भीमसेनी निर्जला एकादशी: दान में वस्त्र ,छतरी व उपाहन देने का विशेष महत्व

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Nirjala Ekadashi 2024
locationभारत
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calendar01 Dec 2025 02:24 PM
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Nirjala Ekadashi 2024 :  ज्येष्ठमाह शुक्ल पक्ष की यह एकादशी वर्ष की चौबीस एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण है । नौतपा के ताप के मध्य इस एकादशी का व्रत मानव की सबसे कठिन परीक्षा है। इसमें आप जल भी नहीं पी सकते इसीलिये इसे निर्जला एकादशी कहते हैं । एक बार जब पाडव द्यूत क्रीड़ा में सबकुछ हारने के पश्चात वन में थे तब श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये । तब युधिष्ठिर ने उनसे अपना यश सम्मान और साम्राज्य वापिस पाने के लिये पूंछा कि :-हे माधव! हमें कोई ऐसा व्रत और उपाय कहें जिसके करने से हम अपना खोया हुआ राज्य और सम्मान पा सकें । तब श्रीकृष्ण ने उन् से हर माह की दोनों एकादशियों का फल बतलाते हुये कहा कि आप अपने भाईयों और द्रौपदी के सहित एकादशी का व्रत करिये जिसके करने से आपको उसके फल स्वरू खोया राज्य और सम्मान प्राप्त होगा । Nirjala Ekadashi 2024 यह सुनकर भीम ने कहा :-हे माधव! मुझसे भूख सहन नही होती तो फिर मैं वर्ष की इन चौबीस एकादशियों का व्रत कैसे कर पाऊंगा । आप तो मुझे कोई ऐसा व्रत बतलाईये जिसके एक दिन करने पर ही इन सभी का फल प्राप्त हो। भीम की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा -भीम भैया फिर आपके लिये केवल एक ही व्रत है ज्येष्ठमाह के शुक्लपक्ष की निर्जला एकादशी । जिसमें कुछ भी फलाहार तो क्या आप पानी भी नहीं ले सकते । चौबीस की जगह केवल एक यही सबसे अधिक ताप देने वाली एकादशी निराहार निर्जला रहकर एक दिन का कष्ट भोगते हुये कर लीजिये । इसके करने से आपको सभी एकादशियों के व्रत को करने का फल प्राप्त होगा । भीम ने कुछ क्षण सोचते हुये कहा- फिर ठीक है , माधव ! खोया हुआ यश सम्मान और साम्राज्य पाने के लिये‌ इतना कष्ट तो मुझे सहन करना ही पड़ेगा कहते हुये भीम ने इस एकादशी के कठिन व्रत को किया जिसके कारण इसका दूसरा नाम भीम के नाम पर भीम सेनी एकादशी पड़ा ।

 किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें

इस दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने के पश्चात भगवान विष्णु के* ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय*का जाप करते हुये उनके मंदिर में जाकर उनका विधि-से पूजाकर पंडित एवं ब्राह्मणों को मिट्टी के घड़े में जल भर उसे नये वस्त्र से ढककर कुछ मुद्राओं सहित ब्राह्मण को दान देना चाहिये इस दिन दान में वस्त्र ,छतरी एवं उपाहन (चरण पादुका) दान देने का विशेष महत्व है। एकादशी की उत्पत्ति की कथा :-प्राचीन काल में मुसासुर नामक असुर ने ब्रह्मा की तपस्या करके उनसे वरदान प्राप्त करते हुये सभी देवताओं को कष्ट देने लगा जिससे भय त्रस्त होकर सभी भगवान विष्णु की शरण में गये । उस असुर वध कोई नारी ही कर सकती थी अत: भगवान विष्णु के साथ सभी ने देवी योगमाया का स्मरण करते हुयेउनसे उस असुर के वध की प्रार्थना की । देवी ने सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर उनके कष्ट के निवारण के लिये उन्हें वचन देकर मुरासुर के साथ युद्ध करते हुये उसका वध किया । जिस दिन योगमायाज्ञका प्राकट्य हुआ उसे एकादशी की उत्पत्ति के रूप में मान कर भगवान विष्णु ने देवी को समर्पित किया । इस तरह भगवान विष्णु के हृदय में‌ निवास करने वाली देवी योगमाया ही एकादशी हैं जो विष्णु भगवान को एकादशी के रूप में सबसे प्रिय हैं । जै एकादशी रूपिणी योगमाया एवं भगवान विष्णु की ।ऊंँ नमो भागवते वासुदेवाय। उषा सक्सेना

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भीमसेनी निर्जला एकादशी: दान में वस्त्र ,छतरी व उपाहन देने का विशेष महत्व

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Nirjala Ekadashi 2024 :  ज्येष्ठमाह शुक्ल पक्ष की यह एकादशी वर्ष की चौबीस एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण है । नौतपा के ताप के मध्य इस एकादशी का व्रत मानव की सबसे कठिन परीक्षा है। इसमें आप जल भी नहीं पी सकते इसीलिये इसे निर्जला एकादशी कहते हैं । एक बार जब पाडव द्यूत क्रीड़ा में सबकुछ हारने के पश्चात वन में थे तब श्रीकृष्ण उनसे मिलने आये । तब युधिष्ठिर ने उनसे अपना यश सम्मान और साम्राज्य वापिस पाने के लिये पूंछा कि :-हे माधव! हमें कोई ऐसा व्रत और उपाय कहें जिसके करने से हम अपना खोया हुआ राज्य और सम्मान पा सकें । तब श्रीकृष्ण ने उन् से हर माह की दोनों एकादशियों का फल बतलाते हुये कहा कि आप अपने भाईयों और द्रौपदी के सहित एकादशी का व्रत करिये जिसके करने से आपको उसके फल स्वरू खोया राज्य और सम्मान प्राप्त होगा । Nirjala Ekadashi 2024 यह सुनकर भीम ने कहा :-हे माधव! मुझसे भूख सहन नही होती तो फिर मैं वर्ष की इन चौबीस एकादशियों का व्रत कैसे कर पाऊंगा । आप तो मुझे कोई ऐसा व्रत बतलाईये जिसके एक दिन करने पर ही इन सभी का फल प्राप्त हो। भीम की बात सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा -भीम भैया फिर आपके लिये केवल एक ही व्रत है ज्येष्ठमाह के शुक्लपक्ष की निर्जला एकादशी । जिसमें कुछ भी फलाहार तो क्या आप पानी भी नहीं ले सकते । चौबीस की जगह केवल एक यही सबसे अधिक ताप देने वाली एकादशी निराहार निर्जला रहकर एक दिन का कष्ट भोगते हुये कर लीजिये । इसके करने से आपको सभी एकादशियों के व्रत को करने का फल प्राप्त होगा । भीम ने कुछ क्षण सोचते हुये कहा- फिर ठीक है , माधव ! खोया हुआ यश सम्मान और साम्राज्य पाने के लिये‌ इतना कष्ट तो मुझे सहन करना ही पड़ेगा कहते हुये भीम ने इस एकादशी के कठिन व्रत को किया जिसके कारण इसका दूसरा नाम भीम के नाम पर भीम सेनी एकादशी पड़ा ।

 किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करें

इस दिन किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करने के पश्चात भगवान विष्णु के* ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय*का जाप करते हुये उनके मंदिर में जाकर उनका विधि-से पूजाकर पंडित एवं ब्राह्मणों को मिट्टी के घड़े में जल भर उसे नये वस्त्र से ढककर कुछ मुद्राओं सहित ब्राह्मण को दान देना चाहिये इस दिन दान में वस्त्र ,छतरी एवं उपाहन (चरण पादुका) दान देने का विशेष महत्व है। एकादशी की उत्पत्ति की कथा :-प्राचीन काल में मुसासुर नामक असुर ने ब्रह्मा की तपस्या करके उनसे वरदान प्राप्त करते हुये सभी देवताओं को कष्ट देने लगा जिससे भय त्रस्त होकर सभी भगवान विष्णु की शरण में गये । उस असुर वध कोई नारी ही कर सकती थी अत: भगवान विष्णु के साथ सभी ने देवी योगमाया का स्मरण करते हुयेउनसे उस असुर के वध की प्रार्थना की । देवी ने सभी देवताओं की प्रार्थना सुनकर उनके कष्ट के निवारण के लिये उन्हें वचन देकर मुरासुर के साथ युद्ध करते हुये उसका वध किया । जिस दिन योगमायाज्ञका प्राकट्य हुआ उसे एकादशी की उत्पत्ति के रूप में मान कर भगवान विष्णु ने देवी को समर्पित किया । इस तरह भगवान विष्णु के हृदय में‌ निवास करने वाली देवी योगमाया ही एकादशी हैं जो विष्णु भगवान को एकादशी के रूप में सबसे प्रिय हैं । जै एकादशी रूपिणी योगमाया एवं भगवान विष्णु की ।ऊंँ नमो भागवते वासुदेवाय। उषा सक्सेना

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Nirjala Ekadashi Vrat : निर्जला एकादशी क्यों देती है 24 एकादशियों का फल 

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Nirjala Ekadashi 2024
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calendar11 Jun 2024 07:39 PM
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Nirjala Ekadashi Vrat :  ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का दिन निर्जला एकादशी के रुप में पूजनीय रहा है. इस दिन को कई अन्य नामों से भी पुकारा जाता है. इस दिन को निर्जला एकादशी के अलावा  भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं तो कुछ स्थानों में यह भीम एकादशी, निर्जल एकादशी भी कहलाती है. इस दिन को महापुण्यदायी माना गया है. 18 जून 2024 के दिन इस वर्ष निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाएगा. इस एकादशी का व्रत करने से वर्ष में आने वाली समस्त एकादशी व्रतों का लाभ भक्तों को मिलता है. कहा जाता है कि यह पुण्य प्राप्त करने का विशेष समय होता है. इस कारण से ही निर्जला एकादशी को सभी एकादशी तिथियों में महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन किए जाने वाले दान से जुड़े कामों के द्वारा अक्षय फल प्राप्त होते हैं.

निर्जला एकादशी पूजा शुभ मुहूर्त समय 2024 

निर्जला एकादशी तिथि भगवान विष्णु की पूजा के लिए उत्तम मानी गई है. इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून 2024 मंगलवार को रखा जाएगा. मंगलवार का दिन होने के कारण यह ओर भी उत्तम होगी. इस बार कई मायनों में खास होने के कारण इस दिन किए जाने वाले पूजा कार्य विशेष फल देंगे. निर्जला एकादशी पर कई शुभ योग भी बनेंगे. इस दिन बनने जा रहा है शुभ योग में त्रिपुष्कर योग और शिव योग विशेष होंगे. इन शुभ योगों में की गई पूजा और व्रत का लाभ मिलेगा.

Nirjala Ekadashi Vrat में किए जाने वाले कार्य और लाभ 

निर्जला एकादशी जिसका अर्थ है एकादशी के दिन बिना जल के रहना, निर्जला एकादशी के दिन जल ग्रहण नहीं किया जाता है और कठोर तप करते हुए व्रत किया जाता है. लेकिन इस दिन जल का दान किया जाता है. इस एकादशी दान के अलावा निर्जला एकादशी जल दान का विशेष महत्व माना जाता है. सनातन धर्म में दान की परंपरा सदियों पुरानी है, आइए जानते हैं निर्जला एकादशी के दिन जल दान करने से क्या फल और प्रभाव मिलता है .Nirjala Ekadashi Vrat निर्जला एकादशी को सबसे कठिन व्रत माना जाता है. इसका कारण यह है कि इस एकादशी पर जल का भी त्याग किया जाता है. लेकिन जल दान करना शुभ होता है. इस शुभ दिन पर सूर्योदय से लेकर अगले दिन द्वादशी के सूर्योदय तक अन्न और जल का सेवन वर्जित माना जाता है. निर्जला एकादशी की तिथि बहुत खास होती है. निर्जला एकादशी का व्रत ज्येष्ठ माह में किया जाता है, जब गर्मी अपने चरम पर होती है, इसलिए यह एकादशी अन्न और जल त्यागने के महत्व के साथ-साथ दान के महत्व को भी दर्शाती है. ज्योतिषाचार्य  राजरानी

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