जाने भविष्य की टिकाऊ कृषि के लिए एनपीके बायो कंसोर्टिया का महत्व

जैविक खेती और टिकाऊ कृषि की दिशा में कंसोर्टिया एनपीके एक बड़ा कदम है। जो किसान अपनी मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाना और फसल उत्पादन में स्थायी सुधार चाहते हैं, उनके लिए यह एक भरोसेमंद विकल्प बन चुका है। सही तरीके से इसके उपयोग से किसान कम लागत में अधिक फायदा उठा सकते हैं।

NPK Bio Consortia
जैविक खेती और टिकाऊ कृषि (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar02 Dec 2025 12:57 AM
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भारत में कृषि उत्पादन बढ़ाने और मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए जैविक उर्वरकों का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। इसी कड़ी में कंसोर्टिया एनपीके किसानों के लिए एक बेहद कारगर और किफायती विकल्प बनकर उभरा है। यह एक ऐसा बायोफर्टिलाइज़र है जो मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाकर फसल की वृद्धि और उत्पादन दोनों में सुधार करता है।

नाइट्रोजन स्थिरीकरण में मदद

कंसोर्टिया में मौजूद लाभकारी बैक्टीरिया—जैसे एज़ोटोबैक्टर—हवा में मौजूद नाइट्रोजन को पौधों के उपयोग योग्य रूप में बदल देते हैं। इससे किसानों की रासायनिक नाइट्रोजन खादों पर निर्भरता कम होती है और लागत भी घटती है।

फास्फोरस और पोटाश को घुलनशील बनाता है

मिट्टी में अक्सर फॉस्फोरस और पोटाश मौजूद तो होते हैं, लेकिन पौधे उन्हें अवशोषित नहीं कर पाते। एनपीके बायो कंसोर्टिया में शामिल विशेष सूक्ष्मजीव इन तत्वों को घुलनशील बनाकर पौधों के लिए उपलब्ध कराते हैं। इससे पौधों का पोषण बेहतर होता है और वृद्धि तेज होती है।

पौधों की वृद्धि को प्रोत्साहन

यह कंसोर्टिया प्राकृतिक रूप से वृद्धि-प्रेरक हार्मोन और विटामिन्स का उत्पादन भी करता है। परिणामस्वरूप पौधों की जड़ें मजबूत होती हैं, अंकुरण में सुधार देखा जाता है और कुल उपज बढ़ने की संभावना रहती है।

मृदा स्वास्थ्य में सुधार

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तकनीक मिट्टी की संरचना, उसमें वायु संचार और जल धारण क्षमता को भी बेहतर बनाती है। मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ने से जमीन और अधिक उपजाऊ बनती है, जिससे किसानों को दीर्घकालिक लाभ मिलता है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में एनपीके बायो कंसोर्टिया जैविक खेती और प्राकृतिक कृषि को और मजबूती देगा। किसानों के लिए यह तकनीक टिकाऊ, किफायती और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प के रूप में उभर रही है।

क्या है कंसोर्टिया एनपीके?

कंसोर्टिया एनपीके एक जैविक खाद (Biofertilizer) है जिसमें लाभकारी सूक्ष्मजीवों का समूह मौजूद होता है। ये सूक्ष्मजीव—

  • नाइट्रोजन (N) को स्थिर करते हैं
  • फॉस्फोरस (P) को घोलकर पौधों के उपयोग लायक बनाते हैं
  • पोटेशियम (K) को मिट्टी से पौधों तक पहुंचाते हैं

इससे मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती है और पौधे तेजी से एवं स्वस्थ तरीके से बढ़ते हैं। यह दलहनी, तिलहनी, अनाज, सब्जियों और फलों सहित हर फसल में उपयोगी है।

कंसोर्टिया NPK में मौजूद प्रमुख सूक्ष्मजीव

  • Azotobacter spp. – नॉन-लेग्यूम फसलों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण
  • Rhizobium spp. – दलहनी फसलों के लिए
  • Azospirillum spp. – अनाज, मोटे अनाज (बाजरा आदि) के लिए
  • फॉस्फेट घोलक बैक्टीरिया (PSB)
  • पोटैशियम मोबाइलाइजिंग बैक्टीरिया (KMB)

ये सभी मिलकर पौधों की जड़ों को मजबूत करते हैं और पोषक तत्वों का अवशोषण बढ़ाते हैं।

कैसे करें कंसोर्टिया एनपीके का उपयोग?

1. बीज उपचार

  • एनपीके कंसोर्टिया को पानी में मिलाकर 20 मिनट तक बीजों को भिगोएँ
  • बीज सुखाकर बुवाई करें

यह विधि अंकुरण और प्रारंभिक वृद्धि को तेज करती है।

2. मिट्टी में उपयोग

  • घोल बनाकर पौधों की जड़ों के पास डालें
  • गोबर की खाद या कंपोस्ट के साथ मिलाकर भी उपयोग किया जा सकता है

3. फोलियर स्प्रे

  • पानी में घोल बनाकर फसल पर स्प्रे किया जा सकता है
  • इससे पौधे पोषक तत्व जल्दी अवशोषित करते हैं

ध्यान दें: इसे किसी भी केमिकल फर्टिलाइज़र या कीटनाशक के साथ मिलाकर इस्तेमाल न करें।

कंसोर्टिया एनपीके के प्रमुख फायदे

  • पौधों को पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाता है
  • मिट्टी का स्वास्थ्य सुधारता है
  • रासायनिक उर्वरकों की जरूरत कम करता है
  • जड़ों और पौधों की वृद्धि तेज करता है
  • उपज में 10–20% तक वृद्धि संभव

कमजोर पौधे भी इसका उपयोग करने के बाद मजबूत होते हैं और फसल जल्दी तैयार होती है, जिससे किसानों को बेहतर बाजार मूल्य मिलता है।

बाजार में उपलब्ध श्रेष्ठ उत्पाद

  • यह तरल बायोफर्टिलाइज़र है
  • आवश्यक सूक्ष्मजीवों का सटीक संयोजन मौजूद
  • पोषक तत्वों के अवशोषण और पौधों की ऊर्जा को बढ़ाता है
  • उपज में उल्लेखनीय वृद्धि देता है
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‘हिंदू रहेगा तो ही दुनिया रहेगी’ – मोहन भागवत के बयान के मायने क्या हैं?

उन्होंने भारत को “अमर समाज और अमर सभ्यता” बताते हुए कहा कि इतिहास में न जाने कितनी महाशक्तियां आईं, थोड़े समय के लिए चमकीं और फिर मिट गईं, लेकिन भारत ने उनके उदय और पतन—दोनों का दौर देखा है और तमाम उतार–चढ़ाव के बावजूद आज भी मजबूती से खड़ा है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने हिंदू समाज को लेकर कह दी बड़ी बात
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar02 Dec 2025 12:56 AM
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत इन दिनों मणिपुर प्रवास पर हैं। इसी दौरान दिए गए उनके एक बयान ने नया राजनीतिक और वैचारिक विमर्श छेड़ दिया है। भागवत ने अपने संबोधन में हिंदू समाज की भूमिका, भारतीय सभ्यता की जड़ों और आत्मनिर्भर राष्ट्र की अवधारणा पर विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि दुनिया की कई प्राचीन सभ्यताएं वक्त के साथ इतिहास के पन्नों में सिमट गईं, लेकिन भारत आज भी मज़बूती से इसलिए खड़ा है क्योंकि हिंदू समाज ने सदियों के दौरान एक मजबूत और जीवंत सामाजिक ढांचा खड़ा किया है। भागवत के मुताबिक, अगर हिंदू नहीं रहेगा, तो दुनिया भी नहीं बचेगी, क्योंकि धर्म के सही अर्थ और उसके संतुलित मार्गदर्शन की सीख दुनिया को समय–समय पर हिंदू समाज ने ही दी है।

‘कई सभ्यताएं मिट गईं, भारत आज भी खड़ा है’

मणिपुर में दिए गए अपने संबोधन में मोहन भागवत ने दुनिया के इतिहास का ज़िक्र करते हुए कहा कि वक्त के थपेड़ों ने न जाने कितनी ताकतवर सभ्यताओं और साम्राज्यों को धराशायी कर दिया। उन्होंने याद दिलाया कि कभी यूनान, मिस्र और रोम जैसे देश और संस्कृतियां अपनी शक्ति के चरम पर थीं, लेकिन आज उनका वही वैभव कहीं दिखाई नहीं देता। भागवत के मुताबिक, परिस्थितियां हर समाज पर आती हैं, कई राष्ट्र और सभ्यताएं इन चुनौतियों के बीच खत्म हो गईं, लेकिन भारत की ‘हस्ती’ आज भी कायम है। उन्होंने भारत को “अमर समाज और अमर सभ्यता” बताते हुए कहा कि इतिहास में न जाने कितनी महाशक्तियां आईं, थोड़े समय के लिए चमकीं और फिर मिट गईं, लेकिन भारत ने उनके उदय और पतन—दोनों का दौर देखा है और तमाम उतार–चढ़ाव के बावजूद आज भी मजबूती से खड़ा है।

‘हिंदू समाज रहेगा तो दुनिया बचेगी’

अपने संबोधन में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू समाज को भारतीय सभ्यता की आत्मा करार दिया। उन्होंने कहा कि समय रहते समाज ने अपना बुनियादी ढांचा और सामाजिक नेटवर्क इस तरह तैयार किया कि हर संकट के बावजूद भारत का अस्तित्व सुरक्षित रहा। भागवत के मुताबिक, हमने ऐसी सामाजिक संरचना गढ़ी है, जिससे हिंदू समाज बना रहेगा। उनका कहना था कि अगर हिंदू नहीं रहेगा तो दुनिया भी नहीं रहेगी, क्योंकि धर्म का सही अर्थ और उसका संतुलित मार्गदर्शन समय–समय पर दुनिया को हिंदू समाज ही देता रहा है। यही, उनके शब्दों में, हिंदू समाज का ईश्वर प्रदत्त दायित्व है।

नक्सलवाद और ब्रिटिश राज का उदाहरण

अपने संबोधन में मोहन भागवत ने यह भी संदेश दिया कि कोई भी संकट हमेशा के लिए नहीं होता, बशर्ते समाज उसे खत्म करने का संकल्प ले ले। उन्होंने उदाहरण के तौर पर नक्सलवाद का ज़िक्र किया और कहा कि जब समाज ने ठान लिया कि अब हिंसा और आतंक बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे, तभी इसने अपनी पकड़ खोनी शुरू कर दी। इसी संदर्भ में उन्होंने अंग्रेज़ी हुकूमत की ओर इशारा करते हुए कहा कि एक समय था जब यह कहा जाता था – ब्रिटिश साम्राज्य पर सूर्य कभी अस्त नहीं होता। लेकिन उसी ब्रिटिश राज के पतन की कहानी भारत से शुरू हुई। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 तक, पूरे 90 साल तक देश ने आज़ादी के लिए निरंतर लड़ाई लड़ी। यह वह आवाज़ थी, जिसे कभी पूरी तरह दबने नहीं दिया गया – कभी धीमी पड़ी, कभी बुलंद हुई, लेकिन खत्म होने नहीं दी।

‘देश को आर्थिक, सैन्य और ज्ञान के स्तर पर आत्मनिर्भर बनना होगा’

भाषण के एक बड़े हिस्से में भागवत ने आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी सोच पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि केवल राजनीतिक आज़ादी काफी नहीं, देश की अर्थव्यवस्था को भी इस स्तर पर मजबूत होना होगा कि वह किसी बाहरी ताकत या मदद पर निर्भर न रहे। उन्होंने कहा - हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह आत्मनिर्भर होनी चाहिए। हमें किसी पर डिपेंडेंट नहीं रहना है। हमारे पास आर्थिक क्षमता, सैन्य क्षमता और ज्ञान की क्षमता – तीनों होनी चाहिए और लगातार बढ़नी चाहिए। हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि देश सुरक्षित रहे, समृद्ध रहे और ऐसा भारत बने जहाँ कोई नागरिक दुखी, दरिद्र या बेरोजगार न हो। हर व्यक्ति देश के लिए काम करे और आनंद से जीवन जी सके।

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वैज्ञानिकों ने खोला कॉकरोच की अटूट जीवित रहने की क्षमता का राज

दुनिया का इतिहास परमाणु युद्ध और रेडिएशन की कहानियों से भरा पड़ा है, जहां मानव जीवन और पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है। लेकिन इन तबाहियों के बीच एक जीव ऐसा है, जो अपनी अद्भुत जीवित रहने की क्षमता के कारण वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित कर रहा है।

Cockroaches and nuclear disaster
कॉकरोच और परमाणु आपदा (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar30 Nov 2025 04:08 PM
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बता दें कि 1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु बम विस्फोटों के बाद, पूरे विश्व में यह चर्चा तेज हो गई थी कि मानव सभ्यता खत्म हो जाएगी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, उस विनाशकारी हमले के बाद भी वैज्ञानिकों ने देखा कि कॉकरोच बड़ी संख्या में जिंदा पाए गए। यह तथ्य पूरे विश्व के लिए हैरान कर देने वाला था।

कैसे जिंदा रह गए कॉकरोच?

वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया है कि कॉकरोच परमाणु रेडिएशन को बहुत अधिक सहन कर सकते हैं। इंसानों की तुलना में, जिनके मौत का स्तर 800 रैड तक पहुंचने पर हो जाता है, कॉकरोच 10,000 रैड तक रेडिएशन का सामना कर सकते हैं। इसका कारण उनके शरीर की कोशिकाओं की धीमी विभाजन प्रक्रिया है, जो रेडिएशन के प्रति उनकी सहनशीलता को बढ़ाती है।

रेडिएशन का असर क्यों नहीं होता इन पर?

इंसानों में कोशिकाएं बहुत तेजी से विभाजित होती हैं, और रेडिएशन इन कोशिकाओं को तुरंत नुकसान पहुंचाता है। लेकिन कॉकरोच की कोशिकाएं हफ्तों में केवल एक बार विभाजित होती हैं, जिससे रेडिएशन का प्रभाव कम होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यही वजह है कि ये जीव रेडिएशन के बीच भी जीवित रह जाते हैं।

जापान के धमाकों को भी सहन कर गए

जापान में हुए परमाणु धमाकों के दौरान रेडिएशन का स्तर लगभग 10,300 रैड था, जो इंसानों के लिए जानलेवा था। परंतु, कॉकरोच इस रेडिएशन को भी झेल गए। इस अद्भुत क्षमता ने वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है कि यदि कभी पृथ्वी पर कोई कयामत की तबाही होती है, तो कॉकरोच सबसे लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।

कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कॉकरोच मजबूत तो हैं, लेकिन “अटल” (अमर) नहीं। उदाहरण के लिए, एक विज्ञान शिक्षक ने यह बताया है कि अगर उन्हें सीधे परमाणु धमाके के केंद्र (blast zone) में छोड़ा जाए, तो उनकी मौत तापमान की वजह से निश्चित है। एक जीवविज्ञानी ने भी कहा है कि अन्य कीड़े जैसे कुछ प्रकार की चींटियाँ या कीड़े जो जमीन में गहरे रहते हैं अप्रत्याशित रूप से अधिक जीवित रहने की संभावना रख सकते हैं।