Saturday, 26 April 2025

Pashmina Shawl : अतीत बन सकता है विश्व प्रसिद्ध पश्मीना शॉल

श्रीनगर। सरकार ने अगर घाटी की पश्मीना शॉल बुनाई की विधा को जीवित रखने के​ लिए कोई कारगर उपाय नहीं…

Pashmina Shawl : अतीत बन सकता है विश्व प्रसिद्ध पश्मीना शॉल

श्रीनगर। सरकार ने अगर घाटी की पश्मीना शॉल बुनाई की विधा को जीवित रखने के​ लिए कोई कारगर उपाय नहीं किया तो विश्व प्रसिद्ध यह कला अतीत बन सकती है। कम मजदूरी के कारण निकट भविष्य में विश्व प्रसिद्ध कानी पश्मीना शॉल बुनने वाले कारीगरों का अभाव हो सकता है। कई कारीगर अपने बच्चों को शिल्प की इस विधा से दूर रखने का निर्णय कर रहे हैं।

Pashmina Shawl

कश्मीरी ऊन से बनी कानी शॉल को स्थानीय रूप से पश्मीना शॉल के रूप में जाना जाता है। इसकी कताई लकड़ी की सुइयों का उपयोग करके हथकरघे पर की जाती है। एक कानी शॉल को पूरा होने में तीन महीने से लेकर तीन साल तक का समय लग सकता है, जो उसकी डिजाइन की जटिलता और गहनता पर निर्भर करता है।

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कारीगर अर्शीद अहमद ने बताया कि हम कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। दो दशक पहले हमें एक शॉल के बदले 60 हजार रुपये मिल जाया करते थे, लेकिन अब यह रकम घटकर प्रति शॉल 25 हजार रुपये रह गई है। मेरे जैसे कारीगरों को औसत रूप से बेहद मामूली रकम मिल रही है। हम प्रतिदिन 200 से 300 रुपये कमाते हैं। हालांकि, कश्मीर में अकुशल श्रमिकों की प्रतिदिन की कमाई 650 रुपये है। कारीगर जब देखते हैं कि सेलेब्रिटी उनके कठिन कार्य का प्रदर्शन कैमरों के सामने कर रहे हैं, तो उनके बीच नाराजगी का पनपना कोई असामान्य बात नहीं है, क्योंकि वे इस शॉल को मामूली मजदूरी पर बनाने के लिए मजबूर हैं।

Pashmina Shawl

एक अन्य कारीगर जहूर अहमद कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमिताभ बच्चन और अभिनेता शाहरुख खान समेत अन्य मशहूर हस्तियां इस शॉल का उपयोग करती हैं। दो कारीगर लगातार काम करके एक शॉल को दो महीने में बनाते हैं। उन्हें इसके बदले 40 हजार रुपये मिलते हैं। जहूर ने कहा कि कानी शॉल बनाने में बहुत से लोग शामिल थे, लेकिन अब कम मजदूरी के कारण केवल कुछ ही कामगार रह गये हैं। जहूर और अर्शीद, दोनों ही नहीं चाहते कि उनके बच्चे गुजर-बसर के लिए कानी शॉल की बुनाई करें।

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एक हथकरघा के मालिक मुस्ताक ने कानी शॉल की गिरती मांग पर अलग राय व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वर्तमान में कश्मीर में 50,000 हथकरघे हैं, जबकि इसके पहले इनकी संख्या केवल 5000 थी। ऐसे में आप कानी शॉल की मांग का अंदाजा लगा सकते हैं।

अहमद ने कहा कि शॉल की कीमत और कारीगर की मजदूरी डिजाइन के आधार पर तय होती है। हस्तशिल्प विभाग के निदेशक महमूद शाह ने कहा कि भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग की शुरुआत के साथ कारीगरों की आर्थिक स्थिति अच्छी होगी।

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