एक घटना जिसने बनाया भाजपा को सत्ता का हकदार, फैसला था दमदार

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Noida News
locationभारत
userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 02:27 AM
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BJP News : भारत में लोकसभा का चुनाव चल रहा है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) आत्मविश्वास से भरी हुई है। इसी आत्मविश्वास के बलबूते पर BJP जीत की हैट्रिक बनाकर तीसरी बार केन्द्र में सत्ता पर काबिज होने का दावा कर रही है। क्या आपको पता है कि एक दिन के एक फैसले के कारण  BJP सत्ता की हकदार बनी है। हम आपको विस्तार से बता रहे हैं  BJP को सत्ता तक पहुंचाने वाले फैसले के विषय में पूरे विस्तार से।

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मुंबई में लिखी गई  BJP की सफलता की कहानी

हम कोई फिल्मी कहानी की बात नहीं कर रहे हैं। यह कहानी है भारत की सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी  BJP की। दरअसल यह बात वर्ष-1995 की है। वर्ष-1995 में मुंबई में  BJP का राष्ट्रीय अधिवेशन था।  BJP के राष्ट्रीय अधिवेशन में 12 नवंबर 1995 को कुछ ऐसा हुआ कि  BJP अचानक भारत की सत्ता पर काबिज हो गई। 12 नवंबर 1995 को  BJP के मुंबई अधिवेशन का अहम दिन था। उस दिन  BJP के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से लेकर  BJP के जाने-माने नेता अटल बिहारी वाजपेयी और प्रमोद महाजन तक  BJP के तमाम दिग्गज नेता मंच पर थे। हजारों की संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं का हुजूम उमड़ा हुआ था। अगले साल देश में आम चुनाव होने जा रहे थे। लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि आडवाणी इस महाधिवेशन में एक खास इरादे के साथ आए हैं। इरादा ऐसा जिसकी उनके अलावा किसी को भनक तक नहीं थी।  BJP नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने अपना संबोधन खत्म ही किया था कि आडवाणी उठे और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए ऐलान किया कि हम अगला चुनाव अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में लड़ेंगे। वह पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। ये सुनते ही पूरी सभा में सन्नाटा पसर गया। आडवाणी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि कई सालों से न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ता बल्कि आम लोग भी यही नारा दे रहे हैं कि अगली बारी अटल बिहारी। मुझे पूरा यकीन है कि बीजेपी अटलजी की अगुवाई में अगली सरकार बनाएगी। आडवाणी जैसे ही अपनी बात खत्म कर कुर्सी पर बैठने लगे। वाजपेयी झट से उठे और माइक पकडक़र कहा कि हम सरकार बनाएंगे और जरूर बनाएंगे लेकिन आडवाणी जी के नेतृत्व में। न वाजपेयी मानने को तैयार थे और न ही आडवाणी। दोनों एक दूसरे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताते रहे। अगले कुछ मिनटों तक दोनों के बीच की इस 'आप-आप'की खट्टी-मीठी तकरार के गवाह मंच पर आसीन नेताओं से लेकर हजारों कार्यकर्ता रहे। इस दौरान आडवाणी और वाजपेयी के बीच का संवाद कुछ इस तरह का था... आडवाणी- हम अटल जी के नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ेंगे। वाजपेयी- हम सरकार बनाएंगे और आडवाणी जी हमारे प्रधानमंत्री होंगे। आडवाणी- घोषणा हो चुकी है। वाजपेयी- तो मैं भी घोषणा करता हूं कि प्रधानमंत्री... आडवाणी- अटल जी ही होंगे.... वाजपेयी - आपने ये क्या ऐलान कर दिया? कम से कम मुझ से तो बात करते। आडवाणी - क्या आप मानते? अगर हमने आपसे पूछा होता.... आडवाणी फैसला कर चुके थे। वह अगले साल होने जा रहे चुनाव के लिए बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर वाजपेयी को चुन चुके थे। लेकिन इस फैसले से पार्टी और कार्यकर्ता दोनों हैरान थे। हैरानी का आलम ये था कि आडवाणी मुंबई के जिस होटल रूम में ठहरे थे। उसी शाम उस समय बीजेपी के महासचिव रहे गोविंदाचार्य वहां उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने कमरे में पहुंचते ही पहला सवाल किया कि आप इस तरह का ऐलान कैसे कर सकते हैं? इस पर आडवाणी ने कहा कि मैंने वही किया, जो मुझे ठीक लगा। इस घटनाक्रम और बातचीत का पूरा ब्योरा वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने अपनी किताब 'हाउ प्राइम मिनिस्टर डिसाइड' में किया है। वह बताती हैं कि जब मैंने इस पूरे मामले पर आडवाणी से पूछा तो उन्होंने मुझसे कहा था कि 'अगर मैं इस पर दूसरों की राय लेता तो इस फैसले पर कभी नहीं पहुंच पाता।'

बीजेपी के लिए यह बड़ा दांव बना

मुंबई में आडवाणी ने जो ऐलान किया। उससे पार्टी के भीतर और बाहर हर कोई हैरान था। ये वो दौर था, जब आडवाणी, वाजपेयी से बड़ा चेहरा थे। 1990 की उनकी रथ यात्रा से वो पॉलिटिकल स्टार बन गए थे। कई लोगों को संदेह था कि वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने का आडवाणी का फैसला उनकी एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था। उन्होंने वाजपेयी को इसलिए प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया क्योंकि उन्हें खबर लग गई थी कि पीवी नरसिम्हा राव हवाला मामले में जल्द से जल्द चार्जशीट दाखिल कराने की तैयारी में हैं। हवाला मामले में आडवाणी सहित कई बड़े नेताओं पर आरोप था। नीरजा चौधरी अपनी किताब में लिखती हैं कि संभवत: आडवाणी को ये अंदाजा लग चुका था कि अगर वे प्रधानमंत्री पद के लिए खुद के नाम का ऐलान करते हैं तो उन्हें हवाला मामले में आरोपी बनाए जाने की वजह से उम्मीदवारी से पीछे हटना पड़ सकता है, जो कि एक बड़ी शर्मिंदगी होगी। ये संयोग था या कुछ और... प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर वाजपेयी के नाम के ऐलान के दो महीने बाद ही जनवरी 1996 में हवाला मामले में चार्जशीट दाखिल की गई, जिसमें आडवाणी को आरोपी बताया गया। इससे आगबबूला आडवाणी ने तुरंत संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने दो टूक कह दिया कि जब तक वे इस मामले में बेदाग साबित नहीं होंगे, संसद में कदम नहीं रखेंगे। ऐसे में पार्टी की जोरआजमाइश के बाद भी उन्होंने 1996 का चुनाव नहीं लड़ा। ये उनकी हठ ही थी कि 1998 में इस मामले में बेदाग साबित होने के बाद ही उन्होंने संसद में वापसी की। नीरजा चौधरी लिखती हैं कि आडवाणी को पूरा विश्वास था कि नरसिम्हा राव ने हवाला केस में चार्जशीट दाखिल कराने की जल्दबाजी की ताकि प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए वाजपेयी का रास्ता साफ हो सके। राव कैबिनेट में मंत्री रहे भुवनेश चतुर्वेदी ने मुझे बताया कि आडवाणी को लगता था कि हवाला केस की आड़ में नरसिम्हा राव ने वाजपेयी की मदद की। ये केस सुप्रीम कोर्ट के सुपरविजन में आगे बढ़ रहा था लेकिन नरसिम्हा राव को पता था कि इससे वाजपेयी को मदद मिलेगी। अब आप समझ गए होंगे कि एक दिन अचानक लिए गए एक फैसले ने BJP को कैसे सत्ता तक पहुंचाया। यह अलग बात है कि लालकृष्ण आडवाणी ने अचानक अटल बिहारी वाजपेयी को क्यों आगे किया था? इस मुददे पर ढ़ेर सारे विचार हैं। सच यही है कि अटल बिहारी वाजपेयी को PM फेस बनाते ही भाजपा को सत्ता मिल गई थी। वह सिलसिला अभी भी चल रहा है।

एक नेता के बयान से अचानक आ गया भूचाल, RSS पर बड़ा आरोप

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एक नेता के बयान से अचानक आ गया भूचाल, RSS पर बड़ा आरोप

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India News
locationभारत
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calendar05 May 2024 08:58 PM
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India News : हमेशा कहा जाता है कि राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। इसी प्रकार का एक उदाहरण रविवार को भारत की राजनीति में देखने को मिला है। महाराष्ट्र के एक नेता के बयान से पूरे भारत में भूचाल सा आ गया है। भारत के महाराष्ट्र प्रदेश में तो यह बयान जंगल की आग की तरह से फैल रहा है। इस बयान में मुंबई पुलिस के बहादुर अफसर हेमंत करकरे का नाम लेकर भारत के सबसे बड़े संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर आरोप लगाया गया है।

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नेता जी बोले कसाब की गोली से नहीं मरे थे करकरे

भारत के महाराष्ट्र प्रदेश में कांग्रेस पार्टी प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में है। पूरे भारत में भी कांग्रेस को ही प्रमुख विपक्षी दल माना जाता है। रविवार को महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार के बयान से बवाल मच गया है। दरअसल विजय वडेट्टीवार ने दावा किया कि राज्य के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के पूर्व प्रमुख आईपीएस हेमंत करकरे को 2008 के मुंबई हमलों के दौरान पाकिस्तानी आतंकवादियों ने नहीं मारा था। उन्होंने कहा है कि आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे की हत्या जिस गोली से हुई वह कसाब या आतंकियों की तरफ से नहीं चली थी बल्कि 'आरएसएस को समर्पित' एक पुलिस अधिकारी के हथियार से चली थी। विजय वडेट्टीवार ने पूर्व एटीएस चीफ हेमंत करकरे का जिक्र करते हुए मुंबई उत्तर मध्या से बीजेपी उम्मीदवार उज्ज्वल निकम पर हमला किया। वडेट्टीलार ने कहा, 'बिरयानी का मुद्दा उठाकर निकम ने कांग्रेस को बदनाम किया। क्या कोई कसाब को बिरयानी देगा? बाद में उज्ज्वल निकम ने इसे स्वीकार कर लिया, कैसा वकील है, गद्दार है जिसने कोर्ट में गवाही ही नहीं दी। जिस गोली से मुंबई पुलिस के अधिकारी हेमंत करकरे की मौत हुई वह कसाब की बन्दूक से नहीं, उस समय आरएसएस के वफादार पुलिस अधिकारी की गोली से चली थी, अगर कोर्ट से यह सच छुपाने वाले गद्दार को बीजेपी टिकट दे रही है तो सवाल उठता है कि बीजेपी इन गद्दारों का समर्थन क्यों कर रही है।' मामले ने तूल पकड़ा तो वडेट्टीवार ने अपने बयान पर सफाई दी और कहा,  'वे मेरे शब्द नहीं हैं, मैंने सिर्फ वही कहा जो एसएम मुश्रीफ की किताब में लिखा था। किताब में पूरी जानकारी थी। जिस गोली से हेमंत करकरे को गोली मारी गई, वह आतंकवादियों की गोली नहीं थी...' वडेट्टीवार ने आगे कहा, 'हेमंत करकेरे की हत्या आतंकियों की गोली से नहीं हुई है यह बात पुलिस अफसर एस एम मुश्रीफ की किताब में लिखी गई है। इस बात को उज्ज्वल निकम सामने क्यों नहीं लाए। पुलिस अफसर, एस एम मुश्रीफ (समशुद्दीन मुश्रीफ ) ने अपनी किताब मे लिखा है कि हेमंत करकरे की गोली से उनकी हत्या हुई है वह गोली अतिरेकों (आतंकियों) की नहीं है...अजमल कसाब को फांसी देने की बड़ी बात नहीं है कोई भी सामान्य वकील और बेलआउट करने वाला वकील भी यह काम सकता था।

भारतीय जनता पार्टी हुई ‘आग बबूला’

इस मामले को लेकर पूरे भारत में भारतीय जनता पार्टी आग बबूला हो गई है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव विनोद तावड़े ने कहा, 'कांग्रेस अपने खास वोटबैंक को खुश करने और उसे पाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है। महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विजय वडेट्टीवार ने 26/11 के आतंकियों को क्लिनचिट देकर ये बात साबित कर दी। उनके मुताबिक शहीद हेमंत करकरे जी पर कसाब ने गोली नहीं चलाई थी। क्या आतंकियों का पक्ष लेते समय कांग्रेस को बिल्कुल भी शर्म नहीं आई? आज पूरे देश को ये भी पता चल गई है कि क्यों कांग्रेस और शहजादे की जीत के लिए पाकिस्तान में दुआएं मांगी जा रही हैं।' यहां यह बताना जरूरी है कि 26/11 के हमले में शहीद हुए हेमंत करकरे को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च वीरता अलंकरण अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। 26/11 मुंबई हमले मे जिंदा पकडा गया आतंकवादी कसाब को फांसी देने तक सरकार की ओर से उज्ज्वल निकम ने केस लड़ा था। निकम को बीजेपी ने मुंबई उत्तर मध्य लोकसभा से अपना उम्मीदवार बनाया है जहां से कांग्रेस की वर्षा गायकवाड़ उनके खिलाफ मैदान में है। India News

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घरों में यूज होते हैं दो तार, तो फिर एक तार पर कैसे चलती है ट्रेन, जानें जवाब?

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userचेतना मंच
calendar05 May 2024 08:10 PM
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Indian Railway : जैसे-जैसे टाइम बदल रहा है ट्रेन की टेक्नोलॉजी में भी बदलाव हो रहा है। भारतीय रेलवे में अब ज्यादातर ट्रेनें इलेक्ट्रिक इंजन के साथ चलने लगी है। जिसके कारण ट्रेनों की रफ्तार में भी बढ़ोतरी हुई है। आप में से शायद काफी लोग इस बात को जानते भी होंगे कि अभी भारत में इलेक्ट्रिक और डीजल इंजन ट्रेनें चलते हैं। इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव आने के बाद भी डीजल और इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव दोनों का यूज हो रहा है। लेकिन कभी आपने ध्यान दिया है इलेक्ट्रिक इंजन कैसे काम करता है?  आखिर ट्रेन एक तार पर कैसे चलती है। आज हम आपको इन सभी की जानकारी देने जा रहे है।

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कैसे चलती है एक तार पर ट्रेन

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डीजल लोकोमोटिव में बिजली इंजन के अंदर से बनाई जाती है। वहीं, इलेक्ट्रिक इंजन को बिजली ओवरहेड वायर से मिलती है। दरअसल ट्रेन के ऊपर लगा पेंटोग्राफ उसके ऊपर लगी इलेक्ट्रिक तार से लगातार इंजन में बिजली ट्रांसफर करने का काम करता है। क्योंकि बिजली सीधे मोटर के पास नहीं पहुंचती। पहले पहले वह ट्रेन में लगे ट्रा्ंसफॉर्मर के पास जाती है। इसके बाद ट्रांसफॉर्मर का काम वोल्टेज को कम या ज्यादा करना होता है। वोल्टेज को कंट्रोल करने का काम इंजन में बैठा लोको पायलट नॉच की मदद से करता है।

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कैसे करती है यह तकनीक काम

दरअसल सर्किट ब्रेकर से आउटपुट करंट इसके ट्रांसफॉर्मर और सेमीकंडक्टर को डिस्ट्रीब्यूट करते हैं। इसके तहत अल्टरनेटिंग करंट को पहले एक ट्रांसफॉर्मर में भेजा जाता है, फिर संचालन के लिए जरूरी वोल्टेज को स्थापित किया जाता है। इसके बाद अल्टरनेटिंग करंट को रेक्टिफायर ट्रांसफर करते हैं, जहां से इसे डायरेक्ट करंट में बदल दिया जाता है। साथ ही डीसी ऑक्सीलरी इनवर्टर की मदद से 3 फेज एसी में परिवर्तित भी किया जाता है। इस करंट का इस्तेमाल पहियों से जुड़ी ट्रैक्शन मोटर को रेगुलेट करने में काम आता है। जैसे ही मोटर घूमना शुरू होती है, पहिए भी चलने स्टार्ट हो जाते है।

बिना रुके चलती है ट्रेन

आपको बताते चले कि भारतीय रेल के इंजन में दो तरह के पेंटोग्राफ (बिजली ग्रहण करने वाला उपकरण) लगें होते है। पहले सामान्य तौर पर चलने वाली ट्रेनों के इंजन में हाई स्पीड पेंटोग्राफ का इस्तेमाल होता है, तो डबल डेकर पैसेंजर ट्रेन और गुड्स ट्रेन में चलने वाले इंजन में हाई रिच (WBL) पेंटोग्राफ होती है। दरअसल पेंटोग्राफ का ही कमाल होता है कि पुल-पुलिया के पास ओवर हेड वायर (OHE) का ऊंचाई कम होने के बावजूद बिना रुकावट (स्पार्क) के ट्रेन चलती रहती है और तार पर इसका कोई असर नहीं होता। Indian Railway

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