Tuesday, 7 May 2024

Hindi Kavita :  मेरा समाज

Hindi Kavita :  मेरा समाज घर से बाहर वो नादाँ लड़की अपने सपनों की उड़ान भरने निकली थी, जब निकली…

Hindi Kavita :  मेरा समाज

Hindi Kavita : 

मेरा समाज

घर से बाहर वो नादाँ लड़की अपने सपनों की उड़ान भरने निकली थी,

जब निकली घर से बाहर तो ज्यादा नहीं थोड़ी घबराई थी।

आँखों में तमाम ख्वाब लिए विंडो सीट को अपना साथी बनाई थी,

राह गुजरती गई उसकी उम्मीदें बढ़ती गई।

वो खुश थी क्योंकि उसके सपने पूरे होने लगे थे,

ख्वाबों में ही सही पर वो पंख लिए उड़ने लगे थे।

ट्रैन अचानक एक स्टेशन पर आ रुकी,

सामान लेने के लिए वो थोड़ा नीचे झुकी।

झुकी नीचे तो अपनी बगल वाली सीट पे एक शख़्स को पाया,

उसका चेहरा देख उस नादाँ लड़की को उसपे तरस आया।

उसने उससे थोड़ी गुफ्तगू की,

उसके बारे जान उसकी मदद की खातिर अपनी हाथ बढ़ा दी।

बढ़ाया हाथ तो उसे उस शख़्स पे शक हुआ,

क्योंकि उसने उसे गलत ढंग से छुआ।

उसने झट से अपना हाथ पीछे किया,

खुद को खामोश रखना ही मुनासिब समझ लिया।

वो अंजान बार-बार उससे बात करने की कोशिश करता,

गर वो खामोश रहती तो उससे जबरदस्ती करता।

धीरे-धीरे ये जुमला इस हद तक आ पहुँचा,

कि उस लड़की ने वहाँ से बाहर निकलना सोचा।

वो भागने की तैयारी में थी, पर उसके दिमाग में बातें बहुत सारी थी।

उसने एक कदम आगे बढ़ाया, पर अपने सामने उसी अंजान शख्स को पाया।

उसने मायूस भरी नजरों से उसकी तरफ देखा,

उसने उस अंजान को गंदी नजरों से घूरते पाया।

झलक रही थी दरिन्दगी उसकी आँखों से,

उसने बात कर ली अपने तमाम दोस्तों से।

उस लड़की ने जब तमाम अंजनों से खुद को घिरा पाया,

तो परेशान होकर उसने अपना फोन उठाया।

उसके हाथ में फोन देख सब हँसने लगे,

उसके बारे तमाम बातें करने लगे।

गलतियाँ ना करके भी वो माफी माँगने लगी,

खुद को ही गुनाहगार साबित करने लगी।

उन दरिन्दों को उस पर तरस ना आई,

एक-एक कर उन सबने अपनी भूख मिटाई।

अपनी भूख मिटा उस लड़की को उसी हालत में छोड़ दिया उन्होंने,

एक हँसती-खेलती लड़की को अधमरा कर दिया उन्होंने।

वो खामोश आँखों से सब कुछ देखती रही,

अपना दर्द ना जाने कितनों घंटों तक सहती रही।

दर्द सहते-सहते वो मुस्कुराने लगी,

अपने माँ-बाबा पे तरस खाने लगी।

उसके माँ-बाबा तमाम सपने सजाए थे,

बेटी की खातिर अपनी जवानी गंवाए थे।

सब वाक़या याद कर वो रोने लगी,

अपने जीने की उम्मीद वो खोने लगी।

देखा जब एक नज़र उठा के ख़ुद को तो उसके आंसू आंखों में ही ठहर गए,

वो दरिन्दे अपनी भूख ना जाने किस हद तक मिटा गए।

वो चारों तरफ देख खामोश हो गई,

और वो बेकसूर लड़की हमेशा के लिए अपने माँ-बाबा को अलविदा कह गई।

अरे उसने तो मदद के लिए हाथ बढ़ाई थी,

फिर क्यों उसने अपनी जान गवाई थी।

कहते हैं उसकी मौत के बाद वहाँ कुछ लोग आए थे,

उसकी दशा देख गलती उसी की बतलाए थे।

क्या कहूँ में तुझसे ए इंसान, कि कैसे-कैसे छिपायी है तूने हैवानियत की पहचान।

ग़लती ना करके भी उसे खुद को गुनाहगार बताना पड़ा,

मौत के बाद भी लोगों का ताना अपनाना पड़ा।

अभी तो उसने एक उड़ान भी ना लगाई ना थी,

ज़िंदगी बनाने की खातिर उस मासूम ने अपनी जान गंवाई थी।

रो देती हूँ अक्सर ये सोचकर कि तू किस हद तक गिर सकता है,

अपनी भूख मिटाने की खातिर तू किसी भी लड़की को खा सकता है!

…असमीना..

काश ए खुदा मैं भी एक पंछी होती

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