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Chetna Manch Exclusive : अयोध्या के राम मंदिर को लेकर एक बड़ा सच आया सामने

Chetna Manch Exclusive

A big truth came out about Ayodhya's Ram temple

New Delhi/Ayodhya : नई दिल्ली/अयोध्या। आज 30 अक्टूबर 2022 का दिन है। आज से ठीक 32 साल पहले आज ही के दिन भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा ने एक बड़ा इतिहास रचा था। या यूं कहें कि भारत की राजनीति को एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट दिया था।

भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा को दुनियाभर के मीडिया ने कवर किया था। मीडिया की इसी फौज में शामिल थे देश के जाने-माने पत्रकार मनोज रघुवंशी। श्री रघुवंशी ने उस यात्रा का एक अनछुआ सच ‘चेतना मंच’ के साथ साझा किया है। उस पूरे सच को हम वरिष्ठ पत्रकार मनोज रघुवंशी के शब्दों में ज्यों का त्यों यहां पेश कर रहे हैं। आप भी अवश्य पढ़ें और जाने अयोध्या के राम मंदिर के निर्माण से जुड़ा एक अनुत्तरित सच।

– मनोज रघुवंशी

एक पत्रकार के रूप में ये मेरी एक अनोखी आपबीती है। ठीक 32 साल पुरानी बात है। 30 अक्टूबर, 1990 का दिन लाल कृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा का अंतिम दिन था। रथ यात्रा तो अयोध्या तक नहीं पहुंची थी, लेकिन ये उसके समापन का दिवस था। इस दिन के घटनाक्रम में एक ऐसी घटना घटी, जो आज तक कहीं रिपोर्ट नहीं हुई। मेरी स्टोरी में भी नहीं।

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जो बात सब जानते हैं वो ये है कि रथ यात्रा सोमनाथ से 25 सितम्बर को चली थी, और 22 अक्टूबर को बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने समस्तीपुर में आडवाणी जी को गिरफ्तार कर लिया था। वैसे 30 अक्टूबर को रथ यात्रा का अयोध्या पहुंचना निश्चित हुआ था। लेकिन आडवाणी जी की गिरफ्तारी ने रथ को रोक दिया था। एक नेता को रोकना संभव था। लेकिन जनप्रवाह को थामना मुमकिन नहीं था। बहुत बड़ी संख्या में लोग एक रात पहले उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में पहुंच गए और स्थानीय निवासियों के घरों में ठहर गए। सुबह उन्हें अयोध्या पहुंचने के लिए सिर्फ सरयू नदी का पुल पार करना था। पहला प्रयास उस वक्त के यूपी के स्व. मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के प्रशासन ने लाठी चार्ज करके विफल कर दिया। लेकिन, दूसरे झोंके में हजारों लोग अयोध्या में प्रवेश कर गए। अब शुरू हुआ कार सेवकों और पुलिस में टकराव। कार सेवक पथराव करते और पुलिस आंसू गैस से उन्हें रोकने की कोशिश करती। अयोध्या की गलियों में उस दिन जगह-जगह लाठी चार्ज भी हुआ, लेकिन कार सेवक श्रीराम जन्मभूमि परिसर तक पहुंचने के लिए दृढ़ निश्चय करके आये थे। यहां तक की बात तो उस समय वहां पर मौजूद पत्रकारों ने रिपोर्ट की थी, जिसका रिकॉर्ड भी मौजूद है।

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इसके बाद एक ऐसी घटना घटी, जिसकी जानकारी या समझ आज तक किसी को नहीं है। धीरे-धीरे कार सेवक अपना दबाव बढ़ा रहे थे, और पुलिस को पीछे धकेलने में कामयाब होते जा रहे थे। मैं अपनी कैमरा टीम के साथ श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के सामने मानस भवन की छत पर चढ़ गया और हम लोग ऊपर से शूट करने लगे। मेरे एक मित्र भी वहां मौजूद थे, जिनकी प्रशासन में अच्छी पैठ थी। उन्होंने मुझे एक राज की बात बताई जो मुझे अविश्वसनीय लगी। उन्होंने कहा कि 15 मिनट में पुलिस कार सेवकों को मंदिर परिसर में घुसने देगी। मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्री रहते इस बात पर यकीन करना असंभव था।

जब मैंने शंका प्रकट की तो मेरे मित्र बोले कि अगर आप बहस में समय गंवा देंगे तो नीचे उतरकर मंदिर के गेट के सामने पहुंचकर शूट करने का अवसर निकल जाएगा। मैं तुरंत टीम को लेकर सड़क पर आ गया और मंदिर के गेट के सामने कैमरा लगा दिया। वास्तव में मंदिर परिसर के अंदर से एक वर्दीधारी पुलिसवाला आया, और उसने जंगले वाले गेट का ताला अंदर से खोल दिया। कार सेवक अंदर घुस गए, और उन्होंने जगह-जगह अंदर की दीवारों में तोड़-फोड़ शुरू कर दी, जो कि हम शूट केवल इसलिए कर पाए क्योंकि हमको योजना का पता पहले से चल गया था। लेकिन, आज तक ये पता नहीं चल पाया है कि वहां पर मौजूद पुलिसवालों ने ये कारवाई मुलायम सिंह यादव की जानकारी और रजामंदी से की थी या अपनी मर्जी से?

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