National Anthem : हिमाचल के वीर सपूत कैप्टन राम सिंह को भुला दिया सरकारों ने , उन्होंने ही रची थी राष्ट्र गान की धुन

National Anthem :
यहां बात हो रही 52 सेकेंड में गाए जाने वाले देश के राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' धुन के जनक कैप्टन राम सिंह ठाकुर की। कांगड़ा जिला के धर्मशाला के निकटवर्ती गांव खनियारा में 15 अगस्त 1914 को जन्में कैप्टन राम सिंह ठाकुर के जीवन पर करीब 20 साल अध्ययन करने वाले हमीरपुर से ताल्लुक रखने वाले राइटर राजेंद्र राजन ने इस महान जननायक के जन-गण-मन धुन के कुछ अनछुए पहलुओं को देश के सामने लाने का प्रयास किया है। 'अनसंग कम्पोज़र ऑफ आईएनए : कैप्टन राम सिंह ठाकुर 'जन-गण-मन' धुन के 'जनक' टाइटल से उन्होंने एक किताब लिखी है जिसमें बहुत सारी दुर्लभ जानकारियां हैं। लगभग सभी जानते हैं कि राष्ट्रगान की शब्दरचना रवींद्र नाथ टैगोर ने 1911 में जॉर्ज पंचम के आगमन पर स्वागत गीत के रूप में की थी। हालांकि उस वक्त इसके बोल कुछ इस तरह से थे 'शुभ सुख चैन की बरखा बरसे, भारत भाग है जागा'। लेकिन न तो आज़ादी से पहले नाहीं स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद किसी ने यह जानने का प्रयास किया कि राष्ट्रगान के संगीतकार कौन थे।National Anthem :
आपको बता दें कि सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में गठित आईएनए के म्यूजि़क डायरेक्टर और बैंड मास्टर कैप्टन राम सिंह ठाकुर ने पहली बार 21 अक्तूबर 1943 में राष्ट्रगान को सिंगापुर की कैपे बिल्डिंग में आईएनए के कौमी तराना के रूप में प्रस्तुत किया था। रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा लिखे यह गीत काफी लंबा था और उसमें संस्कृत के शब्दों का ज्यादा प्रयोग किया गया था। लेकिन आईएनए के मेजर आबिद अली और मुमताज हुसैन ने इसे रूपांतरित करके सरल बनाया। बताते हैं कि सिंगापुर में आईएन का अपना रेडियो स्टेशन था जिसमें यह राष्ट्रगान चलाया जाता था और भारतीयों में आजादी का जज्बा पैदा करता था। हैरानी इस बात को लेकर होती है कि भारत सरकार ने आईएनए के कंपोज किए राष्ट्रगान को भी अपना लिया और उनके तिरंगे को भी लेकिन आईएनए के नायकों को बिसरा दिया। 1928 में लांस नायक के रूप में ब्रिटिश फौज में भर्ती हुए राम सिंह 1942 में सिंगापुर फॉल के बाद आईएनए में भर्ती हो गए थे। 'कदम-कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा' की शब्दरचना व संगीत भी राम सिंह ने तैयार किया था। बताते हैं कि देशभक्ति के कुल 71 गीतों की रचना और उनका संगीत कैप्टन राम सिंह ने तैयार किया था। उनका निधन 15 अप्रैल 2002 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। संविधान सभा ने भी जन-गण-मन को दी थी स्वीकृति बताया जाता है कि आजादी के बाद यह निर्णय लेना कठिन हो रहा था कि राष्ट्रगान जन-गण-मन को बनाया जाए या फिर वंकिंम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित वंदे मातरम को स्वीकृति दी जाए। क्योंकि वंदे मातरम ने भी हिंदुस्तानियों में आजादी का जज्बा पैदा करने में अहम रोल अदा किया था। अगस्त 1948 में जब संविधान की रचना हो रही थी तो संविधान सभा ने भी प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को अपनी सहमति दी थी कि जन-गण-मन को ही राष्ट्रगान के रूप में स्वीकृति दी जाए। प. नेहरू ने मसूरी से बुलाया था कैंप्टन राम सिंह को जानकारी यह भी दी जाती है कि जब 15 अगस्त की रात 12 बजे हिदुंस्तान को आजाद करने की घोषणा की गई थी तो 16 अगस्त की सुबह लालकिले पर तिरंगा लहराया जाना था। कैप्टन राम सिंह उस वक्त अपनी टीम के साथ मसूरी में थे। पंडित नेहरू ने उन्हें स्पेशल तौर पर उन्हें अपनी बैंड टीम सहित मसूरी से बुलाया था। 16 अगस्त को जब लालकिले पर तिरंगा फहराया गया तो राम सिंह ने जन-गन-मन अपनी वायलन पर प्रस्तुत किया था। अभिनेता दिलिप कुमार ने फोटो खिंचवाने की इच्छा जाहिर की थी बताते हैं कि वर्ष 1959 में हिंदी सिनेमा के मशहूर डायरेक्टर नैनीताल में मधुमति फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। जब उन्हें पता लगा था कि कैप्टन राम सिंह ठाकुर भी वहीं हैं तो उन्होंने उन्हें विशेष तौर पर अपने पास बुलाया था। मधुमति फिल्म में बतौर अभिनेता दिलीप कुमार और अभिनेत्री वयजंति माला भूमिका निभा रहीं थी। कहा जाता है कि अभिनेता दिलीप कुमार कैप्टन राम सिंह ठाकुर के इतने बड़े फैन थे कि उन्होंने उनके साथ अपनी फोटो खिंचवाने की इच्छा जाहिर की थी जिसे कैंप्टन सिंह ने स्वीकार किया था। लेखक ने कैप्टन राम सिंह के लिए भारत रतन की मांग की बकौल लेखक राजेंद्र राजन उन्होंने मई 1999 में कैप्टन राम सिंह से भेंटवार्ता की थी जब वे लखनऊ से आखिरी बार हिमाचल आए थे। उन्हें समस्त हिमाचल में सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं ने सम्मानित किया था। वे कहते हैं कि मेरा उद्देश्य राम सिंह के देश के प्रति महान व बहुमूल्य योगदान को प्रकाश में लाना था ताकि मौजूदा और भावी पीढिय़ां यह जान सकें कि उनके वास्तविक हीरो व रोल मॉडल कौन हैं। वे कहते हैं कि जिस महानायक को भारत रतन से नवाजा जाना चाहिए था उन्हें भारत सरकार पद्म श्री, पदम विभूषण और पद्म भूषण जैसे सम्मान तक नहीं दे पाई। लेखक ने पुस्तक के रंगीन कवर के साथ एक पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भेजा है ताकि वे हिमाचल के जननायक के बारे में जान सकें और किसी मंच से राम सिंह के योगदान का जिक्र करें। राजेंद्र राजन ने खेद व्यक्त किया है कि भारत में कांग्रेस, भाजपा व अन्य सरकारों ने भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस तक को भारत रत्न से वंचित रखा। उन्होंने राम सिंह को मरणोपरांत भारत रत्न से विभूषित करने की मांग प्रधानमंत्री से पत्र में की है।अगली खबर पढ़ें
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यहां बात हो रही 52 सेकेंड में गाए जाने वाले देश के राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' धुन के जनक कैप्टन राम सिंह ठाकुर की। कांगड़ा जिला के धर्मशाला के निकटवर्ती गांव खनियारा में 15 अगस्त 1914 को जन्में कैप्टन राम सिंह ठाकुर के जीवन पर करीब 20 साल अध्ययन करने वाले हमीरपुर से ताल्लुक रखने वाले राइटर राजेंद्र राजन ने इस महान जननायक के जन-गण-मन धुन के कुछ अनछुए पहलुओं को देश के सामने लाने का प्रयास किया है। 'अनसंग कम्पोज़र ऑफ आईएनए : कैप्टन राम सिंह ठाकुर 'जन-गण-मन' धुन के 'जनक' टाइटल से उन्होंने एक किताब लिखी है जिसमें बहुत सारी दुर्लभ जानकारियां हैं। लगभग सभी जानते हैं कि राष्ट्रगान की शब्दरचना रवींद्र नाथ टैगोर ने 1911 में जॉर्ज पंचम के आगमन पर स्वागत गीत के रूप में की थी। हालांकि उस वक्त इसके बोल कुछ इस तरह से थे 'शुभ सुख चैन की बरखा बरसे, भारत भाग है जागा'। लेकिन न तो आज़ादी से पहले नाहीं स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद किसी ने यह जानने का प्रयास किया कि राष्ट्रगान के संगीतकार कौन थे।National Anthem :
आपको बता दें कि सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में गठित आईएनए के म्यूजि़क डायरेक्टर और बैंड मास्टर कैप्टन राम सिंह ठाकुर ने पहली बार 21 अक्तूबर 1943 में राष्ट्रगान को सिंगापुर की कैपे बिल्डिंग में आईएनए के कौमी तराना के रूप में प्रस्तुत किया था। रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा लिखे यह गीत काफी लंबा था और उसमें संस्कृत के शब्दों का ज्यादा प्रयोग किया गया था। लेकिन आईएनए के मेजर आबिद अली और मुमताज हुसैन ने इसे रूपांतरित करके सरल बनाया। बताते हैं कि सिंगापुर में आईएन का अपना रेडियो स्टेशन था जिसमें यह राष्ट्रगान चलाया जाता था और भारतीयों में आजादी का जज्बा पैदा करता था। हैरानी इस बात को लेकर होती है कि भारत सरकार ने आईएनए के कंपोज किए राष्ट्रगान को भी अपना लिया और उनके तिरंगे को भी लेकिन आईएनए के नायकों को बिसरा दिया। 1928 में लांस नायक के रूप में ब्रिटिश फौज में भर्ती हुए राम सिंह 1942 में सिंगापुर फॉल के बाद आईएनए में भर्ती हो गए थे। 'कदम-कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा' की शब्दरचना व संगीत भी राम सिंह ने तैयार किया था। बताते हैं कि देशभक्ति के कुल 71 गीतों की रचना और उनका संगीत कैप्टन राम सिंह ने तैयार किया था। उनका निधन 15 अप्रैल 2002 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। संविधान सभा ने भी जन-गण-मन को दी थी स्वीकृति बताया जाता है कि आजादी के बाद यह निर्णय लेना कठिन हो रहा था कि राष्ट्रगान जन-गण-मन को बनाया जाए या फिर वंकिंम चंद्र चटर्जी द्वारा रचित वंदे मातरम को स्वीकृति दी जाए। क्योंकि वंदे मातरम ने भी हिंदुस्तानियों में आजादी का जज्बा पैदा करने में अहम रोल अदा किया था। अगस्त 1948 में जब संविधान की रचना हो रही थी तो संविधान सभा ने भी प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को अपनी सहमति दी थी कि जन-गण-मन को ही राष्ट्रगान के रूप में स्वीकृति दी जाए। प. नेहरू ने मसूरी से बुलाया था कैंप्टन राम सिंह को जानकारी यह भी दी जाती है कि जब 15 अगस्त की रात 12 बजे हिदुंस्तान को आजाद करने की घोषणा की गई थी तो 16 अगस्त की सुबह लालकिले पर तिरंगा लहराया जाना था। कैप्टन राम सिंह उस वक्त अपनी टीम के साथ मसूरी में थे। पंडित नेहरू ने उन्हें स्पेशल तौर पर उन्हें अपनी बैंड टीम सहित मसूरी से बुलाया था। 16 अगस्त को जब लालकिले पर तिरंगा फहराया गया तो राम सिंह ने जन-गन-मन अपनी वायलन पर प्रस्तुत किया था। अभिनेता दिलिप कुमार ने फोटो खिंचवाने की इच्छा जाहिर की थी बताते हैं कि वर्ष 1959 में हिंदी सिनेमा के मशहूर डायरेक्टर नैनीताल में मधुमति फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। जब उन्हें पता लगा था कि कैप्टन राम सिंह ठाकुर भी वहीं हैं तो उन्होंने उन्हें विशेष तौर पर अपने पास बुलाया था। मधुमति फिल्म में बतौर अभिनेता दिलीप कुमार और अभिनेत्री वयजंति माला भूमिका निभा रहीं थी। कहा जाता है कि अभिनेता दिलीप कुमार कैप्टन राम सिंह ठाकुर के इतने बड़े फैन थे कि उन्होंने उनके साथ अपनी फोटो खिंचवाने की इच्छा जाहिर की थी जिसे कैंप्टन सिंह ने स्वीकार किया था। लेखक ने कैप्टन राम सिंह के लिए भारत रतन की मांग की बकौल लेखक राजेंद्र राजन उन्होंने मई 1999 में कैप्टन राम सिंह से भेंटवार्ता की थी जब वे लखनऊ से आखिरी बार हिमाचल आए थे। उन्हें समस्त हिमाचल में सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं ने सम्मानित किया था। वे कहते हैं कि मेरा उद्देश्य राम सिंह के देश के प्रति महान व बहुमूल्य योगदान को प्रकाश में लाना था ताकि मौजूदा और भावी पीढिय़ां यह जान सकें कि उनके वास्तविक हीरो व रोल मॉडल कौन हैं। वे कहते हैं कि जिस महानायक को भारत रतन से नवाजा जाना चाहिए था उन्हें भारत सरकार पद्म श्री, पदम विभूषण और पद्म भूषण जैसे सम्मान तक नहीं दे पाई। लेखक ने पुस्तक के रंगीन कवर के साथ एक पत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भेजा है ताकि वे हिमाचल के जननायक के बारे में जान सकें और किसी मंच से राम सिंह के योगदान का जिक्र करें। राजेंद्र राजन ने खेद व्यक्त किया है कि भारत में कांग्रेस, भाजपा व अन्य सरकारों ने भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस तक को भारत रत्न से वंचित रखा। उन्होंने राम सिंह को मरणोपरांत भारत रत्न से विभूषित करने की मांग प्रधानमंत्री से पत्र में की है।संबंधित खबरें
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