मोदी के अमेरिकी यात्रा पर दिखा 'एम' फैक्टर का असर!

Modi in US
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locationभारत
userचेतना मंच
calendar26 Sep 2021 08:06 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा, क्वॉड बैठक और यूएनजीसी में संबोधन को भारतीय मीडिया इस तरह दिखा रहा है जैसे मोदी ने नया इतिहास रच दिया है।

इसके पीछे मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की अपनी मजबूरियां और कमजोरियां हैं। स्टूडियो पत्रकारिता का बढ़ता चलन और ग्राउंड रिपोर्टिंग की कमी का यही अंजाम होना था।

भारतीय मीडिया से अलग मोदी की इस यात्रा से जुड़ा एक ऐसा तथ्य है जिसपर बहुत ही कम बात हुई है। यह बात भारत और अमेरिका की विदेश नीति और आंतरिक राजनीति से भी गहराई से जुड़ी हुई है।

हमें नहीं भूलना चाहिए कि किसी भी देश की विदेश नीति पर वहां की तात्कालिक सरकार, उसकी विचारधारा और आंतरिक राजनीति का गहरा प्रभाव होता है। आइए जानते हैं कैसे...

भारतीय राजनीति पर समाजवाद का प्रभाव भारत की आजादी के समय दुनिया शीत युद्ध की राजनीति का शिकार थी। राजनीति में थोड़ी सी भी रुचि रखने वाला व्यक्ति जानता है कि नेहरू समाजवाद के प्रशंसक थे। भले ही वह गुटनिरपेक्ष आंदोलन को समर्थन दे रहे थे।

उस वक्त की भारतीय विदेश नीति पर नेहरू के समाजवाद का सीधा असर था। भारत का स्पष्ट झुकाव तत्कालीन सोवियत संघ की ओर था। भिलाई स्टील प्लांट से लेकर आईआईटी मुंबई की स्थापना में रूस के योगदान का इतिहास गवाह है।

इंदिरा युग में और भी मजबूत हुआ समाजवादी प्रभाव इसमें कोई दो राय नहीं कि रूस के साथ इस गठबंधन से भारत को फायदा हुआ। नेहरू के बाद इंदिरा गांधी ने भी समाजवाद के प्रति रुझान जारी रखा। 1971 में इंदिरा सरकार ने सोवियत सरकार के साथ सामरिक समझौता (Indo–Soviet Treaty of Peace, Friendship and Cooperation) किया। यह समझौते अमेरिका और पाकिस्तान के बीच बढ़ रही नजदीकी का कूटनीतिक जवाब था।

समाजवाद के प्रति इस लगाव के चलते कांग्रेस को आंतरिक या राष्ट्रीय राजनीति में भी फायदा हो रहा था। सर्वहारा (have-nots) यानी गरीबों की चिंता करने वाली इस विचारधारा का विरोध किसी भी पार्टी के लिए संभव नहीं था। इंदिरा सरकार में गरीबी हटाओ का नारा बुलंद हो रहा था।

आंतरिक राज​नीति और अर्थव्यवस्था पर दिखा गहरा असर समाजवाद के नाम पर लाइसेंस, कोटा, परमिट राज और राष्ट्रीयकरण की आंधी चल रही थी। मिट्टी तेल से लेकर कार और स्कूटर खरीदने तक के लिए सरकार से परमिट लेना पड़ता था।

समय के साथ समाजवाद ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। नब्बे का दशक आते-आते सोवियत संघ का विघटन हो गया। यही वह दौर है जब भारत में कांग्रेस पार्टी के कमजोर होने की औपचारिक शुरुआत हुई। 1989 के बाद कांग्रेस को कभी भी लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला।

इसी उसी दौरान भारत घोर आर्थिक संकट का शिकार हुआ। सोवियत संघ के विघटन और भारत में चुनाव के बाद 1991 में पहली बार कांग्रेस पार्टी की ऐसी सरकार बनी जिसमें नेहरू परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं था।

भारत ने पहली बार किया आर्थिक और विदेश नीति में किया बदलाव प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने देश की कमजोर हो चुकी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उदारवादी आर्थिक नीतियों को अपनाने का फैसला किया और मनमोहन सिंह जैसे गैर राजनीतिक व्यक्ति को देश का वित्त मंत्री बनाया।

सोवियत संघ के विघटन के बाद दुनियाभर में यह आम धारणा बनी कि आर्थिक विकास का रास्ता उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG: Liberalisation, Privatisation and Globalisation) से होकर गुजरता है। भारत ने अपनी नई आर्थिक नीति (India’s New Economic Policy: July 24, 1991) में इसे औपचारिक तौर पर स्वीकार किया।

आंतरिक राजनीति में आए इस बदलाव का भारत की विदेश नीति पर भी असर हुआ। तब से लेकर आज तक भारत यह साबित करने में लगा हुआ है कि वह अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी है।

बदलाव के बाद 15 साल तक करना पड़ा संघर्ष 1989 से लेकर 2014 तक भारत में किसी भी राजनीतिक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। गठबंधन की सरकारों का असर भारत की विदेश नीति पर भी दिखा।

लगभग एक दशक तक अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भारत का प्रभाव न के बराबर था। इस दौरान भारत की आंतरिक राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया। 2014 और 2019 के दो लोकसभा चुनावों में एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिला।

नई सरकार के असर को दुनियाभर में स्वीकार किया गया। अमेरिकी संस्थाओं तक ने माना कि फिलहाल, नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे लोकप्रिय नेता हैं।

भारत और अमेरिका की राजनीति में कॉमन है ये बात इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय जनता पार्टी की राजनीति हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर आधारित है। कांग्रेस इस विचारधारा का खुलकर विरोध भले न करे लेकिन, वह इससे सहमति नहीं रखती।

बीजेपी-कांग्रेस की तरह अमेरिका में भी सत्ता के लिए रिपब्लिकन और डेमाक्रेट के बीच संघर्ष है। फिलहाल, अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी की सरकार है जिसे वहां के मुसलमानों का समर्थन हासिल है। जबकि, डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी को इस समुदाय का वोट नहीं मिलता।

सत्ता परिवर्तन का विदेश नीति पर दिखा असर देश में जो राजनीतिक दल सत्ता में होता है उसकी विचारधारा का असर राष्ट्रीय राजनीति और विदेश नीति पर पड़ना स्वाभाविक है। यही कारण है कि अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस ने मौका मिलते ही नरेंद्र मोदी को सलाह दे डाली कि हमें अपने देश में राजनीतिक संस्थाओं और सिद्धांतों को बचाने का प्रयास करना चाहिए।

साफ है कि उनकी सलाह के पीछे अमेरिका के उस खास तबके का दबाव है जो मोदी व बीजेपी की हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की नीति को पसंद नहीं करता। लेकिन, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले सात सालों में भारतीय लोकतंत्र की छवि पर सवाल उठे हैं। ठीक वैसे ही जैसे अफगानिस्तान से सेना हटाने के बाद अमेरिका की इमेज को नुकसान हुआ है।

क्यों भारत से है पश्चिमी देशों को उम्मीद असल में अमेरिका सहित सभी पश्चिमी देशों को भारत से काफी उम्मीदें हैं क्योंकि, चीन के खिलाफ लड़ाई में वह एशिया का सबसे मजबूत सहयोगी साबित होने की क्षमता रखता है।

भारत पर भरोसा करने की सबसे बड़ी वजह लोकतंत्र है। इतनी विविधताओं के बावजूद भारत का एक लोकतांत्रिक देश के तौर पर मजबूती के साथ आगे बढ़ना, दुनिया को चौंकाता है।

शायद यही वजह है कि कमला हैरिस की सलाह के बावजूद मोदी जैसे मजबूत नेता ने इस पर किसी तरह की प्रतिक्रिया देना उचित नहीं समझा।

- संजीव श्रीवास्तव

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27 September 2021-भारत बंद, जाने क्या-क्या खुला रहेगा

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27 September 2021 Bharat bandh (PC- TV9 Bharatvarsh)
locationभारत
userसुप्रिया श्रीवास्तव
calendar30 Nov 2025 12:17 PM
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27 सितम्बर 2021भारत बंद- (27 September 2021 Bharat Bandh) किसान आंदोलनकारियों ने 27 सितंबर को होने वाले भारत बंद की तैयारी पूरी कर ली है। यह आंदोलन सुबह 6 बजे शुरू होगा जो शाम को 4 बजे तक चलेगा। इस दौरान सभी आंदोलनकारी किसान दिल्ली के सभी बॉर्डर पर धरना देंगे। इस आंदोलन में ग्रामीण किसानों को सम्मिलित नहीं किया जाएगा। गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों को ही NH24 व NH9 मार्ग की ट्रैफिक को बन्द करने की अनुमति है।

उत्तर प्रदेश राज्य के राजवीर सिंह जो कि किसान यूनियन के अध्यक्ष ने जानकारी दी है कि काफी भारी संख्या में किसान पहले से आंदोलन में मौजूद है। आंदोलन में मौजूद यही किसान भारत बंद कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। जबकि उत्तर प्रदेश राज्य की अलग-अलग जिलों से किसान इस आंदोलन में सम्मिलित होने के लिए नहीं आएंगे। यह सारे किसान अपने अपने जिले में ही भारत बन्द आयोजन को अंजाम देंगे। यूपी के अध्यक्ष जादौन ने यह बात साफ कर दी है कि यदि पुलिस आंदोलनकारियों को हटाने के लिए कोई भी कदम बढ़ाती है तो आंदोलनकारी जेल जाने को तैयार है लेकिन धरने से उठने को तैयार नहीं है।

27 सितम्बर भारत बंद (27 September 2021 Bharat Bandh) के दौरान क्या-क्या रहेगा खुला व क्या-क्या रहेगा बन्द- किसान किसान आंदोलन के तहत 27 सितंबर को सुबह 6 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक भारत बंद रहेगा। इस दौरान बाजार, सरकारी एवं निजी दफ्तर, शिक्षण संस्थान व सभी दुकानें बन्द रहेगी।

ये रहेगा खुला - भारत बंद का असर अस्पताल, राहत एवं बचाव कार्य, इमरजेंसी सेवाओं, दवा की दुकानों, सामाजिक निजी प्रतिष्ठानों पर नहीं पड़ेगा। इसके साथ ही आंदोलनकारियों को यह साफ हिदायत दे दी गई है कि यदि वह एंबुलेंस सायरन की आवाज सुनते हैं तो उन्हें रास्ता देने के लिए उठना पड़ेगा। जानकारी के लिए आपको बता दें किसान आंदोलन के समर्थन में कई प्राइवेट ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन भी जुड़े हुए है, ऐसे में देश बंदी के दौरान सड़कों पर गाड़ियां भी नाम मात्र की ही दिखेंगी।

इन राजनीतिक पार्टियों ने आंदोलन का किया समर्थन- किसान आंदोलन के समर्थन में कई राजनीतिक पार्टियां भी सामने आई है इनमें कांग्रेस पार्टी का नाम सबसे ऊपर है। कांग्रेस पार्टी (Congress) के प्रवक्ता गौरव वल्लभ (Gaurav Vallabh) ने इस बात की पुष्टि की है कि वह शांतिपूर्ण ढंग से किसानों के भारत बंद आंदोलन का समर्थन करेंगे। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी(AAM) के नेता राघव चड्ढा (Raghav Chaddha) ने भी ट्वीट करके कहा है कि - 'आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल हमेशा काले कानूनों के खिलाफ किसानों के साथ खड़े हैं।

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27 सितम्बर भारत बंद (27 September 2021 Bharat Bandh) के मद्देनजर राजधानी के सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई गई-

भारत बंद आंदोलन को मद्देनजर रखते हुए राजधानी की सीमाओं की सुरक्षा व्यवस्था को बढ़ा दिया गया है। इस बात की पुष्टि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने की है। अधिकारी ने बताया है कि राजधानी की सीमाओं को पूरी तरह से सुरक्षित कर दिया गया है। प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में प्रवेश की अनुमति नहीं है। उन्होंने बताया कि दिल्ली में भारत बंद का कोई आह्वान नहीं किया गया है। पर्याप्त सुरक्षा बलों को तैयार कर दिया गया है। घटनाक्रम पर पूरी तरह से ध्यान दिया जा रहा है।

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Ajab Gajab : इस मंदिर में की जाती है योनि की पूजा, जानें क्या है इसका रहस्य ?

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar26 Sep 2021 04:17 PM
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Ajab Gajab :  अक्सर आपने देखा होगा कि देवी दुर्गा maa durga के मंदिरों में मां भगवती के शरीर के उपरी स्वरुप की पूजा की जाती है। लेकिन भारत में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां पर योनि yoni की पूजा की जाती है। श्रद्धालु इसी रुप में देवी की पूजा करते हैं और देवी भी श्रद्धालुओं की मनोकामनाओं को पूर्ण करती है।

यह मंदिर है कामाख्या देवी का मंदिर। ये वो मंदिर है जहां योनि की पूजा की जाती है। आसाम में नीलचंद पहाड़ी के पास गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर दूर यह मंदिर एक ऐसा स्थान है जहां 52 शक्तिपीठों में से एक कामख्या शक्तिपीठ है। आपको बता दें यह सबसे पुराना शक्तिपीठ है और जब सती को उनके पिता दक्ष ने अपनी पुत्री सती और उसके पति शंकर को यज्ञ में अपमानित किया और शिव जी को अपशब्द कहे तो सती ने दुखी होकर अपनी आहुति यज्ञ कुंद कुंड में दे दी थी। जिसके बाद उनके 51 टुकड़े हुए जो की 51 शक्ति पीठ कहलाए कहां जाता है।

ख़ास बात यह है कि सती का योनि अंग कामाख्या में आकर गिरा और इसी वजह से इस वजह से यहाँ योनि की पूजा की जाती है। मंदिर के बीचों-बीच एक योनि आकर का कुंड है जिसमें से हमेशा पानी निकलता रहता है। इस जगह पर एक भव्य मेले का आयोजन होता है। कहा जाता है कि देवी सती से उनके पिता इसलिए नाराज़ थे क्योंकि उन्होंने उनके खिलाफ जाकर शिव जी से विवाह किया था।

जाने मंदिर कि कुछ ख़ास बातें

इस मंदिर के अंदर एक भी देवी माँ या सती की मूर्ति देखने को नहीं है जो इसे अपने-आप में ही खास बनता है।

हर साल जून में यहाँ पूरे भारत से कोई साधू आते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं, इस जगह को तंत्र विद्या का सबसे बड़ा केंद्र माना गया है।

कहा जाता है कि इस जगह पर मां का योनि भाग गिरा था, जिस वजह से यहां पर माता हर साल तीन दिनों के लिए रजस्वला होती हैं।