Noida News : जब कोई न सुनेगा दु:ख तब वे ही आएंगे..? श्रीमद् भागवत कथा (Shrimad Bhagwat Katha) हमारे नोएडा शहर में होती ही रहती है। इच्छा मेरी बहुत होती थी जाकर कथा सुनने की। पर ऐसा योग कम ही हुआ। सच्ची और अच्छी बात ये है कि जब पति-पत्नी उम्र दराज हो जाते है तो एक-दूसरे की इच्छा का सम्मान करने लगते हैं। तब ही शुरू होता है परिवरों में भजन पूजन का आगमन। अपने घर में भागवत कथा का आयोजन करना यह अपने आप में एक बहुत बड़ा काम है। भागवत कथा कभी भी कोई व्यक्ति अकेले नहीं रख सकता। इसके लिए पूरा घर, बल्कि, कुनबा, अड़ोस-पड़ोस मिलता है। सब मिलकर काम करने को तैयार होते हैं।
बाकी कौन सी बात कैसे रखी जाए कहां कही जाए? किस प्रकार श्रवणकर्ताओं की उत्सुकता को देखकर क्या बोलना है? शब्दों की य़ह कला हमें श्रीमद् भागवत कथा कहने वाले शास्त्रियों से सीखनी चाहिए। उनके सामने हर उम्र के लोग बैठे होते हैं और वे सभी सुनते हैं। भागवत कथा थोड़ा लंबे समय तक चलती है इसके भी अनेक लाभ श्रोता पाते हैं। कुछ ऐसे वरिष्ठ नागरिक, युवा भी हो सकते हैं जिनको घर में जल्दी नींद नहीं आती। संगीतमय भागवत कथा में वे खर्राटे मार-मार कर सो रहे होते हैं। जैसे ही पंडित जी कहते हैं। राधे-राधे वे अपने हाथ फौरन ऊपर उठा देते हैं। बच्चे भी भागदौड़ करके खेलते रहते हैं और संगीतमय भागवत की धुन पर ही वे भागते हैं। या लोट लगते हैं। सुदेश तथा कृष्ण शर्मा के यहां भी भागवत कथा हुई। जिसमें कथा वाचक राजीव शास्त्री यह बात बोल रहे थे कि आपके पास जो भी संपत्ति है उसका कभी घमंड नहीं करना चाहिए। क्योंकि जब आप बीमार पड़ते हैं तो आपका धन या संपत्ति आप पर खर्च करके आपका इलाज करवाना है इसका निर्णय तो दूसरे लोग लेते हैं।
श्रीमद् भागवत कथा (Shrimad Bhagwat Katha) संस्कृत में लिखी गई है। जिसमें 18000 संस्कृत के श्लोक हैं। इसमें संसार में बैठे हुए जीवों की आत्मा को जागृत करना ही इसका मुख्य विषय है। जिसको जहां, जैसी भी शिक्षा मिले उसे हमेशा शांत होकर ले, पर होता यह है कि हमारे घर में धर्म ग्रंथ रामायण, गीता, भागवत कथा, शिव पुराण इत्यादि रखे रहते हैं। उन पर धूल पड़ती रहती है लेकिन हम कभी भी उनकी और अग्रसर नहीं होते। घर के वरिष्ठ ही उनको पढ़ते हैं। यद्यपि वे बच्चों को ज्ञान देना चाहते हैं, पर कोई ले तो? जैसे कि हमारे घर की दीवार पर चलती छिपकली समझती है कि यह घर उसका है। उसी घर में कोई नया चूहा आ जाए तो पुराने रहने वाले चूहे कहेंगे कि यह घर तो हमारा है, हम कहते हैं कि यह हमारा घर है। भागवत कथा पढऩे या श्रवण करने से इस प्रकार के मोह को ब्रेक लगता है। क्योंकि ज्यादातर वरिष्ठ ही सुनते हैं तो वे मोक्ष की ओर अग्रसर होने लगते हैं। व्यास जी के अनुसार श्रीमद्भागवत कथा अपने आप में पूरी राजनीति सिखाती है। इसका बहुत अच्छा उदाहरण है राजा धृतराष्ट्र जो की अंधे थे। नरेश तो बन ही नहीं सकते थे, तो कार्यवाहक राजा ही बने। अपने बड़े भाई की इतनी महत्वाकांक्षा को समझकर पांडू तो वन को ही चले गए। सब ही समझदार हैं जानते हैं वनों में मिलता क्या है जीने को? अब देखने की बात यह भी है कि कार्यवाहक राजा धृतराष्ट्र के 100 पुत्र कभी भी वन में भटकने को नहीं गए। उन्होंने पूरा राज भोगा जो राजा था यानि पाण्डु वह खुद भी वन में मारा गया। उसके पुत्र पांडव भी सारी जिंदगी वन में ही भटकते रहे। राजा धृतराष्ट्र जो की अंधे थे। उनका स्वभाव भी बहुत ही विचित्र था। भगवान श्री कृष्ण ने भी इस बात की और इंगित किया था कि अंधा होने पर भी उनका विवाह गंधार की बुद्धिमती खूबसूरत राजकुमारी गंधारी से हुआ। राजकुमारी ने आते ही आंखों पर पट्टी बांध ली। हो सकता है उस विद्वान राजकुमारी को इसमें ही जीवन नजर आया हो? इसके बावजूद भी तो गांधारी के पूरे परिवर को ही धृतराष्ट्र ने जेल में डाल दिया। यह कहकर की मेरे साथ (धृतराष्ट्र) धोखा हुआ है। गांधारी का तो पहले भी विवाह एक बकरे के साथ हो रखा था।
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आज भी समाज में स्वार्थ भरी राजनितियां हमें खूब देखने को मिलती हैं। जो भागवत कथा को सुन या पढ़ लेते हैं वह इन बातों को सीखते हैं। क्योंकि परेशानी कोई भी हो उससे टूटना यह कोई सही रास्ता नहीं है। क्योंकि कमजोर हम नहीं होते, वक्त होता है और वक्त की फितरत ही है कि मेहनत करने से वह बदलता भी है। सौभाग्यवती महिलाएं जो कलश उठाती हैं वे हर रोज कथा सुनती हैं, अपने परिवरों से जुड़ती हैं।
आजकल सर्दी है कथा खत्म होने से पहले ही बी.एस. शर्मा तथा आरती ने कहा आप सभी चाय पी कर जाएंगे और चाय के साथ नाश्ता सबको खिलाना शुरू कर दिया। साथ ही इंदु शर्मा ने कहा कल की चाय मेरी ओर से। इससे समाज जुड़ता है सब मिलेंगे जुडेंगे। बड़ी बात यह है कि आजकल जिस युग में डिप्रेशन इत्यादि बीमारी हैं। सारे लोग एक साथ मिलकर बैठते हैं, काम करते हैं, दोस्तियां बढ़ती हैं, बच्चे आपस में खेलते हैं। तो डिप्रेशन और एंजाइटी के लिए जगह ही कहाँ बचती है। क्योंकि कमली वाला कान्हा सबको कोई न कोई अपना या यार दे ही देता है। Noida News :
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