Sindhutai Sapkal: सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का निधन - 2022

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calendar05 Jan 2022 05:14 AM
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Sindhutai Sapkal: पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का निधन (Padmashri Sindhutai Sapkal passed away)

'अनाथ की मां' (Orphan's Mother) के नाम से मशहूर विरष्ठ सामाजिक कारकर्ता, पद्मश्री सिंधुताई सपकाल (Padmashri Sindhutai Sapkal) का मंगलवार को दिल का दौरा (heart attack) पड़ने से निधन हो गया। उनका पुणे के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। सिंधुताई सपकाल के निकटवर्त से पता चला है की, सिंधुताई सपकाल की एक महीने पहले से तबीयत खराब होने के चलते उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। हाल ही में सामजिक कार्यकर्ता सिंधुताई सपकाल की हर्निया की सर्जरी भी हुई थी। सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) को जनवरी 2021 में भारत सरकार (Government of India) के द्वारा उनके सामाजिक कार्यों के लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार (Padmashri Award) से नवाजा गया था। उनके निधन की खबर आते ही, पुरे महाराष्ट्र में शौक का माहौल बन गया है। 74 वर्षीय पद्मश्री सिंधुताई सपकाल ने आज याने मंगलवार को पुणे के गैलेक्सी केयर अस्पताल में अंतिम सांस ली। उन्हें एक महीने से अधिक समय पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया था। आज रात 8.10 बजे दिल का दौरा पड़ने से पद्मश्री सिंधुताई सपकाल का निधन हो गया।

सिंधुताई सपकाल का प्रारंभिक जीवन (Early life of Sindhutai Sapkal)

सिंधुताई सपकाल का जन्म 14 नवंबर 1948 को महाराष्ट्र के वर्धा जिले में एक मवेशी चराने वाले परिवार में हुआ था। एक अवांछित बच्ची होने के कारण, सिंधुताई को "चिन्धि " (याने, कपड़े का फटा हुआ टुकड़ा) कहा जाता था। घोर गरीबी, पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ और कम उम्र में शादी ने उन्हें औपचारिक शिक्षा छोड़ने के लिए मजबूर किया, जब उन्होंने सफलतापूर्वक चौथी कक्षा पास कर ली थी। 12 साल की उम्र में सिंधुताई की शादी उनसे बीस साल बड़े एक व्यक्ति से करा दी गई। अपने नए घर में, उन्होंने वन विभाग और जमींदारों द्वारा गोबर एकत्र करने वाली स्थानीय महिलाओं के शोषण के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जब वह बीस वर्ष की हुई तब तक उनके तीन बेटे थे। 20 साल की छोटी उम्र में ही, जब सिंधुताई नौ महीने की गर्भवती हुई, तब उनके पती ने उन्हें खूब पीटा और मरने के लिए रास्ते पर छोड़ दिया। उन्होंने 14 अक्टूबर 1973 की रात को उनके घर के बाहर एक गौशाला में अर्धचेतन अवस्था (semi-conscious condition) में एक बच्ची को जन्म दिया। सिंधुताई ने जीवित रहने के लिए सड़कों और रेलवे प्लेटफार्म पर भीख माँगना शुरू कर दिया। सिंधुताई (Sindhutai) अक्सर कब्रिस्तानों में रात बिताया करती थी। उनकी हालत ऐसी थी कि, लोग उन्हें भूत-प्रेत कहकर बुलाते थे, क्योंकि वह रात में कब्रिस्तान में रहे कर रात बिताया करती थी। >> यह भी पढ़े- भारत के इन 13 शहरों को 2022 में मिल सकता है 5G नेटवर्क

सिंधुताई के 'अनाथालय' (SindhuTai Orphanage)

कड़ी मेहनत करने के बाद सिंधुताई सपकाल ने खुद को अनाथों के लिए समर्पित कर दिया। नतीजतन, उन्हें प्यार से "माई" कहा जाने लगा, जिसका अर्थ है "माँ (Mother)"। उन्होंने 1,500 से अधिक अनाथ बच्चों का पालन-पोषण किया है। उनका 382 दामादों, 49 बहुओं और एक हजार से अधिक पोते-पोतियों का भव्य परिवार है। जिन बच्चों को उन्होंने गोद लिया उनमें से कई बच्चे आगे पढ़-लिख कर वकील और डॉक्टर बने हैं। उनके कुछ दत्तक बच्चे - जिनमें उनकी बेटी भी शामिल है - अपने स्वयं के स्वतंत्र अनाथालय चला रहे हैं। उनका एक बच्चा उनकी जिंदगी में पीएचडी कर रहा है। उन्हें उनके सामाजिक कार्यों के लिए 900 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। सिंधुताई पुरस्कार की राशि का उपयोग अनाथ बच्चों के लिए घर बनाने के लिए जमीन खरीदने के लिए किया करते थे। [caption id="attachment_13747" align="aligncenter" width="1236"]The President, Shri Ram Nath Kovind presenting the Nari Shakti Puruskar for the year 2017 to Dr. Sindhutai Sapkal The President, Shri Ram Nath Kovind presenting the Nari Shakti Puruskar for the year 2017 to Dr. Sindhutai Sapkal[/caption]

सिंधुताई युवाओं की आइडियल बने (Sindhutai Sapkal became the Idol of youth)

अपने जीवन में शुन्य से अपना सफर शुरू कर समाज में एक सर्वोच्च स्थान पाने तक का सफर काफी मुश्किलों से भरा हुआ था। पद्मश्री सिंधुताई सपकाल (Padmashree Sindhutai Sapkal) आज काफी युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए है, विशेष कर महिलाओं के लिए। >> यह भी पढ़े- Swami Vivekananda: स्वामी विवेकानंद जयंती पर मनाया जाता है राष्ट्रीय युवा दिवस

सिंधुताई सपकाल को मिले हुए पुरस्कार (Sindhutai Sapkal Awards)

2021- सामाजिक कार्य श्रेणी में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार (Padmashree Award) 2017 - भारत के राष्ट्रपति द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार 2016 - डॉक्टर डी.वाई. पाटिल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे द्वारा मानद डॉक्टरेट 2016 - वॉकहार्ट फाउंडेशन की ओर से वर्ष का सामाजिक कार्यकर्ता पुरस्कार 2014 - अहमदिया मुस्लिम शांति पुरस्कार 2014 - बसव सेवा संघ पुणे द्वारा "बसव भूषण पुरस्कार-2014" प्रदान किया गया 2013 – सामाजिक न्याय के लिए मदर टेरेसा पुरस्कार 2013 - प्रतिष्ठित मां के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार (National Award for Iconic Mother) 2012 - CNN-IBN और रिलायंस फाउंडेशन द्वारा दिए गए रियल हीरोज अवार्ड्स (Real Heroes Awards) 2012 - "COEP गौरव पुरस्कार", कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे द्वारा दिया गया 2010 - महाराष्ट्र सरकार द्वारा महिला एवं बाल कल्याण के क्षेत्र में सामाजिक कार्यकर्ताओं को दिया जाने वाला अहिल्याबाई होल्कर पुरस्कार (Ahilyabai Holkar Award) 2008 - दैनिक मराठी समाचार पत्र लोकसत्ता द्वारा दिए गए वर्ष की महिला पुरस्कार 1996 – दत्तक माता पुरस्कार, गैर-लाभकारी संगठन सुनीता कलानिकेतन ट्रस्ट द्वारा दिया गया 1992 - अग्रणी सामाजिक योगदानकर्ता पुरस्कार सह्याद्री हिरकानी पुरस्कार राजाई पुरस्कार (Rajai Award) >> यह भी पढ़े- PM Modi's New Car: Mercedes-Maybach जो गोलियां, बम धमाकेा को आसानीसे झेल सकती है
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चुनाव से ठीक पहले यूपी में बना बंगाल जैसा माहौल, क्या नतीजा वही होगा!

UP Election 2022
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calendar30 Nov 2025 05:48 PM
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पश्चिम बंगाल चुनाव और उसके नतीजों से पहले जिस तरह की परिस्थितियां बनीं थीं, कुछ वैसे ही हालात एक बार फिर से बन रहे हैं। देखना यह है कि क्या इस बार इतिहास खुद को दोहराता है या नहीं।

आईआईटी कानपुर की भविष्यवाणी देश में एक बार फिर से कोरोना और उसके नए वैरिएंट, ओमिक्रॉन (Omicron) को लेकर दहशत का माहौल है। इस वैरिएंट के सामने आने के बाद विशेषज्ञों ने सबसे पहली बात यही कही थी कि कोरोना (Covid-19) के अब तक के किसी भी वैरिएंट की तुलना में इसका संक्रमण कई गुना तेजी से फैलता है।

यह बात अमेरिका, यूरोप और अब भारत में भी सही साबित हो रही है। आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) ने भी अपने एक शोध में यह आशंका जाहिर कर दी थी कि भारत में कोरोना की तीसरी लहर आना तय है और फरवरी में यह चरम पर होगी।

आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur) के प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल (Prof Manindra Agrawal) के मुताबिक, जनवरी से मार्च के बीच भारत में रोजाना डेढ़ से दो लाख मामले आ सकते हैं। प्रोफेसर अग्रवाल का कहना है कि तीसरी लहर (Third Wave) अप्रैल तक खिंच सकती है और इसमें चुनावी रैलियां सुपर स्प्रेडर (Super Spreader) का काम करेंगी।

दो आयोजन और एक वायरस सब जानते हैं कि यूपी, पंजाब और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में इस साल विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2022) होने वाले हैं। यूपी और पंजाब में सभी राजनीतिक दल जोर-शोर से चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं। रोड शो, जनसभाएं और भारी भीड़ के साथ सार्वजनिक कार्यक्रम किए जा रहे हैं ताकि, वोटरों को लुभाया जा सके।

इस बीच नए साल का स्वागत उत्सव मनाने के लिए देश के लगभग हर पर्यटक स्थल पर बड़ी संख्या में लोग जमा हुए और ओमिक्रॉन (Omicron) की परवाह किए बिना जमकर पार्टी की। कोरोना, ओमिक्रॉन (Omicron) और तीसरी लहर (Third Wave) की आशंकाओं के बावजूद आखिर क्यों लोग सावधानी बरतने को तैयार नहीं हैं?

क्योंकि, नेताओं ने दिया यह संदेश यह सवाल जितना स्वाभाविक है उसका जवाब भी उतना ही सहज है। उत्तर भारत के सबसे लोकप्रिय नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi), योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath), अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav), अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal), नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu), प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) शामिल हैं।

तीसरी लहर की आशंकाओं के बावजूद इनमें से किसी भी नेता ने अपने सार्वजनिक व्यवहार से यह जाहिर नहीं किया कि हमें क्या सावधानी बरतनी चाहिए। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने दिसंबर में काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Dham Corridor) का उद्घाटन किया जिसमें हजारों की भीड़ जमा हुई।

अखिलेश यादव लगातार रोड शो कर रहे हैं जिसमें हजारों की संख्या में लोग उन्हें देखने और उनसे हाथ मिलाने के लिए उनकी गाड़ी के पीछे दौड़ते नजर आते हैं। ऐसे अनेको नाम और उदाहरण गिनाए जा सकते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि इसमें कोई दल या नेता किसी से पीछे नहीं है।

क्या सारा दोष नेताओं का है नेताओं की बात इसलिए क्योंकि, आम लोग इन नेताओं को देखकर यह अंदाजा लगाते हैं कि कोरोना (Covid-19) को लेकर जो डर पैदा किया जा रहा है उसमें दम है या नहीं। लोगों को लगता है कि जब इतने बड़े नेता जो रोज हजारों या लाखों लोगों के बीच आ-जा रहे हैं, अगर उन्हें कुछ नहीं हो रहा है तो, हमें क्या होगा। हम कौन सा रोज हजारों-लाखों के संपर्क में आते हैं।

नेताओं की रैलियों और उनके पीछे चल रहे रेले से आम जनता में यह संदेश जाता है कि अभी सबकुछ ठीक है। क्योंकि, कुछ भी गड़बड़ होने पर नेता ही सबसे पहले आवाज उठाते हैं। चाहे प्याज की कीमत हो या पेट्रोल के बढ़ते दाम। अगर किसी भी दल का कोई भी नेता कोरोना (Covid-19), भीड़ या रैली का विरोध नहीं कर रहा है तो, इसका मतलब है कि डरने की कोई बात नहीं है।

मीडिया और महामारी से ज्यादा इनका होता है असर कोरोना भगाने के लिए थाली पीटना, महिला मैराथन में हजारों लड़कियों का सड़कों पर दौड़ना और चोटिल होना जैसी घटनाएं बताती हैं कि नेताओं का आम जनता पर कितना प्रभाव होता है। नेताओं के व्यवहार और उनके संदेश का असर किसी भी मीडिया, रिसर्च या चेतावनी से कहीं ज्यादा गहरा होता है।

उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों में पिछले कुछ महीनों से नेताओं का पूरा ध्यान चुनाव पर है तो, जाहिर है आम जनता का ध्यान भी कोरोना (Covid-19) या तीसरी लहर (Third Wave) पर तो बिलकुल नहीं है। इसी का नतीजा है नये साल का जश्न और बाजारों में उमड़ रही बेपरवाह भीड़।

थाली पीटने और टीका लगवाने के पीछे की लॉजिक नेताओं के असर का सबसे बड़ा प्रमाण है कोरोना (Covid-19) की पहली लहर। पहली लहर से पहले पूरे देश में कोरोना के प्रति जो माहौल पैदा किया गया उसी का असर था कि जब अमेरिका और यूरोप में कोरोना (Covid-19) कहर बरपा रहा था तब भारत में स्थिति नियंत्रण में थी।

देश में कोरोना के टीकाकरण (Vaccination) के प्रति सकारात्मक माहौल पैदा करने में भी नेताओं का बड़ा योगदान है। हालांकि, दूसरी लहर के दौरान कोरोना (Covid-19) के प्रति नेताओं के लचर रवैये का असर आम जन पर भी पड़ा और पूरे देश को इसका गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ा।

फिर बना बंगाल चुनाव से पहले वाला माहौल पहले लॉकडाउन (Lockdown) के बाद कोरोना संक्रमण की गंभीरता के आधार पर लॉकडाउन या पाबंदियों पर फैसला करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया गया है। 2021 में बंगाल विधानसभा चुनाव, यूपी पंचायत चुनाव या उत्तराखंड में कुंभ जैसे आयोजन से पहले क्या सख्ती की जानी चाहिए, यह तय करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि तत्कालीन राज्य सरकारों और नेताओं ने राजनीतिक फायदे के चलते महामारी की अनदेखी की जिसकी परिणति दूसरी लहर की भयावह त्रासदी के रूप में सामने आई।

देश में एक बार फिर से कुछ वैसे ही हालात बन रहे हैं। इस बार बंगाल की जगह यूपी और पंजाब के विधानसभा चुनाव हैं और कोरोना (Covid-19) की तीसरी लहर (Third Wave) दस्तक दे चुकी है। पिछली बार होली का त्योहार बीता था और इस बार नए साल का उत्सव। तो, क्या इस बार भी महामारी पर चुनाव भारी पड़ेगा या चुनाव के बाद लाशों के ढेर पर आरोप-प्रत्यारोप का वही गंदा खेल खेला जाएगा?

इन सवालों का जवाब तो आने वाला वक्त ही देगा। देखना बस यह है कि चुनाव नतीजों को अपने पक्ष में करने के लिए, तीसरी लहर के सामने कितने इंसानों की बलि चढ़ाई जाती है।

- संजीव श्रीवास्तव

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