Mithun Sankranti 2023 : देशभर में मनाई जाएगी मिथुन संक्रांति, होती हैं भूदेवी रजस्वला, जाने इस संक्रांति के रहस्य और इसके महत्व को

20 16
Mithun Sankranti 2023 
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 05:22 AM
bookmark

Mithun Sankranti 2023 (आचार्या राजरानी) सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाने का समय संक्रांति कहलाता है। वैसे तो साल में आने वाली एक संक्रांति जिसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है के बारे में अधिकांश: सभी लोग जानते हैं लेकिन इस संक्रांति के अलावा साल में कुल मिलाकर 12 संक्रांतियां होती है। सौर मास अनुसार प्रत्येक माह में आने वाली संक्रांति किसी न किसी नाम से जानी जाती है। जब आषाढ़ माह मध्य के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है तब इस संक्रांति को मिथुन संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इसे मिथुन संक्रांति इस कारण से कहा जाता है क्योंकि सूर्य इस समय वृष राशि से निकल कर मिथुन राशि में प्रवेश करता है। अत: राशि के नाम के अनुसार इस समय की संक्रांति मिथुन संक्रांति कहलाती है। अब इस नाम के अतिरिक्त भी इसके अनेक नाम हैं क्योंकि सौर संक्रांति का पर्व देशभर में अलग अलग रुप में अवश्य मनाया जाता है। आईये जानते हैं इस संक्रांति के नाम और इसकी विशेषताओं के बारे में :-

Mithun Sankranti 2023

मिथुन संक्रांति 2023 पुण्यकाल समय

मिथुन संक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त इस प्रकार रहेगा। 15 जून 2023 को बृहस्पतिवार के दिन यह संक्रांति मनाई जाएगी। मिथुन संक्रांति का समय शाम 18:16 का होगा। इस समय सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करेगा।  मिथुन संक्रांति पुण्य काल संध्या 18:16 से 19:20 तक रहेगा, जिसकी अवधि 52 मिनट की होगी। मिथुन संक्रांति महापुण्य काल समय 18:29 से 19:20 तक रहेगा। इसके अलावा दोपहर 11:52 बाद से ही स्नान दान से संबंधित कार्य आरंभ किए जा सकते हैं।

मिथुन संक्रांति के विभिन्न नाम

मिथुन संक्रांति का समय 15 जून के आस पास का समय होता है। इस संक्रांति के समय हिंदू माह आषाढ़ मास चल रहा होता है, इस कारण से इसे आषाढ़ संक्रांति के नाम से पुकारा जाता है। देश के कुछ भाग में विशेष रुप से उड़ीसा में इस संक्रांति को राजा पर्व या रज पर्व के नाम से जाना जाता है। यह एक विशेष समय होता है जो कुछ दिनों तक चलता है। केरल में मिथुनम होंठ संक्रांति तो वहीं दक्षिण के कुछ स्थानों में संक्रमणम के रुप में जाना जाता है। अब इस संक्रांति का नाम चाहे जो भी हो लेकिन इसकी एक विशेषता सभी में दिखाई देती है।

मिथुन संक्रांति से संबंधित लोक धार्मिक मान्यताएं

इस संक्रांति का वैज्ञानिक आधार इस बात पर है कि सौर चक्र से है, वहीं धार्मिक एवं लोक प्रचलित मान्यताओं का आधार भी काफी विस्तार लिए है। ज्योतिष की अवधारण अनुसर सूर्य प्रत्येक माह एक राशि से निकल कर दूसरी राशि में जब प्रवेश करता है तो वह काल समय संक्रमण का होता है, अत: इस कारण इसे संक्रांति के नाम से पुकारा जाता है। संक्रमण काल होने के कारण इस समय को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है, इस समय पर प्रकृति में वातावरण में भी बदलाव होता है। अत: इस समय पर कुछ कार्यों को करना जरुरी माना गया है जिसमें विशेष रुप से स्नान का कार्य है जो शरीर की सुरक्षा के संदर्भ में है और जिसे धार्मिक रुप देकर स्नान दान एवं अन्य प्रकार की धार्मिक क्रियाओं से जोड़ दिया गया है जिसके चलते हम इस कार्य को और अधिक गंभिरता के साथ करें।

Mithun Sankranti 2023

वहीं कुछ स्थानों में इस समय को राजा या रज संक्रांति के रुप में मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस समय पर पृथ्वी रजस्वला होती है। धर्म ग्रंथों में पृथ्वी को धरती एवं भूदेवी नाम से पुकारा जाता है अत: कुछ स्थानों पर ये समय पृथ्वी के मासिक धर्म से जुड़ा होने के प्रतीक स्वरुप विकास को दर्शाता है अत: इस समय पर पृथ्वी को खोदा नहीं जाता है किसी भी प्रकार का खुदाई का कार्य नहीं होता है और इस समय पर पूजन कार्य संपन्न किए जाते हैं। लोक भाषा में इस समय को वसुमती गढ़आ कहा जाता है, और सिल बट्टा जैसी वस्तु को भूदेवी का प्रतीक मानकर इसकी पूजा की जाती है। ओडिशा के पुरी जगन्नाथ मंदिर में इस समय को महत्वपूर्ण रुप से पूजा जाता है जिसे देखने के लिए देशभर से भक्तों का आगमन भी होता है।  Mithun Sankranti 2023

Relationship According To Astrology : इन अशुभ योगों के कारण लिव इन रिलेशनशिप में होते हैं झगड़े 

देश विदेश की खबरों से अपडेट रहने लिए चेतना मंच के साथ जुड़े रहें। देश-दुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमें फेसबुकपर लाइक करें या ट्विटरपर फॉलो करें।
अगली खबर पढ़ें

Mithun Sankranti 2023 : देशभर में मनाई जाएगी मिथुन संक्रांति, होती हैं भूदेवी रजस्वला, जाने इस संक्रांति के रहस्य और इसके महत्व को

20 16
Mithun Sankranti 2023 
locationभारत
userचेतना मंच
calendar29 Nov 2025 05:22 AM
bookmark

Mithun Sankranti 2023 (आचार्या राजरानी) सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाने का समय संक्रांति कहलाता है। वैसे तो साल में आने वाली एक संक्रांति जिसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है के बारे में अधिकांश: सभी लोग जानते हैं लेकिन इस संक्रांति के अलावा साल में कुल मिलाकर 12 संक्रांतियां होती है। सौर मास अनुसार प्रत्येक माह में आने वाली संक्रांति किसी न किसी नाम से जानी जाती है। जब आषाढ़ माह मध्य के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है तब इस संक्रांति को मिथुन संक्रांति के नाम से जाना जाता है। इसे मिथुन संक्रांति इस कारण से कहा जाता है क्योंकि सूर्य इस समय वृष राशि से निकल कर मिथुन राशि में प्रवेश करता है। अत: राशि के नाम के अनुसार इस समय की संक्रांति मिथुन संक्रांति कहलाती है। अब इस नाम के अतिरिक्त भी इसके अनेक नाम हैं क्योंकि सौर संक्रांति का पर्व देशभर में अलग अलग रुप में अवश्य मनाया जाता है। आईये जानते हैं इस संक्रांति के नाम और इसकी विशेषताओं के बारे में :-

Mithun Sankranti 2023

मिथुन संक्रांति 2023 पुण्यकाल समय

मिथुन संक्रांति का पुण्य काल मुहूर्त इस प्रकार रहेगा। 15 जून 2023 को बृहस्पतिवार के दिन यह संक्रांति मनाई जाएगी। मिथुन संक्रांति का समय शाम 18:16 का होगा। इस समय सूर्य मिथुन राशि में प्रवेश करेगा।  मिथुन संक्रांति पुण्य काल संध्या 18:16 से 19:20 तक रहेगा, जिसकी अवधि 52 मिनट की होगी। मिथुन संक्रांति महापुण्य काल समय 18:29 से 19:20 तक रहेगा। इसके अलावा दोपहर 11:52 बाद से ही स्नान दान से संबंधित कार्य आरंभ किए जा सकते हैं।

मिथुन संक्रांति के विभिन्न नाम

मिथुन संक्रांति का समय 15 जून के आस पास का समय होता है। इस संक्रांति के समय हिंदू माह आषाढ़ मास चल रहा होता है, इस कारण से इसे आषाढ़ संक्रांति के नाम से पुकारा जाता है। देश के कुछ भाग में विशेष रुप से उड़ीसा में इस संक्रांति को राजा पर्व या रज पर्व के नाम से जाना जाता है। यह एक विशेष समय होता है जो कुछ दिनों तक चलता है। केरल में मिथुनम होंठ संक्रांति तो वहीं दक्षिण के कुछ स्थानों में संक्रमणम के रुप में जाना जाता है। अब इस संक्रांति का नाम चाहे जो भी हो लेकिन इसकी एक विशेषता सभी में दिखाई देती है।

मिथुन संक्रांति से संबंधित लोक धार्मिक मान्यताएं

इस संक्रांति का वैज्ञानिक आधार इस बात पर है कि सौर चक्र से है, वहीं धार्मिक एवं लोक प्रचलित मान्यताओं का आधार भी काफी विस्तार लिए है। ज्योतिष की अवधारण अनुसर सूर्य प्रत्येक माह एक राशि से निकल कर दूसरी राशि में जब प्रवेश करता है तो वह काल समय संक्रमण का होता है, अत: इस कारण इसे संक्रांति के नाम से पुकारा जाता है। संक्रमण काल होने के कारण इस समय को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है, इस समय पर प्रकृति में वातावरण में भी बदलाव होता है। अत: इस समय पर कुछ कार्यों को करना जरुरी माना गया है जिसमें विशेष रुप से स्नान का कार्य है जो शरीर की सुरक्षा के संदर्भ में है और जिसे धार्मिक रुप देकर स्नान दान एवं अन्य प्रकार की धार्मिक क्रियाओं से जोड़ दिया गया है जिसके चलते हम इस कार्य को और अधिक गंभिरता के साथ करें।

Mithun Sankranti 2023

वहीं कुछ स्थानों में इस समय को राजा या रज संक्रांति के रुप में मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस समय पर पृथ्वी रजस्वला होती है। धर्म ग्रंथों में पृथ्वी को धरती एवं भूदेवी नाम से पुकारा जाता है अत: कुछ स्थानों पर ये समय पृथ्वी के मासिक धर्म से जुड़ा होने के प्रतीक स्वरुप विकास को दर्शाता है अत: इस समय पर पृथ्वी को खोदा नहीं जाता है किसी भी प्रकार का खुदाई का कार्य नहीं होता है और इस समय पर पूजन कार्य संपन्न किए जाते हैं। लोक भाषा में इस समय को वसुमती गढ़आ कहा जाता है, और सिल बट्टा जैसी वस्तु को भूदेवी का प्रतीक मानकर इसकी पूजा की जाती है। ओडिशा के पुरी जगन्नाथ मंदिर में इस समय को महत्वपूर्ण रुप से पूजा जाता है जिसे देखने के लिए देशभर से भक्तों का आगमन भी होता है।  Mithun Sankranti 2023

Relationship According To Astrology : इन अशुभ योगों के कारण लिव इन रिलेशनशिप में होते हैं झगड़े 

देश विदेश की खबरों से अपडेट रहने लिए चेतना मंच के साथ जुड़े रहें। देश-दुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमें फेसबुकपर लाइक करें या ट्विटरपर फॉलो करें।
अगली खबर पढ़ें

Yogini Ekadashi 2023: इस बार योगिनी एकादशी पर है बहुत कुछ खास

08 9
Vishnu ji
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 11:23 PM
bookmark

Yogini Ekadashi 2023: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है तो व्यक्ति सच्चा मन से इस व्रत को रखकर भगवान विष्णु की आराधना करता है। उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। वैदिक पंंचांग के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत आषाढ़ मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है जो कि इस बार 14 जून को रखा जाएगा। इस व्रत को करने वाले व्‍यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं योगिनी व्रत का महत्व और तिथि…

Yogini Ekadashi 2023 : शुभ मुहूर्त और तिथि

वैदिक पंंचांग के अनुसार योगिनी एकादशी की तिथि 13 जून मंगलवार को सुबह 9 बजकर 29 मिनट पर शुरू होगी। साथ ही इसका अंत 14 जून को सुबह 8 बजकर 47 मिनट पर होगा। इसलिए उदयातिथि को आधार मानते हुए योगिनी एकादशी का व्रत 14 जून को रखा जाएगा और इसका पारण द्वादशी यानी कि 15 जून को होगा। वहीं आपको बता दें कि 14 जून को योगिनी एकादशी अश्विनी नक्षत्र में होगी। साथ ही अश्विनी नक्षत्र वाणी से संबंधित है और भगवान विष्णु की वाणी सबसे उत्तम वाणी बताई गई है, इसीलिए भी योगिनी एकादशी का महत्व इस साल ज्यादा होगा।

योगिनी एकादशी व्रत की पूजाविधि

योगिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी स्नान कर लें और साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद धूप- अगरबत्ती जलाएं और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद भगवान विष्णु को पीला चंदन लगाएं। साथ ही पीली मिठाई और पीले फल का भोग लगाएं। इसके बाद योगिनी एकादशी व्रत की कथा पढ़ें और आरती करके पूजा करें। साथ ही अंत में प्रसाद सभी घर के सदस्यों में बांट दें।

योगिनी एकादशी व्रत का महत्‍व

योगिनी एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और सुख- समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। साथ ही स व्रत को करने पर 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन करवाने के समतुल्‍य फल की प्राप्ति होती है। वहीं अक्षय पुण्य की प्राप्ति भी इस व्रत को करने से होती है। वहीं योगिनी एकादशी का व्रत रखने से सभी पाप खत्म होने की धार्मिक मान्यता है और मरणोपरांत व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होने की धार्मिक मान्यता भी बताई गई है। साथ ही इस व्रत को करने से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।

योगिनी एकादशी व्रत की कथा

प्राचीन काल में अलकापुरी नगर में राजा कुबेर के यहां हेम नामक एक माली रहता था। उसका कार्य रोजाना भगवान शंकर के पूजन के लिए मानसरोवर से फूल लाना था। एक दिन उसे अपनी पत्नी के साथ स्वछन्द विहार करने के लिए कारण फूल लाने में बहुत देर हो गई। वह दरबार में विलंब से पहुंचा। इस बात से क्रोधित होकर कुबेर ने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। श्राप के प्रभाव से हेम माली इधर-उधर भटकता रहा और एक दिन दैवयोग से मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने अपने योग बल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया। तब उन्होंने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। व्रत के प्रभाव से हेम माली का कोढ़ समाप्त हो गया और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

खबर सबके काम की : बदलने वाला है WhatsApp, चलाना हो जाएगा आसान

देश विदेश की खबरों से अपडेट रहने लिए चेतना मंच के साथ जुड़े रहें। देश-दुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमें फेसबुकपर लाइक करें या ट्विटरपर फॉलो करें।