कम लागत में जापानी फल की खेती कैसे शुरू करें

आज देखा जाए तो देश में जापानी फल (परसीमन) भी कृषकों या बागवानों की पसंद बनता जा रहा है| कम लागत और अच्छी रखरखाव क्षमता होने के कारण घाटी के बागवानों का रुख जापानी फल (परसीमन) की खेती की ओर बढ़ा है|

Japanese fruit cultivation
जापानी फल की खेती करते (फाइल फोटो)
locationभारत
userऋषि तिवारी
calendar01 Dec 2025 08:22 PM
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बता दें कि हिमालयी क्षेत्रों में बागवानी करने वाले किसानों और बागवानों के बीच इन दिनों जापानी फल यानी परसीमन तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। कम लागत, आसान प्रबंधन और बेहतर रख-रखाव क्षमता के कारण घाटी के किसानों का रुझान अब परंपरागत फसलों से हटकर इस विदेशी फल की खेती की ओर बढ़ रहा है। बताया जाता है कि यह फल अंग्रेजों के समय भारत लाया गया था और आज अपने स्वाद और पोषण मूल्य के कारण उपभोक्ताओं की पहली पसंद बनने लगा है।

हालांकि जागरूकता और तकनीक की कमी के कारण देश में इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन अभी भी चुनौती बना हुआ है। इसी बीच विशेषज्ञों द्वारा जापानी फल की वैज्ञानिक बागवानी तकनीक को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है, ताकि किसान उच्च गुणवत्ता व बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकें।

उपयुक्त जलवायु और क्षेत्र

विशेषज्ञों के अनुसार जापानी फल एक पर्णपाती वृक्ष है और समुद्र तल से 1000 से 1650 मीटर ऊँचाई तक इसकी खेती उपयुक्त मानी जाती है। भारत में वर्तमान में इसकी खेती सीमित रूप से हिमालयी क्षेत्रों में ही हो रही है। इस फल को कम शीतन (चिलिंग) की आवश्यकता होने के कारण यह पहाड़ी इलाकों के लिए अत्यंत उपयुक्त है।

मिट्टी और भूमि का चयन

इसके लिए गहरी, उपजाऊ दोमट मिट्टी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, जिसमें जल निकास का अच्छा प्रबंध हो। विशेषज्ञ पीएच मान 5 से 6.5 के बीच रहने की सलाह देते हैं। साथ ही 1.5 से 2 मीटर गहराई तक कठोर चट्टान का न होना जड़ प्रणाली के विकास के लिए आवश्यक है।

उन्नत किस्मों की मांग तेज

व्यावसायिक तौर पर किसानों में फूयू, हैचिया, हयाक्यूम तथा कंडाघाट पिंक जैसी किस्में अधिक लोकप्रिय हैं।

  • फूयू: टमाटर जैसी आकृति, बिना कसैलेपन वाला फल।
  • हैचिया: लम्बूतरा, उच्च गुणवत्ता, अधिक उत्पादन।
  • हयाक्यूम: बड़ा फल, पीले-संतरी छिलका, गहरा जामुनी गूदा।
  • कंडाघाट पिंक: लंबे समय तक फूल देने वाला, परागण के लिए उत्तम।

पौध तैयार करना और रोपण प्रक्रिया

जापानी फल का प्रवर्धन अमलोक मूलवृत पर सितंबर माह में विनियर ग्राफ्टिंग से किया जाता है। पौधों को 5.5 से 6 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है और रोपाई से पहले हैड बैक करके पौधे को आकार दिया जाता है।

सिंचाई, छंटाई और देखभाल

पौधारोपण के बाद हल्की सिंचाई आवश्यक है। अच्छे आकार के लिए 60 सेंटीमीटर ऊँचाई पर पौधे को काटकर 4 से 5 मुख्य शाखाएँ विकसित की जाती हैं। पुराने पेड़ों की छंटाई से नई वृद्धि होती है और उत्पादन भी नियमित बना रहता है।

रोग और कीट प्रबंधन

कृषि अधिकारियों के अनुसार जापानी फल में रोग व कीट का प्रकोप बहुत कम देखा जाता है। इसके बावजूद किसानों को सलाह दी जाती है कि बाग को खरपतवार मुक्त रखें और किसी भी समस्या की स्थिति में कृषि विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त करें।

फलों की तुड़ाई और विपणन

फल ठोस होने और पीली-लालिमा आने पर डंठल सहित तोड़ लिया जाता है। मंडियों में भेजने के लिए फल थोड़ा कच्चा ही तोड़ा जाता है। परसीमन को पकने के लिए लगभग तीन सप्ताह तक रखा जाता है, जिसके बाद यह पूरी तरह खाने योग्य और मीठा हो जाता है। हिमालयी किसानों का बढ़ता रुझान और बाजार में बढ़ती मांग यह संकेत देती है कि आने वाले समय में जापानी फल देश के फल उत्पादन में एक महत्वपूर्ण स्थान बना सकता है।

जापानी फल से हिमालयी बागवानों को मिल रहा अच्छा मुनाफा, 3 साल में तैयार हो जाती है फसल

हिमालयी क्षेत्रों में इन दिनों जापानी फल (परसीमन) की खेती बागवानों के लिए नई उम्मीद बनती जा रही है। बागवानों के अनुसार यह फसल कम लागत में अधिक लाभ देने वाली बन चुकी है। बागवान संजीव ने बताया कि सिर्फ 3 साल में ही जापानी फल के पेड़ फल देना शुरू कर देते हैं, जबकि अन्य फसलों को तैयार होने में अधिक समय और देखभाल की आवश्यकता होती है। लग घाटी में युवा बागवान खुद ही ग्राफ्टिंग तकनीक अपनाकर जापानी फल के पौधे तैयार कर रहे हैं। युवाओं के अनुसार यह फसल कम समय और कम खर्च में अच्छी आय दे रही है, जिससे क्षेत्र में इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है।

नवंबर में आती है फसल, दाम भी मिल रहे हैं शानदार

जापानी फल को लास्ट क्रॉप माना जाता है, यानी कि नवंबर महीने में यह फल मंडियों में पहुंचता है। इस वजह से सीजन में कम प्रतियोगिता होने के कारण किसानों को इसके अच्छे दाम मिल रहे हैं। बागवानों का कहना है कि दिल्ली की आजादपुर मंडी में जापानी फल 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। कुल्लू की भुंतर मंडी में इसका भाव 125 से 140 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। इन आकर्षक कीमतों ने किसानों और बागवानों में इस फसल के प्रति खास रुचि पैदा की है।

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बंगाल से बांग्लादेश तक कांपी जमीन, कोलकाता में महसूस किए गए झटके

कोलकाता के कई इलाक़ों के साथ–साथ उत्तर बंगाल के जिलों में भी धरती हिलने की जानकारी मिली है। कूचबिहार और दिनाजपुर जैसे ज़िलों में लोगों ने पंखे, खिड़कियां और दीवारों पर टंगे सामान हिलते देखे। कई आवासीय और व्यावसायिक इमारतों से लोग कुछ समय के लिए नीचे खुले स्थानों पर आ गए।

कोलकाता में महसूस किए गए भूकंप के झटके
कोलकाता में महसूस किए गए भूकंप के झटके
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar01 Dec 2025 04:44 AM
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पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में शुक्रवार सुबह धरती हल्के लेकिन साफ तौर पर कांपती हुई महसूस की गई। सुबह ठीक 10 बजकर 10 मिनट पर आए इस भूकंप के झटके न सिर्फ कोलकाता और आसपास के इलाक़ों, बल्कि बांग्लादेश की राजधानी ढाका तक महसूस किए गए। प्रारंभिक आंकड़ों के मुताबिक भूकंप की तीव्रता 5.6 दर्ज की गई।

10 किलोमीटर गहराई से उठी ऊर्जा

भूकंप विज्ञान से जुड़े अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के अनुसार, इस झटके का केंद्र बांग्लादेश के टुंगी क्षेत्र के पास दर्ज किया गया। यूरोपियन–मेडिटेरेनियन सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी ने बताया कि टुंगी से करीब 27 किलोमीटर पूर्व में स्थित केंद्र की गहराई लगभग 10 किलोमीटर थी। कम गहराई की वजह से झटके अपेक्षाकृत तेज़ महसूस हुए और बड़ी आबादी वाले इलाकों में कंपन साफ़ महसूस हुआ। कोलकाता के कई इलाक़ों के साथ–साथ उत्तर बंगाल के जिलों में भी धरती हिलने की जानकारी मिली है। कूचबिहार और दिनाजपुर जैसे ज़िलों में लोगों ने पंखे, खिड़कियां और दीवारों पर टंगे सामान हिलते देखे। कई आवासीय और व्यावसायिक इमारतों से लोग कुछ समय के लिए नीचे खुले स्थानों पर आ गए।

लेकिन नुकसान की खबर नहीं

राहत की बात यह है कि पूरे पश्चिम बंगाल से अब तक किसी तरह की जान–माल की हानि या बड़े ढांचागत नुक़सान की सूचना नहीं है। जो लोग उस समय सड़कों पर चल रहे थे या वाहनों में सफर कर रहे थे, उनमें से कई को कंपन का अहसास तक नहीं हुआ। थोड़ी देर की हलचल और बातचीत के बाद ज़्यादातर लोग फिर से अपने घरों और काम पर लौट आए। प्रशासन

इसी दिन पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी भूकंप आया। सुबह 3 बजकर 9 मिनट पर महसूस किए गए इन झटकों की तीव्रता 5.2 दर्ज की गई और इसका केंद्र धरती के लगभग 135 किलोमीटर भीतर था। गहराई ज्यादा होने की वजह से झटकों का प्रभाव सीमित दायरे में रहा।नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी के आंकड़ों के मुताबिक, गुरुवार और शुक्रवार की दरमियानी रात हिंद महासागर क्षेत्र में भी 4.3 तीव्रता का भूकंप रिकॉर्ड किया गया। इसके अलावा अफगानिस्तान में भी धरती हिली, जहां लगभग 190 किलोमीटर की गहराई पर केंद्रित भूकंप की तीव्रता 4.2 मापी गई।

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अल-फलाह विवाद: NMC के फैसले पर टिका मेडिकल छात्रों का करियर

NMC ने संकेत दिए हैं कि जो छात्र किसी भी आपराधिक या राष्ट्रविरोधी गतिविधि से जुड़े नहीं हैं, उनकी पढ़ाई और करियर को हर हाल में सुरक्षित रखा जाएगा। आयोग की ओर से जल्द ही नए दिशा-निर्देश जारी किए जा सकते हैं, जिनमें ऐसे मामलों से निपटने के लिए स्पष्ट व्यवस्था होगी।

अल-फलाह मेडिकल कॉलेज
अल-फलाह मेडिकल कॉलेज
locationभारत
userअभिजीत यादव
calendar21 Nov 2025 10:47 AM
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दिल्ली ब्लास्ट के बाद हरियाणा की अल-फलाह यूनिवर्सिटी पूरी तरह जांच एजेंसियों के रडार पर आ गई है। कैंपस के बाहर खामोशी है, लेकिन अंदर पढ़ रहे मेडिकल छात्रों के मन में सवालों का शोर मचा हुआ है – कॉलेज का आगे क्या होगा, डिग्री की वैल्यू बचेगी या नहीं, और सालों की मेहनत किस मोड़ पर जा खड़ी होगी? फिलहाल तस्वीर साफ नहीं है। यूनिवर्सिटी और खास तौर पर उसके मेडिकल कॉलेज का भविष्य अब हरियाणा सरकार, केंद्रीय जांच एजेंसियों और नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) के अगले फैसलों पर टिका है। तीनों संस्थाओं की फाइलें और मीटिंग रूम में चल रही मंथन प्रक्रिया तय करेगी कि यहां पढ़ रहे सैकड़ों स्टूडेंट्स की अकादमिक यात्रा सहज रहेगी या उन्हें बीच रास्ते नया ठिकाना ढूंढना पड़ेगा।

अंतिम फैसला हरियाणा सरकार और NMC के हाथ में

फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी हरियाणा प्राइवेट यूनिवर्सिटी एक्ट के तहत आती है। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, संस्थान के भविष्य पर अंतिम निर्णय हरियाणा सरकार ही लेगी। राज्य सरकार और राष्ट्रीय स्तर पर चल रही जांचों के इनपुट के बाद NMC यह तय करेगा कि अल-फलाह मेडिकल कॉलेज को लेकर आगे की राह क्या होगी, क्योंकि जांच का मुख्य फोकस फिलहाल यही कॉलेज है। NMC ने संकेत दिए हैं कि जो छात्र किसी भी आपराधिक या राष्ट्रविरोधी गतिविधि से जुड़े नहीं हैं, उनकी पढ़ाई और करियर को हर हाल में सुरक्षित रखा जाएगा। आयोग की ओर से जल्द ही नए दिशा-निर्देश जारी किए जा सकते हैं, जिनमें ऐसे मामलों से निपटने के लिए स्पष्ट व्यवस्था होगी।

फीस कम होने से बनी रही डिमांड

सूत्रों के अनुसार, अल-फलाह मेडिकल कॉलेज को वर्ष 2019 में मान्यता मिली थी। कई अन्य प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की तुलना में यहां फीस अपेक्षाकृत कम है, यही कारण है कि गंभीर आरोपों और जांच की पेचीदगियों के बावजूद यहां एडमिशन की डिमांड कम नहीं हुई। कम फीस और सीटों की उपलब्धता की वजह से 2025–26 के शैक्षणिक सत्र के लिए 150 MBBS सीटें पहले ही भर चुकी हैं। NMC का कहना है कि चल रही जांचों के बावजूद इन छात्रों की पढ़ाई पर तत्काल कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ने दिया जाएगा और उनके अकादमिक हितों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होगी।

नए दिशा-निर्देश और स्टूडेंट्स को शिफ्ट करने पर मंथन

सूत्र बताते हैं कि NMC आने वाले दिशा-निर्देशों में मेडिकल संस्थानों और डॉक्टरों के लिए सामाजिक जिम्मेदारी, संवैधानिक मूल्यों के पालन और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से दूर रहने को लेकर सख्त संदेश देने की तैयारी में है। अल-फलाह यूनिवर्सिटी और उससे जुड़े मेडिकल कॉलेज के छात्रों के भविष्य को लेकर भी आयोग गंभीर है। नेशनल मेडिकल कमीशन के सूत्रों के मुताबिक, नए सत्र में दाखिला लेने वाले छात्रों को किसी दूसरे मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेज में शिफ्ट करने के विकल्प पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है। इस संबंध में आयोग के भीतर उच्च स्तर पर लगातार बैठकें हो रही हैं, ताकि किसी भी निर्दोष छात्र की पढ़ाई बीच में न अटके।

ED की कार्रवाई से और बढ़ी मुश्किलें

इसी बीच, अल-फलाह ग्रुप के चेयरमैन जवाद अहमद सिद्दीकी को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार किया है। उन्हें प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA), 2002 की धारा 19 के तहत हिरासत में लिया गया। यह कार्रवाई पहले की गई तलाशी के दौरान मिले दस्तावेजों और डिजिटल सबूतों की विस्तृत जांच और विश्लेषण के बाद हुई है।

ED की जांच सिर्फ यूनिवर्सिटी तक सीमित नहीं है। एजेंसी ने दायरा बढ़ाते हुए अल-फलाह ट्रस्ट, उससे जुड़ी कंपनियों, संस्थानों और इनके एडमिनिस्ट्रेटिव व फाइनेंशियल सिस्टम को संचालित करने वाले लोगों के वित्तीय लेन-देन की भी जांच शुरू कर दी है। कुल मिलाकर, अल-फलाह यूनिवर्सिटी और उसके मेडिकल कॉलेज का भविष्य फिलहाल जांच एजेंसियों की रिपोर्ट, हरियाणा सरकार के फैसले और NMC की अगली अधिसूचनाओं पर टिका है। इस बीच सबसे बड़ी चिंता उन मेडिकल छात्रों की है, जो चाहते हैं कि राजनीतिक और कानूनी उलझनों के बीच उनकी मेहनत और सालों की पढ़ाई दांव पर न लगे।