बिहार में नदियों पर बैराज बनाने के विरोध में उठी अवाज़े

बिहार में नदियों पर बैराज बनाने के विरोध में उठी अवाज़े
locationभारत
userचेतना मंच
calendar12 SEPT 2024 03:09 PM
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Bihar River : हम अपनी जीवनदायिनी नदियों का शोषण खतरनाक स्तर तक कर चुके हैं। हमारी नदियां अपना मूल रूप खो चुकी हैं और बुरी तरह से अस्त-व्यस्त दशा में हैं। सिंचाई और हाइड्रोपावर के लिए बांध बने हैं, पानी को मनचाही दिशा में ले जाने के लिए बैराज बनाए गए हैं। फरक्का बैराज के दुष्परिणाम को हम सभी देख चुके हैं फिर भी सरकारें चेत नहीं रही है और लगातार नये नये बांध और बैराज बनाने का काम चालू है।भारत में विश्वबैंक की मदद से बड़े बांधों, बैराजों द्वारा उपजाऊ धरती, जंगल सहित जैव विविधता से भरी प्रकृति और नदी से जुड़ी संस्कृति को स्वाहा कर विकास का यज्ञ चलाया जा रहा है।

बिहार की सरकार बैराज बनाने से पहले दे इसपर ध्यान

गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रमुख अनिल प्रकाश ने बिहार की नदियों पर बैराजों के निर्माण पर आपत्ति जताई और कहा है कि — "बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सात नदियों पर बैराज बनाने की हड़बडी करने से पहले गंगा पर बने फरक्का बैराज से उत्पन्न विनाशकारी बाढ़, कटाव,जल जमाव, भूमि के उसर होने, मछलियों के अकाल आदि भीषण स्थितियों का वैज्ञानिक आंकलन अवश्य करा लेना चाहिए। "सरकार के ​बिहार की नदियों पर बराज बनाने के फैसले के विरोध में व्यापक आंदोलन की तैयारी आरंभ हो गयी है। इस फैसले के विरोध में बिहार, बंगाल और उत्तरप्रदेश में प्रथम चरण में हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा। इसके उपरांत साथी संगठनों की बैठक कर आंदोलन की अगली रणनीति तय की जाएगी।अब तो मुजफ्फरपुर यानी तिरहुत में नारा गूंजने लगा है " बागमती की धारा पर तटबंध बनाने आये हो, विश्वबैंक से कर्जा उठाकर हमें डुबाने आये हो।

क्या है बैराज की पूरी कहानी Bihar River

'दरअसल नेपाल में होने वाली बारिश से बिहार में होने वाली तबाही को रोकने के लिए बिहार सरकार ने चार बराज बनाने का निर्णय लिया है। बिहार के जल संसाधन विभाग के मंत्री विजय चौधरी के अनुसार नेपाल में हाई डैम बनाने का प्रस्ताव कई सालों से है, लेकिन वहां फिलहाल हाई डैम बनने की उम्मीद नहीं दिख रही है। नेपाल में हाई डैम का मामला इसलिए अटका पड़ा है कि वहां कोई भी जल संधि तभी लागू की जाएगी जब तक कि वहां की संसद इसे दो तिहाई बहुमत से पारित न कर दे।नेपाल की संसद के इस पेंच के कारण बिहार सरकार को बराज बनाने का फैसला लेना पड़ा। इस फैसले के तहत नेपाल से आने वाली चार नदियों में चार जगह पर बराज बनाए जाएंगे। यह बैराज कोसी नदी पर डगमारा में, गंडक नदी पर अरेराज में, महानंदा नदी पर मसान में और बागमती नदी पर डिंग में बनाए जाएंगे। डीपीआर तैयार किया जा रहा है। बाढ़ नियंत्रण को लेकर केंद्र सरकार ने बड़ी राशि दी है और लोग सोच रहे हैं कि नेपाल से आने वाले बाढ़ के पानी से जो नुकसान होता है उसे रोकने के लिए इन चार जगह पर बड़े बराज बनाये जा रहे हैं, जिससे कि बाढ़ के पानी को नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए विश्व बैंक से 4400 करोड़ रुपये की सहायता ली जा रही है। यह डीपीआर मार्च 2025 तक पूरा हो जाएगा। नेपाल सरकार से भारत सरकार की कई बार हाई डैम बनाने को लेकर बातचीत हुई है। वर्ष 2004 में वहां संयुक्त रूप से विराटनगर में कार्यालय भी खोले गए हैं, लेकिन जहां भी सर्वे होता है लोग हंगामा करने लगते हैं। यही कारण है कि नेपाल में हाई डैम बनाना मुश्किल हो रहा है। इस स्थिति में बिहार सरकार ने अब बिहार में ही नेपाल से आने वाली चार नदियों पर बराज बनाने का निर्णय लिया है। केंद्र सरकार ने हाल ही में बिहार के लिए प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ से संबंधित आपदाओं से निपटने के लिए 11,500 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की घोषणा की है। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार के कार्यकाल में भारत ने नेपाल में कोसी, बागमती और कमला नदी पर उच्च-स्तरीय बांध बनाने और संबंधित डीपीआर तैयार करने के लिए 2004 में विराटनगर (नेपाल) में एक संयुक्त परियोजना कार्यालय स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की थी। इस मामले का एक दूसरा पहलू भी है ,विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार की बाढ़ को लेकर एक वैज्ञानिक ढंग से व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है उसके बाद नदी जोड़ योजना का काम हो या फिर बराज बनाने का काम हो।विकास योजनाएं बनाते समय उसके सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय दुष्परिणामों को नज़रअंदाज़ करने का क्या नतीजा हो सकता है, इसे समझने के लिए फरक्का बैराज को एक मॉडल के रूप में देखा जाना चाहिए। फरक्का बैराज 1975 में बनकर तैयार हुआ। मकसद था कि इसके जरिए 40 हजार क्यूसेक पानी का रुख बदल दिया जाये, ताकि कोलकोता बंदरगाह बाढ़ से बच सके। यह अनुमान करते समय नदी में आने वाले तलछट का अनुमान नहीं किया गया।परिणामस्वरूप,आवश्यकतानुसार पानी का रुख नहीं बदला जा सका। दुष्परिणाम आज सामने है। बैराज का जलाशय तलछट से ऊपर तक भरा है। पीछे से आनी वाली विशाल जलराशि पलटकर साल में कई-कई बार विनाश लाती है। ऊंची भूमि भी डूब का शिकार होने को विवश है। हजारों वर्ग किलोमीटर की फसल इससे नष्ट हो जाती हैं। फरक्का बैराज के बनने के बाद से समुद्र से चलकर धारा के विपरीत ऊपर की ओर आने वाली ढाई हजार रुपये प्रति किलो मूल्य वाली कीमती हिल्सा मछली की बड़ी मात्रा हम हर साल खो रहे हैं, सो अलग। नदी किनारे की गरीब-गुरबा आबादी फरक्का को अपना दुर्भाग्य मानकर हर रोज कोसती है। फरक्का बराज के बनने के बाद से बिहार में बाढ़ की आपदा बढ़ी है। जानकार यह भी मानते हैं कि बिहार में बाढ़ को नियंत्रित करने वाली तटबंध आधारित नीति ने भी बाढ़ के संकट को बढ़ाने का काम किया है। उत्तर बिहार की नदियों के जानकार दिनेश कुमार मिश्र के अनुसार आजादी के वक्त जब राज्य में तटबंधों की कुल लंबाई 160 किमी थी तब राज्य का सिर्फ 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ पीड़ित था। अब जब तटबंधों की लंबाई 3760 किमी हो गयी है तो राज्य की लगभग तीन चौथाई जमीन यानी 72.95 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ प्रभावित है। यानी जैसे-जैसे तटबंध बढ़े बिहार में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रफल भी बढ़ता चला गया। सरकार का भी रवैया ​विचित्र है। एक ओर तो बिहार की बाढ़ के लिए फरक्का बराज को जिम्मेदार ठहराते हैं, तो दूसरी तरफ नए बराज की वकालत भी करते हैं। अनिल प्रकाश के अनुसार फरक्का बराज के अनुभवों से ही समझ लेना चाहिए था कि नदियों को रोककर बाढ़ का मुकाबला नहीं किया जा सकता।" 1870-75 से पहले बिहार में बाढ़ का जिक्र नहीं मिलता था। जबसे यहां रेलवे की शुरुआत हुई और नदियों के स्वतंत्र बहाव में बाधा उत्पन्न होने लगी बाढ़ की समस्या सामने आने लगी। इसके बावजूद उत्तर बिहार में नदियों का अपना बेहतरीन तंत्र विकसित था। बड़ी नदियां, छोटी नदियों और चौरों से जुड़ी थीं और पूरे इलाके में पोखरों का जाल बिछा था। जब बारिश के दिनों में बड़ी नदियों में अधिक पानी होता था तो वह अपना अतिरिक्त पानी छोटी नदियों, चौरों और तालाबों में बांट देती थीं। इससे बाढ़ की समस्या नहीं होती थी। फिर जब गर्मियों में बड़ी नदियों में पानी घटने लगता तो छोटी नदियां और चौर इन्हें अपना पानी वापस कर देतीं। इससे ये नदियां सदानीरा बनी रहतीं। बिहार की 76% आबादी और राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73% हिस्सा बाढ़ से प्रभावित है। वहीं आंकड़े यह भी बताते हैं कि देश के कुल बाढ़ पीड़ित क्षेत्र का 16.5% बिहार में पड़ता है और कुल बाढ़ पीड़ित आबादी का 22.1% इसी राज्य के लोग हैं। ए एन सिन्हा इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ डॉ विद्यार्थी विकास के अनुसार बिहार में तटबंध का निर्माण पिछले 50 सालों में लगातार बढ़ता जा रहा है और बाढ़ का इलाका भी उसी अनुपात से बढ़ता जा रहा है। पहले 25 लाख हेक्टेयर बाढ़ प्रभावित इलाका था लेकिन आज 70 लाख हेक्टेयर से अधिक इलाका बाढ़ प्रभावित है। 1960 और 70 के दशक में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक बांधों का निर्माण हुआ। लेकिन हाल के वर्षों में बांधों के निर्माण की वैश्विक स्तर पर आलोचना हो रही है।इसी परिप्रेक्ष्य में नदियों की पंचायत बिहार शोध संवाद द्वारा मुक्तिधाम, सिकन्दरपुर (बूढी गण्डक) नदी के तट पर, मुजफ्फरपुर में प्रीति कुमारी के अध्यक्षता में की गई। नदियों की पंचायत में अक्टूबर में 10 जिलों से सक्रिय नदी समस्याओं के चिंतकों एवं सक्रिय कर्मियों का दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने का फैसला लिया गया जिसमें युवाओं एवं महिलाओं की अधिक संख्या में भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। विभिन्न संगठनों के लोगों द्वारा नदी मुक्ति आभियान की शुरुआत की गई। नदियों की समस्याओं एवं निराकरण को लेकर पुस्तक का प्रकाशन अविलंब करने का निर्णय लिया गया। प्रीति कुमारी का कहना था कि बागमती, गंडक, बूढ़ी गंडक,लखनदेई, अधवारा समूह की नदियों, करेह, नून आदि नदियां अपनी जालनुमा उपस्थिति से जन जीवन को सदियों से सुखमय बनाती रही हैं लेकिन विकास के नाम पर बन रहे तटबन्धों,बराजों, फैक्ट्रियों, मिलों और थर्मलपावर स्टेशनों से बह रहे जहरीले, काले, पीले कचरे के कारण हमारी जीवनदायी नदियों का दम घुट रहा है। नदियों पर जीनेवाले नाविक, मल्लाह, किसान, सब्जी उगानेवाले,भैंस पालकर, बैल पालकर सुख से जीने वाले करोड़ों स्त्री पुरुषों की आजीविका और सांस्कृतिक जीवन बड़े गम्भीर संकट में है। नरेश सहनी के अनुसार गंगा एवं उससे जुडी तमाम नदियों को बड़ी बड़ी देशी विदेशी कम्पनियों के हाथ मे सौंपने की शुरुआत हो चुकी है। मल्लाहों को नदियों से खदेड़ने की चाल चली जा रही है। नदियों के किनारे के सौंदर्यीकरण के बहाने किसानों की बेशकीमती जमीनों पर भी लुटेरी कम्पनियों की बुरी नजर है। इन्ही सवालों को लेकर यह नदी पंचायत बुलाई गई है। गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रणेता पर्यावरणविद , सामाजिक चिंतक अनिल प्रकाश बताते हैं कि यह नदी पंचायत नदी मुक्ति आभियान की शुरुआत है।

इन लोगों ने लिया अहिंसक लड़ाई का संकल्प Bihar River

कठपुतली कलाकार सुनील सरला ने नदियों को अविरल बहने दो….नदियों को निर्मल रहने दो, गंगा गंगा रटैत रहली, गंगा हथीन जलवा के रानी गंगा पूजे चलू हे सखी गीत के साथ सुनील सरला ने कठपुतली के माध्यम से नदी और पर्यावरण के दर्द को बताया। नदी पंचायत में नरेश सहनी , राजेंद्र पटेल, संगीता सुभाषिनी, रामबाबू जितेंद्र यादव ,चंदेश्वर राम, अनिल कुमार अनल ,सुनील सरला,मीडिया सलाहकार, प्रोफेसर विजय कुमार जायसवाल,राम बाबू,राजेन्द्र पटेल, डॉक्टर हरेन्द्र कुमार, चन्देश्वर राम, नीरज, राम लखेंद्र यादव,डॉक्टर उमेश चन्द्र, ठाकुर देवेंद्र सिंह, जितेंद्र यादव, नवल सिंह, जगन्नाथ पासवान, मोनाज़िर हसन, अनिल गुप्ता, जयचंद्र कुमार,बसंत लाल राम, कृष्णा प्रसाद,सोनपुर, पंकज कुमार निषाद, बैजू सहनी, अशोक सहनी, ऋषिकेश कुमार सीतामढ़ी, राम संयोग राय, अरविन्द प्रसाद कर्ण, राजेश कुमार, राम एकबाल राय, सुशील कुमार यादव, रामा शंकर राय, हुकुमदेव नारायण सिंह, मिथलेश सहनी, राजकुमार मंडल, नवल किशोर सिंह, बागमती संघर्ष मोर्चा, रविन्द्र किशोर सिंह, जलधर सहनी, सीतामढ़ी, राजाराम सहनी, सोनपुर सारण, राजेन्द्र पटेल, अनिल कुमार अनल, बिरेंद्र राय, लक्षणदेव प्रसाद सिंह, नदीम खान, नरेश कुमार, देवीलाल यादव, मुन्ना कुमार, सत्येनु कुमार, रामचन्द्र सहनी, दिवाकर घोष, रमेश कुमार केजरीवाल, संगीता सुभाषिनी,कौशल्या देवी, रिंकु देवी , गायत्री देवी, रंजीत साह, शंभू सहनी, जमदार मुखिया, राजेश राय, साई सेवादार अविनाश कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता रामबाबू ने इस सवाल पर निर्णायक अहिंसक लड़ाई का संकल्प लिया। (कुमार कृष्णन-विनायक फीचर्स)

विदेशी धरती पर भारत की गरिमा को धूमिल करते राहुल गांधी

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विदेशी धरती पर भारत की गरिमा को धूमिल करते राहुल गांधी

विदेशी धरती पर भारत की गरिमा को धूमिल करते राहुल गांधी
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calendar12 SEPT 2024 02:07 PM
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Rahul Gandhi : ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष और राहुल गांधी के नजदीकी सहयोगी सैम पित्रोदा ने इस बात का दावा किया है कि राहुल पप्पू नहीं है। दरअसल सैम पित्रोदा अमेरिका के टेक्सास शहर में भारतीय मूल के छात्रों के समक्ष राहुल गांधी का परिचय बता हे थे। उसी दौरान उन्होंने राहुल गांधी की तारीफ की और कहा राहुल गांधी उच्च शिक्षित, पढ़े लिखे और किसी भी विषय पर गहन सोच रखने वाले रणनीतिकार हैं। इसपर हम बाद में बात करेंगे। फिलहाल सबसे बड़े सवाल से शुरुआत करते है कि राहुल गांधी पप्पू हैं या नहीं।

राहुल गांधी पप्पू नहीं!

बेशक इस मुद्दे पर सैम पित्रोदा के साथ हमारी वैचारिक सहमति है कि जिस राहुल गांधी का परिचय सैम पित्रोदा टैक्सास के छात्रों से करा रहे थे, वह पप्पू कतई नहीं हैं। सहमति यह कि जो राहुल गांधी अमेरिका के टेक्सास में छात्रों से रूबरू कराए जा रहे थे वे पप्पू तो बिल्कुल नहीं है और उन्हें पप्पू कहा जाना भी नहीं चाहिए। क्योंकि जो उन्हें पप्पू कहता है, दरअसल वह राहुल गांधी की अनेक खूबियों के साथ एक पक्षीय अन्याय कर बैठता है। मसलन राहुल गांधी पप्पू हैं ही नहीं, बल्कि वे राजनीति के एक ऐसे मंझे हुए खिलाड़ी हैं, जो समयानुकूल रणनीति को अपनाते हुए सिर्फ इस बात को ध्यान में रखते हैं कि येन केन प्रकारेण आम आदमी के बीच अपना सियासी उल्लू सीधा होना चाहिए। फिर भले ही ऐसा करने से भारत की छवि वैश्विक स्तर पर धूमिल ही क्यों ना करनी पड़ जाए। जैसा कि अक्सर होता रहता है, राहुल गांधी जब कभी भी विदेश यात्रा पर जाते हैं तब भारतीय गरिमा और उसके दैदीप्यमान आभामंडल को धूल-धुसरित करना नहीं भूलते। इस बार भी राहुल गांधी जब चार दिवसीय अमेरिकी यात्रा पर गए तो हमेशा की तरह इस बार भी अपने कर्तव्यों को नहीं भूले। विदेशी धरती पर उन्होंने बड़ी बेबाकी के साथ कहा कि भारत में रोजगार की समस्या है। जबकि चीन में निश्चित रूप से रोजगार की समस्या नहीं है। इसके अलावा वर्जीनिया के हर्नडान में कह बैठे कि भारत में सिखों की धार्मिक स्वतंत्रता पर सवालिया निशान हैं। इस बात को लेकर लड़ाई है कि सिखों को पगड़ी, कड़ा आदि पहनने और गुरुद्वारा जाने की इजाजत दी जाएगी या नहीं? साथ में यह भी कह दिया कि यह समस्या भारत में केवल सिखों के लिए ही नहीं, सभी धर्मों के लिए मुंह बाए खड़ी हुई है। बड़ा आश्चर्य होता है राहुल गांधी के इस बयान को सुनकर कि भारत में सिखों को उनकी धार्मिक अभिव्यक्तियों को व्यक्त करने पर भी सवालिया निशान अंकित हैं। यह बात भी वह राहुल गांधी कह रहे हैं जिनकी दादी की उन्हीं के अंगरक्षकों द्वारा हत्या कर दिए जाने पर कांग्रेस भारत भर के सिखों के खून की प्यासी हो गई थी। वह राहुल गांधी, जिनके पिता ने सिखों के सामूहिक नरसंहार पर यह कहा था कि जब कोई बड़ा बरगद का वृक्ष गिरता है तो धरती थोड़ी बहुत हिलती ही है। जबकि मुझे लिखते हुए बेहद संतोष होता है की तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हो अथवा भारतीय जनता पार्टी, हम सब उन बेहद प्रतिकूल हालातों के बीच भी सिखों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए थे, आज भी खड़े हुए हैं और आगे भी खड़े रहेंगे। यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने भारत विरोधी मानसिकताओं को प्रोत्साहित करते हुए और भारत की नकारात्मक तस्वीर प्रस्तुत करने वाले बयान विदेशी मंचों पर दिये हों। एक बार तो वे भारत के आंतरिक मामलों में अमेरिका से दखल करने की गुजारिश भी कर चुके हैं। हद तो यह हो गई कि इस बार राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा पर ठीक उसी प्रकार के आरोप लगाए जैसे अनेक भारत विरोधी संगठन लंबे अरसे से इन दोनों राष्ट्रभक्त संगठनों के बारे में गाल बजाते रहे हैं। जैसे - राहुल गांधी ने कहा कि आरएसएस महिलाओं को घर पर और एक खास भूमिका तक सीमित रखना चाहती है। स्पष्ट करना उचित रहेगा कि इस तरह के शातिराना बयान देने वाले व्यक्ति को पप्पू तो कतई नहीं माना जा सकता। राहुल गांधी का यह गुण तो ऐसी उच्च कोटि का है जिसे ध्यान में रखते हुए उन्हें घर का भेदी ही कहा जा सकता है। वह घर का भेदी जो विदेश की धरती पर अपने ही देश के बारे में नकारात्मक बातें करता हो और चीन जैसे शत्रु देश की तारीफ करने का एक भी अवसर हाथ से जाने देना नहीं चाहता हो। निसंकोच लिखा जा सकता है कि वैश्विक स्तर पर जितने भी देश के नेता विदेश यात्राओं पर जाते हैं, तब वह अपने घरेलू मामलों को बाहरी नेताओं अथवा मीडिया के सामने नहीं रखते। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केवल उन्हीं मसलों को रखा जाता है, जिन्हें उठाने पर या तो हमारे देश को नुकसान पहुंचाने वाली शक्तियां आहत होती हों अथवा जिन मसलों को उठाए जाने पर हमारे देश को किसी भी प्रकार का लाभ अर्जित होता हो। यहां इस बात का उल्लेख करना उचित रहेगा कि भारत में लंबे समय तक कांग्रेस का ही शासन बना रहा। जाहिर है आज जिसे भाजपा कहा जाता है, कल वह भारतीय जनसंघ हुआ करती थी। तब और अब, जब कभी भी उक्त दल के नेता पक्ष अथवा विपक्ष में रहते हुए विदेश यात्राओं पर गए, तब तब उन्होंने भारत के अंदरूनी मामलों का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जिक्र तक नहीं किया। तब भी जबकि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान की हत्या करते हुए देश पर जबरन आपातकाल थोप दिया था और विरोधी दल के नेता चुन चुन कर जेलों में ठूंसे जा रहे थे। लेकिन वाह रे राहुल गांधीजी, यह जब कभी भी विदेश जाते हैं तो संभवत लिखकर ले जाते हैं कि इस बार भारतीय अस्मिता और उसकी गरिमा को किस प्रकार तार तार करना उचित रहेगा। अब यदि ऐसे व्यक्ति को यदि कोई पप्पू कहता है तो फिर सैम पित्रोदा का असहज होना स्वाभाविक है। उन सैम पित्रोदा का, जो कालांतर में भारतीय नागरिकों को केंद्र में रखकर नस्लीय टिप्पणी करने के कारण ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाए जा चुके हैं। यह और बात है कि कांग्रेस में उन्हें चुनावी नुकसान से बचने के लिए किया गया था। किंतु जैसे ही चुनाव संपन्न हुए, उन्हें पुनः इस पद पर बहाल कर दिया गया। जाहिर है उनका यह पुनर्वसन राहुल गांधी के आदेश पर ही किया गया होगा। तो फिर उनका इतना फर्ज तो बनता ही है कि वे राहुल गांधी की पप्पू वाली छवि को कुछ हद तक तो कम करने का उद्यम करें, सो वे कर भी रहे हैं। बेशक यह उनके द्वारा अपने ऊपर चढ़े हुए एहसानों को उतारने की एक प्रक्रिया भर ही है। लेकिन फिर भी उनकी जुबान से निकले हुए सत्य को नकारा नहीं जा सकता। यह सत्य ही है कि जो राहुल गांधी इस वक्त विदेशी दौरे पर हैं वह पप्पू तो नहीं हैं। क्योंकि पप्पू भारतीय समाज में उस सरल सहज और बाल सुलभ बुद्धि के बच्चे को कहा जाता है, जो पानी से पप्पा और रोटी से अट्टा ही कह पाता है। लेकिन राहुल गांधी तो ऐसे नहीं हैं! उन्हें पूरी सुनियोजित रणनीति के साथ संविधान खत्म करने का हऊआ खड़ा करना बखूबी आता है। वे चुनावी फायदा लेने के लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ लोगों के खातों में हजारों नहीं लाखों रुपए भेजने का झूठ "ठकाठक ठकाठक" वाली शैली में सफलता के साथ बोलना जानते हैं और चुनाव पश्चात उसे भली भांति भूल जाना भी जानते हैं। अब यदि कोई ऐसे चालक दिमाग के धनी राहुल गांधी को पप्पू कहे तो फिर वह अपनी अपरिपक्वता ही जाहिर करेगा और कुछ नहीं। (विनायक फीचर्स)(लेखक मध्यप्रदेश भाजपा कार्यालय मंत्री हैं) Rahul Gandhi

विजिलेंस टीम का चला कमाल, एक-एक कर रिश्वतखोरों का कर रही खात्मा

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कौन हैं भारत के तीन सबसे अमीर बच्चे ?

कौन हैं भारत के तीन सबसे अमीर बच्चे ?
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calendar11 SEPT 2024 03:27 PM
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India Richest Children : भारत के सबसे अमीर बच्चे कौन हैं ? इस सवाल का जवाब आपको नहीं पता है तो हम बता देते हैं। यहां हम भारत के सबसे अमीर बच्चों की विस्तार से बात करेंगे। हम आपको यह बताएंगे कि भारत में सबसे अमीर बच्चों में टॉप-3 अमीर बच्चे कौन-कौन हैं। भाारत के सबसे अमीर बच्चों का नाम दुनिया भर में फैल रहा है।

मेरा नाम करेगा रौशन जग में मेरा राज दुलारा

पुरानी हिन्दी फिल्म के एक गाने के बोल हैं-"मेरा नाम करेगा रौशन जग में मेरा राज दुलारा"। फिल्मी गाने के यें बोल भारत के सबसे अमीर बच्चों पर सटीक बैठते हैं। भारत के सबसे अमीर बच्चों ने ना केवल अपने माता-पिता का नाम जग में रौशन किया है बल्कि भारत देश का नाम भी सबसे अमीर बच्चों ने रौशन किया है। एक सर्वे के मुताबिक भारत के तीन सबसे अमीर बच्चे भारत की आर्थिक राजधानी के नाम से प्रसिद्ध मुंबई शहर के मूल निवासी हैं।

भारत की सबसे अमीर बेटी है अनन्या बिड़ला

भारत के सबसे अधिक अमीर बच्चों में तीसरे नम्बर पर अनन्या बिड़ला का नाम आता है। बात बेटियों की करें तो अनन्या बिडला भारत की सबसे अधिक अमीर बेटी हैं। भारत के सबसे अधिक अमीर बच्चों में अनन्या बिडला का नाम तीसरे नम्बर पर है। आप जानते ही हैं कि देश में सबसे अमीर बेटी का नाम आते ही ज्यादातर लोग ईशा अंबानी का नाम सोचते हैं, जो कि भारत के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी की बेटी हैं। लेकिन असल में, देश की सबसे अमीर बेटी का तमगा अनन्या बिड़ला के नाम है। अनन्या आदित्य बिड़ला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला की बेटी हैं। अनन्या बिड़ला की संपत्ति ईशा अंबानी से कई गुना ज्यादा है। 2024 फोब्र्स बिलियनेयर्स लिस्ट के अनुसार कुमार मंगलम बिड़ला दुनिया के 90वें और भारत के सातवें सबसे अमीर व्यक्ति हैं, जिनकी कुल संपत्ति 22.6 बिलियन डॉलर है। अनन्या बिड़ला हिंडाल्को, ग्रासिम, आदित्य बिरला फैशन एंड रिटेल, और आदित्य बिरला मैनेजमेंट कॉरपोरेशन के बोर्ड में शामिल हैं। इसके अलावा उन्होंने 17 साल की उम्र में स्वतंत्र माइक्रोफिन प्राइवेट लिमिटेड नामक माइक्रोफाइनेंस कंपनी की स्थापना की थी। अनन्या को बिजनेस से जुड़े कई पुरस्कार मिले हैं, इसमें साल 2016 के लिए यंग बिजनेस पर्सन ऑफ द ईयर का अवार्ड भी शामिल है। अनन्या बिड़ला ने बिजनेस के अलावा सिंगिंग की दुनिया में भी अपना अच्छा खासा नाम और पैसा कमाया है। वह अपने ‘होल्ड ऑन’ और ‘लिविन द लाइफ’ जैसे हिट इंग्लिश सॉन्गस के लिए जानी जाती हैं। हालांकि अनन्या ने हाल ही में सिंगिंग से विदाई लेने का ऐलान कर दिया है। नेटवर्थ की बात करें तो मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अनन्या 13 बिलियन डॉलर यानी करीब 1,09,184 करोड़ रुपये की संपत्ति की मालकिन हैं।

आर्यन खान हैं दूसरे नम्बर पर

भारत के सबसे अमीर बच्चों की लिस्ट में दूसरे स्थान पर आर्यन खान का नाम आता है। आर्यन खान प्रसिद्ध फिल्म स्टार शाहरूख खान के बेटे हैं। फिल्म स्टार शाहरूख खान अपने बेटे आर्यन खान को पैसे उड़ाने की खुली छूट देते हैं। इसी कारण आर्यन खान आए दिन विवादों में भी घिरते रहते हैं। आर्यन खान की नैटवर्थ की बात करें तो भारत के सबसे अधिक अमीर बच्चों की सूची में दूसरे स्थान पर मौजूद आर्यन खान की खुद की अपनी नैटवर्थ 500 करोड़ रूपये से अधिक की बताई जाती है।

पहले नम्बर पर हैं आकाश अम्बानी

भारत के सबसे अमीर बच्चों की सूची में पहले स्थान पर आकाश अंबानी का नाम आता है। आकाश अंबानी के पिता मुकेश अंबानी भारत के सबसे अमीर उद्योगपति हैं। उसी प्रकार भारत के सबसे अमीर बच्चों में आकाश अंबानी का नाम सबसे ऊपर आता है। मुकेश अंबानी के बडे बेटे आकाश अंबानी 32 साल के हैं। आकाश की स्कूली पढ़ाई धीरूभाई अंबानी इंटरनेशनल स्कूल और मुंबई के कैंपियन स्कूल से हुई है। वहीं आकाश ने अमेरिका स्थित ब्राउन यूनिवर्सिटी से बिजनेस-कॉमर्स में ग्रेजुएशन कंप्लीट किया है। आकाश साल 2022 से रिलायंस जियो के चेयरमैन हैं। इसके अलावा वे जियो प्लेटफॉर्म और रिलायंस रिटेल में भी अहम जिम्मेदारी संभालते हैं। उनकी सालाना सैलरी 5.4 करोड रुपये है। वहीं आकाश की नेटवर्थ की बात करें तो स्टारसनफोल्डिड के मुताबिक आकाश की नेटवर्थ 41 बिलियन डॉलर (3,33,313 करोड रुपये) है। इस प्रकार अब आप भारत के सबसे अमीर बच्चों को जान गए होंगे। अब आप से कोई भी यह सवाल पूछे कि भारत के सबसे अमीर बच्चे कौन-कौन हैं तो आप फटाक से उत्तर दे देंगे। India Richest Children

भूकंप के झटकों से दहला दिल्ली-NCR, तीव्रता 5.8 मापी गई

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