गोरखपुर न्यूज़ :कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद सुन रहे परेशानी, इनके आधार पर बनेगा घोषणा पत्र

Salman khursid Congress
locationभारत
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calendar29 Nov 2025 08:17 PM
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कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने रविवार को गोरखपुर में लोगों से बात करते नजर आए। यहाँ उन्होंने रिक्शे के ऊपर बैठकर खूब सैर सपाटा किया इसके साथ रिक्शे आटो वालों से भी बातचीत की। रिक्शा चालकों द्वारा कोरोनाकाल में अपनी तकलीफे भी बताई गई। इसको लेकर उन्होंने परेशानी बताया और इसके अलावा आटो वालों ने बढ़ती महेगाई का भी जिक्र किया। खुर्शीद ने उनसे ताया कि प्रियंका द्वारा निर्देश मिला है कि आम लोगों से बातचीत करें जिससे उनकी समस्याओं के आधार पर घोषणाा पत्र बनाया जा सके।

रविवार के दिन सुबह रेलवे स्टेशन के पास उन्होंने लोगों से बातचीत कर उनकी समस्यांंए सुनी। इसके अलावा कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया सिंह भी मौजूद थी। खुर्शीद का पूर्वोतर रेलवे कर्मचारी संघ में मौजूद कार्यालय के कर्मचारियों का भी स्वागत किया गया और कर्मचारियों ने रेलवे के निजीकरण पर आपत्ति जाहिर की है।

इसके अलावा उन्होंने रेलवे स्टेशन पर पहुँकर आटों चालकों कुंती देवी से बातचीत कर उनकी परेशानी जानने का प्रयास किया। उन्होंने कुंती देवी के आटो पर बैठकर खूब सैर किया। इसके साथ उन्होंने रिक्शे पर बैठकर आम लोगों की समस्याएं सूनी। आटो चालकों ने बताया कि उन्होंने सलमान खुर्शीद ने कोरोना काल में आई परेशानी के बारे में और लोगों की दिक्कतों के बारे में बताया। डीजल पेट्रोल के दाम खूब बढ़ रहे हैं और सलमान खुर्शीद ने लोगों को भरोसा दिया कि कांग्रेस उनकी तकलीफों को अच्छे से समझती है।

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मंदिरों को खोलने की मांग तेज़, सीएम ठाकरे से अन्ना हजारे ने मांगा जवाब

Anna hazare
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 02:40 AM
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प्रसिद्ध आंदोलनकारी अन्ना हजारे ने महाराष्ट्र सरकार के मंदिर न खोलने के फैसले पर आपत्ति जताई है। उन्होंने साफ कर दिया है कि अगर मंदिरों पर लगे प्रतिबंध के विरुद्ध राज्य की सरकार के खिलाफ आंदोलन किया जाता है तो वे उसे अपना समर्थन देंगे। इसके अलावा अन्ना ने सीएम ठाकरे से राज्य में खुली शराब की दुकानों और उनके बाहर लगी लंबी कतारों पर जवाब मांगा है। बता दें, अहमदनगर के रालेगण सिद्धि गांव में शनिवार को हजारे ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए बताया कि मंदिरों के खोलने की मांग को लेकर कुछ लोगों ने उनसे मुलाकात की थी। उनका कहना था कि अगर सरकार कोरोना की वजह से मंदिर पर ताला मारे बैठी है तो शराब के ठेकों के बाहर लगी लंबी कतारें भी तो कोविड के दृष्टिकोण से गंभीर स्थिति उत्पन्न कर सकती हैं।

मालूम हो, राज्य में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान सभी सार्वजनिक स्थानों को पूरी तरह पबंद कर दिया गया था। जिसके बाद कोविड के प्रसार में कमी आने के बाद सरकार ने मुंबई में लोकल ट्रेनों के संचालन की अनुमति दे दी थी साथ ही अन्य चीजों पर लगी रोक को सुविधानुसार हटाया जा चुका है। हालांकि, ठाकरे सरकार अभी कोरोना के मद्देनजर मंदिरों को पुन: खोलने से कतरा रही है। वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी लगातार सरकार पर भक्तों के लिए मंदिरों को खोलने का दवाब बना रही है।गौरतलब है, देश में कोरोना की तीसरी लहर को लेकर आशंका जताई जा रही है कि सितंबर और अक्टूर के माह में एक बार कोरोना का भयावह रुप देखने को मिल सकता है। नीति आयोग द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर और अक्टूबर में लगभग 4 लाख केस रोजाना दर्ज किए जा सकते हैं। वहीं, इस लहर के दौरान युवा और बच्चों के सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना है।

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जन्माष्टमी के दिन का विश्व हिंदू परिषद से है खास कनेक्शन

VHP
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 03:04 AM
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जन्माष्टमी के दिन 1964 में मुंबई के संदीपनी आश्रम में 'विश्च हिंदू परिषद' की स्थापना हुई थी। ग्रेगोरियन या अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से वह 29 अगस्त का दिन था। हालांकि, विश्व हिंदू परिषद भारतीय पंचांग के मुताबिक चलता है और हर वर्ष जन्माष्टमी के दिन अपना स्थापना दिवस मनाता है।

अस्सी और नब्बे के दशक में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए होने वाले आंदोलन में अपनी अग्रणी भूमिका के कारण पहली बार यह संगठन सुर्खियों में आया। इस संगठन के इतिहास के बारे में जानकारी न होने की वजह से ज्यादातर लोग इसे मंदिर आंदोलन तक ही सीमित मानते हैं।

क्यों बनाया गया वीएचपी?आजादी के बाद भारतीय समाज में खासतौर पर हिंदुओं में जाति प्रथा, छुआछूत और रूढ़िवादिता अपने चरम पर थी। पचास के दशके और उसके बाद, भारत के कुछ हिस्सों में धर्मांतरण की घटनाएं तेजी से सामने आने लगीं। खासतौर पर आदिवासी समाज में इसाई धर्म अपनाने की घटनाएं बढ़ने लगीं। धर्मांतरण की मूल वजह जाति प्रथा, छुआछूत और हिंदू धर्म की रूढ़िवादिता ही थी।

इसी दौरान हिंदू धर्म की बुराइयों पर चर्चा करने और धर्मांतरण पर लगाम लगाने के लिए 1950 में वनवासी कल्याण परिषद की स्थापना हुई। यह चर्चा होने लगी कि हिंदू धर्म को उसकी रूढ़ियों से मुक्त कराने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने की जरूरत है।

राष्ट्रीय सेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक सदाशिव गोलवलकर ने इस दिशा में सबसे महत्वपूर्ण पहल की। उनका मानना था कि हिंदू धर्म को उसकी रूढ़ियों से मुक्त करने के लिए संत समाज और धर्मगुरुओं को आगे आना होगा। इस काम के लिए एक मंच के तौर पर 1964 में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना की गई।

नियोगी आयोग ने खोली धर्मांतरण की सच्चाईधर्माचार्यों और संतों को एक मंच पर लाना कठिन काम था, क्योंकि वेद-पुराण से लेकर अन्य धार्मिक ग्रन्थों की व्याख्या करने और जाति प्रथा, छुआछूत और रूढ़िवादीता को स्थापित में कथित संतों व धर्माचार्यों की महती भूमिका थी।

इन बुराइयों पर खुलकर बोलने और इन्हें समाप्त करने के​ लिए राष्ट्रीय अभियान में शामिल करने के लिए देश भर के संतों और धर्माचार्यों को तैयार करना आसान नहीं था। गोलवलकर ने इस चुनौती का सामना करने का काम दादा साहब आप्टे को सौंपा।

दादा साहब आप्टे ने सात-आठ साल तक देश-विदेश की यात्राएं की। संतों-धर्माचार्यों से मुलाकात की। इसी दौरान 1955-56 में नियोगी समिति की रिपोर्ट आई। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा गठित इस समिति के अध्यक्ष मध्य-प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश भवानीशंकर नियोगी थे।

आयोग ने आदिवासी इलाकों में हिंदू जनजातियों के इसाई धर्म में तेजी से धर्मांतरण का खुलासा किया। इन घटनाओं को देखते हुए आयोग ने धर्मांतरण पर कानूनी तौर पर रोक लगाने की सिफारिश की। हालांकि, तत्कालीन सरकार ने इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

भारत में पहली बार हुआ विश्व हिंदू सम्मेलन1964 में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना के दो साल बाद 1966 में प्रयाग के महाकुंभ में पहली बार विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस सम्मेलन में देश-विदेश के साधू-संतों और धर्माचार्यों ने हिस्सा लिया और जाति प्रथा के खिलाफ अभियान छेड़ने की घोषणा की।

आजादी के बाद हिंदुओं में जातिगत भेद-भाव को दूर करने और सामाजिक समरसता को स्थापित करने के लिए सामाजिक तौर पर शुरू किया गया यह पहला ऐसा संस्थागत अभियान था जिसमें संत समाज शामिल था।

क्या वीएचपी का लक्ष्य सिर्फ धर्मांतरण को रोकना था?आरएसएस के तीसरे सरसंघचालक बालासाहब देवरस का कहना था कि अगर छुआछूत अपराध नहीं है, तो दुनिया का कोई भी काम अपराध नहीं हो सकता।

ये इस बात का संकेत था कि वीएचपी, हिंदू धर्म में आ चुकी बुराइयों को दूर करने के लिए संस्थागत तौर पर काम करना चाहती थी। इसके अलावा, महिलाओें व बच्चों को शिक्षित करने, उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए वीएचपी ने सांगठनिक तौर पर कार्य किया। इन कार्यों को अंजाम देने के लिए वीएचपी में कई शाखाएं काम करती हैं…

  1. वीएचपी देशभर में एकल विद्यालय चलाती है। इन विद्यालयों का मकसद ग्रामीण, आदिवसाी और पिछड़े वर्ग के लोगों को शिक्षित करना है।
  2. धर्म प्रसार विभाग। इस विभाग का मकसद धर्म में आने वाली रूढ़ियों और बुराइयों के प्रति जागरुक करना है।
  3. सेवा विभाग। यह विभाग, पिछड़े वर्गों के विकास के लिए कार्यक्रम चलाता है।
  4. धर्माचार्य संपर्क विभाग। यह विभाग देश-दुनिया के संतों व धर्माचार्यों से संपर्क रखने और उन्हें जागरूक करने का काम करता है। साथ ही, जातिगत भेदभाव और छुआछूत जैसी बुराइयों के उन्मुलन के लिए प्रयास करता है।
  5. महिला विभाग। यह महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने, उन्हें सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम करता है। इस विभाग के प्रयासों के चलते 1979 के दूसरे विश्व हिंदू सम्मेलन में 50 हजार महिलाओं ने भाग लिया।
  6. बाल संस्कार विभाग
  7. दुर्गा वाहिनी

बता दें कि धार्मिक या जातीय आधार पर होने वाले शोषण और पिछड़ेपन की बातें समय-समय पर सरकारों के द्वारा गठित आयोगों ने भी स्वीकार की हैं। 1953 में काका कालेलकर आयोग ने हिंदुओं में जातीय भेदभाव और पिछड़ेपन की बात कही और उन्हें विशेष आधिकार देने की सिफारिश की थी। हालांकि, इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। बाद में मोरारजी सरकार ने 1978 में मंडल आयोग का गठन किया। आयोग ने हिंदु धर्म में जातीय भेदभाव और पिछडेपन के अलावा धार्मिक पिछड़ेपन का खुलासा किया। मोरारजी सरकार गिर गई और मंडल कमीशन की रिपोर्ट भी धूल फांकने लगी। हालांकि, बाद में वीपी सिंह सरकार ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया।

हिंदु समाज में सामाजिक समरसता की स्थापना के मकसद से बनाए गए वीएचपी को राम मंदिर आंदोलन के दौरान एक खास ढांचे में ढाल कर दिखाने की कोशिश की गई। जबकि, राम मंदिर आंदोलन से जुड़ना वीएचपी की स्थापना का मकसद नहीं था।

संजीव श्रीवास्तव