कम लागत में जापानी फल की खेती कैसे शुरू करें
आज देखा जाए तो देश में जापानी फल (परसीमन) भी कृषकों या बागवानों की पसंद बनता जा रहा है| कम लागत और अच्छी रखरखाव क्षमता होने के कारण घाटी के बागवानों का रुख जापानी फल (परसीमन) की खेती की ओर बढ़ा है|

बता दें कि हिमालयी क्षेत्रों में बागवानी करने वाले किसानों और बागवानों के बीच इन दिनों जापानी फल यानी परसीमन तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। कम लागत, आसान प्रबंधन और बेहतर रख-रखाव क्षमता के कारण घाटी के किसानों का रुझान अब परंपरागत फसलों से हटकर इस विदेशी फल की खेती की ओर बढ़ रहा है। बताया जाता है कि यह फल अंग्रेजों के समय भारत लाया गया था और आज अपने स्वाद और पोषण मूल्य के कारण उपभोक्ताओं की पहली पसंद बनने लगा है।
हालांकि जागरूकता और तकनीक की कमी के कारण देश में इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन अभी भी चुनौती बना हुआ है। इसी बीच विशेषज्ञों द्वारा जापानी फल की वैज्ञानिक बागवानी तकनीक को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है, ताकि किसान उच्च गुणवत्ता व बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकें।
उपयुक्त जलवायु और क्षेत्र
विशेषज्ञों के अनुसार जापानी फल एक पर्णपाती वृक्ष है और समुद्र तल से 1000 से 1650 मीटर ऊँचाई तक इसकी खेती उपयुक्त मानी जाती है। भारत में वर्तमान में इसकी खेती सीमित रूप से हिमालयी क्षेत्रों में ही हो रही है। इस फल को कम शीतन (चिलिंग) की आवश्यकता होने के कारण यह पहाड़ी इलाकों के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
मिट्टी और भूमि का चयन
इसके लिए गहरी, उपजाऊ दोमट मिट्टी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, जिसमें जल निकास का अच्छा प्रबंध हो। विशेषज्ञ पीएच मान 5 से 6.5 के बीच रहने की सलाह देते हैं। साथ ही 1.5 से 2 मीटर गहराई तक कठोर चट्टान का न होना जड़ प्रणाली के विकास के लिए आवश्यक है।
उन्नत किस्मों की मांग तेज
व्यावसायिक तौर पर किसानों में फूयू, हैचिया, हयाक्यूम तथा कंडाघाट पिंक जैसी किस्में अधिक लोकप्रिय हैं।
- फूयू: टमाटर जैसी आकृति, बिना कसैलेपन वाला फल।
- हैचिया: लम्बूतरा, उच्च गुणवत्ता, अधिक उत्पादन।
- हयाक्यूम: बड़ा फल, पीले-संतरी छिलका, गहरा जामुनी गूदा।
- कंडाघाट पिंक: लंबे समय तक फूल देने वाला, परागण के लिए उत्तम।
पौध तैयार करना और रोपण प्रक्रिया
जापानी फल का प्रवर्धन अमलोक मूलवृत पर सितंबर माह में विनियर ग्राफ्टिंग से किया जाता है। पौधों को 5.5 से 6 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है और रोपाई से पहले हैड बैक करके पौधे को आकार दिया जाता है।
सिंचाई, छंटाई और देखभाल
पौधारोपण के बाद हल्की सिंचाई आवश्यक है। अच्छे आकार के लिए 60 सेंटीमीटर ऊँचाई पर पौधे को काटकर 4 से 5 मुख्य शाखाएँ विकसित की जाती हैं। पुराने पेड़ों की छंटाई से नई वृद्धि होती है और उत्पादन भी नियमित बना रहता है।
रोग और कीट प्रबंधन
कृषि अधिकारियों के अनुसार जापानी फल में रोग व कीट का प्रकोप बहुत कम देखा जाता है। इसके बावजूद किसानों को सलाह दी जाती है कि बाग को खरपतवार मुक्त रखें और किसी भी समस्या की स्थिति में कृषि विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त करें।
फलों की तुड़ाई और विपणन
फल ठोस होने और पीली-लालिमा आने पर डंठल सहित तोड़ लिया जाता है। मंडियों में भेजने के लिए फल थोड़ा कच्चा ही तोड़ा जाता है। परसीमन को पकने के लिए लगभग तीन सप्ताह तक रखा जाता है, जिसके बाद यह पूरी तरह खाने योग्य और मीठा हो जाता है। हिमालयी किसानों का बढ़ता रुझान और बाजार में बढ़ती मांग यह संकेत देती है कि आने वाले समय में जापानी फल देश के फल उत्पादन में एक महत्वपूर्ण स्थान बना सकता है।
जापानी फल से हिमालयी बागवानों को मिल रहा अच्छा मुनाफा, 3 साल में तैयार हो जाती है फसल
हिमालयी क्षेत्रों में इन दिनों जापानी फल (परसीमन) की खेती बागवानों के लिए नई उम्मीद बनती जा रही है। बागवानों के अनुसार यह फसल कम लागत में अधिक लाभ देने वाली बन चुकी है। बागवान संजीव ने बताया कि सिर्फ 3 साल में ही जापानी फल के पेड़ फल देना शुरू कर देते हैं, जबकि अन्य फसलों को तैयार होने में अधिक समय और देखभाल की आवश्यकता होती है। लग घाटी में युवा बागवान खुद ही ग्राफ्टिंग तकनीक अपनाकर जापानी फल के पौधे तैयार कर रहे हैं। युवाओं के अनुसार यह फसल कम समय और कम खर्च में अच्छी आय दे रही है, जिससे क्षेत्र में इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है।
नवंबर में आती है फसल, दाम भी मिल रहे हैं शानदार
जापानी फल को लास्ट क्रॉप माना जाता है, यानी कि नवंबर महीने में यह फल मंडियों में पहुंचता है। इस वजह से सीजन में कम प्रतियोगिता होने के कारण किसानों को इसके अच्छे दाम मिल रहे हैं। बागवानों का कहना है कि दिल्ली की आजादपुर मंडी में जापानी फल 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। कुल्लू की भुंतर मंडी में इसका भाव 125 से 140 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। इन आकर्षक कीमतों ने किसानों और बागवानों में इस फसल के प्रति खास रुचि पैदा की है।
बता दें कि हिमालयी क्षेत्रों में बागवानी करने वाले किसानों और बागवानों के बीच इन दिनों जापानी फल यानी परसीमन तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। कम लागत, आसान प्रबंधन और बेहतर रख-रखाव क्षमता के कारण घाटी के किसानों का रुझान अब परंपरागत फसलों से हटकर इस विदेशी फल की खेती की ओर बढ़ रहा है। बताया जाता है कि यह फल अंग्रेजों के समय भारत लाया गया था और आज अपने स्वाद और पोषण मूल्य के कारण उपभोक्ताओं की पहली पसंद बनने लगा है।
हालांकि जागरूकता और तकनीक की कमी के कारण देश में इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन अभी भी चुनौती बना हुआ है। इसी बीच विशेषज्ञों द्वारा जापानी फल की वैज्ञानिक बागवानी तकनीक को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है, ताकि किसान उच्च गुणवत्ता व बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकें।
उपयुक्त जलवायु और क्षेत्र
विशेषज्ञों के अनुसार जापानी फल एक पर्णपाती वृक्ष है और समुद्र तल से 1000 से 1650 मीटर ऊँचाई तक इसकी खेती उपयुक्त मानी जाती है। भारत में वर्तमान में इसकी खेती सीमित रूप से हिमालयी क्षेत्रों में ही हो रही है। इस फल को कम शीतन (चिलिंग) की आवश्यकता होने के कारण यह पहाड़ी इलाकों के लिए अत्यंत उपयुक्त है।
मिट्टी और भूमि का चयन
इसके लिए गहरी, उपजाऊ दोमट मिट्टी सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, जिसमें जल निकास का अच्छा प्रबंध हो। विशेषज्ञ पीएच मान 5 से 6.5 के बीच रहने की सलाह देते हैं। साथ ही 1.5 से 2 मीटर गहराई तक कठोर चट्टान का न होना जड़ प्रणाली के विकास के लिए आवश्यक है।
उन्नत किस्मों की मांग तेज
व्यावसायिक तौर पर किसानों में फूयू, हैचिया, हयाक्यूम तथा कंडाघाट पिंक जैसी किस्में अधिक लोकप्रिय हैं।
- फूयू: टमाटर जैसी आकृति, बिना कसैलेपन वाला फल।
- हैचिया: लम्बूतरा, उच्च गुणवत्ता, अधिक उत्पादन।
- हयाक्यूम: बड़ा फल, पीले-संतरी छिलका, गहरा जामुनी गूदा।
- कंडाघाट पिंक: लंबे समय तक फूल देने वाला, परागण के लिए उत्तम।
पौध तैयार करना और रोपण प्रक्रिया
जापानी फल का प्रवर्धन अमलोक मूलवृत पर सितंबर माह में विनियर ग्राफ्टिंग से किया जाता है। पौधों को 5.5 से 6 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है और रोपाई से पहले हैड बैक करके पौधे को आकार दिया जाता है।
सिंचाई, छंटाई और देखभाल
पौधारोपण के बाद हल्की सिंचाई आवश्यक है। अच्छे आकार के लिए 60 सेंटीमीटर ऊँचाई पर पौधे को काटकर 4 से 5 मुख्य शाखाएँ विकसित की जाती हैं। पुराने पेड़ों की छंटाई से नई वृद्धि होती है और उत्पादन भी नियमित बना रहता है।
रोग और कीट प्रबंधन
कृषि अधिकारियों के अनुसार जापानी फल में रोग व कीट का प्रकोप बहुत कम देखा जाता है। इसके बावजूद किसानों को सलाह दी जाती है कि बाग को खरपतवार मुक्त रखें और किसी भी समस्या की स्थिति में कृषि विशेषज्ञों से मार्गदर्शन प्राप्त करें।
फलों की तुड़ाई और विपणन
फल ठोस होने और पीली-लालिमा आने पर डंठल सहित तोड़ लिया जाता है। मंडियों में भेजने के लिए फल थोड़ा कच्चा ही तोड़ा जाता है। परसीमन को पकने के लिए लगभग तीन सप्ताह तक रखा जाता है, जिसके बाद यह पूरी तरह खाने योग्य और मीठा हो जाता है। हिमालयी किसानों का बढ़ता रुझान और बाजार में बढ़ती मांग यह संकेत देती है कि आने वाले समय में जापानी फल देश के फल उत्पादन में एक महत्वपूर्ण स्थान बना सकता है।
जापानी फल से हिमालयी बागवानों को मिल रहा अच्छा मुनाफा, 3 साल में तैयार हो जाती है फसल
हिमालयी क्षेत्रों में इन दिनों जापानी फल (परसीमन) की खेती बागवानों के लिए नई उम्मीद बनती जा रही है। बागवानों के अनुसार यह फसल कम लागत में अधिक लाभ देने वाली बन चुकी है। बागवान संजीव ने बताया कि सिर्फ 3 साल में ही जापानी फल के पेड़ फल देना शुरू कर देते हैं, जबकि अन्य फसलों को तैयार होने में अधिक समय और देखभाल की आवश्यकता होती है। लग घाटी में युवा बागवान खुद ही ग्राफ्टिंग तकनीक अपनाकर जापानी फल के पौधे तैयार कर रहे हैं। युवाओं के अनुसार यह फसल कम समय और कम खर्च में अच्छी आय दे रही है, जिससे क्षेत्र में इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है।
नवंबर में आती है फसल, दाम भी मिल रहे हैं शानदार
जापानी फल को लास्ट क्रॉप माना जाता है, यानी कि नवंबर महीने में यह फल मंडियों में पहुंचता है। इस वजह से सीजन में कम प्रतियोगिता होने के कारण किसानों को इसके अच्छे दाम मिल रहे हैं। बागवानों का कहना है कि दिल्ली की आजादपुर मंडी में जापानी फल 150 से 200 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है। कुल्लू की भुंतर मंडी में इसका भाव 125 से 140 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। इन आकर्षक कीमतों ने किसानों और बागवानों में इस फसल के प्रति खास रुचि पैदा की है।







