नीरस होती, होली की मस्ती,  रंग-गुलाल लगाया और हो गई होली

Holi 1
Holi 2024
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 07:23 PM
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Holi 2024 : होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिसे हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते रहे हैं। होली (Holi) के दिन सभी बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते थे। लेकिन सामाजिक भाईचारे और आपसी प्रेम और मेलजोल का होली का यह त्याेहार भी अब बदलाव का दौर देख रहा है। फाल्गुन की मस्ती का नजारा अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। कुछ सालों से फीके पड़ते होली के रंग अब उदास कर रहे हैं। शहर के बुजुर्गों का कहना है कि ‘ न हंसी- ठिठोली, न हुड़दंग, न रंग, न ढप और न भंग’ ऐसा क्या फाल्गुन? न पानी से भरी ‘खेली’ और न ही होली का .....रे का शोर। अब कुछ नहीं, कुछ घंटों की रंग-गुलाल के बाद सब कुछ शांत। होली की मस्ती में अब वो रंग नहीं रहे। आओ राधे खेला फाग होली आई....ताम्बा पीतल का मटका भरवा दो...सोना रुपाली लाओ पिचकारी...के स्वर धीरे धीरे धीमे हो गए हैं।
फाल्गुन लगते ही होली का हुड़दंग शुरू हो जाता था। मंदिरों में भी फाल्गुन आते ही ‘फाग’ शुरू हो जाता था। होली के लोकगीत गूंजते थे। शाम होते ही ढप-चंग के साथ जगह-जगह फाग के गीतों पर पारंपरिक नृत्य की छटा होली के रंग बिखेरती थी। होली खेलते समय पानी की खेली में लोगों को पकडक़र डाल दिया जाता था। कोई नाराजगी नहीं, सब कुछ खुशी-खुशी होता था। वसन्त पंचमी से होली की तैयारियां करते थे। चौराहो पर समाज के नोहरे व मंदिरों में चंग की थाप के साथ होली के गीत गूंजते।  रात को चंग की थाप पर गैर नृत्य का आकर्षण था। बाहर से फाल्गुन के गीत व रसिया गाने वाले रात में होली की मस्ती में गैर नृत्य करते थे।
[caption id="attachment_148935" align="aligncenter" width="800"]Holi 2024 Holi 2024[/caption]
पहले की होली और आज की होली में अंतर आ गया है, कुछ साल पहले होली के पर्व को लेकर लोगों को उमंग रहता था, आपस में प्रेम था। किसी के भी प्रति द्वेष भाव नहीं था। आपस में मिल कर लोग प्रेम से होली खेलते थे।  मनोरंजन के अन्य साधानों के चलते लोगों की परंपरागत लोक त्यौहारों के प्रति रुचि कम हुई है। इसका कारण लोगों के पास समय कम होना है। होली आने में महज कुछ ही दिन शेष हैं, लेकिन शहर में होली के रंग कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। एक माह तो दूर रहा अब तो होली की मस्ती एक-दो दिन भी नहीं रही। मात्र आधे दिन में यह त्योहार सिमट गया है। रंग-गुलाल लगाया और हो गई होली।
जैसे-जैसे परंपराएं बदल रही हैं, रिश्‍तों का मिठास खत्‍म होता जा रहा है। जहां तक होली का सवाल है तो अब मोबाइल और इंटरनेट पर ही ‘Happy Holi’ शुरू होती है और खत्‍म हो जाती है। अब पहले जैसा वो हर्षोल्‍लास नहीं रह गया है। पहले बच्चे टोलियां बनाकर गली-गली में हुड़दंग मचाते थे। होली के 10-12 दिन पहले ही मित्रों संग होली का हुड़दंग और गली-गली होली का चंदा इकट्ठा करना और किसी पर बिना पूछे रंग उड़ेल देने से एक अलग प्‍यार दिखता था। इस दौरान गाली देने पर भी लोग उसे हंसी में उड़ा देते थे। अब तो लोग मारपीट पर उतारू हो जाते हैं।

Holi 2024

पहले परायों की बहू-बेटियों को लोग बिल्कुल अपने जैसा समझते थे। पूरा दिन घरों में पकवान बनते थे और मेहमानों की आवभगत होती थी। अब तो सबकुछ बस घरों में ही सिमट कर रह गया है। आजकल तो मानों रिश्तों में मेल-मिलाप की कोई जगह ही नहीं रह गई हो। मन आया तो औपचारिकता में फोन पर हैप्‍पी होली कहकर इतिश्री कर लिए। अब रिश्‍तों में वह मिठास नहीं रह गया है। यही वजह है कि लोग अपनी बहू-बेटियों को किसी परिचित के यहां जाने नहीं देते। पहले घर की लड़कियां सबके घर जाकर खूब होली की हुल्‍लड़ मचाती थीं। अब माहौल ऐसा हो गया है कि यदि कोई लड़की किसी रिश्‍तेदार के यहां ही ज्‍यादा देर तक रुक गई तो परिवार के लोग चिंतित हो जाते हैं कि क्‍यों इतना देर हो गया। तुरंत फोन करके पूछने लगते हैं कि क्‍या कर रही हो, तुम जल्‍दी घर आओ। क्‍यों अब लोगों को रिश्‍तों पर भी उतना भरोसा नहीं रह गया है।
दूसरी ओर, होली  (Holi) के दिन खान-पान में भी अब अंतर आ गया है। गुझि‍या, पूड़ी-कचौड़ी, आलू दम, महजूम (खोवा) आदि मात्र औपचारिकता रह गई है। अब तो होली के दिन भी मेहमानों को कोल्‍ड ड्रिंक्‍स और फास्‍ट फूड जैसी चीजों को परोसा जाने लगा है। वहीं, होलिका के चारों तरफ सात फेरे लेकर अपने घर के सुख शांति की कामना करना, वो गोबर के विभिन्न आकृति के उपले बनाना, दादी-नानी का मखाने वाली माला बनाना, रंग-बिरंगे ड्रेसअप में अपनी सखी-सहेलियों संग घर-घर मिठाई बांटना, गेहूं के पौधे भूनना और होली के लोकगीतों को गाना। अब यह सब परंपराएं तो मानो नाम की ही रह गई हैं।
[caption id="attachment_148934" align="aligncenter" width="800"]Holi 2024 Holi 2024[/caption]
 होली (Holi) रोपण के बाद से होली की मस्ती शुरू हो जाती थी। छोटी बच्चियां गोबर से होली के लिए वलुडिये बनाती थी। उसमें गोबर के गहने, नारियल, पायल, बिछियां आदि बनाकर माला बनाती थी। अब यह सब नजर नही आता है। होली से पूर्व घरों में टेशु व पलाश के फूलों को पीस कर रंग बनाते थे। महिलाएं होली के गीत गाती थी। होली के दिन गोठ भी होती थी जिसमें चंग की थाप पर होली के गीत गाते थे। होली रोपण से पूर्व बसंत पंचमी से फाग के गीत गूंजने लगते थे। आज के समय कुछ मंदिरों में ही होली के गीत सुनाई देते हैं। होली के दिन कई समाज के लोग सामूहिक होली खेलने निकलते थे। साथ में ढोलक व चंग बजाई जाती थी, अब वह मस्ती-हुड़दंग कहां?
अब होली (Holi) केवल परंपरा का निर्वहन रह गया है। हाल के समय में समाज में आक्रोश और नफरत इस कदर बढ़ गई है कि सभ्रांत परिवार होली के दिन निकलना नहीं चाहते हैं। लोग साल दर साल से जमकर होली मनाते आ रहे हैं। इस पर्व का मकसद कुरीतियों व बुराइयों का दहन कर आपसी भाईचारा को कायम रखना है। आज भारत देश मे समस्यायों का अंबार लगा हुआ है। बात सामाजिक असमानता की करें, इसके कारण समाज में आपसी प्रेम, भाईचारा, मानवता, नैतिकता खत्म होती जा रही हैं। कभी होली पर्व का अपना अलग महत्व था, होलिका दहन पर पूरे परिवार के लोग एक साथ मौजूद रहते थे। और होली के दिन एक दूसरे को रंग लगा व अबीर उड़ा पर्व मनाते थे। लोगों की टोली भांग की मस्ती में फगुआ गीत गाते व घर-घर जाकर होली का प्रेम बांटते थे।
 अब हालात यह है कि होली के दिन 40 फीसदी आबादी खुद को कमरे में बंद कर लेती है। हर माह, हर ऋतु किसी न किसी त्योहार के आने का संदेसा लेकर आती है और आए भी क्यों न, हमारे ये त्योहार हमें जीवंत बनाते हैं, ऊर्जा का संचार करते हैं, उदास मनों में आशा जागृत करते हैं। अकेलेपन के बोझ को थोड़ी देर के लिए ही सही, कम करके साथ के सलोने अहसास से परिपूर्ण करते हैं, यह उत्सवधर्मिता ही तो है जो हमारे देश को अन्य की तुलना में एक अलग पहचान, अस्मिता प्रदान करती है। होली पर समाज में बढ़ते द्वेष भावना को कम करने के लिए मानवीय व आधारभूत अनिवार्यता की दृष्टि से देखना होगा।  Holi 2024
-प्रियंका सौरभ 
ग्रेटर नोएडा– नोएडा की खबरों से अपडेट रहने के लिए चेतना मंच से जुड़े रहें। देशदुनिया की लेटेस्ट खबरों से अपडेट रहने के लिए हमेंफेसबुकपर लाइक करें याट्विटरपर फॉलो करें।
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Holi 2024 : होली एक ऐसा रंगबिरंगा त्योहार है, जिसे हर धर्म के लोग पूरे उत्साह और मस्ती के साथ मनाते रहे हैं। होली (Holi) के दिन सभी बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते थे। लेकिन सामाजिक भाईचारे और आपसी प्रेम और मेलजोल का होली का यह त्याेहार भी अब बदलाव का दौर देख रहा है। फाल्गुन की मस्ती का नजारा अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। कुछ सालों से फीके पड़ते होली के रंग अब उदास कर रहे हैं। शहर के बुजुर्गों का कहना है कि ‘ न हंसी- ठिठोली, न हुड़दंग, न रंग, न ढप और न भंग’ ऐसा क्या फाल्गुन? न पानी से भरी ‘खेली’ और न ही होली का .....रे का शोर। अब कुछ नहीं, कुछ घंटों की रंग-गुलाल के बाद सब कुछ शांत। होली की मस्ती में अब वो रंग नहीं रहे। आओ राधे खेला फाग होली आई....ताम्बा पीतल का मटका भरवा दो...सोना रुपाली लाओ पिचकारी...के स्वर धीरे धीरे धीमे हो गए हैं।
फाल्गुन लगते ही होली का हुड़दंग शुरू हो जाता था। मंदिरों में भी फाल्गुन आते ही ‘फाग’ शुरू हो जाता था। होली के लोकगीत गूंजते थे। शाम होते ही ढप-चंग के साथ जगह-जगह फाग के गीतों पर पारंपरिक नृत्य की छटा होली के रंग बिखेरती थी। होली खेलते समय पानी की खेली में लोगों को पकडक़र डाल दिया जाता था। कोई नाराजगी नहीं, सब कुछ खुशी-खुशी होता था। वसन्त पंचमी से होली की तैयारियां करते थे। चौराहो पर समाज के नोहरे व मंदिरों में चंग की थाप के साथ होली के गीत गूंजते।  रात को चंग की थाप पर गैर नृत्य का आकर्षण था। बाहर से फाल्गुन के गीत व रसिया गाने वाले रात में होली की मस्ती में गैर नृत्य करते थे।
[caption id="attachment_148935" align="aligncenter" width="800"]Holi 2024 Holi 2024[/caption]
पहले की होली और आज की होली में अंतर आ गया है, कुछ साल पहले होली के पर्व को लेकर लोगों को उमंग रहता था, आपस में प्रेम था। किसी के भी प्रति द्वेष भाव नहीं था। आपस में मिल कर लोग प्रेम से होली खेलते थे।  मनोरंजन के अन्य साधानों के चलते लोगों की परंपरागत लोक त्यौहारों के प्रति रुचि कम हुई है। इसका कारण लोगों के पास समय कम होना है। होली आने में महज कुछ ही दिन शेष हैं, लेकिन शहर में होली के रंग कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। एक माह तो दूर रहा अब तो होली की मस्ती एक-दो दिन भी नहीं रही। मात्र आधे दिन में यह त्योहार सिमट गया है। रंग-गुलाल लगाया और हो गई होली।
जैसे-जैसे परंपराएं बदल रही हैं, रिश्‍तों का मिठास खत्‍म होता जा रहा है। जहां तक होली का सवाल है तो अब मोबाइल और इंटरनेट पर ही ‘Happy Holi’ शुरू होती है और खत्‍म हो जाती है। अब पहले जैसा वो हर्षोल्‍लास नहीं रह गया है। पहले बच्चे टोलियां बनाकर गली-गली में हुड़दंग मचाते थे। होली के 10-12 दिन पहले ही मित्रों संग होली का हुड़दंग और गली-गली होली का चंदा इकट्ठा करना और किसी पर बिना पूछे रंग उड़ेल देने से एक अलग प्‍यार दिखता था। इस दौरान गाली देने पर भी लोग उसे हंसी में उड़ा देते थे। अब तो लोग मारपीट पर उतारू हो जाते हैं।

Holi 2024

पहले परायों की बहू-बेटियों को लोग बिल्कुल अपने जैसा समझते थे। पूरा दिन घरों में पकवान बनते थे और मेहमानों की आवभगत होती थी। अब तो सबकुछ बस घरों में ही सिमट कर रह गया है। आजकल तो मानों रिश्तों में मेल-मिलाप की कोई जगह ही नहीं रह गई हो। मन आया तो औपचारिकता में फोन पर हैप्‍पी होली कहकर इतिश्री कर लिए। अब रिश्‍तों में वह मिठास नहीं रह गया है। यही वजह है कि लोग अपनी बहू-बेटियों को किसी परिचित के यहां जाने नहीं देते। पहले घर की लड़कियां सबके घर जाकर खूब होली की हुल्‍लड़ मचाती थीं। अब माहौल ऐसा हो गया है कि यदि कोई लड़की किसी रिश्‍तेदार के यहां ही ज्‍यादा देर तक रुक गई तो परिवार के लोग चिंतित हो जाते हैं कि क्‍यों इतना देर हो गया। तुरंत फोन करके पूछने लगते हैं कि क्‍या कर रही हो, तुम जल्‍दी घर आओ। क्‍यों अब लोगों को रिश्‍तों पर भी उतना भरोसा नहीं रह गया है।
दूसरी ओर, होली  (Holi) के दिन खान-पान में भी अब अंतर आ गया है। गुझि‍या, पूड़ी-कचौड़ी, आलू दम, महजूम (खोवा) आदि मात्र औपचारिकता रह गई है। अब तो होली के दिन भी मेहमानों को कोल्‍ड ड्रिंक्‍स और फास्‍ट फूड जैसी चीजों को परोसा जाने लगा है। वहीं, होलिका के चारों तरफ सात फेरे लेकर अपने घर के सुख शांति की कामना करना, वो गोबर के विभिन्न आकृति के उपले बनाना, दादी-नानी का मखाने वाली माला बनाना, रंग-बिरंगे ड्रेसअप में अपनी सखी-सहेलियों संग घर-घर मिठाई बांटना, गेहूं के पौधे भूनना और होली के लोकगीतों को गाना। अब यह सब परंपराएं तो मानो नाम की ही रह गई हैं।
[caption id="attachment_148934" align="aligncenter" width="800"]Holi 2024 Holi 2024[/caption]
 होली (Holi) रोपण के बाद से होली की मस्ती शुरू हो जाती थी। छोटी बच्चियां गोबर से होली के लिए वलुडिये बनाती थी। उसमें गोबर के गहने, नारियल, पायल, बिछियां आदि बनाकर माला बनाती थी। अब यह सब नजर नही आता है। होली से पूर्व घरों में टेशु व पलाश के फूलों को पीस कर रंग बनाते थे। महिलाएं होली के गीत गाती थी। होली के दिन गोठ भी होती थी जिसमें चंग की थाप पर होली के गीत गाते थे। होली रोपण से पूर्व बसंत पंचमी से फाग के गीत गूंजने लगते थे। आज के समय कुछ मंदिरों में ही होली के गीत सुनाई देते हैं। होली के दिन कई समाज के लोग सामूहिक होली खेलने निकलते थे। साथ में ढोलक व चंग बजाई जाती थी, अब वह मस्ती-हुड़दंग कहां?
अब होली (Holi) केवल परंपरा का निर्वहन रह गया है। हाल के समय में समाज में आक्रोश और नफरत इस कदर बढ़ गई है कि सभ्रांत परिवार होली के दिन निकलना नहीं चाहते हैं। लोग साल दर साल से जमकर होली मनाते आ रहे हैं। इस पर्व का मकसद कुरीतियों व बुराइयों का दहन कर आपसी भाईचारा को कायम रखना है। आज भारत देश मे समस्यायों का अंबार लगा हुआ है। बात सामाजिक असमानता की करें, इसके कारण समाज में आपसी प्रेम, भाईचारा, मानवता, नैतिकता खत्म होती जा रही हैं। कभी होली पर्व का अपना अलग महत्व था, होलिका दहन पर पूरे परिवार के लोग एक साथ मौजूद रहते थे। और होली के दिन एक दूसरे को रंग लगा व अबीर उड़ा पर्व मनाते थे। लोगों की टोली भांग की मस्ती में फगुआ गीत गाते व घर-घर जाकर होली का प्रेम बांटते थे।
 अब हालात यह है कि होली के दिन 40 फीसदी आबादी खुद को कमरे में बंद कर लेती है। हर माह, हर ऋतु किसी न किसी त्योहार के आने का संदेसा लेकर आती है और आए भी क्यों न, हमारे ये त्योहार हमें जीवंत बनाते हैं, ऊर्जा का संचार करते हैं, उदास मनों में आशा जागृत करते हैं। अकेलेपन के बोझ को थोड़ी देर के लिए ही सही, कम करके साथ के सलोने अहसास से परिपूर्ण करते हैं, यह उत्सवधर्मिता ही तो है जो हमारे देश को अन्य की तुलना में एक अलग पहचान, अस्मिता प्रदान करती है। होली पर समाज में बढ़ते द्वेष भावना को कम करने के लिए मानवीय व आधारभूत अनिवार्यता की दृष्टि से देखना होगा।  Holi 2024
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नरसिंह द्वादशी 2024 का व्रत कैसे करें, जानें पूजा और नरसिंह भगवान की आरती

Narasimha Dwadashi
Narasimha Dwadashi
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 01:37 AM
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Narasimha Dwadashi : नरसिंह द्वादशी का व्रत फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि  के दिन रखा जाता है. इस दिन को नृसिंह द्वादशी के रुप में मनाया जाता है. इस द्वादशी का प्रभाव जीवन में आने वाले संकटों से बचाने वाला होता है. साहस एवं शक्ति को प्रदन करता है. हर प्रकार के भय से मुक्ति प्रदन करता है. अज्ञात भय से मुक्ति दिलाने वाला यह व्रत बच्चों के लिए बहुत शुभ माना जाता है. यदि बच्चे को किसी प्रकार का डर सताता है या स्वास्थ्य कमजोर है तो इस दिन माताएं अपने बच्चों के लिए इस व्रत को अवश्य कर सकती हैं इसके बहुत ही शुभ फल प्राप्त होते हैं.

नरसिंह द्वादशी पौराणिक महत्व

शास्त्रों के अनुसार बाल प्रह्लाद को बचाने हेतु भगवान श्री हरि ने लिया था नृसिंह अवतार. इस कारण से इस दिन को संतान की सुरक्षा हेतु बहुत विशेष माना जाता है. हर प्रकार की यातनाओं से मुक्ति मिलती है और सुख की प्राप्ति होती है. नरसिंह द्वादशी का क्या है पौराणिक महत्व और इस दिन कैसे करें नरिसंह भगवान की पूजा आइये जानते हैं विस्तार पूर्वक. हिंदू धर्म में नरसिंह द्वादशी का विशेष महत्व है, माना जाता है कि इस दिन भगवान श्री विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा हेतु नरसिंह भगवान ने स्तंभ अर्थात एक खंबे से निकल कर  हिरण्यकश्यप नमक दैत्य का अंत किया. प्रह्लाद भगवान श्री हरि का परम भक्त का किंतु उसके पिता हिरण्यकश्यप को श्री हरि से अत्यंत रोष था इस कारण उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को भी बहुत कष्ट दिए और अंत में भगवान ने अपने भक्त को बचाने हेतु नृसिंह अवतार लिया जो आधा मनुष्य एवं आधा सिंह रुप था. अत: नरसिंह द्वादशी के दिन भगवान श्री विष्णु के इस अवतार का पूजन करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है तथा जीवन में सुख की प्राप्ति संभव होती है.

नरसिंह द्वादशी पूजा एवं आरती

नरसिंह द्वादशी के दिन पूजन एवं व्रत का विधान मान्य है. इस दिन द्वादशी तिथि पर सूर्योदय से पुर्व स्नान के पश्चात भ्गवान का पूजन आरंभ किया जाता है. द्वादशी के दिन मंदिर में भगवान नरसिंह के साथ साथ श्री विष्णु जी का विधि-विधान से पूजा करते हैं. इस दिन नरसिंह भगवान की कथा एवं आरती की जाती है. भगवान को भोग अर्पित किया जाता है. इस दिन नरसिंह भगवान की आरती करने से भक्त को मिलती है हर प्रकार के भय से मुक्ति. मनोकामनाएं होती हैं पूर्ण.

नरसिंह भगवान की आरती

ॐ जय नरसिंह हरे, प्रभु जय नरसिंह हरे । स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे, स्तंभ फाड़ प्रभु प्रकटे ॐ जय नरसिंह हरे, प्रभु जय नरसिंह हरे । जनका ताप हरे ॐ जय नरसिंह हरे ॥ तुम हो दिन दयाला, भक्तन हितकारी प्रभु भक्तन हितकारी । अद्भुत रूप बनाकर अद्भुत रूप बनाकर, प्रकटे भय हारी ॥ सबके ह्रदय विदारण, दुस्यु जियो मारी प्रभु दुस्यु जियो मारी । दास जान आपनायो दास जान आपनायो, जनपर कृपा करी ॥ ब्रह्मा करत आरती, माला पहिनावे, प्रभु माला पहिनावे । शिवजी जय जय कहकर पुष्पन बरसावे, ॐ जय नरसिंह हरे ॐ जय नरसिंह हरे, प्रभु जय नरसिंह हरे । आचार्या राजरानी 

आमलकी एकदशी के दिन राशि अनुसार पूजन दूर करेगा हर प्रकार का कष्ट 

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