EPFO में बड़ा बदलाव, अब ATM से PF का पैसा निकालना होगा आसान

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EPFO
locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 07:59 AM
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EPFO : कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) में सुधार की दिशा में सरकार एक अहम कदम उठा सकती है। इसके तहत प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों को रिटायरमेंट के समय वित्तीय सुरक्षा देने के लिए एक बड़ा बदलाव प्रस्तावित है। इस बदलाव से कर्मचारी भविष्य निधि (PF) से पैसे निकालने की प्रक्रिया और सरल हो सकती है। रिपोर्ट्स के अनुसार, EPFO के तहत एक नई सुविधा पर विचार किया जा रहा है, जिसमें कर्मचारी अपने PF से पैसे को ATM के जरिए डेबिट कार्ड का उपयोग कर निकाल सकते हैं। इस निकासी पर एक सीमा भी निर्धारित की जाएगी ताकि रिटायरमेंट के बाद भी कर्मचारी की वित्तीय सुरक्षा बनी रहे और इमरजेंसी में उन्हें लिक्विडिटी मिले।

EPFO 3.0 योजना का हिस्सा

यह पहल सरकार की महत्वाकांक्षी EPFO 3.0 योजना का हिस्सा हो सकती है। EPFO 3.0 का मुख्य उद्देश्य सेवाओं का आधुनिकीकरण करना और कर्मचारियों को अपनी बचत पर अधिक नियंत्रण देना है। इससे कर्मचारियों को अपनी रिटायरमेंट सेविंग्स के प्रबंधन में बेहतर लचीलापन मिलेगा।

कर्मचारी योगदान में बदलाव की संभावना

EPFO (एम्प्लाइज' प्रोविडेंट फण्ड ऑर्गेनाइजेशन) में बदलाव के तहत श्रम मंत्रालय यह भी विचार कर रहा है कि कर्मचारियों के योगदान पर लगी 12% की सीमा को हटाया जा सके। इससे कर्मचारी अपनी वित्तीय जरूरतों के अनुसार अधिक पैसे जमा कर सकेंगे। हालांकि, नियोक्ता का योगदान स्थिर रहेगा, जो कि कर्मचारी की सैलरी पर आधारित होगा। कर्मचारियों को अपनी इच्छा के अनुसार अधिक राशि जमा करने की स्वतंत्रता मिल सकती है, जिससे उनकी सेविंग्स में वृद्धि होगी।

EPS योजना में सुधार

इसके अतिरिक्त, सरकार कर्मचारी पेंशन योजना 1995 (EPS-95) में भी सुधार कर सकती है। वर्तमान में, नियोक्ता के योगदान का 8.33% EPS-95 को आवंटित किया जाता है। प्रस्तावित बदलावों से कर्मचारियों को इस योजना में सीधे योगदान करने की अनुमति मिल सकती है, जिससे उनकी पेंशन राशि बढ़ सकती है।

संभावित समयसीमा

EPFO सुधारों की आधिकारिक घोषणा 2025 के शुरुआत में हो सकती है। इसके बाद इन सुधारों के लागू होने से कर्मचारियों को अपनी सेविंग्स और रिटायरमेंट फंड के प्रबंधन में एक नया दृष्टिकोण मिल सकता है, जो लंबे समय तक वित्तीय सुरक्षा और तत्काल तरलता दोनों का संतुलन बनाए रखेगा।

EPFO की मौजूदा स्थिति

हालांकि, वर्तमान में EPFO प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों के लिए रिटायरमेंट फंड जमा करता है, जिसमें कर्मचारी और नियोक्ता दोनों की ओर से सैलरी का 12% योगदान होता है। इसके साथ ही, सरकार इस फंड पर सालाना ब्याज देती है।

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ईडी के चाल-चलन तथा काम से खफा है सुप्रीम कोर्ट, लगाई डांट

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Supreme Court
locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Nov 2025 10:25 PM
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Supreme Court : भारत का सुप्रीम कोर्ट प्रवर्तन निदेशालय (ED) के चाल-चलन तथा काम से खफा है। सुप्रीम कोर्ट का मत है कि ED का काम करने का तरीका बहुत ही गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने ED के दोषसिद्धि के प्रतिशत को बहुत ही खराब स्तर का बताते हुए कहा है कि ED लोगों को गिरफ्तार करके जबरन जेल में रखने का अभियान चला रही है। ED का दोषिसिद्धि प्रतिशत मात्र एक प्रतिशत के आसपास है। इस आधार पर अदालत ED द्वारा गिरफ्तार किए गए नागरिकों को अधिक समय तक जेल में रखने की इजाजत नहीं दे सकती।

ED का दोषसिद्धि प्रतिशत बेहद खराब है

सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से पहले ED के दोषिसिद्धि प्रतिशत को जान लेना बेहद जरूरी हो जाता है। आप सवाल कर सकते हैं कि यह दोषसिद्धि क्या है? दरअसल किसी आरोप में आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद उसके ऊपर दोष (अपराध) को सिद्ध करना जरूरी होता है। कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया है तथा उनमें से कितने लोगों का अपराध साबित किया गया है। इसके आधार पर दोषिसिद्धि का प्रतिशत तय किया जाता है। हाल ही में भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में बताया कि वर्ष-2024 से लेकर वर्ष-2024 तक ED ने कुल 5297 मामले दर्ज किए हैं। इन 5297 मामलों में से केवल 40 मामलों में आरोपियों को दोषी सिद्ध किया जा सकता है। इस प्रकार ED का दोषसिद्धि प्रतिशत एक प्रतिशत से भी कम है जो कि बहुत ही खराब है। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने ED को दोषसिद्धि प्रतिशत पर ED को खूब खरी-खोटी सुनाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि ED का दोषसिद्धि प्रतिशत 60 या 70 प्रतिशत तक होता तो चिंता की बात नहीं थी, किन्तु ED का दोष प्रतिशत बेहद खराब है। इस कारण ED द्वारा गिरफ्तार किए गए किसी व्यक्ति को लगातार जेल में नहीं रखा जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने राजनेताओं को भी फटकार लगाई

बुधवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजनेताओं को भी खूब फटकार लगाई है। सुनवाई के दौरान  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनेताओं के खिलाफ हर मामला दुर्भावनापूर्ण नहीं होता, क्योंकि उनके लिए भ्रष्टाचार में लिप्त होना और फिर खुद को निर्दोष बताना बहुत आसान होता है। नकदी के बदले नौकरी घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी की। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि चटर्जी दो साल से अधिक समय से हिरासत में हैं, अभी मुकदमा शुरू होना बाकी है। चटर्जी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि याचिकाकर्ता को बीते महीने सीबीआई ने भी गिरफ्तार किया, जिसके समय को लेकर संदेह है क्योंकि यह विशेष अनुमति याचिका दायर करने के समय हुआ। ईडी की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने दलील दी, यह उच्च पदस्थ मंत्री का मामला है, जो 50 हजार लोगों के जीवन व आजीविका से जुड़ा है।रोहतगी ने अदालत को बताया कि चटर्जी को ईडी ने 23 जुलाई, 2022 को गिरफ्तार किया था। मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ है। 183 गवाह हैं। चार पूरक अभियोजन शिकायतें दर्ज की हैं। याचिकाकर्ता की उम्र 73 साल है अन्य सभी आरोपियों की जमानत हो चुकी है। धनशोधन रोधी कानून में अधिकतम सात साल की सज है। ढाई साल से अधिक हिरासत में काट चुके हैं। जिस महिला के घर से पैसे बरामद हुए, उसे ट्रायल कोर्ट ने जमानत दे दी। इस पर पीठ ने कहा, आरोपी एक मंत्र रहे हैं और अपने घर पर पैसे नहीं रखने वाले हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा बड़ा सवाल

इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ED के वकील एस.वी. राजू से बड़ा सवाल भी पूछा। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने राजू से पूछा कि सामान्य सिद्धांत लागू करें। हम याचिकाकर्ता को कितने समय तक रख सकते हैं। अगर यह ऐसा मामला है जिसमें मुकदमा तीन या छह महीने में पूरा हो जाएगा, तो हम इसे जारी रखेंगे। यह ऐसा मामला है जिसमें दो साल चार महीने बीत चुके हैं और अभी तक मुकदमा शुरू नहीं हुआ है। पीठ ने यह भी कहा, कोर्ट इस गंभीर आरोप को नजरअंदाज नहीं कर सकती कि कोई मंत्री रिश्वत ले रहा है, किसी फैक्टरी या करीबी सहयोगियों से नकदी बरामद कर रहा है, लेकिन हमें संतुलन बनाना होगा। हिरासत में दो साल चार महीने कोई छोटी अवधि नहीं है। पीठ अब इस मामले में सोमवार को सुनवाई करेगी। Supreme Court

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, आरक्षण के लिए धर्म परिवर्तन बर्दाश्त नहीं

Supreme court 2
Supreme Court
locationभारत
userचेतना मंच
calendar01 Dec 2025 12:20 PM
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Supreme Court : भारत के सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कानून के सभी जानकार सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस ताजे फैसले को बहुत बड़ा फैसला बता रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के बड़े फैसले के कारण अनेक मामलों का निपटारा बहुत आसानी से हो जाएगा। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट का यह बड़ा फैसला धर्म परिवर्तन करके दूसरा धर्म अपनाने वालों के मुंह पर भी बहुत बड़ा तमाचा है।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बहुत बड़ा फैसला सुनाया है। अपने बड़े फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, आरक्षण का लाभ पाने के लिए बिना सच्ची आस्था के धर्म परिवर्तन करना संविधान के साथ धोखाधड़ी के समान है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा, ऐसा करने से आरक्षण नीति के सामाजिक मूल्य भी नष्ट होंगे। जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के 24 जनवरी, 2023 के आदेश के खिलाफ सी सेल्वरानी की याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन को अनुसूचित जाति का प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश देने की मांग वाली महिला की याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ वह सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी। पीठ ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने और मानने का अधिकार है। यदि धर्म परिवर्तन का मकसद मुख्य रूप से आरक्षण का लाभ प्राप्त करना हो, तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसे छिपे हुए मकसद वाले लोगों को आरक्षण का लाभ देने से आरक्षण की नीति के सामाजिक लोकाचार को नुकसान पहुंचेगा। पीठ ने कहा, वर्तमान मामले में पेश साक्ष्यों से स्पष्ट पता चलता है कि अपीलकर्ता ईसाई धर्म को मानती है और नियमित रूप से चर्च में जाकर  इसका सक्रिय रूप से पालन करती है। इन सब के बावजूद, वह हिंदू होने का दावा करती है और रोजगार के मकसद से अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र चाहती है। उनका यह दोहरा दावा स्वीकार करने के काबिल नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा

अपना बड़ा फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, अपीलकर्ता ने दोबारा हिंदू धर्म अपनाने का दावा किया है लेकिन इस पर विवाद है। धर्मांतरण किसी समारोह या आर्य समाज के माध्यम से नहीं हुआ था। कोई सार्वजनिक घोषणा नहीं की गई थी। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह दर्शाता हो कि उसने या उसके परिवार ने हिंदू धर्म में पुनः धर्मांतरण किया है। इसके विपरीत, एक तथ्यात्मक निष्कर्ष यह है कि अपीलकर्ता अब भी ईसाई धर्म को मानती है।  अपीलकर्ता बपतिस्मा के बाद भी खुद को हिंदू के रूप में पहचानना जारी नहीं रख सकती। इसलिए, उसे अनुसूचित जाति का दर्जा प्रदान करना, आरक्षण के मूल उद्देश्य के खिलाफ होगा और संविधान के साथ धोखाधड़ी होगी। अपीलकर्ता ने दावा किया, उसकी मां ईसाई थी और शादी के बाद हिंदू धर्म अपना लिया था। उसके पिता, दादा-दादी और परदादा-परदादी हिंदू धर्म को मानते थे और वल्लुवन जाति से थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश, 1964 के तहत अनुसूचित जाति में मान्यता प्राप्त है। उसने यह भी कहा, द्रविड़ कोटे के तहत रियायतों का लाभ उठाकर स्कूली शिक्षा और स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इस पर पीठ ने कहा, यह मानते हुए भी कि अपीलकर्ता की मां ने शादी के बाद हिंदू धर्म अपना लिया था, उसे अपने बच्चों को चर्च में बपतिस्मा नहीं देना चाहिए था। इसलिए अपीलकर्ता का बयान अविश्वसनीय है। कोर्ट ने यह भी कहा कि, फील्ड सत्यापन से स्पष्ट है कि भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 के तहत अपीलकर्ता के माता- पिता का विवाह पंजीकृत था। अपीलकर्ता और उसके भाई का बपतिस्मा हुआ था और यह भी तथ्य था कि वे नियमित रूप से चर्च जाते थे। अदालत ने कहा कि, तथ्यों के निष्कर्षों में कोई भी हस्तक्षेप अनुचित है, जब तक कि निष्कर्ष इतने विकृत न हों कि अदालत की अंतरात्मा को झकझोर दें। Supreme Court

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