Saturday, 16 November 2024

लीप ईयर के बहाने आप भी समझ सकते हैं “काल” गणना का पूरा विज्ञान

आज जब हम यह लेख प्रकाशित कर रहे हैं तब वर्ष-2024 की 29 फरवरी का दिन है। आप जानते ही…

लीप ईयर के बहाने आप भी समझ सकते हैं “काल” गणना का पूरा विज्ञान

आज जब हम यह लेख प्रकाशित कर रहे हैं तब वर्ष-2024 की 29 फरवरी का दिन है। आप जानते ही हैं कि जिस वर्ष में फरवरी का महीना 29 दिन (29 तारीख) का होता है उस वर्ष को लीप ईयर कहते हैं। लीप ईयर हर चार साल बाद आता है। भारत के ऋषि-मुनियों ने “काल गणना” में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दी है कि कोई एक महीना चार साल बाद एक दिन अधिक वाला होगा।

हमारे ऋषि-मुनियों की “काल गणना” पूरी तरह वैज्ञानिक पद्धति है और दुनिया की सर्वश्रेष्ठ काल गणना है। आज लीप ईयर के बहाने आप भी समझ सकते हैं लीप ईयर और काल गणना का पूरा विज्ञान और इतिहास।

समय का गणित

हर चार साल बाद ‘लीप ईयर’ के रूप में फरवरी में एक दिन बढ़ जाता है। इसका संबंध कालगणना से है, जिसमें दिन, मास और वर्ष के साथ ऋतुएं शामिल हैं। समय को गणना के लिए पुरातन काल से ही अनेक गणितीय पद्धतियां रही हैं। प्राय: सभी भागों में सूर्य और चंद्रमा की गति के अनुसार पंचांगों के निर्माण हुए हैं। यूरोप ने सूर्य से और अरब ने चंद्रमा की गति से कालगणना को जोड़ा। भारत ने सूर्य से सौर वर्ष और चंद्रमा से चंद्र वर्ष मानकर कालगणना की है।

समय की सभी गणनाओं में निर्विवाद रूप से वैदिक कालगणना सबसे प्राचीन है। ऋग्वेद में ‘काल’ शब्द है, जो गणना के अर्थ में है। महाभारत में तो घोषणा है कि काल ही ऐसा है, जो सबके सो जाने पर भी जागता रहता है। काल अजेय है, उसे कोई जीत नहीं सकता। भगवद्गीता में काल शब्द ‘सामान्य समय’ या ‘यथासमय’ के अर्थ में प्रयुक्त है। पतंजलि ने कहा है कि लोग उसे काल मानते हैं, जिसके द्वारा वृद्धि लक्षित होती है कि कोई कितनी आयु का हो गया है। आचार्य बराहमिहिर ने बृहत्संहिता में सूर्य को काल का निर्माता माना है, क्योंकि आदित्य की गति से ही दिन, मास एवं वर्ष के साथ ऋतुओं का निर्माण होता है। बौद्ध मत के अनुसार, काल केवल एक विचार मात्र है। सभी देशों में काल की मौलिक अवधियां एक सी हैं।

प्राचीन समय से ही दुनिया भर में काल के सूक्ष्म-से-सूक्ष्म विभाजन का आलेखन होता आया है। यूरोप में काल विभाजन पर पंचांग (कैलेंडर) तैयार किया गया है, जो जनवरी से दिसंबर तक बारह महीनों का है। आज जो यूरोपीय कैलेंडर प्रचलित है, उसमें हर चौथे साल फरवरी में एक तारीख बढ़ती है। जिस वर्ष फरवरी 29 दिनों का होता है, उसे लीप ईयर कहा जाता है।

प्रारंभिक रूप में ईसा पूर्व 46 में जूलियस सीजर ने एक संशोधित पंचांग निर्मित किया और प्रति चौथे वर्ष ‘लीप ईयर’ की व्यवस्था की, किंतु उनकी गणनाएं ठीक नहीं उतरी। तब पोप ग्रेगोरी (13वें) ने यह व्यवस्था दी कि जब तक 400 से भाग न लग जाए, तक तक के शताब्दी वर्षों में ‘लीप ईयर’ नहीं होना चाहिए। यदि ग्रेगोरी कैलेंडर में ‘लीप ईयर’ की व्यवस्था न की गई होती, तो सर्दियों में आने वाला ‘क्रिसमस डे’ किसी अन्य ऋतु में होता। इस तरह एक शताब्दी के भीतर ही ‘लीप ईयर’ के माध्यम से 25 दिन चढ़ा दिए गए। भारतीय पंचांगों की सटीक कालगणना के कारण हमारे सारे पर्व आज भी उन्हीं ऋतुओं में होते हैं, जिनमें वे सदा से होते थे।

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