दैनिक राशिफल 4 नवंबर 2021- जानिए क्या कहते हैं आज आपके सितारे

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calendar30 Nov 2025 02:03 PM
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4 नवंबर 2021- (गुरुवार) (Rashifal 4 November 2021) जानते हैं आपके दैनिक राशिफल (Dainik Rashifal) के मुताबिक कैसा बीतने वाला है आज आपका दिन-

मेष राशि -साझेदारी में किए गए काम में सफलता मिलेगी। करीबी जनों से मुलाकात की योग बनते दिखाई दे रहे हैं। बेवजह की खर्चों से बचने की आवश्यकता है। पारिवारिक माहौल खुशनुमा रहेगा। जीवन साथी और बच्चों का भरपूर सहयोग मिलेगा। आर्थिक दृष्टि से भी आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण है

वृषक राशि - कार्यक्षेत्र में सम्मान मिलेगा। अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग कर सकते हैं। रुके हुए काम पूरे होंगे। दान पुण्य में धन खर्च हो सकता है। मन के भाव को नियंत्रित रखें।

मिथुन राशि -कलात्मक कार्यों में रुचि लेंगे। व्यापार में लाभ के योग बनते दिखाई दे रहे हैं। परिवार में बिगड़े हुए संबंध सुधरेंगे। लंबे समय से चले आ रहे हैं कलह का अंत होगा। मन प्रसन्न रहेगा। सर्दी जुकाम जैसी समस्या हो सकती है।

कर्क राशि- शत्रु को परास्त करने में सफल होंगे। आर्थिक लाभ की संभावना है। कोर्ट कचहरी के मामले में फायदा मिल सकता है। पारिवारिक माहौल खुशनुमा रहेगा। बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद मिलेगा।

सिंह राशि- सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेंगे। नई योजनाओं के साथ व्यापार को नई दिशा देने की कोशिश करेंगे। धन या वाहन का क्रय कर सकते हैं। दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने से पहले सोच विचार कर ले।

कन्या राशि -आज का दिन सामान्य बिकने वाला है। बच्चों की पढ़ाई के क्षेत्र में धन व्यय होने की संभावना है। कार्य कार्य क्षेत्र में पूरी लगन के साथ काम करेंगे। सायं काल में किसी धार्मिक कार्य में हिस्सा ले सकते हैं। जीवन साथी के साथ संबंध मधुर होंगे।

तुला राशि - नौकरी पेशा लोगों की मान सम्मान में बढ़ोतरी होगी। मेहनत का मन मुताबिक फल मिलेगा। व्यापार में नए निवेश की संभावना है। आर्थिक लाभ मिलने की संभावना है। परिवार में कलह हो सकता है।

वृश्चिक राशि -कार्यक्षेत्र में एकाग्रता में कमी आएगी। संचित धन खर्च हो सकता है। मित्रों का सहयोग मिलेगा। पुराने मित्रों से मुलाकात हो सकती है। जीवनसाथी का भरपूर साथ मिलेगा। स्वास्थ्य उत्तम रहेगा।

धनु राशि - कार्य क्षेत्र में उलझनों का सामना करना पड़ सकता है। पारिवारिक माहौल सामान्य रहेगा। जीवनसाथी से थोड़ी अनबन हो सकती है। क्रोध पर नियंत्रण रखें। बेवजह के खर्चे से बचें।

मकर राशि -कार्य अथवा व्यवसाय से संबंधित बड़ा फैसला ले सकते हैं। कार्यस्थल पर बड़े अधिकारियों के साथ संबंध मधुर होंगे। मां लक्ष्मी की विशेष कृपा मिलेगी। बेवजह खर्च करने से बचें।

कुंभ राशि -लंबे समय से चली आ रही परेशानियों का अंत होगा। मन शांत रहेगा। परिवार के साथ समय बिताने का मौका मिलेगा। आर्थिक लाभ मिलने की संभावना है। स्वास्थ्य सामान्य रहेगा। छोटी मोटी तकलीफें हो सकती हैं।

मीन राशि - बड़े बुजुर्गों के सलाह से कार्य क्षेत्र में सफलता मिलेगी।आर्थिक स्थिति मजबूत रहेगी भाग्य का पूरा साथ मिलेगा। परिवारिक माहौल खुशनुमा रहेगा। वैवाहिक जीवन में नवीनता आएगी।

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महापर्व : धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता वाली है दीपावली!

Diya
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calendar30 Nov 2025 04:56 PM
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 विनय संकोची

दीपावली! आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का पर्व है, उत्सव है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों प्रकार से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत अथवा क्षेत्र में दीपावली मनाने के कारण व तरीके अलग हैं लेकिन सभी जगह पीढ़ियों से यह महापर्व मनाया जा रहा है।

'रामायण' में बताया गया है कि लोग दीपावली को चौदह साल के वनवास के पश्चात भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की अयोध्या वापसी के सम्मान में मनाते हैं। 'महाभारत' के अनुसार दीपावली बारह वर्षों के वनवास व एक वर्ष के अज्ञातवास के उपरांत पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मनाते हैं। कुछ लोग इस पर्व को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीवाली पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है।

मान्यता है कि दीपावली की रात को ही लक्ष्मी ने श्री हरि विष्णु को अपने पति के रूप में चुना था और फिर उनसे विधिवत विवाह किया था। कुछ लोग दीपावली को विष्णु की वैकुंठ वापसी के रूप में मनाते हैं। कृष्णभक्ति धारा के भक्तों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी दुराचारी राजा नरकासुर का वध किया था। नृशंस राक्षस नरकासुर के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्न लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा यह भी है कि श्री हरि विष्णु ने नृसिंह का रूप धारण कर हिरण्यकश्यप का वध भी इसी दिन किया था। भारत के कुछ पश्चिम और उत्तरी भागों में भी दीपावली का पर्व एक नए हिंदू वर्ष की शुरुआत के रूप का प्रतीक है।

पदम पुराण और स्कंद पुराण में दीपावली का उल्लेख मिलता है। दीपक को स्कंद पुराण में सूर्य के अंश का प्रतिनिधित्व करने वाला बताया गया है। कुछ क्षेत्रों में हिंदू दीवाली को यम और नचिकेता की कथा जो ज्ञान बनाम अज्ञान, उचित बनाम अनुचित, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है, से जोड़कर मनाते हैं।

फारसी यात्री और इतिहासकार अलबरूनी ने भारत पर अपने ग्यारहवीं सदी के संस्मरण में दीवाली को कार्तिक माह में नए चंद्रमा के दिन हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले त्योहार बताया है।

जैन मतावलंबियों के अनुसार चौवीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी को दीपावली के दिन ही मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। जैन समाज दीपावली महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाता है। अन्य संप्रदायों से जैन दीपावली पूजन विधि पूरी तरह अलग है।

सिखों के लिए भी दीपावली बहुत महत्व रखती है, क्योंकि यही वह दिन था जब अमृतसर में 1577 में पवित्र स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था। इसके अतिरिक्त 1619 में दीवाली के दिन ही सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।

पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ जी का जन्म और महाप्रयाण दोनों ही दीपावली के दिन हुआ। स्वामी जी ने दीपावली के दिन गंगा तट पर स्नान करते ओम का उच्चारण करते हुए समाधि ली।

आर्य समाज के संस्थापक भारतीय संस्कृति के महान जननायक स्वामी दयानंद सरस्वती ने दीपावली के दिन ही अजमेर के निकट प्राण त्यागे थे।

मुगल सम्राट अकबर के शासन में दौलतखाने के सामने चालीस गज ऊंचे बांस का पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। जहांगीर भी धूमधाम से दीवाली मनाते थे। अंतिम मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में हिस्सा लेते थे। शाह आलम के समय पूरे शाही महल को दीपकों से सजाया जाता था और लाल किले में आयोजित कार्यक्रमों में हिंदू-मुसलमान दोनों ही उत्साह से हिस्सा लेते थे।

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धर्म - अध्यात्म : सदाचार द्वारा प्रकट होती है धार्मिकता!

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calendar04 Nov 2021 06:21 AM
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विनय संकोची

सुख और शांति से जीवन जीने के जो नियम हैं, वही धर्म है। वेदों में एक शब्द आता है 'ऋतु' और इसका अर्थ है - विधान। इसका अर्थ है कि धर्म का मार्ग है जेड विधान। चीनी विद्वान लाओत्से ने वेदों के 'ऋतु' का नाम बताया 'ताओ'-जिसका अर्थ है - नियम। 'ऋतु' और 'ताओ' के आधार पर यह बात साफ हो जाती है कि धर्म का मतलब है, ऐसे नियम जिनका पालन करने पर सुख, शांति, समृद्धि, संपन्नता, उपलब्ध होंगे और नियम विधान का पालन न करने पर, उनकी उपेक्षा करने पर, दु:ख और अशांति को प्राप्त होंगे।

मनुष्य ऐहिक और पारलौकिक सुख और शांति की स्वाभाविक चाहत के साथ संसार में आता है। मनुष्य सुख और शांति से जीना चाहता है, लेकिन यह तभी संभव है जब वह विधान - नियम के रूप में धर्म का पालन करे। मनुष्य सुख तो चाहता है, शांति की इच्छा तो रखता है लेकिन नियमों के बंधन में बंधना उसे अच्छा नहीं लगता है। वह पंख फैलाकर स्वतंत्र रूप से उड़ना चाहता है, यही चाहत उसके दु:खों और अशांति का कारण बन जाती है।

धर्म का सबसे विशेष उपयोगी तत्व उसका आचरण है। जब मनुष्य के शुभ संकल्प दैनिक कार्यों में और उसके व्यवहार में प्रकट होते हैं तो वह सदाचार कहा जाता है। सदाचार का अर्थ है उत्तम या उपयोगी आचरण। यह निर्विवाद सत्य है कि धार्मिकता सदाचार द्वारा प्रकट होती है।

मनुष्य का जीवन गुण दोषों से भरा पूरा है जितने अंशों में गुण होते हैं, उतने ही अंशों में दोषों को भी मानना चाहिए। यह मनुष्य के आचरण और व्यवहार पर निर्भर करता है कि वह गुणों को प्रकट कर प्रशंसा का पात्र बनता है या फिर दोषों को उजागर करता है। अच्छे बुरे धार्मिक अधार्मिक की यही कसौटी है। चाणक्य नीति कहती है - 'सोने की परख जैसे कसौटी पर कसकर, काटकर, पकाकर और पीटकर की जाती है, वैसे ही पुरुष की परख उसके ज्ञान, त्याग, कुल और शील से की जाती है।' ज्ञान, त्याग और शील आचार - सदाचार के ही प्रमुख अंग हैं। सदाचार को ऋषि-मुनियों ने परम धर्म कहा है और वेदों ने विधान पालन को धर्म की संज्ञा से विभूषित किया है। आचरण और सदाचरण विधान पालन के बिना संभव नहीं है। इस दृष्टि से दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं और पृथक - पृथक व संयुक्त रूप से धर्म कहलाते हैं।

ज्यों - ज्यों मनुष्य का विकास होता है, त्यों - त्यों आचरण पुष्ट होता है और गुणों में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। सदाचारी मनुष्य ही सही दिशा में आगे बढ़ने का सार्थक प्रयास करता है। सही दिशा में आगे बढ़ने का अर्थ है, विकारों से मुक्त और गुणों का सद्कार्यों के माध्यम से प्रकाशित होना। सद्कर्मों से ही पता चलता है कि मनुष्य देवत्व के कितने निकट पहुंच गया है और मनुष्य के बुरे कर्म ही घोषणा करते हैं कि वह पतन की खाई के कितने पास पहुंच गया है। मनुष्य के जीवन शिखर की पताका बनने का निर्णय भी इसके सत्कर्म ही करते हैं। सदाचार का सीधा संबंध विचार से है पहले विचार तब आचार इस प्रकार 'असतो मा सद्गमय'- असत्य विचारों से निकलकर हम चलते हैं सद्विचारों की ओर। सद्विचारों की ओर चलना ही प्रकृति का नियम है, विधान है और इसका अनुपालन ही धर्म है। मन को संयम में बांधकर आत्म संयम तथा अभ्यास सद्विचार धर्म का पालन करना कठिन नहीं है, परंतु प्रयास तो करना ही होगा। प्रयास पथ पर अग्रसर होने की रूचि का विकसित होना धार्मिकता की ओर बढ़ने का सबसे अच्छा संकेत है।