल का कहना है कि तीसरी लहर (Third Wave) अप्रैल तक खिंच सकती है और इसमें चुनावी रैलियां सुपर स्प्रेडर (Super Spreader) का काम करेंगी।
दो आयोजन और एक वायरस
सब जानते हैं कि यूपी, पंजाब और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में इस साल विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2022) होने वाले हैं। यूपी और पंजाब में सभी राजनीतिक दल जोर-शोर से चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। रोड शो, जनसभाएं और भारी भीड़ के साथ सार्वजनिक कार्यक्रम किए जा रहे हैं ताकि, वोटरों को लुभाया जा सके।
इस बीच नए साल का स्वागत उत्सव मनाने के लिए देश के लगभग हर पर्यटक स्थल पर बड़ी संख्या में लोग जमा हुए और ओमिक्रॉन (Omicron) की परवाह किए बिना जमकर पार्टी की। कोरोना, ओमिक्रॉन (Omicron) और तीसरी लहर (Third Wave) की आशंकाओं के बावजूद आखिर क्यों लोग सावधानी बरतने को तैयार नहीं हैं?
क्योंकि, नेताओं ने दिया यह संदेश
यह सवाल जितना स्वाभाविक है उसका जवाब भी उतना ही सहज है। उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi), योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath), अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav), अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal), नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu), प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) शामिल हैं।
तीसरी लहर की आशंकाओं के बावजूद इनमें से किसी भी नेता ने अपने सार्वजनिक व्यवहार से यह जाहिर नहीं किया कि हमें क्या सावधानी बरतनी चाहिए। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने दिसंबर में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Dham Corridor) का उद्घाटन किया जिसमें हजारों की भीड़ जमा हुई।
अखिलेश यादव लगातार रोड शो कर रहे हैं जिसमें हजारों की संख्या में लोग उन्हें देखने और उनसे हाथ मिलाने के लिए उनकी गाड़ी के पीछे दौड़ते नजर आते हैं। ऐसे अनेको नाम और उदाहरण गिनाए जा सकते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इसमें कोई दल या नेता किसी से पीछे नहीं है।
क्या सारा दोष नेताओं का है
नेताओं की बात इसलिए क्योंकि, आम लोग इन नेताओं को देखकर यह अंदाजा लगाते हैं कि कोरोना (Covid-19) को लेकर जो डर पैदा किया जा रहा है उसमें दम है या नहीं। लोगों को लगता है कि जब इतने बड़े नेता जो रोज हजारों या लाखों लोगों के बीच आ-जा रहे हैं, अगर उन्हें कुछ नहीं हो रहा है तो, हमें क्या होगा। हम कौन सा रोज हजारों-लाखों के संपर्क में आते हैं।
नेताओं की रैलियों और उनके पीछे चल रहे रेले से आम जनता में यह संदेश जाता है कि अभी सबकुछ ठीक है। क्योंकि, कुछ भी गड़बड़ होने पर नेता ही सबसे पहले आवाज उठाते हैं। चाहे प्याज की कीमत हो या पेट्रोल के बढ़ते दाम। अगर किसी भी दल का कोई भी नेता कोरोना (Covid-19), भीड़ या रैली का विरोध नहीं कर रहा है तो, इसका मतलब है कि डरने की कोई बात नहीं है।
मीडिया और महामारी से ज्यादा इनका होता है असर
कोरोना भगाने के लिए थाली पीटना, महिला मैराथन में हजारों लड़कियों का सड़कों पर दौड़ना और चोटिल होना जैसी घटनाएं बताती हैं कि नेताओं का आम जनता पर कितना प्रभाव होता है। नेताओं के व्यवहार और उनके संदेश का असर किसी भी मीडिया, रिसर्च या चेतावनी से कहीं ज्यादा गहरा होता है।
उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों में पिछले कुछ महीनों से नेताओं का पूरा ध्यान चुनाव पर है तो, जाहिर है आम जनता का ध्यान भी कोरोना (Covid-19) या तीसरी लहर (Third Wave) पर तो बिलकुल नहीं है। इसी का नतीजा है नये साल का जश्न और बाजारों में उमड़ रही बेपरवाह भीड़।
थाली पीटने और टीका लगवाने के पीछे की लॉजिक
नेताओं के असर का सबसे बड़ा प्रमाण है कोरोना (Covid-19) की पहली लहर। पहली लहर से पहले पूरे देश में कोरोना के प्रति जो माहौल पैदा किया गया उसी का असर था कि जब अमेरिका और यूरोप में कोरोना (Covid-19) कहर बरपा रहा था तब भारत में स्थिति नियंत्रण में थी।
देश में कोरोना के टीकाकरण (Vaccination) के प्रति सकारात्मक माहौल पैदा करने में भी नेताओं का बड़ा योगदान है। हालांकि, दूसरी लहर के दौरान कोरोना (Covid-19) के प्रति नेताओं के लचर रवैये का असर आम जन पर भी पड़ा और पूरे देश को इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ा।
फिर बना बंगाल चुनाव से पहले वाला माहौल
पहले लॉकडाउन (Lockdown) के बाद कोरोना संक्रमण की गंभीरता के आधार पर लॉकडाउन या पाबंदियों पर फैसला करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया गया है। 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव, यूपी पंचायत चुनाव या उत्तराखंड में कुंभ जैसे आयोजन से पहले क्या सख्ती की जानी चाहिए, यह तय करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि तत्कालीन राज्य सरकारों और नेताओं ने राजनीतिक फायदे के चलते महामारी की अनदेखी की जिसकी परिणति दूसरी लहर की भयावह त्रासदी के रूप में सामने आई।
देश में एक बार फिर से कुछ वैसे ही हालात बन रहे हैं। इस बार बंगाल की जगह यूपी और पंजाब के विधानसभा चुनाव हैं और कोरोना (Covid-19) की तीसरी लहर (Third Wave) दस्तक दे चुकी है। पिछली बार होली का त्योहार बीता था और इस बार नए साल का उत्सव। तो, क्या इस बार भी महामारी पर चुनाव भारी पड़ेगा या चुनाव के बाद लाशों के ढेर पर आरोप-प्रत्यारोप का वही गंदा खेल खेला जाएगा?
इन सवालों का जवाब तो आने वाला वक्त ही देगा। देखना बस यह है कि चुनाव नतीजों को अपने पक्ष में करने के लिए, तीसरी लहर के सामने कितने इंसानों की बलि चढ़ाई जाती है।
लखनऊ (एजेंसी)। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के तीन दिवसीय दौरे के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चन्द्रा ने कहा कि सभी राजनैतिक दल तय समय पर चुनाव कराने के पक्ष में हैं। आयोग प्रदेश में निष्पक्ष, प्रलोभन मुक्त तथा कोविड प्रोटोकॉल के तहत कराने के लिए प्रतिबद्घ है।
आज एक प्रेस कांफ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चन्द्रा ने कहा कि राजनीतिक दलों से चर्चा के बाद सभी एसपी, डीआईजी, कमिश्ननर से मिलकर हालात का जायजा लिया गया। इसके बाद सभी नोडल अधिकारियों से चर्चा की गई। सबसे अंत में मुख्य सचिव, डीजीपी और अन्य अधिकारियों से बातचीत की। सभी दलों ने कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए निश्चित समय पर चुनाव कराने की मांग की। कुछ दलों ने कोविड प्रोटोकॉल के बिना पालन किए होने वाली रैलियों पर चिंता जताई।
उन्होंने कहा कि कोरोना को देखते हुए 1500 लोगों पर एक बूथ को घटाकर 1250 लोगों पर एक बूथ कर दिया गया है। इससे 11 हजार बूथ बढ़े हैं। हर पोलिंग बूथ पर पानी, बिजली और शौचालय की व्यवस्था होगी। दिव्यांगों के लिए व्हीलचेयर और रैंप की व्यवस्था होगी।चुनाव आयुक्त ने कहा कि कम से कम 800 पोलिंग स्टेशन ऐसे बनाए जाएंगे जहां सिर्फ महिला पोलिंग अधिकारी होंगे। मतदाता एपिक कार्ड के अलावा 11 अन्य दस्तावेज दिखाकर वोटर वोट डाल सकता है। इसमें पैन कार्ड, आधार कार्ड, मनरेगा कार्ड जैसे दस्तावेज शामिल हैं।
चुनाव आयुक्त ने कहा कि कुछ प्रतिनिधियों ने प्रशासन के पक्षपाती रवैये के बारे में शिकायत की। पुलिस द्वारा रैलियों पर अनुचित प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाया। अधिकतर राजनीतिक दलों ने प्रचार के दौरान धनबल, शराब और मतदाताओं को मुफ्त चीजें दिए जाने पर चिंता जताई है। इन मुद्दों से आयोग अवगत है।
चुनाव आयोग ने कहा कि मतदाता पंजीकरण का कार्यक्रम भी चल रहा है। उस पर काफी मेहनत हुई है। 5 जनवरी को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। अब तक 15 करोड़ से ज्यादा मतदाता पंजीकृत हैं। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख तक भी मतदाता सूची में अपने नाम को लेकर दावे-आपत्ति बता सकते हैं। 23.9 लाख पुरुष और 28.8 लाख महिला मतदाता हैं। 52.8 लाख नए मतदाता जुड़े हैं। इनमें 19.89 लाख युवा मतदाता हैं यानी इनकी उम्र 18-19 साल हैं। चुनाव आयोग ने कहा कि 2017 में लिंगानुपात 839 था यानी एक हजार पुरुषों पर 839 महिला वोटर थीं। इस बार यह बढ़कर 868 हो गया है। उत्तर प्रदेश में इस वक्त 10 लाख 64 हजार 267 दिव्यांग मतदाता हैं।
पार्टियां घनी आबादी वाले इलाके में बूथ के खिलाफ
चुनाव आयोग ने कहा कि लगभग पार्टियां घनी आबादी वाले इलाके में बूथ नहीं चाहते हैं, ताकि कोरोना दिशानिर्देश का उल्लंघन न हो। इसलिए घनी आबादी वाले इलाकों में बूथ नहीं होगा।
भारत
चेतना मंच
01 Dec 2025 03:16 PM
लखनऊ (एजेंसी)। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ के तीन दिवसीय दौरे के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चन्द्रा ने कहा कि सभी राजनैतिक दल तय समय पर चुनाव कराने के पक्ष में हैं। आयोग प्रदेश में निष्पक्ष, प्रलोभन मुक्त तथा कोविड प्रोटोकॉल के तहत कराने के लिए प्रतिबद्घ है।
आज एक प्रेस कांफ्रेंस में मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चन्द्रा ने कहा कि राजनीतिक दलों से चर्चा के बाद सभी एसपी, डीआईजी, कमिश्ननर से मिलकर हालात का जायजा लिया गया। इसके बाद सभी नोडल अधिकारियों से चर्चा की गई। सबसे अंत में मुख्य सचिव, डीजीपी और अन्य अधिकारियों से बातचीत की। सभी दलों ने कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते हुए निश्चित समय पर चुनाव कराने की मांग की। कुछ दलों ने कोविड प्रोटोकॉल के बिना पालन किए होने वाली रैलियों पर चिंता जताई।
उन्होंने कहा कि कोरोना को देखते हुए 1500 लोगों पर एक बूथ को घटाकर 1250 लोगों पर एक बूथ कर दिया गया है। इससे 11 हजार बूथ बढ़े हैं। हर पोलिंग बूथ पर पानी, बिजली और शौचालय की व्यवस्था होगी। दिव्यांगों के लिए व्हीलचेयर और रैंप की व्यवस्था होगी।चुनाव आयुक्त ने कहा कि कम से कम 800 पोलिंग स्टेशन ऐसे बनाए जाएंगे जहां सिर्फ महिला पोलिंग अधिकारी होंगे। मतदाता एपिक कार्ड के अलावा 11 अन्य दस्तावेज दिखाकर वोटर वोट डाल सकता है। इसमें पैन कार्ड, आधार कार्ड, मनरेगा कार्ड जैसे दस्तावेज शामिल हैं।
चुनाव आयुक्त ने कहा कि कुछ प्रतिनिधियों ने प्रशासन के पक्षपाती रवैये के बारे में शिकायत की। पुलिस द्वारा रैलियों पर अनुचित प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाया। अधिकतर राजनीतिक दलों ने प्रचार के दौरान धनबल, शराब और मतदाताओं को मुफ्त चीजें दिए जाने पर चिंता जताई है। इन मुद्दों से आयोग अवगत है।
चुनाव आयोग ने कहा कि मतदाता पंजीकरण का कार्यक्रम भी चल रहा है। उस पर काफी मेहनत हुई है। 5 जनवरी को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। अब तक 15 करोड़ से ज्यादा मतदाता पंजीकृत हैं। नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख तक भी मतदाता सूची में अपने नाम को लेकर दावे-आपत्ति बता सकते हैं। 23.9 लाख पुरुष और 28.8 लाख महिला मतदाता हैं। 52.8 लाख नए मतदाता जुड़े हैं। इनमें 19.89 लाख युवा मतदाता हैं यानी इनकी उम्र 18-19 साल हैं। चुनाव आयोग ने कहा कि 2017 में लिंगानुपात 839 था यानी एक हजार पुरुषों पर 839 महिला वोटर थीं। इस बार यह बढ़कर 868 हो गया है। उत्तर प्रदेश में इस वक्त 10 लाख 64 हजार 267 दिव्यांग मतदाता हैं।
पार्टियां घनी आबादी वाले इलाके में बूथ के खिलाफ
चुनाव आयोग ने कहा कि लगभग पार्टियां घनी आबादी वाले इलाके में बूथ नहीं चाहते हैं, ताकि कोरोना दिशानिर्देश का उल्लंघन न हो। इसलिए घनी आबादी वाले इलाकों में बूथ नहीं होगा।