Agriculture News: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा अनुसंधान के माध्यम से सभी प्रकार की फसलें जैसे-गेहूं, चना, सोयाबीन, मक्का, धान, शकरकंद, आलू, फूलगोभी, अनार इत्यादि में आवश्यक पोषक तत्वों-मुख्य रूप से प्रोटीन, जिंक, आयरन, फॉलिक अम्ल, एंथोसायनिन, कंटीआई मुक्त इत्यादि का समावेश कर गुणवत्ता में वृद्धि की गई है। ये कुपोषण उन्मूलन में एवं पोषण सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। आज कुपोषण समस्या जैसे एनीमिया, कम वजन, बौनापन, कमजोरी व दुर्बलता निर्मुलन में जैव संवर्दि्धत प्रजातियों को प्रतिदिन के नित्य आहार में समावेश करने से काफी लाभ हो सकता है।
जैव संवद्धित प्रजातियां भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के विभिन्न अनुसंधान संस्थानों व कृषि विश्वविद्यालयों के महत्वपूर्ण प्रयासों से विकसित की जा रही हैं। इनमें मूलरूप से निम्न तकनीकी प्रयोगों से सफलता हासिल की जा रही है।
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आनुवंशिक पादप प्रजनन प्रक्रिया है:
यह एक आनुवंशिक पादप प्रजनन प्रक्रिया है। इसक? माध्यम से जर्मप्लाज्म को विशिष्ट पोषक तत्वों जैसे-प्रोटीन, अमीनों अम्ल, लोहा, जिंक, फॉलिक अम्ल, विटामिन से समृद्ध करके विविध प्रजातियां विकसित की जाती हैं। इन प्रजातियों को वर्तमान में जैव संवर्दि्धत किस्म या पोषक तत्वयुक्त प्रजातियों के नाम से भी जाना जाता हैं। उदाहरणस्वरूप गेहूं को प्रजाति पूसा अहिल्या, पूसा तेजस, पूसा वाणी, एच,आई.-8777 में प्रोटीन, जिंक व आयरन की वृद्धि करके इन्हें गुणवत्तायुक्त बनाया गया है। इसके साथ ही शकरकंद जैसो कंदवाली फसल (नारंगी गूदा) को बीटाकैरोटिन से संवर्दि्धत किया गया है। इस प्रकार की प्रजातियों को संतुलित पोषण आहार में उपयोग किए जाने से स्वस्थ गांव एवं स्वस्थ भारत का निर्माण करने में सहायता प्राप्त होगी।
जैव तकनीकी संवर्धन:
यह प्रजनन की एक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मॉलोीक्यूलर मार्कर (आण्विक मार्कर), एक प्रजाति के जीन को दूसरी प्रजाति के जीन के माध्यम से जैव तकनीकों का उपयोग करके अन्य प्रजाति को विकसित किया जाता है। इसमें वांछित पोषणयुक्त या गुणवत्ता को समाहित किया जाता है। जिससे यह अधिक लाभकारी रूप में प्राप्त होती है। जैसे-सोयाबीन की प्रजाति एनआरसी-127 में कं.टी,आई, व एनआरसो-142 में के.टी. आई. व लिपोक्सिजिनेज-2 को मॉलोक्यूलर मार्कर जैव तकनीक के माध्यम से उपभोग के लिए बेहतर किया गया है। यह प्रोटीन का एक भरपूर स्रोत है। इसको नित्य-प्रतिदिन के आहार में सम्मलित करके कुपोषण उन्मूलन में काफों हद तक सहायता प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार कई फसलों में जैव तकनीक का उपयोग किया गया है और विभिन्न जैब संवर्दि्धत प्रजातियां विकसित की गई हैं।
सस्य जैव संवद्र्घन:
इसके माध्यम से तकनीकी पहलुओं में प्रत्येक बिंदु का समावेश किया गया है। फसल में समन्वित पोषण प्रबंधन मुख्य रूप से सूक्ष्म पोषक तत्वों जेसे-जस्ता, लोहा, मैंगनीज साथ हो, द्वितीयक पोषक तत्वों जैसे-कैल्शियम, मैग्नोशियम व सल्फर का संतुलित उपयोग करके उत्पाद को उच्च गृणवत्ता व विभिन्न पोषक तत्वों से सप्ृद्ध किया जाता है। यह स्वास्थ्य के स्थ ही पोषण सुरक्षा के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। इसक साथ ही पूरक आहार के रूप में दूध जैसे महत्वपूर्ण उत्पाद में भी संतूलित पोषण प्रबंधन के महत्व की भूमिका है।
वर्तमान में भारत व मध्य एशिया में कुपोषण एक विकराल समस्या के रूप में चिन्हित को गई है। इसके कारण प्रतिवर्ष अत्यधिक संख्या में नवजात शिशु व माताएं इसका शिकार हो जाती हैं। इसक साथ हो बच्चों में जौनापन, कमजोरों, मस्तिष्क का अविकसित होना, माताओं एवं शिशुओं में कम होमोग्लॉजिन के कारण एनीमिया इत्यादि पोषक आहार नहीं होने के कारण समस्याएं होती हैं। यदि जैव संवद्धित प्रजातियों के बारे में गांव-गांव जाकर लोगों को जगरूक किया जाए और नित्य-प्रतिदिन के दैनिक आहार में समावेश करने के लिए लक्ष्य अनुरूप उपलब्धता हासिल की जाती है, तो इस चुनौती को आसानी से समाप्त किया जा सकत्ता है। जैब संबरद्धित प्रजातियां कुपोषण उन्मूलन में मोल का पत्थर साबित हो सकती हैं। इसके प्रति राज्यस्तर पर सैद्धांतिक रूप से योजनाबद्ध तरीके में वास्तविक रूप से कार्य करते को जरूरत है।