बिहार में नदियों पर बैराज बनाने के विरोध में उठी अवाज़े


लद्दाख में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग को लेकर हफ्तों से चल रहा शांतिपूर्ण आंदोलन आखिरकार बुधवार को हिंसा में बदल गया. लेह की सड़कों पर गुस्से का लावा फूटा तो बीजेपी दफ्तर और कई वाहन आग के हवाले कर दिए गए. सीआरपीएफ की एक वैन भी नहीं बच सकी. झड़पों में चार लोगों की मौत और करीब 60 के घायल होने की खबर है. हालात बिगड़ते ही शहर में कर्फ्यू लागू कर दिया गया. इस पूरे आंदोलन का चेहरा बने पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक ने हिंसा पर गहरी निराशा जताई और युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील की. उनका कहना था—“यह जेन-ज़ी की नाराज़गी है, जिसने सड़कों को ज्वालामुखी बना दिया. हालांकि, बीजेपी ने इस अराजकता के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया और विपक्ष पर माहौल भड़काने का आरोप लगाया. Ladakh Violence
दूसरी ओर, पुलिस और सुरक्षाबलों को भीड़ काबू करने के लिए आंसू गैस और लाठीचार्ज करना पड़ा. उधर, भूख हड़ताल पर बैठे 15 प्रदर्शनकारियों की हालत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा, जिसके बाद अचानक बंद का आह्वान कर दिया गया. गौर करने वाली बात है कि 2019 में अनुच्छेद 370 हटने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद लद्दाख सीधे केंद्र शासित प्रदेश बना, लेकिन विधानसभा का अधिकार उसे नहीं मिला. तभी से यहां लोग राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक सुरक्षा और अपनी आदिवासी पहचान व नाज़ुक पारिस्थितिकी की रक्षा के लिए आंदोलन कर रहे हैं. यह विरोध अब सिर्फ भूख हड़ताल और शांतिपूर्ण धरनों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि “जेन-ज़ी क्रांति” का रूप ले चुका है। आइए पांच बिंदुओं में पूरी तस्वीर समझते हैं— Ladakh Violence
लद्दाख की सड़कों पर जिस आक्रोश ने आग पकड़ी, उसकी जड़ें भूख हड़ताल से जुड़ी हैं। क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक के नेतृत्व में 10 सितंबर से लोग अनशन पर बैठे हैं। उनकी दो मुख्य मांगें हैं—लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाए और इसे राज्य का दर्जा दिया जाए। बुधवार को वांगचुक ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर युवाओं के गुस्से को “जेन-ज़ी क्रांति” करार दिया। उन्होंने कहा, “पांच साल से बेरोजगारी, बार-बार नौकरियों से निकाले जाने और अनदेखी ने युवाओं को सड़कों पर उतरने को मजबूर किया। Ladakh Violence
यह महज कुछ समर्थकों का आंदोलन नहीं, बल्कि पूरा लद्दाख इस मांग के साथ खड़ा है। हालांकि, उन्होंने साथ ही चेतावनी भी दी—“हिंसा हमारी पांच साल की मेहनत पर पानी फेर देगी। हमारा रास्ता हमेशा शांतिपूर्ण रहेगा और हम चाहते हैं कि सरकार हमारी आवाज सुने। अब निगाहें 6 अक्टूबर पर टिकी हैं, जब केंद्र सरकार और लद्दाख प्रतिनिधियों—लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA)—के बीच अगला दौर की वार्ता होगी।
गौरतलब है कि संविधान की छठी अनुसूची से जुड़े प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम जैसे राज्यों में आदिवासी इलाकों को विशेष स्वायत्त अधिकार देते हैं। इसमें ज़िला परिषदों को भूमि, वन और स्थानीय प्रशासन पर कानून बनाने की शक्ति मिलती है, ताकि जनजातीय पहचान और संस्कृति सुरक्षित रह सके। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि लद्दाख की लगभग 97% आबादी अनुसूचित जनजाति है—लेह में 66.8%, नुबरा में 73.35%, खालस्ती में 97.05%, कारगिल में 83.49%, सांकू में 89.96% और ज़ांस्कर में 99.16%। यही आंकड़े यहां की ज़मीनी हकीकत और आंदोलन की गंभीरता बयां करते हैं।
लद्दाख में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग अब संगठित आंदोलन का रूप ले चुकी है। इसका नेतृत्व लेह एपेक्स बॉडी (LAB) कर रही है, जिसमें कई धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक संगठन जुड़े हैं। लंबे समय से लद्दाख के अधिकारों की आवाज़ उठाने वाले सोनम वांगचुक भी इस संगठन का अहम हिस्सा हैं और भूख हड़ताल से लेकर जनसभाओं तक सबसे आगे खड़े दिखाई दिए। मंगलवार को विरोध के दौरान जब एक बुजुर्ग महिला और पुरुष बेहोश होकर गिर पड़े, तो LAB की युवा शाखा ने अगले ही दिन लेह बंद का ऐलान कर दिया। Ladakh Violence
बुधवार को यही बंद उग्र रूप ले गया—बीजेपी दफ्तर के बाहर विशाल सभा हुई और देखते ही देखते दफ्तर को आग के हवाले कर दिया गया। इस आंदोलन को कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) का भी समर्थन मिला। KDA ने न सिर्फ LAB की मांगों का साथ दिया बल्कि 25 सितंबर को पूरे केंद्र शासित प्रदेश में बंद और संयुक्त विरोध का आह्वान कर दिया। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, LAB और KDA बीते चार साल से लगातार साथ मिलकर सरकार पर दबाव बना रहे हैं और अब तक कई दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं, लेकिन ठोस हल निकलना बाकी है। Ladakh Violence
लेह की हिंसा अब खुलकर सियासी घमासान में बदल गई है। बीजेपी नेता अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर तस्वीरें और वीडियो साझा कर सीधे कांग्रेस पर आरोप जड़ दिया। उनका दावा था कि भीड़ को उकसाने वाला शख्स कोई और नहीं, बल्कि अपर लेह वार्ड का कांग्रेस पार्षद फुंटसोग स्टैनज़िन त्सेपाग है, जो बीजेपी दफ्तर और हिल काउंसिल पर हुए हमले में भी शामिल दिख रहा है। मालवीय ने राहुल गांधी पर वार करते हुए पूछा—“क्या यही है कांग्रेस का लोकतांत्रिक मॉडल? क्या राहुल गांधी इसी तरह की अराजकता चाहते हैं?” इधर, कांग्रेस खेमे से भी सोशल मीडिया पर जवाबी वार हुआ।
एक यूजर ने लिखा—“सोनम वांगचुक की भूख हड़ताल के बाद अब जेन-ज़ी युवाओं ने मोर्चा संभाल लिया है और बीजेपी को हकीकत का आइना दिखा दिया।वहीं, विपक्ष के नेता राहुल गांधी पहले ही देशभर के युवाओं और जेन-ज़ी से लोकतंत्र व चुनावी प्रक्रिया को “धांधली से बचाने” की अपील कर चुके हैं। दिलचस्प यह है कि लद्दाख का यह उबाल ठीक उसी समय सामने आया है जब नेपाल में जेन-ज़ी आंदोलन ने केपी ओली सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था। बीजेपी अब राहुल गांधी पर यह आरोप जड़ रही है कि वे युवाओं को भड़काकर देश में अराजकता का एजेंडा आगे बढ़ाना चाहते हैं।
लद्दाख की सड़कों पर जिस तरह युवाओं का गुस्सा फूटा, उसने सबका ध्यान खींच लिया. कुछ पोस्ट्स में तो आरोप लगाया गया कि गुस्साए युवाओं ने बीजेपी दफ़्तर तक को आग के हवाले कर दिया और माहौल पूरी तरह अराजक हो गया. कई लोगों ने इन हालात की तुलना नेपाल से की, जहां हाल ही में जेन Z की अगुवाई वाले आंदोलनों ने ओली सरकार की नींव हिला दी थी. हालांकि, इस उथल-पुथल के बीच लद्दाख के चर्चित पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक का दर्द भी झलक उठा. उन्होंने कहा—"आज जो हुआ, वह बेहद दुखद है. मैंने हमेशा शांतिपूर्ण रास्ते की बात की, लेकिन लगता है मेरा संदेश कहीं पीछे छूट गया. युवाओं से मेरी अपील है कि हिंसा से हमारा मकसद ही कमजोर होगा, इसे तुरंत बंद करें ।
लद्दाख में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग ने बुधवार को हिंसक रूप ले लिया. लेह की सड़कों पर सुबह से ही उबाल दिखा और दोपहर तक हालात बेकाबू हो गए. एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक भले ही मंगलवार को 15 दिन का अनशन खत्म कर चुके थे और समर्थकों से हिंसा से दूर रहने की अपील कर रहे थे, लेकिन ज़मीनी हकीकत ने दूसरी तस्वीर पेश की. एनडीएस मेमोरियल ग्राउंड से निकला सैलाब नारेबाज़ी करता हुआ शहर की ओर बढ़ा. जल्द ही प्रदर्शनकारी बेकाबू हो गए—बीजेपी दफ़्तर और हिल काउंसिल पर पथराव शुरू हो गया. Ladakh Violence
चारों ओर आग की लपटें और काला धुआं उठता नज़र आया. दफ़्तर के फर्नीचर, दस्तावेज़ और कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया. पुलिस और अर्धसैनिक बलों को भीड़ को काबू में करने के लिए आंसू गैस छोड़नी पड़ी. हालात काबू से बाहर जाते देख प्रशासन ने धारा 163 लागू कर दी, जिसके तहत पांच से ज़्यादा लोगों के जुटने पर रोक लगा दी गई. हिंसा की वजह से लद्दाख महोत्सव को बीच में ही रद्द करना पड़ा. आयोजकों ने “अपरिहार्य परिस्थितियों” का हवाला देकर खेद जताया और स्थानीय कलाकारों व पर्यटकों से माफ़ी मांगी, जो इस सांस्कृतिक आयोजन का हिस्सा बनने लेह पहुंचे थे. Ladakh Violence


