Maharana Pratap Jayanti : घास की रोटी खाकर भी जिसे अपनी स्वतंत्रता प्यारी थी, झुका न सका अकबर

Maharana Pratap Jayanti : घास की रोटी खाकर भी जिसे अपनी स्वतंत्रता प्यारी थी, झुका न सका अकबर
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calendar22 May 2023 04:52 PM
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Maharana Pratap Jayanti : हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की तृतीया रविवार संवत 1597 को महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था । उदयपुर मेवाड़ के सिसौदिया राजवंश के महाराणा उदयसिंह उनके पिता एवं कुम्भल गढ़ की राजकुमारी महारानी जयवन्ता बाई उनकी माता थी । वह उस राजवंशकुल मे जनमे थे जो राजस्थान में अपनी शूरवीरता ,पराक्रम त्याग। बलिदान और अपने प्रण के लिये दृढ़ प्रतिज्ञ थे । महाराणा प्रताप की माता जयवन्ता बाई पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी । शायद इसीलिए कुछ इतिहासकार उनका जन्म स्थान पाली मानते हैं । उस समय मुगल साम्राज्य का विस्तार हो रहा था और वह राजपूतों के साथ संबंध स्थापित कर उनको अपने आधीन कर रहे थे । जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ उस समय उनके पिता उदय सिंह मुगलोंसे युद्ध कर रहे थे। मावली युद्ध में विजय श्री प्राप्त कर चितौड़ पर अधिकार कर लिया । कुम्भल गढ़ भी उस समय असुरक्षित था। जोधपुर के शक्तिशाली राजा मालदेव राठौड़ी उस समय के सबसे शक्तिशाली राजा थे। अत:सभी ने जयवन्ता बाई को सुरक्षाकी दृष्टि से सोनगरा पाली भेजा था । राणा उदय सिंह वीर महाराणा राणा सांगा के पुत्र थे । उनकी दूसरी रानी धीरबाई थी जो अपने पुत्र कुंवर जगमाल को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थीं। किंतु सभी के मत से महाराणा प्रताप का उनकी शूरवीता और योग्यता के कारण 28फरवरी 1572 को उनका गोगुन्दा में राज्याभिषेक हुआ । इसके पश्चात दूसरा राज्याभिषेक कुम्भलगढ़ दुर्ग में 1572 हुआ । इससे अप्रसन्न होकर जगमाल मुगलों के खेमा अकबर के पास चला जाता है‌।

Maharana Pratap Jayanti : घास की रोटी खाकर भी जिसे अपनी स्वतंत्रता प्यारी

महाराणा प्रताप का पूरा जीवन मुगलों के साथ युद्ध करते बीता। सबसे बड़ी बात मुगल सम्राट अकबर उनकी वीरता से प्रभावित होकर विना किसी युद्ध के ही अनेक प्रकार के प्रलोभन देकर अपने आधीन लाना चाहते थे परंतु घास की रोटी खाकर भी जिसे अपनी स्वतंत्रता प्यारी हो वह दूसरों की आधीनता कैसे स्वीकार करे । जलाल खांं, राजा भगवानदास , राजा मानसिंह, एवं राजा टोडरमल सभी को सन्धि प्रस्ताव देकर भेजा किंतु कोई भी प्रलोभन उन्हें अपने दृढ़ संकल्प से झुका नहीं सका । अंत में हल्दीघाटी का वह ऐतिहासिक युद्ध हुआ जिसकी गाथा आज भी हम सुनते हैं । 18जून 1576ई.में मेवाड़ के महाराणा प्रताप और मुगलों के मध्य गोगुन्दा के पास हल्दी घाटी के संकरे दर्रा में यह युद्ध हुआ । जिसमें महाराणा प्रतापके साथ 3000 घुड़सवार और 400 धनुर्धारी भील थे ।जब कि मुगलों का नेतृत्व कर रहे आमेर के राजा मान सिंह के साथ 10,000सैनिक युद्ध कर रहे थे । इतनी विशाल मुगलों की सेना के साथ मुट्ठी भर राजपूत और भील कितनी देर टिकते ।

महाराणा प्रताप का पूरा जीवन मुगलों के साथ युद्ध करते बीता

अंत मेंमहाराणा प्रताप के घायल होने पर उनके साथियों ने युद्ध करते हुये उन्हें युद्ध स्थल से बाहर भागने का मौका दिया । कहते हैं इस युद्ध में झाला मानसिंह ने अपने प्राण देकर महाराणा प्रताप को युद्ध सथल छोड़ने पर विवश किया था मेवाड़ की रक्षा के लिये । उनका प्रिय घोड़ा चेतक की भी उनको उनके गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचा कर ही अपनी स्वामिभक्ति का परिचय देते हुये प्राण त्यागे । 12वर्ष तक अपने सैनिकों के साथ घने जंगलों में किसी प्रकार से नजीवन निर्वाह करते भामाशाह जैसे दानी के अनुग्रह से सैन्य सामग्री जुटा कर तैयारी करते हुये अपने पूर्ण मनोबल के साथ महाराणा प्रताप ने शक्ति अर्जित कर युद्ध के लिये तैयार हुये ।

Maharana Pratap Jayanti :  बहदुरी से लड़ा हल्दी घाटी का युद्ध 

सन्1582 में दिवेर छापली का युद्ध हुआ ।जो। राजस्थान के  इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है । इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने विजय प्राप्त कर अपना खोया हुआ सम्मान और खोये हुये राज्यों पर जिनको मुगलों ने अपने आधीन कर रखा था विजय प्राप्त की ‌। इसके बाद मुगलों औरमेवाड़ के मध्य कई छिटपुट युद्ध होते रहे । इसीलिए कर्नल जेम्सटाॅड ने इसे * मेवाड़ का मैराथान कहा* । महाराणा प्रताप ने जिस समयसिंहासन पर बैठे उस समय मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था। बारहवर्ष के अपने शासन काल में अकबर उसमें कोई परिवर्तन नहीं कर सका । बाद में भी मेवाड़ पर महाराणा ने मुगल सेना को हरा कर अपनाअधिकार प्राप्त किया यहमेवाड़ के लिये स्वर्णिम युग था जब 1585 में मुगल आधीनता से मुक्ति मिली । इसके11वर्षबाद 19जनवरी 1597में उनकी मृतयु होगई । इसतरह एक सच्चे राजपूत, शूरवीर,देशभक्त योद्धा मातृभूमि के लिये प्राण निछावर करने वाले मातृभूमि केदुलारे महाराणा प्रताप अपने पीछे अपनी यशोगाथा छोड़कर दुनिया से विदा हुये ।। उषा सक्सेना

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World Telecommunication Day: इस थीम के साथ मनाया जा रहा विश्व दूरसंचार दिवस, जानिए इस दिन को मनाने का क्या है उद्देश्य

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calendar01 Dec 2025 02:30 PM
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World Telecommunication Day: आज विश्व दूरसंचार दिवस है। प्रतिवर्ष 17 मई को वैश्विक स्तर पर दूरसंचार के महत्व को समझाने के लिए और लोगों के बीच संचार की महत्वता को बताने के लिए यह दिन मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस दिन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें -

विश्व दूरसंचार दिवस (World Telecommunication Day) का इतिहास -

साल 1969 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व दूरसंचार दिवस की नींव रखी गई। इसी साल संयुक्त राष्ट्र संघ ने संचार को एक क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया, और लोगों को कम्युनिकेशन के महत्व को समझाने के उद्देश्य से विश्व दूरसंचार दिवस का शुभारंभ किया। टेलीकम्युनिकेशन का दुनिया के विकास में कितना महत्व है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य हर क्षेत्र में संचार का अत्यधिक महत्व है। एक दूसरे से जुड़े रहने के लिए संचार ही एक जरिया है। इसके इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए विश्व दूरसंचार दिवस मनाने की घोषणा की गई। विश्व दूरसंचार दिवस मनाने के लिए 17 मई का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि 17 मई 1965 को ही, अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (International Telecommunication Union) की स्थापना हुई थी।

विश्व दूरसंचार दिवस मनाने का उद्देश्य -

इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य विश्व भर के लोगों को टेलीकम्युनिकेशन के महत्व को समझाना और टेलीकम्युनिकेशन से जुड़ी नवीनतम प्रौद्योगिकियों और उनके उपयोग का प्रचार प्रसार करना है।। इस खास दिन पर अनेक संगठन संस्थाएं और टेलीकम्युनिकेशन कंपनियां अपनी नवीनतम प्रौद्योगिकियों व परियोजनाओं को लोगों को समझा सकती हैं। इसके अतिरिक्त इस दिन को मनाने का एक उद्देश्य टेलीकम्युनिकेशन विभाग में कार्य करने वाले सभी कर्मचारियों को, जो दिन रात कड़ी मेहनत कर हमारी कम्युनिकेशन प्रक्रिया को और भी बेहतर बनाने के निरंतर प्रयासरत रहते हैं, उन्हें सम्मानित करना भी है।

World Telecommunication Day 2023 Theme: विश्व दूरसंचार दिवस की थीम -

प्रतिवर्ष वर्ल्ड टेलीकम्युनिकेशन डे मनाने के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है, साल 2023 के लिए जोखिम निर्धारित की गई है वो है - "सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के माध्यम से सबसे कम विकसित देशों को सशक्त बनाना (Empowering the least developed countries through information and communication Technologies)' । इस थीम को निर्धारित करने का एकमात्र उद्योग कंपनियों को सार्वभौमिक कनेक्टिविटी और डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए आग्रहित करना है। साल 2022 में विश्व दूरसंचार दिवस की थीम थी -वृद्ध व्यक्तियों और स्वस्थ उम्र बढ़ने के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी (digital Technologies for older person and healthy aging)।

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Prithviraj Chauhan Jayanti: इतिहासकारों का दावा : ठाकुर नहीं बल्कि गुर्जर जाति के थे सम्राट पृथ्वीराज चौहान

Gujar
PRITHAVIRAJ CHUHAN
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calendar16 May 2023 06:32 PM
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Prithviraj Chauhan Jayanti:  महान योद्धा व पराक्रमी सम्राट पृथ्वीराज चौहान की आज जन्म जयंती है । उनकी जयंती के अवसर पर एक बार फिर यह सवाल ज़ोरदार ढंग से उठाया जा रहा है कि पृथ्वीराज चौहान किस जाति से थे ? ठाकुर समाज के लोग उन्हें राजपूत अथवा ठाकुर समाज के राजा के रूप में प्रचारित कर रहे हैं तो वही गुर्जर समाज के लोगों ख़ासतौर से गुर्जर समाज के युवा वर्ग का दावा है कि पृथ्वीराज चौहान गुर्जर जाति से थे । इस विषय में इतिहासकारों के भी अलग अलग मत है किन्तु अधिकतर इतिहासकारों का दावा हैं कि ठाकुर नहीं बल्कि गुर्जर जाति से थे पृथ्वीराज चौहान

पृथ्वीराज चौहान की जयंती पर छिड़ा बवाल , ठाकुर व गुर्जर समाज कर रहा है अपना अपना दावा

अनेक इतिहासकारों का मत है कि—-पृथ्वीराज चौहान (सन् 1166-1192) गुर्जर–चौहान वंश के हिंदू राजा थे जो उत्तरी भारत में 12 वीं सदी के उत्तरार्ध के दौरान अजमेर और दिल्ली पर राज्य करते थे। पृथ्वीराज को 'राय पिथौरा' भी कहा जाता है। वह गुर्जर के चौहान राजवंश के प्रसिद्ध राजा थे। पृथ्वीराज चौहान का जन्म अजमेर राज्य के वीर गुर्जर महाराजा सोमश्वर के यहाँ हुआ था। उनकी माता का नाम कपूरी देवी था जिन्हेँ पूरे बारह वर्ष के बाद पुत्र रत्न कि प्राप्ति हुई थी। पृथ्वीराज के जन्म से राज्य मेँ राजनीतिक खलबली मच गई उन्हेँ बचपन मेँ ही मारने के कई प्रयत्ऩ किए गए पर वे बचते गए। पृथ्वीराज चौहान जो कि वीर गुर्जर योद्धा थे बचपन से ही तीर और तलवारबाजी के शौकीन थे। उन्होँने बाल अवस्था  मेँ ही शेर से लड़ाई कर उसका जबड़ा फाड़ डाला था । पृथ्वीराज के जन्म के वक्त ही महाराजा को एक अनाथ बालक मिला जिसका नाम चन्दबरदाई रखा गया। जो  आगे चलकर बड़े कवि हुए । चन्दबरदाई और पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही अच्छे मित्र और भाई समान थे।

सोशल मीडिया पर छाया हुआ है पृथ्वीराज चौहान की जाति का मुद्दा

Prithviraj Chauhan Jayanti:   वह तंवर वंश के राजा अनंगपाल तंवर गुर्जर का दौहित्र (बेटी का बेटा) था और उसके बाद दिल्ली का राजा हुआ। उसके अधिकार में दिल्ली से लेकर अजमेर तक का विस्तृत भूभाग था। पृथ्वीराज ने अपनी राजधानी दिल्ली का नवनिर्माण किया। तोमर नरेश ने एक गढ़ के निर्माण का शुभारंभ किया था, जिसे पृथ्वीराज ने सबसे पहले इसे विशाल रूप देकर पूरा किया। वह उनके नाम पर पिथौरागढ़ कहलाता है और दिल्ली के पुराने क़िले के नाम से जीर्णावस्था में विद्यमान है।

इतिहासकारों का मत

कई इतिहासकारों के अनुसार अग्निकुल गुट मूल रूप से गुर्जर थे और चौहान गुर्जर के प्रमुख कबीले था। चौहान गुर्जर के चेची कबीले से मूलत निकले  हैं। बंबई गजेटियर के अनुसार चेची गुर्जर ने अजमेर पर 700 साल राज किया। इससे पहले मध्य एशिया में तारिम बेसिन (झिंजियांग प्रांत) के रूप में जाने- जाने वाले क्षेत्र में रहते थे। Chu- हान विवाद (200 ईसा पूर्व), "चू" राजवंश और चीन के "हान" राजवंश के बीच वर्चस्व की लड़ाई जिसमे yuechis / Gujars भी इस विवाद का हिस्सा थे। गुर्जर तब  भारत मे अरब बलों से लड़ते थे । वे "चू-हान" शीर्षक अपने बहादुर सैनिकों को सम्मानित करने के लिए प्रयोग किया जाता था जो बाद मे चौहान कहा जाने लगा । मोहम्मद गौरी ने भारत पर कई बार हमला किया था । पहली लड़ाई 1178 ईसवी में माउंट आबू के पास कायादरा पर लड़ी गयी और प्रथ्वीराज ने गौरी को हरा दिया था। इस हार के बाद गौरी गुजरात के माध्यम भारत में कभी नही घुसा । 1191 में तारोरी की पहली लड़ाई में पृथ्वीराज चौहान ने फिर गौरी को हराया, तब गौरी ने अपने जीवन की भीख मांग ली । पृथ्वीराज ने उसे दोबारा ना घुसने की चेतावनी देकर सेनापतियों के साथ जाने की अनुमति दी। मोहम्मद गौरी  और गयासुद्दीन गजनी ने 1175. में भारत आक्रमण शुरू कर दिया। और 1176 में मुल्तान पर कब्जा कर लिया ।1178 ईस्वी में मोहम्मद गोरी ने गुजरात पर आक्रमण किया और गुर्जरेश्वर भीमदेव सोलंकी ने  उसे अच्छी तरह से हरा दिया और गुजरात से वापस भगा दिया ।

"गुर्जर मंडल" नामक एक संघ के तहत सभी "क्षत्रिय" शासकों को एकत्र किया

यह वही साल था जब पृथ्वीराज चौहान अजमेर और दिल्ली के सिंहासन पर चढ़े थे । उस समय तक"गुर्जर शासक "गौरी के आगामी खतरे से अच्छी तरह परिचित थे। गुर्जरेश्वर भीमदेव सोलंकी ने "गुर्जर मंडल" नामक एक संघ के तहत सभी "क्षत्रिय" शासकों को एकत्र किया । गौरी ने 1186 ईस्वी में पंजाब पर कब्जा कर लिया। ..  गुर्जरेश्वर भीमदेव और पृथ्वीराज भी रक्त के संबंधी थे  । भीमदेव ने इस समूह का नेतृत्व करने के लिए पृथ्वीराज से पूछा। पृथ्वीराज ने तारेन (1191 ईस्वी) में गौरी  के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जिसमे गुर्जर कुल यानी खोखर, घामा, भडाना, सौलंकी, प्रतिहार और रावत ने भाग लिया। खांडेराव धामा (पृथ्वी की पहली पत्नी का भाई) के आदेश के तहत गुर्जरो और खोखर के संयुक्त बलों ने मुश्लिम को बुरी तरह हराया और सीमा तक उनका पीछा किया। गौरी  बुरी तरह घायल हो गया था ।  "पृथ्वी विजय" और "पृथ्वीराज रासो" में कहा कि उन्हें पृथ्वीराज  द्वारा पकड़  लिया गया लेकिन  वह भाग खडा हुआ और एक साल (1192 ईस्वी) के बाद गौरी दोगुने बलों के साथ लौट आया इस समय तक खोखार गुर्जर से चला गया , सोलंकी और चौहान के बीच एक अजीब प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई। यह पृथ्वीराज के  एकल बलों की हार थी ।  1200 के आसपास चौहान की हार के बाद राजस्थान का एक हिस्सा मुस्लिम शासकों के अधीन आ गया। शक्तियों के  प्रमुख केन्द्र नागौर और अजमेर थे। पृथ्वीराज  की  1195 ईस्वी में हार के बाद गुर्जरेश्वर का ताज अजमेर के हमीर सिंह चौहान ( पृथ्वीराज के  भाई) ने लिया इसके बाद कन्नौज (1193 ईस्वी), अजमेर (1195), अयोघ्या, बिहार (1194), ग्वालियर (1196), अनहीलवाडा (1197), चंदेल (1201 ईस्वी) पर मुसलमानों द्वारा कब्जा कर लिया गया और "गुर्जर मंडल" उस के बाद समाप्त हो गया।यह केवल 1400 ई के बाद एक नए नाम के साथ इतिहास में दिखा ।

Prithviraj Chauhan Jayanti:   तंवरो को दिल्ली का राजा कहा जाता है 

13 गांव गुर्जर तंवरों के महरौली में है , दक्षिण दिल्ली में 40 से अधिक गांव गुर्जर तंवरों (मुस्लिम) के गुड़गांव में हैं। अभी भी तंवरो को दिल्ली का राजा कहा जाता है। पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध लेखक राणा अली हसन चौहान जिनका परिवार विभाजन के दौरान पाकिस्तान  चला गया, वह पृथ्वीराज की 37 वीं पीढ़ी से हैं। प्रवासन और गुर्जर चौहान के तुपराना, कैराना, नवराना और यमुना नदी के तट पर अन्य गुर्जर चौहानों के  गांव अभी भी मौजूद हैं, इसके अलावा दापे चौहान और देवड़ा चौहान के 84 गांव यूपी में हैं। अतः ... प्रतिहार, सौलंकी और तंवर के साथ पृथ्वीराज  के संबंध थे! 1178 ईस्वी में गुर्जर मंडल का उनका गठन और उनकी वर्तमान पीढी अजमेर के चौहान शासकों अजय पाल, पृथ्वीराज ,जगदेव, विग्रहराज पंचम ,अपरा गंगेया, पृथ्वीराज द्वितीय, और सोमेश्वर हैं। मैनपुरी के चौहान शासकों में प्रताप रुद्र, वीर सिंह, घारक देव, पूरन चंद देव, करण  देव और महाराजा तेज सिंह चौहान )|

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