जाने पंजाब का ढोलबाहा, क्यों कहलाता है ‘फ़ौजियों का गाँव’?

ढोलबाहा केवल एक गाँव नहीं, बल्कि वीरता, त्याग, राष्ट्रप्रेम और ऐतिहासिक धरोहर का जीवंत प्रतीक है। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी उतनी ही मज़बूत है, जितनी प्रथम विश्व युद्ध के समय थी। इसीलिए ढोलबाहा को गर्व से कहा जाता है कि “फ़ौजियों का गाँव।”

Dholbaha of Punjab
पंजाब का ढोलबाहा (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar09 Dec 2025 05:29 PM
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पंजाब के होशियारपुर ज़िले में स्थित ऐतिहासिक गाँव ढोलबाहा अपनी बहादुरी, त्याग और वीरता की अनोखी परंपरा के लिए पूरे देश में जाना जाता है। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर आज तक इस गाँव के सैकड़ों युवा भारतीय सेना और सुरक्षा बलों में सेवाएं देते आए हैं। इसी अद्वितीय सैन्य योगदान की वजह से इसे ‘फ़ौजियों का गाँव’ कहा जाता है।

पहले विश्व युद्ध से जुड़ी वीरता की विरासत

ढोलबाहा के 73 युवा पहले विश्व युद्ध में ब्रिटिश इंडियन आर्मी की ओर से युद्ध में शामिल हुए थे। इनमें से 8 सैनिक शहीद हो गए। इन वीरों में हवलदार धीरज सिंह भी शामिल थे, जिनकी तीसरी पीढ़ी आज भी गाँव में रहती है। परिवार के सदस्यों के अनुसार धीरज सिंह का व्यक्तित्व बेहद प्रभावशाली था। उनकी एक तस्वीर—जो आग लगने से नष्ट हो गई—उन्हें सुभाष चंद्र बोस जैसी वर्दी में दिखाती थी।

युद्ध स्मारक गाँव की शान

गाँव में प्रथम विश्व युद्ध के सैनिकों की याद में बना युद्ध स्मारक आज भी उनकी शहादत को जीवित रखता है। स्मारक की देखरेख वॉर मेमोरियल कमेटी करती है, जिसके अध्यक्ष रिटायर्ड सूबेदार मेजर शक्ति सिंह हैं। सैन्य इतिहासकार मंदीप बाजवा के अनुसार, युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार ने वीरता के लिए प्रसिद्ध गाँवों में ऐसी स्मारक-तख्तियां लगवाई थीं—ढोलबाहा उन्हीं में से एक है।

हर घर में एक फ़ौजी

गाँव के सरपंच मंगत राम के मुताबिक, ढोलबाहा के 623 घरों में से 317 में रिटायर्ड सैनिक रहते हैं, जबकि 306 युवा वर्तमान में सेना में सेवाएं दे रहे हैं। यानी लगभग हर घर में एक फ़ौजी मौजूद है। उनके पिता भी ड्यूटी के दौरान शहीद हुए थे। मंगत राम कहते हैं कि गाँव का नाम फ़ौजियों का गाँव कहलाता है, यह हमारे लिए गर्व की बात है। लेकिन शहीद के परिवार का दर्द वही समझ सकता है जिस पर बीतती है।

पीढ़ी दर पीढ़ी सेना में सेवा

हवलदार धीरज सिंह की तीसरी और चौथी पीढ़ी के अनेक सदस्य आज भी विभिन्न बलों में कार्यरत हैं पोते निर्मल सिंह बताते हैं कि उनका बड़ा भाई लांस नायक, भतीजा सूबेदार और दूसरा भतीजा बीएसएफ में हवलदार है।

क्यों चुनते हैं गाँव के युवा सेना?

गाँव में रोज़गार के सीमित साधनों और खेती की कम संभावनाओं के कारण यहाँ के युवा लंबे समय से सेना में भर्ती होते आए हैं। शक्ति सिंह का कहना है कि देशभक्ति का जज़्बा और रोजगार का भरोसा युवाओं को फ़ौज की ओर खींचता है। उच्च शिक्षा की सुविधाएं दूर होने से अधिकतर युवा दसवीं के बाद सेना का रुख करते हैं। सेना में आर्थिक सुरक्षा और समाज में सम्मान मिलता है।

इतिहास और पुरातत्व की धरोहर भी

ढोलबाहा केवल वीरों का ही नहीं, बल्कि प्राचीन सभ्यताओं का भी गाँव है। पुरातत्व विभाग की खुदाई में यहाँ से सैकड़ों वर्ष पुराने मूर्तियां, अवशेष और प्लाइस्टोसीन युग से संबंधित धरोहरें मिली हैं। गाँव में एक म्यूज़ियम भी है, जिसमें इन अवशेषों को संरक्षित किया गया है।

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जाने कैसे हुई "भारत माता की जय" की कल्पना और नारे का उद्भव?

देश में हाल ही में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान वंदे मातरम और राष्ट्रीय नारे पर हुई चर्चा के बाद एक सवाल तेजी से उभरकर सामने आया है।

Long live Mother India
भारत माता की जय (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar09 Dec 2025 03:24 PM
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बता दें कि “भारत माता की जय का नारा सबसे पहले किसने दिया?” इसका जवाब जानकर बहुत-से लोग हैरान रह जाते हैं, क्योंकि यह नारा 165 साल पहले एक मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी अजीमुल्ला खान ने दिया था।

कौन थे अजीमुल्ला खान?

बता दें कि अजीमुल्ला खान 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख योजनाकारों में से एक थे। वे बिठूर में नाना साहब पेशवा द्वितीय के दीवान और सबसे भरोसेमंद सलाहकार थे। यूरोप की राजनीतिक संस्कृति को करीब से देखने के बाद उनमें राष्ट्रवाद की प्रबल भावना जागी और भारत लौटकर उन्होंने विद्रोह की वैचारिक नींव तैयार करना शुरू किया।

भारत माता की जय नारे की उत्पत्ति

इतिहासकारों के अनुसार, अजीमुल्ला खान ने पहली बार “भारत माता की जय” को एक देशभक्ति नारे के रूप में इस्तेमाल किया था। कुछ शोधकर्ता यह भी मानते हैं कि यह नारा उर्दू वाक्यांश ‘मादरे वतन हिंदुस्तान जिंदाबाद’ से प्रेरित रहा होगा। 2024 में केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने भी सार्वजनिक मंच पर अजीमुल्ला खान को इस नारे का जनक बताया था।

1857 के विद्रोह में भूमिका

अजीमुल्ला खान को 1857 के विद्रोह का बड़ा रणनीतिक दिमाग कहा जाता है। वह फ्रंटलाइन पर कम दिखे, लेकिन उनकी योजना और राजनीति ने विद्रोह की दिशा तय की।

मुख्य योगदान

बता दें कि उत्तरी भारत का दौरा कर गठबंधन मजबूत किए थे, उपनिवेशवाद के खिलाफ भावनाओं को एकजुट किया थे, रणनीतिक स्तर पर विद्रोही गतिविधियों का समन्वय किया। ‘पयाम-ए-आजादी’ नामक क्रांतिकारी अखबार शुरू किया, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक शक्तिशाली आवाज बना और कानपुर की घेराबंदी के दौरान सर ह्यू व्हीलर से वार्ता सहित महत्वपूर्ण रणनीतिक भूमिकाएँ निभाईं है। लंदन में नाना साहब की पेंशन याचिका अस्वीकार होने के बाद जब वे भारत लौटे, तो अंग्रेजों के अन्याय के खिलाफ उन्होंने व्यापक जनसमर्थन तैयार किया, जिसने विद्रोह को और धार दी।

क्यों याद रखना ज़रूरी है अजीमुल्ला खान को?

बता दें कि आज जब “भारत माता की जय” देश का प्रमुख राष्ट्रवादी नारा बन चुका है, यह जानना महत्वपूर्ण है कि इसे एक मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी ने गढ़ा था, जिसने धर्म से ऊपर उठकर देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। अजीमुल्ला खान की वीरता, दूरदर्शिता और राष्ट्रवाद की भावना भारत के स्वतंत्रता इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है।

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द अमेरिकन ड्रीम: जानिए दुनिया की सबसे लंबी कार की अविश्वसनीय कहानी

द अमेरिकन ड्रीम अपने नाम की तरह ही एक ऐसा सपना है, जिसे सच बनाने में वर्षों की मेहनत और लगन लगी। आज यह दुनिया की इंजीनियरिंग और क्रिएटिविटी का बेजोड़ नमूना है और हर कार प्रेमी के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

The American Dream
100 फुट लंबी द अमेरिकन ड्रीम कार (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar09 Dec 2025 02:37 PM
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दुनियाभर में कारों के अनोखे डिज़ाइन और आकार देखने को मिलते हैं, लेकिन द अमेरिकन ड्रीम ने अपनी लंबाई और फीचर्स के साथ दुनिया को हैरान कर दिया है। 100 फुट (करीब 30 मीटर) से भी अधिक लंबी यह कार गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दुनिया की सबसे लंबी कार के तौर पर दर्ज है। फिलहाल यह अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित **Orlando के Dezerland Park Car Museum में रखी गई है।

1986 में बना सपना, 2022 में फिर हुआ साकार

इस विशाल लिमोज़ीन को 1986 में कार डिज़ाइनर जे ओहबर्ग ने तैयार किया था। यह 1976 मॉडल की Cadillac Eldorado पर आधारित है और इसे कबाड़ से बनाकर जोड़ा गया था। कई वर्षों की मेहनत, तकनीक और साहस के बाद तैयार हुई यह कार अपने लॉन्च के समय ही दुनिया भर में सुर्खियों में छा गई थी। समय के साथ खराब हो चुकी इस कार का रिस्टोरेशन साल 2022 में पूरा हुआ और अब यह फिर से अपनी चमक बिखेर रही है।

26 पहिये, 75 सीटें और हैरान कर देने वाली लग्ज़री सुविधाएं

द अमेरिकन ड्रीम सिर्फ लंबाई में ही अनोखी नहीं है, बल्कि इसके फीचर्स भी किसी आलीशान महल से कम नहीं हैं।

  • 26 पहिये
  • 75 यात्रियों के बैठने की जगह
  • VIP सेक्शन में रिक्लाइनिंग सीट्स और अन्य प्रीमियम सुविधाएं
  • 6 लोगों के एक साथ नहाने लायक स्विमिंग पूल
  • जकूजी
  • एक मिनी गोल्फ कार्ट और सबसे खास, इसके पीछे की तरफ हेलिपैड भी मौजूद है, जहाँ हल्का हेलिकॉप्टर लैंड किया जा सकता है।

दो हिस्सों में बंटी कार, बीच में है खास हिंज

इतनी लंबी कार को मोड़ना बड़ी चुनौती होता, लेकिन इसके बीच में एक हिंज लगाया गया है, जिसकी मदद से यह दो हिस्सों में मुड़ पाती है। यही तकनीक इसे सड़कों पर संभालने लायक बनाती है।