Wednesday, 4 December 2024

भीम के अवतार थे वीर मलखान : बाप को बदला जो नहीं लीन्हें, तिनके जीवन को धिक्कार

Veer Malkhan : आल्हा ऊदल की वीरता के विषय में तो हम सभी जानते हैं।  आईये आज उन्हीं के चाचा…

भीम के अवतार थे वीर मलखान : बाप को बदला जो नहीं लीन्हें, तिनके जीवन को धिक्कार

Veer Malkhan : आल्हा ऊदल की वीरता के विषय में तो हम सभी जानते हैं।  आईये आज उन्हीं के चाचा बच्छराज के बेटे मलखान के विषय में और उनकी वीरता के बारे में जानते हैं ।

“बाप को बदला जो नहीं लीन्हें तिनके जीवन को धिक्कार”

यह चंदेलों के राजा परमार्दिदेव के भरे दरबार में अपनी तलवार की मूठ पर हाथ रख कर कहे शब्द थे । जिसके आगे हार मान कर महाराज परमार्दिदेव को न चाहते हुये भी उन्हें अपनी पूरी सेना के साथ युद्ध के लिए मांडव जाने की आज्ञा देनी पड़ी ।

महाभारत के भीम के अवतार

मलखान के विषय में कहा जाता है की वह महाभारत के भीम के अवतार थे जो अपनी युद्ध की लालसा पूरी करने मलखान के रुप में फिर से धरा पर अवतरित हुये थे। पहलवानी हो या तलवार की जंगबाजी, युद्ध कला में वह ऊदल के समान ही वीर थे । मलखान का शरीर वॼ की तरह था और उनके दाहिने पैर में पदम का चिन्ह था। वे चंदेलों के राजा परमार्दिदेव के सम्मानित सरदार थे । आल्हा ऊदल के बाद इन्हीं को श्रेष्ठता प्राप्त थी । अपने साले माहिल के भड़काने पर जब राजा परमार्दिदेव ने आल्हा ऊदल को अपने राज्य से निष्कासित किया तो मलखान ही उनके सेनापति बने । चंदेलों की आल्हा-ऊदल के साथ बावन लड़ाईयां इन्होंने जीतीं ५३वीं लड़ाई अंतिम थी, “बेला का डोला”, जिसमें सभी मारे गये ।

आल्हा-ऊदल के साथ बावन लड़ाईयां लड़ी

मलखान के विषय में कहा जाता है की उनके रथ में 17 उच्चकोटि के घोड़े जोते जाते थे उस रथ को उनके छोटे भाई सुलखान ही सारथी बनकर उनकी लगाम थाम कर चला सकते थे । वह रथ जमीन पर नही हवा से बातें करता उड़ कर चलता था । जब मलखान उसपर बैठते तब एक एक मन की दो सांगे उनके पैरों पर रख दी जातीं जिससे रथ जमीन में चले । युद्ध में उनका रथ सेना में सबसे पीछे रहता और वह उन्ही दोनों सांगों से युद्ध करते । संभल का युद्ध उन्होंने अपने दम पर जीता था । संभल तीर्थ मां भवानी का शक्ति सिद्धपीठ मां मनोकामना देवी का मंदिर था । जहां पर यह सभी देवी भक्त होने के कारण दर्शन करने जाते थे।

पृथ्वीराज चौहान से लिया लोहा

Veer Malkhan की पत्नी पानीपत की राजकुमारी गज़ला जो गजमोतियों का हार पहनती थी संभल देवी की भक्त थी । कजरी महोत्सव में हार के बाद पृथ्वीराज चौहान इनसे चिढ़ा हुआ था। संभल क्षेत्र उसके राज्य से लगा होने के कारण उन्होंने वहां के राजा को भड़काया की तुम संभल देवी के दर्शन करने आने वालों पर कर लगा दो। संभल के राजा ने ऐसा ही किया । यह समाचार पाकर आल्हा क्रोधित हो तमतमा उठे। तब मलखान ने उन्हें शांत करते हुये भैया आप चिंता न करें । मुझे अनुमति दें इसबार मैं उन्हें मजा चखाऊंगा । आल्हा की आज्ञा लेकर अपने दलबल सहित हथियार बंद हो सेनापति बनकर संभल पर आक्रमण करने के लिये पहुंचे देवी के मंदिर । कहा -* किस माई के लाल में है इतना दम जो हमें रोके देवी दर्शन से*। भयंकर युद्ध हुआ । संभल की सेना को हारते देख पृथ्वीराज ने भी अपनी सेना युद्ध के लिये भेज दी। संभलदेवी का मैदान और यमुना का तट,युद्ध का मैदान बन गया । संभल के राजा की मौत मलखान के हाथों होते ही पृथ्वी राज का सेनापति युद्ध के लिये लड़ा पर अंत में वह भी मारा गया । इस प्रकार संभल की देवी के लिये मलखान ने युद्ध कर वहां के राजा का सिर सिद्धपीठ मनोकामना देवी के चरणों में अर्पित करते हुये कहा – मां यह तेरे चरणों में तेरे भक्त की भेंट मां के दर्शन पर रोक लगाने वाले की। मलखान के विषय में कहा जाता है कि –

“पांऊ पिछाड़ी देन न जाने ।
जंघा टेक लड़ें मलखान “।।

यह थी Veer Malkhan की संभल देवी के लिये युद्ध की कथा जिसे जनश्रुतियों में कहा और गाया जाता है । पर इतिहास में इन्हें उचित स्थान नहीं मिला।

उषा सक्सेना

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