National News : लंपी वायरस से देश में 1.69 लाख मवेशियों की मौत, राजस्थान में सर्वाधिक: रूपाला

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calendar01 Dec 2025 05:03 PM
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National News : नई दिल्ली। लंपी वायरस से देश के विभिन्न राज्यों में करीब 1.69 लाख मवेशियों की मौत हुई है। इनमें से करीब आधे मवेशियों की मौत सिर्फ राजस्थान में हुई है। राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में पिछले दिनों केंद्र सरकार ने यह जानकारी दी।

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मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्यमंत्री परशोत्तम रुपाला ने राष्ट्रीय लोक दल के जयंत चौधरी की ओर से पूछे गए सवाल के जवाब में यह भी कहा कि महामारी का स्वरूप ले चुकी इस बीमारी से मवेशियों को बचाने के लिए ‘‘लंपी–प्रो वैक’’ टीका विकसित किया गया है जो परीक्षण के अंतिम चरण में है। रूपाला ने द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, देश भर में इस वायरस से कुल 1,68,526 मवेशियों की मौत हुई है। उनके मुताबिक राजस्थान में सर्वाधिक 75,820, महाराष्ट्र में 28,227, कर्नाटक में 21,305, पंजाब में 17,932, हिमाचल प्रदेश में 10,872, गुजरात में 6,193 और हरियाणा में 2,937 मवेशियों की मौत हुई है। आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में इस वायरस के संक्रमण से एक भी मवेशी की मौत नहीं हुई है। रूपाला ने बताया गोपशुओं और भैसों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने इस रोग से बचाव के लिए ‘‘लंपी-प्रो वैक’’ टीका विकसित किया है। उन्होंने बताया कि बछड़े और बछड़ियों में इस टीके के प्रायोगिक परीक्षण के अलावा 26,940 पशुओं (गाय और भैंस) में फील्ड परीक्षण भी किए गए हैं। रूपाला ने बताया कि इस टीके को प्रभावी और सुरक्षित पाया गया है। उन्होंने कहा, आईसीएआर द्वारा हैदराबाद के मैसर्स इंडियन इम्यूनोलॉजिकल लिमिटेड और कर्नाटक के मैसर्स बायोवेट प्राइवेट लिमिटेड को वैक्सीन संबंधी प्रौद्योगिकी जारी की गई है और यह परीक्षण के अंतिम चरण में है। मवेशियों को खोने वाले किसानों को मुआवजा दिए जाने संबंधी एक सवाल पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि चूंकि पशुपालन राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार के पास लंपी रोग के कारण गोपशुओं को खोने वाले किसानों को क्षतिपूर्ति प्रदान करने के लिए कोई योजना नहीं है।

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Corona Virus : कोविड-19 : हेटेरो की मौखिक दवा निर्माकॉम को डब्ल्यूएचओ की शुरुआती मंजूरी मिली

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Covid-19 : Hetero's oral drug Nirmacom gets initial WHO approval
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calendar26 Dec 2022 07:26 PM
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कंपनी ने बताया कि ‘फाइजर’ की कोविड-19 मौखिक वायरल रोधी दवा ‘पैक्सलोविड’ के किसी जेनेरिक स्वरूप को पहली बार शुरुआती मंजूरी मिली है। बयान में कहा गया है कि डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस से मामूली या मध्यम रूप से संक्रमित उन मरीजों को निर्माट्रेलविर और रिटोनाविर देने की मजबूत सिफारिश की है, जिनके अस्पताल में भर्ती होने का अधिक खतरा है। Corona Virus : हैदराबाद। दवा कंपनी ‘हेटेरो’ ने कोविड-19 की मौखिक दवा निर्माट्रेलविर के जेनेरिक स्वरूप के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन पूर्व अहर्ता दवा कार्यक्रम (डब्ल्यूएचओ पीक्यू) के तहत स्वीकृति मिलने की सोमवार को घोषणा की।

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कंपनी ने बताया कि ‘फाइजर’ की कोविड-19 मौखिक वायरल रोधी दवा ‘पैक्सलोविड’ के किसी जेनेरिक स्वरूप को पहली बार शुरुआती मंजूरी मिली है। बयान में कहा गया है कि डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस से मामूली या मध्यम रूप से संक्रमित उन मरीजों को निर्माट्रेलविर और रिटोनाविर देने की मजबूत सिफारिश की है, जिनके अस्पताल में भर्ती होने का अधिक खतरा है। ऐसे मरीज या तो बुजुर्ग हो सकते हैं, या उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है या फिर हो सकता है कि उनका टीकाकरण न हुआ हो।

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हेटेरो द्वारा उपलब्ध कराए गए मिश्रित पैक निर्माकॉम में 150 एमजी की निर्माट्रेलविर (दो गोली) और 100 एमजी रिटोनाविर (एक गोली) है। यह दवा केवल चिकित्सक की सलाह पर ही उपलब्ध है और संक्रमित पाए जाने के बाद जल्द से जल्द एवं लक्षणों की शुरुआत से पांच दिन के भीतर इस दवा को लिया जाना चाहिए। कंपनी ने बताया गया कि निर्माकॉम का उत्पादन भारत में हेटेरो की इकाइयों में किया जाएगा।

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हेटेरो ग्रुप ऑफ कंपनीज के प्रबंध निदेशक वामसी कृष्ण बांदी ने बताया कि निर्माकॉम के लिए डब्ल्यूएचओ की शुरुआती मंजूरी मिलना कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण कदम है। इससे हमें इस अहम नवोन्मेषी एंटीरेट्रोवायरल दवा तक लोगों की पहुंच बढ़ाने में मदद मिलेगी। हम भारत में 95 एलएमआईसी (कम एवं मध्यम आय वाले देशों) में किफायती दाम पर निर्माकॉम को शीघ्र उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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राजस्थान की दलित बेटी ने बढ़ाया भारत का मान! लेकिन, क्या दलित समाज की होने की वजह से नहीं मिला सम्मान!

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userचेतना मंच
calendar02 Dec 2025 12:57 AM
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Special Story-

थाईलैंड के पटाया में आयोजित 39वीं अंतर्राष्ट्रीय महिला बॉडी बिल्डिंग प्रतियोगिता में देश की प्रिया सिंह (Priya Singh) ने गोल्ड मेडल जीतकर पूरे विश्व में भारत का नाम रौशन किया है। इस प्रतियोगिता में विश्व के कई देशों ने हिस्सा लिया था, जिसमें भारत के राजस्थान राज्य की रहने वाली पहली महिला बॉडीबिल्डर प्रिया सिंह स्वर्ण पदक विजेता बनी। साल 2018, 2019 और 2020 तीन बार मिस राजस्थान बॉडी बिल्डिंग चैंपियनशिप का ताज अपने नाम कर चुकी प्रिया सिंह ने अब एक इंटरनेशनल खिताब भी अपने नाम कर लिया है। लेकिन फिर भी इनकी कोई चर्चा नहीं है! ऐसे में सवाल यह उठता है कि कहीं इनका दलित होना पहचान नही मिलने का कारण तो नही है? प्रिया की इस उपलब्धि पर सरकार और संसथाओं की तरफ से ध्यान न देने की वजह क्या प्रिया का दलित होना तो नहीं है। आखिर क्या वजह है कि इस तरह की ख़ास उपलब्धि को भी सरकार की तरफ से सराहनीय मान- सम्मान-पहचान देने की जगह नजरअंदाज कर दिया गया है!

बीकानेर की प्रिया सिंह ने किया देश का नाम रौशन -

राजस्थान राज्य के बीकानेर शहर की रहने वाली प्रिया सिंह एक सामान्य ग्रामीण दलित परिवार से ताल्लुक रखती हैं। बचपन से ही आर्थिक तंगी में जीवन गुजार चुकी प्रिया सिंह की शादी मात्र 8 साल की उम्र में हो गई थी। शादी के बाद ससुराल और बच्चों की जिम्मेदारी उठा रही प्रिया ने पुरुषों के वर्चस्व वाले खेल में कदम रखने का फैसला लिया। आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए इन्होंने रोजगार के तौर पर जिम में नौकरी करना शुरू किया था। जिम में नौकरी करते हुए ही इनमें बॉडी बिल्डिंग के प्रति रुचि जगी। यहीं से उन्होंने बॉडी बनाना और बॉडीबिल्डिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया। साल 2018, 2019 और 2020 में राजस्थान स्टेट लेवल पर इन्होंने बॉडीबिल्डिंग चैंपियनशिप में मिस राजस्थान गोल्ड मेडल जीता। पति और इनके बच्चों ने सपोर्ट किया और अपने सपनों को पंख दिए। यही वजह है कि अपने दृढ़संकल्प से आगे बढ़ी और आज इंटरनेशनल खिताब अपने नाम कर लिया है।

सरकार की तरफ से इनकी प्रतिभा को नहीं मिला कोई सम्मान -

विश्व भर में भारत का नाम ऊंचा करने वाली बॉडीबिल्डर प्रिया सिंह को सरकार की तरफ से कोई सम्मान नहीं मिला। सम्मान तो दूर की बात है, बॉडी बिल्डिंग के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक की विजेता बनने के बावजूद आज प्रिया सिंह की कोई चर्चा भी नहीं है। कहीं प्रिया सिंह का दलित समाज से संबंध रखना तो इस बात की वजह नहीं है। खुद दलित बेटी प्रिया सिंह ने अपने एक इंटरव्यू में यह बात स्वीकार की है कि उन्हें जातिवाद भेदभाव का सामना करना पड़ता है और उनकी प्रतिभा को सम्मान नहीं मिलता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को सम्मान दिलाने वाली इस दलित बेटी को सम्मानित करने में आखिर सरकार पीछे क्यों है, यह न सिर्फ एक बड़ा मुद्दा है, बल्कि हमारे समाज की पिछड़ेपन की ओर इशारा करता है।अब इस मुद्दे ने सरकार को भी कटघरे में ला दिया है।
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