वोटर वेरिफिकेशन पर सियासी घमासान! विपक्ष को किस बात की है चिंता?

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locationभारत
userचेतना मंच
calendar28 Nov 2025 08:18 AM
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Bihar Voter Verification :  बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर जबरदस्त सियासी बवाल खड़ा हो गया है। जहां चुनाव आयोग इसे एक जरूरी और नियमित प्रक्रिया बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला और गरीब-अल्पसंख्यकों को मताधिकार से वंचित करने की साजिश करार दे रहा है। यह मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंच चुका है, जहां 10 जुलाई को सुनवाई होनी है।

क्या है यह विवाद और कैसे बना राजनीतिक तूफान?

भारत निर्वाचन आयोग हर चुनाव से पहले मतदाता सूची को अद्यतन करता है, ताकि मृत या फर्जी नाम हटाए जा सकें और नए पात्र मतदाताओं को जोड़ा जा सके। बिहार में इस बार यह प्रक्रिया 22 वर्षों के बाद विशेष रूप से गहन रूप में की जा रही है। कुल 7.89 करोड़ मतदाताओं के दस्तावेजों की जांच की जा रही है, जिनमें आधार, जन्म प्रमाणपत्र, 1987 से पूर्व के राशन कार्ड, या माता-पिता के जन्म संबंधी दस्तावेज शामिल हैं। आयोग का तर्क है कि यह कदम पारदर्शिता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। लेकिन विपक्ष को इस प्रक्रिया की मंशा पर संदेह है।

विपक्ष का आरोप: यह ‘वोटबंदी’ है

राजद, कांग्रेस और AIMIM जैसे दलों ने इस प्रक्रिया पर कड़ा ऐतराज जताया है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस कवायद को ‘वोटबंदी’ करार देते हुए कहा है कि यह गरीब, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों के मतों को समाप्त करने की सुनियोजित रणनीति है।
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इसे ‘नागरिकता प्रमाणन की आड़ में मताधिकार छीनने की कोशिश’ बताया।

विपक्ष के मुख्य आपत्ति बिंदु

  • समय की कमी: चुनाव निकट हैं और इतनी बड़ी आबादी के दस्तावेजों की जांच एक-दो महीनों में निष्पक्षता से संभव नहीं।

  • दस्तावेजों की पेचीदगी: गांवों, खासकर आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के पास पुराने दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं।

  • अस्थिर दिशा-निर्देश: पहले दस्तावेज जमा करने की छूट की बात हुई, फिर 25 जुलाई की अनिवार्य समयसीमा घोषित कर दी गई, जिससे भ्रम फैला।

  • राजनीतिक दुर्भावना का आरोप: विपक्ष को आशंका है कि इस प्रक्रिया का उपयोग चुनिंदा समुदायों के मतदाता नाम हटाने में किया जाएगा, जिससे सत्तारूढ़ एनडीए को लाभ हो।

तेजस्वी यादव का दावा है कि 2 से 4 करोड़ मतदाता इस प्रक्रिया में बाहर हो सकते हैं — जिनमें से बड़ी संख्या वंचित वर्गों की है।

चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह एक नियमित प्रक्रिया है, जिसका मकसद केवल मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करना है। आयोग के अनुसार, 24 जून को जो दिशा-निर्देश जारी किए गए, उनमें कोई बदलाव नहीं हुआ है, और सभी योग्य नागरिकों का नाम सूची में शामिल करना आयोग की प्राथमिकता है। एनडीए के नेता इस प्रक्रिया का समर्थन करते हुए कह रहे हैं कि इससे वास्तविक मतदाता सूची तैयार होगी। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि “जिन्हें डर है, शायद वही गलत हैं।” बीजेपी नेताओं का भी कहना है कि विपक्ष ‘फर्जी वोट बैंक’ खोने के डर से बौखलाया हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंचा मुद्दा

इस बीच, विपक्ष ने कानूनी दांव चलाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, महुआ मोइत्रा और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने इस प्रक्रिया को रोकने की मांग की है। वहीं, वकील अश्विनी उपाध्याय ने पूरे देश में इसी तरह की पुनरीक्षण प्रक्रिया लागू करने की याचिका दाखिल कर दी है, जिससे मामला और व्यापक हो गया है।

अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट की 10 जुलाई की सुनवाई पर टिकी हैं। यदि कोर्ट इस प्रक्रिया पर रोक लगाता है, तो विपक्ष को बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन यदि इसे जारी रखने की अनुमति मिलती है, तो बिहार की चुनावी राजनीति और अधिक गरमा सकती है।    Bihar Voter Verification

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विवादों में घिरी Udaipur Files को मिली हरी झंडी, इस दिन होगी रिलीज

Udaipur Files
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locationभारत
userचेतना मंच
calendar30 Nov 2025 07:28 PM
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Udaipur Files : बॉलीवुड फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ पर रोक लगाने की मांग को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दिया है। 2022 में हुए कन्हैयालाल हत्याकांड पर आधारित उदयपुर फाइल्स फिल्म को लेकर कोर्ट में याचिका दायर की गई थी जिसे आज अदालत ने खारिज कर दिया। अब उदयपुर फाइल्स फिल्म तय कार्यक्रम के अनुसार शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज होगी।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता मोहम्मद जावेद, जो कन्हैयालाल मर्डर केस का एक आरोपी है, की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि, “फिल्म को रिलीज होने दीजिए यदि कोई आपत्ति है तो ट्रायल कोर्ट के सामने उठाई जाए।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस स्तर पर फिल्म पर रोक लगाने के पक्ष में नहीं है और इस मुद्दे पर सुनवाई से भी इनकार कर दिया।

क्यों मच रहा है विवाद?

फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ को लेकर विवाद इसलिए गहराया है क्योंकि यह कथित तौर पर 2022 में हुए उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड की घटनाओं पर आधारित है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद समेत कुछ संगठनों ने आरोप लगाया है कि फिल्म में नूपुर शर्मा के बयान, ज्ञानवापी विवाद और धार्मिक समुदाय विशेष को टारगेट करने वाले दृश्य शामिल हैं जो सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ सकते हैं। इन्हीं आशंकाओं के चलते दिल्ली, महाराष्ट्र और गुजरात हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई हैं, जिनमें फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने और सेंसर बोर्ड (CBFC) द्वारा दिए गए प्रमाण-पत्र को रद्द करने की मांग की गई है।

फिल्म निर्माताओं का पक्ष क्या है?

फिल्म के निर्माता और वकील इसे सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्म बता रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि इसका उद्देश्य समाज को जागरूक करना है न कि किसी समुदाय को बदनाम करना। सुप्रीम कोर्ट में फिल्म की ओर से पेश वकील ने कहा कि, “फिल्म शुक्रवार को रिलीज होनी है, ऐसे में अब रोक लगाना अनुचित होगा।” Udaipur Files

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महानगरों में घर बना टेंशन की जड़, टियर-2 शहरों में जिंदगी बनी आसान

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Real Estate
locationभारत
userचेतना मंच
calendar09 Jul 2025 05:22 PM
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Real Estate :  आज के समय में जहां महानगरों में घर खरीदना आम आदमी के लिए एक आर्थिक चुनौती बनता जा रहा है, वहीं देश के टियर-2 शहरों में लोग अपेक्षाकृत सुकून और संतुलित जीवन जी रहे हैं। घर की खरीददारी को लेकर 'होम फर्स्ट फाइनेंस' द्वारा किए गए हालिया सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि छोटे शहरों में न केवल मकान अधिक किफायती हैं, बल्कि लोगों की जीवनशैली और मानसिक संतुलन पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ा है।

महानगरों में खर्च ज्यादा

सर्वे में शामिल अधिकांश मेट्रो सिटी निवासियों ने माना कि घर खरीदने के बाद बढ़ती EMI, महंगा रख-रखाव और दिन-ब-दिन ऊंचे होते जीवन-स्तर की वजह से उनकी मासिक आय पर गंभीर दबाव पड़ा है। सर्वे के अनुसार, जिन परिवारों ने आर्थिक तनाव और वित्तीय जिम्मेदारियों की बात कही, उनमें से 58 प्रतिशत महानगरों से थे। दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में दो बेडरूम फ्लैट की कीमतें अब औसतन 1.7 करोड़ रुपये के आसपास पहुंच चुकी हैं। दिल्ली - NCR में हालात और भी ज्यादा गंभीर हैं। यदि कोई व्यक्ति दो लाख रुपये की मासिक आय पर 2BHK फ्लैट खरीदता है, तो स्कूल फीस, घर की किस्त और अन्य खर्चों के चलते उसके लिए बचत करना लगभग असंभव हो जाता है।

छोटे शहरों में मकान सस्ते

वहीं दूसरी ओर, टियर-2 शहरों की तस्वीर काफी अलग है। यहां घरों की कीमतें तुलनात्मक रूप से काफी कम हैं, जिससे मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बिना समझौता किए मासिक किस्तें चुकाना आसान हो जाता है। सर्वे के अनुसार, छोटे शहरों में रहने वाले 50 प्रतिशत लोगों की घरेलू आय घर खरीदने के बाद बढ़ी है और 56 प्रतिशत ने अपनी बचत में इजाफा दर्ज किया है। सर्वे में शामिल 51 प्रतिशत घर खरीदारों ने कहा कि घर खरीदने के बाद उन्हें मानसिक शांति, सुरक्षा और स्थिरता का अनुभव हुआ। किराए की अनिश्चितता, मकान मालिक की दखलअंदाजी और बार-बार घर बदलने की मजबूरी से मुक्ति ने उन्हें जीवन की दीर्घकालिक योजना में आत्मविश्वास दिया है। परिवार अब शिक्षा, स्वास्थ्य और भविष्य की योजनाओं में खुलकर निवेश कर पा रहे हैं। Real Estate

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