International Gurjar day 2024 : आज है गुर्जर समाज का सबसे बड़ा दिन, जाने गुर्जर दिवस को

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International Gurjar Day 2024
locationभारत
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calendar22 Mar 2024 03:43 PM
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डॉ. सुशील भाटी International Gurjar Day 2024 : आज (22 मार्च 2024) अंतर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस है। इस अवसर पर देशभर में अनेक कार्यक्रम हो रहे हैं। बता दें कि हर वर्ष 22 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष गुर्जर समाज में आज के दिन कुछ अधिक ही उत्साह देखने को मिल रहा है। आज देशभर में दो दर्जन से अधिक स्थानों पर गुर्जर समाज के आयोजन हो रहे हैं।

International Gurjar Day 2024

22 मार्च को ही क्यों मनाया जाता है गुर्जर दिवस

गुर्जर एक वैश्विक समुदाय है जोकि प्राचीन काल से भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान और कुछ मध्य एशियाई देशों में रह रहा हैं। एलेग्जेंडर कनिंघम ने कुषाणों की पहचान गुर्जरों से की हैं। उसके अनुसार गुर्जरों का कसाना गोत्र ही प्राचीन कुषाण हैं। डॉ. सुशील भाटी ने इस मत का अत्यधिक विकास किया हैं और इस विषय पर अनेक शोध पत्र लिखे हैं, जिसमें “गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिद्धांत” काफी चर्चित हैं। उनका कहना है कि ऐतिहासिक तोर पर कनिष्क द्वारा स्थापित कुषाण साम्राज्य गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हैं। कनिष्क का साम्राज्य भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि उन सभी देशों में फैला हुआ था जहां आज गुर्जर रहते हैं। कनिष्क के साम्राज्य की एक राजधानी मथुरा भारत में तथा दूसरी पेशावर पाकिस्तान में थी। कनिष्क के साम्राज्य का एक वैश्विक महत्व हैं, दुनिया भर के इतिहासकार इसमें रूचि रखते हैं। कनिष्क के साम्राज्य के अतरिक्त गुर्जरों से सम्बंधित ऐसा कोई अन्य साम्राज्य नहीं हैं जोकि पूरे दक्षिणी एशिया में फैले गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इससे अधिक उपयुक्त हो। यहां तक कि मिहिर भोज द्वारा स्थापित प्रतिहार साम्राज्य केवल उत्तर भारत तक सीमित था तथा पश्चिमोत्तर में करनाल इसकी बाहरी सीमा थी।

यह भी जानना ज़रूरी है

कनिष्क के राज्यकाल में भारत में व्यापार और उद्योगों में अभूतपूर्व तरक्की हुई, क्योंकि मध्य एशिया स्थित रेशम मार्ग, जोकि समकालीन अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्ग था तथा जिससे यूरोप और चीन के बीच रेशम का व्यापार होता था, पर कनिष्क का नियंत्रण था। भारत के बढ़ते व्यापार और आर्थिक उन्नति के इस काल में तेजी के साथ नगरीकरण हुआ। इस समय पश्चिमोत्तर भारत में करीब 60 नए नगर बसे। इन नगरों में एक कश्मीर स्थित कनिष्कपुर था। बारहवीं शताब्दी के इतिहासकार कल्हण ने अपनी राजतरंगिनी में कनिष्क द्वारा कश्मीर पर शासन किये जाने और उसके द्वारा कनिष्कपुर नामक नगर बसाने का उल्लेख किया गया है। सातवीं शताब्दी कालीन गुर्जर देश (आधुनिक राजस्थान क्षेत्र) की राजधानी भीनमाल थी। भीनमाल नगर के विकास में भी कनिष्क का बहुत बड़ा योगदान था। प्राचीन भीनमाल नगर में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण कश्मीर के राजा कनक (सम्राट कनिष्क) ने कराया था। कनिष्क ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भीनमाल से सात कोस पूर्व ने कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है। कहते हैं कि भीनमाल के वर्तमान निवासी देवडा लोग एवं श्रीमाली ब्राह्मण कनक (कनिष्क) के साथ ही काश्मीर से आए थे। कनिष्क ने ही पहली बार भारत में कनिष्क ने ही बड़े पैमाने सोने के सिक्के चलवाए।

अनेक विद्वान थे दरबार में

कनिष्क के दरबार में अश्वघोष, वसुबंधु और नागार्जुन जैसे विद्वान थे। आयुर्विज्ञानी चरक और श्रुश्रत कनिष्क के दरबार में आश्रय पाते थे। कनिष्क के राज्यकाल में संस्कृत सहित्य का विशेष रूप से विकास हुआ। भारत में पहली बार बोद्ध साहित्य की रचना भी संस्कृत में हुई। गांधार एवं मथुरा मूर्तिकला का विकास कनिष्क महान के शासनकाल की ही देन हैं।

शक संवत का प्रारंभ

अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार कनिष्क ने अपने राज्य रोहण के अवसर पर 78 ईस्वीं में शक संवत प्रारम्भ किया। शक संवत भारत का राष्ट्रीय संवत हैं। शक संवत भारतीय संवतों में सबसे ज्यादा वैज्ञानिक, सही तथा त्रुटिहीन हैं। शक संवत भारत सरकार द्वारा कार्यलीय उपयोग लाया जाना वाला अधिकारिक संवत हैं। शक संवत का प्रयोग भारत के ‘गज़ट’ प्रकाशन और ‘आल इंडिया रेडियो’ के समाचार प्रसारण में किया जाता है। भारत सरकार द्वारा ज़ारी कैलेंडर, सूचनाओं और संचार हेतु भी शक संवत का ही प्रयोग किया जाता हैं।

International Gurjar Day 2024 – गुर्जर दिवस

भारत सरकार द्वारा 1954 में गठित प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक मेघनाथ साहा की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय संवत सुधार समिति के अनुसार शक संवत प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को आरम्भ होता है। डॉ. सुशील भाटी का मत है कि क्योंकि शक संवत 22 मार्च को शुरू होता हैं अतः 22 मार्च कनिष्क के राज्य रोहण की तिथि हैं। उनका कहना हैं कि यह दिन भारतीय विशेषकर गुर्जर इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, इसलिए यह दिन अन्तर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। यह तिथि अन्तर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस मनाने के लिए इसलिए भी उचित है। गुर्जरों के प्राचीन इतिहास में यह एक मात्र तिथि हैं, जिसे अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्य पूरी दुनिया में प्रचलित कलेंडर के अनुसार निश्चित किया जा सकता हैं। अतः अन्य पंचांगों पर आधारित तिथियों की विपरीत यह भारत, पाकिस्तान अफगानिस्तान अथवा अन्य जगह जहां भी गुर्जर निवास करते हैं, यह एक ही रहेगी, प्रत्येक वर्ष बदलेगी नहीं। कनिष्क द्वारा अपने राज्य रोहण पर प्रचलित किया गया शक संवत प्राचीन काल में भारत में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता था। भारत में शक संवत का व्यापक प्रयोग अपने प्रिय सम्राट कनिष्क के प्रति प्रेम और सम्मान का सूचक है और उसकी कीर्ति को अमर करने वाला हैं। प्राचीन भारत के महानतम ज्योतिषाचार्य वाराहमिहिर (500 इस्वीं) और इतिहासकार कल्हण (1200 इस्वीं) अपने कार्यों में शक संवत का प्रयोग करते थे। प्राचीन काल में उत्तर भारत में कुषाणों और शको के अलावा गुप्त सम्राट भी मथुरा के इलाके में शक संवत का प्रयोग करते थे। दक्षिण के चालुक्य और राष्ट्रकूट और राजा भी अपने अभिलेखों और राजकार्यों में शक संवत का प्रयोग करते थे।

गुर्जर समाज का निशान

सम्राट कनिष्क के सिक्कों पर पाए जाने वाले राजसी चिन्ह को कनिष्क का तमगा भी कहते हैं, तथा इसे आज अधिकांश गुर्जर समाज अपने प्रतीक चिन्ह के रूप में देखता हैं। कनिष्क के तमगे में ऊपर की तरफ चार नुकीले काटे के आकार की रेखाए हैं तथा नीचे एक खुला हुआ गोला हैं इसलिए इसे चार शूल वाला ‘चतुर्शूल तमगा” भी कहते हैं। कनिष्क का चतुर्शूल तमगा सम्राट और उसके वंश/‘कबीले’ का प्रतीक हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना हैं कि चतुर्शूल तमगा शिव की सवारी ‘नंदी बैल के पैर के निशान’ और शिव के हथियार ‘त्रिशूल’ का ‘मिश्रण’ हैं, अतः इस चिन्ह को शैव चिन्ह के रूप में स्वीकार करते हैं। डॉ. सुशील भाटी, जिन्होंने इस चिन्ह को गुर्जर प्रतीक चिन्ह के रूप में प्रस्तावित किया हैं, इसे शिव के पाशुपतास्त्र और नंदी के खुर (पैर के निशान) का समिश्रण मानते हैं, क्योंकि शिव के पाशुपतास्त्र में चार शूल होते हैं। गुर्जर प्रतीक के रूप में कनिष्क के राजसी चिन्ह को अधिकांश गुर्जरों द्वारा अपनाये जाने से 22 मार्च अन्तर्राष्ट्रीय गुर्जर दिवस और अधिक प्रसांगिक हो गया है।  International Gurjar Day 2024  

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मैंने ईश्वर को देखा है !!

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Hindi Kavita
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calendar13 Mar 2024 07:10 PM
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मैंने ईश्वर को देखा है , हां मैंने ईश्वर को देखा है , शत शत बार देखा है। दुलराकर गोद में बैठाकर आंचल से छिपा , दूध पिलाती मां की स्मित आंखों में, ईश्वर को देखा हैं। हां मैंने..... विस्मृत अपने सुख दुख, पल पल संतति हित में रत, उंगली थामे राह दिखाते पथ प्रदर्शक , कल्पवृक्ष पिता की शीतल छाया में , ईश्वर को .. उठते गिरते , माटी में खेलते , बच्चो की निश्चलता, सरलता में , गुंजित किलकारियों में , उनकी चंचलता चपलता में, ईश्वर को देखा है। कांपते थर्राते स्वरो में, आशीर स्वरूप सिर पर रखे हाथो में , वृद्ध जनों की पथराई आंखो में दादा ,दादी ,नाना ,नानी की सुन्दर कहानियों मे , मैंने ईश्वर को देखा है । जीवन को जीवंत बनाते, सरसता घोलते बनकर बहार, पल पल थामा हाथ, मित्रो की मित्रता में , मित्रता की दिव्यता में , ईश्वर को देखा है । पर्वतों की उच्चता में, पवन की गति में , तरुवर की शीतल छाया में, सागर की गहराई में, नदियों के सतत प्रवाह में, पक्षियों के कलरव में, सावन की हरियाली में , प्रस्तर की निर्मल कठोरता में , फूलो के मोहक रंगों में , प्रकृति के कण कण में ईश्वर को देखा है। कवि कंठ से निसृत, पावन भावो की निर्मल धारा मे, देश हित में प्राणों की आहुति देने वाले, रण बांकुरो के समर्पित समर्पण भाव में, शहीदों के अमर बलिदानो में , मैंने ईश्वर को देखा है। बंजर धरा को उर्वर बनाते ,अन्न उपजाते अन्नदाताके अन्न मे, हलधर के हल मे, कृषको के श्रम मोतियो मे मैने ईश्वर को देखा है । पति, संतति की दीर्घायु की अन्नत कामना से रखे मातृ शक्ति के व्रतो की निष्ठा मे, समर्पण मे, त्याग मे ईश्वर को देखा है। हाँ मैने ईश्वर को देखा है ,शत शत बार देखा है !! कमलेश (कमल )
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इज्जत की नीलामी का व्रत

Dhruv Rathee Viral Video
Dhruv Rathi Viral Video
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calendar01 Dec 2025 09:40 PM
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Dhruv Rathi Viral Video : दस दिन पहले यू ट्यूब पर आए ध्रुव राठी के वीडियो 'द डिक्टेटर' ने देश भर में तहलका मचा रखा है। इन पंक्तियों को लिखे जाने तक इस वीडियो को एक करोड़ 85 लाख से अधिक लोग देख चुके थे । खास बात यह है कि यू ट्यूब पर अंगूठा ऊपर उठा कर इसे पसंद करने की जानकारी भी 17 लाख लोगों ने दी है जबकि नापसंदगी में एक भी अंगूठा नीचे नहीं गिरा । वीडियो पर तीन लाख ग्यारह हजार कमेंट हैं और चंद को छोड़ कर सभी ने इस वीडियो के कंटेंट पर अपनी सहमति जताई है। उधर ट्विटर यानी एक्स पर भी यह वीडियो सबसे अधिक देखे जाने वाला बना हुआ है। हालांकि इस वीडियो को कई कई बार देखने के बाद भी इसमें एक भी बात ऐसी नज़र नहीं आती जिसे आप और हम न जानते हों मगर पब्लिक तो जैसे इस पर टूट ही पड़ी है । तो क्या इस वीडियो को पसंद किए जाने का एक मात्र कारण यह है कि इसमें कही गई बातों के खुलासे की अपेक्षा हम लोग मुख्य धारा के मीडिया से कर रहे थे और वहां पसरी नीरव चुप्पी हमें ध्रुव राठी और ऐसे ही तमाम यू ट्यूबर्स की ओर मोड़ रही है ? किसी से नहीं छुपा कि देश में खबरी टीवी चैनल्स को देखने वालों की तादाद अब रसातल में चली गई है। हालांकि ऐसा कोई आधिकारिक आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है कि किस न्यूज चैनल को प्रतिदिन कितने लोग देखते हैं मगर अपुष्ट खबरों के अनुसार प्रति चैनल यह आंकड़ा अब मात्र 7 से 12 लाख तक सिमट गया है। मजाक देखिए कि पत्रकारिता के नाम पर मजाक ही कर रहे रिपब्लिक टीवी की पहुंच सबसे अधिक लोगों तक है। अखबारों का भी कमोवेश यही हाल है और अब केवल सर्कुलेशन के फर्जी आंकड़ों से ही वे अपनी इज्जत बचाए हुए हैं । कहा जाता है कि विज्ञापनों और सरकारी लाभ के लालच में ही मुख्य धारा का मीडिया सत्ता के तलवे चाट रहा है मगर यह अधूरा सच है। आंकड़े बताते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं के देश में लगभग चार सौ न्यूज चैनल हैं और उनमें से अकेले मोदी भक्त मुकेश अंबानी के पास 72 का मालिकाना हक है। बाकी बचे चैनल भी अडानी और अन्य सत्ता भक्त उद्योगपतियों के हैं। उधर , अखबारी जगत का सत्य भी इससे जुदा नहीं है। अब भला ऐसे माहौल में पूरे मीडिया जगत में खबरों के नाम पर प्रायोजित कार्यक्रम न चलें तो और क्या हो ? ऐसा नहीं है कि यह सब केवल दोस्ती में हो रहा हो, अपने तलवे चाटने की कीमत भी सत्ता खुल कर चुका रही है और मोदी सरकार के दस सालों के शासन में जनता का लगभग आठ हजार करोड़ रुपया विज्ञापन के नाम पर लुटाया जा चुका है। यह रकम tovकेवल केंद्र सरकार ने खर्च की है। सत्तारूढ़ दल और उसकी राज्य सरकारों का विज्ञापन खर्च जोड़ लें तो यह राशि कई गुना और बढ़ जायेगी । मीडिया जगत में ताकत, खौफ और पैसों के इस खेल का ही परिणाम है कि दुनिया भर के 180 देशों में किए गए सर्वे में भारत प्रेस की आजादी के मामले में अब 161वें नंबर पर पहुंच गया है। ध्रुव राठी के वीडियो में वही दिखाया गया है जो देश में हो रहा है मगर कमाल की बात यह है कि इन तमाम बातों का पिछले दस सालों में भारतीय मीडिया जनता ने जिक्र तक नहीं किया । ऐसे में खबरों और सूचनाओं का भूखा भारतीय मानस उनका विकल्प भला क्यों न तलाशे ? क्या यह सही वक्त है नहीं है कि मीडिया के धुरंधर जरा ठहर का सोचें कि उन्हें अपनी बची खुची इज्जत की थोड़ी बहुत परवाह है या उसे भी बेच खाने का प्रण उन्होंने ले लिया है ?

रवि अरोड़ा

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