गुड हैल्थ टिप्स

Herbal Tea 2
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userचेतना मंच
calendar20 Nov 2025 09:35 AM
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  अंजना भागी   गुड हैल्थ टिप्स कुछ आदतें ऐसी होती हैं । जोकि बढ़ती जाती हैं।  जैसेकि चाय पीना कब दो से तीन, फिर दिन के पाँच कप पीने लगे। पता ही नहीं चलता। पता तब चलता है जब नींद कम आने लगती है होंठों के दायें बायें से लार सी बहने  लगती है। मुंह से गंध सी आने लगती है। अभी एक कप चाय पी मुह में स्वाद खत्म होने से पहले ही दिल करने लगता है फिर पी लें । जब इसका आपकी दिनचर्या पर प्रभाव पड़ने लगता है । तब हम उपाय तलाशते हैं ? इसीलिए कभी कुछ घरेलू नुस्खे आप भी अपनाएं और फिर खुद जान जाएँ – चाय पीने वालों को तो चाय पीने का बहाना चाहिए, गर्मी है तो आलस आ रहा है । सर्दी है तो ठंड बहुत है। कुछ भी नहीं तो सर दर्द है। दरअसल आदत पड़ जाती है मीठे की और केफीन की । एक कप चाय में लगभग 30-40 मिलीग्राम तक केफीन की मात्रा होती है। यानि जीतने कप चाय उतना अधिक शरीर में मीठा और कैफीन। इन दोनों को ही अधिक मात्रा में लेने के नुकसान ही नुकसान हैं । वैसे चाय समग्र जलयोजन में मदद कर सकती है, जो अपने आप में सिरदर्द, पेट दर्द, गले में दर्द को रोक सकती है, पर यह चाय के प्रकार पर निर्भर करता है। तो क्यों न अपनाएं हर्बल चाय यानि कि चाय पत्ती (कैमेलिया साइनेंसिस) का इस्तेमाल किए बिना चाय। ये चाय शायद आपकी भी कैफीन की आदत छूटवाये और सेहत बनाए । आपका घर छोटा है या बड़ा जैसा भी है आप उसमें यदि 4, 5 गमले एडजस्ट कर सकें तो हर्बल चाय की तो मौज ही मौज। अपने गमलों में लगाएँ तुलसी, पिपेरमेंट, लेमन ग्रास, गुलाब, पेपरमेंट के पोधे और रोज पियें हर्बल चाय । गुड हैल्थ टिप्स कैसे बनाएं हर्बल चाय? कई लोग हर्बल टी अच्छी सेहत के लिए पीते हैं। तो कुछ स्वाद के लिए। जो स्वाद और फ्लेवर के शौकीन होते हैं वे पिपरमिंट, तुलसी, लेमन ग्रास की चाय पसंद करते हैं यह ताजगी लाने के साथ साथ पाचन को भी ठीक रखती है. इसमें मौजूद मिथोल (पिपरमेंट) मसल्स को रिलैक्‍स करता है. तथा गले की खराश भी हटाता है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो हमें कई तरह की बीमारियों और बैक्टीरिया से बचाते हैं । तथा कुछ समय तक साँसों में खुशबू भी आती है इसे बनाने के लिए आप जो भी चाय पीना चाहते हैं । उसकी ताजा पत्तियों को गर्म पानी में डालकर 4 से 5 मिनट तक उबालें और इसे गर्मागर्म चाय की तरह पिएं । दूध पत्ती वाली चाय की तलब यदि परेशान करती है तो एक छोटा चम्मच शहद मिला लें । अन्यथा मुलेठी मिलाएँ। यदि आप को याद है तो बचपन में हमारी दादी नानी ने हमें यह चाय ही खांसी, जुकाम के दौर में खूब पिलाई हैं । अदरक, शहद तो इन हर प्रकार की चाय में मिलाया जा सकता है । गुड हैल्थ टिप्स कितने तरह की होती हैं हर्बल टी अदरक की चाय, लेमन टी, तुलसी की चाय, पिपरामेंट चाय, सौंफ गुड काली मिर्च की चाय, कैमोमाइल चाय, गूढ़हल की चाय, रोजमेरी इत्यादि की चाय । गुड हैल्थ टिप्स हर्बल चाय के फायदे   1.इम्यून सिस्टम मजबूत बनाए अदरक, मुलेठी जैसी नैचुरल चीजें हमारी इम्यूनिटी को मजबूत करती हैं। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन किसी भी प्रकार के संक्रमण तथा बैक्टीरिया से हमारा बचाव करते हैं।  ऑक्सीडेंट्स तनाव और पुरानी बीमारियों से बचाव में सुरक्षा कवच बनते हैं। खांसी, सर्दी, जुकाम को तो ठीक करने का अचूक इलाज है अदरक तुलसी काली मिर्च की हर्बल चाय । बिना शहद पीएंगे तो शुगर लेवल भी कंट्रोल में रह सकता है.
  1. स्ट्रेस दूर भगाएं
कैमोमाइल टी यह स्ट्रेस को कम करती है। इसे पीने से जिन्हें नींद नहीं आती उनके लिए ये काफी अच्छी साबित होती है। क्योंकि ये मन को शांत करती है। डिप्रेशन से जूझते लोगों के लिए तो यह बहुत अच्छा उपाय है । पीरियड्स से पहले के लक्षणों में ये राहत देती है । और हाई ब्लड लिपिड, ब्लड शुगर और इंसुलिन के स्तर को दूर करने में भी मदद करती है।  
  1. 3. एंटीऑक्सीडेंट से होती है भरपूर
  यह चाय एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है। जोकि एजिंग प्रोसेस को स्लो करते हैं । फ्री रेडिकल्स के कारण इसे पीने से त्वचा  बेदाग, जवान और खिली खिली दिखती है।
  1. वेट लॉस के लिए खूब फायदेमंद
  यदि आप वेट लॉस की इच्छा रखते हैं तो पीयें फिसिलियम की भूसी, सौंफ और लेमनग्रास वाली हर्बल चाय ये आपके मेटाबॉलिज्म को बढ़ाएगी जिससे फेट बर्न होगा। मोटापा नहीं बचेगा।
  1. बेहतर पाचन में मददगार
  हर्बल चाय में हमें विटामिन्स, मिनरल्स, शुगर जैसे कई ऐसे तत्व मिल जाते हैं जो पाचन में मदद करते है। हमें ऊर्जा देते हैं । पर ये खाने की इच्छा को भी कम करते हैं। ऐसे में हम फालतू खाने से बच जाते हैं। गले कि खराश, खांसी, मितली, पेट दर्द आप खाली अदरक की हर्बल चाय बनाएँ सिप सिप पीयें फिर आराम देख लें। इसी उबली हुई अदरक में दो तीन बार पानी डाल उबालें और पी लें रुक रुक कर होने वाली पेट दर्द तक ठीक हो जाएगी ।
  1. सूजन को कम करते है
  हर्बल चाय सूजन संबंधी समस्याओं के लिए बहुत ही अच्छी होती है। अदरक, सौंफ, थोड़ी से अजवायन गुड डाल यदि आप चाय पी लें तो महावारी की दर्द से तुरंत आराम मिलने लगता है । घुटने सूजे हों या ऐडी ये सूजन कम करती हैं । गुड़हल की चाय-  हाई ब्लड प्रेशर को कम करने और ऑक्सीडेटिव तनाव से लड़ने में मदद कर सकती है। डेंगु के मरीजों के लिए लाभदायक है अगर आप किसी तरह की दवा ले रहें तो इसे न पीयें । गुड हैल्थ टिप्स लेमन बाम चाय-  लेमन बाम चाय एंटीऑक्सीडेंट के स्तर को बढ़ाती है, इससे  दिल मजबूत होता है  त्वचा में निखार आता है । स्ट्रैस कम करने में मदद मिलती है। रोजमेरी टी गुलाब की पत्तियां विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई, विटामिन बी 3 और विटामिन डी से भरपूर होती हैं। इसलिए इसकी चाय पीने से न केवल चेहरे पर निखार आता है बल्कि पेट की परेशानियां भी दूर होती हैं।   मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए तो हर्बल टी सबसे उत्तम है क्योंकि इसे पीने से  नींद कम नहीं होती। हर्बल टी नयुरोप्रोटेक्टिव होती हैं । भूलने की समस्या को कम करती है। इसलिए क्या रखा है हर दम एक प्याला चाय में । दिन में एक कप हर्बल चाय अपनायें दिल ही नहीं करेगा बार बार चाय पीने को ।  मिलते हैं अगले लेख में एक नई जानकारी के साथ ।      
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Technology : रोबोटिक प्रशिक्षक की मदद से दूर होगी दिव्यांगता

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Disability will be removed with the help of robotic instructor
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userचेतना मंच
calendar24 Nov 2025 09:53 PM
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  Technology : किसी भी व्यक्ति में दिव्यांगता होने के कई अलग-अलग कारण होते हैं। कई बार अवस्था और उम्र की बीमारियों की वजह से, कई बार शारीरिक विकृतियों, दुर्घटनाओं जैसे स्ट्रोक या फिर पोलियो इत्यादि बीमारी के कारण आती है। भारत में आज यह एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उपस्थित है। मेडिकल साइंस दिव्यांगता को खत्म करने की दिशा में प्रयासरत है। पोलियो जैसी बीमारियों के निवारण के लिए तो अभियान चल ही रहे हैं और काफी हद तक सफलता पाई जा चुकी है। परंतु, जो आज अंग दिव्यांगता से पीड़ित हैं, उन्हें इससे लड़ने और सामान्य जीवन की ओर बढ़ने की राह और सरल करने के लिए विज्ञान प्रौद्योगिकी और तकनीकों का भी उपयोग हो रहा है। दिव्यांगता अथवा किसी कारण शिथिल अंग, जो उचित ढंग से कार्य न कर रहे हो। लेकिन आज उन अंगों को वापस सक्रिय बनाने के लिए फिजियोथेरेपी का सहारा लिया जाता है।

Technology :

  फिजियोथेरेपी और प्रौद्योगिकी है सहायक: पिछले कुछ वर्षों में निचले अंगों के पुनर्वास के लिए रोबोटिक उपकरणों को डिजाइन करने का चलन बढ़ा है। रोबोटिक पुनर्वास में, चिकित्सक को केवल पर्यवेक्षण और उपकरण को लगाने या प्रदान करने की आवश्यकता होती है। निचले अंगों का पुनर्वास, विशेष रूप से चलने-फिरने की स्थिति में सुधार होने में काफी समय लगता है। आईआईटी जोधपुर द्वारा डिजाइन रोबोटिक प्रशिक्षक: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के शोधकर्ताओं ने ऐसा रोबोटिक प्रशिक्षक डिजाइन किया है, जिसका उपयोग निचले अंगों की अक्षमताओं के इलाज के लिए की जाने वाली फिजियोथेरेपी में किया जा सकता है। इस अध्ययन के निष्कर्ष इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस्ड रोबोटिक सिस्टम्स में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में डॉ. जयंत कुमार मोहंता, सहायक प्रोफेसर, मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी जोधपुर, के साथ अन्य शोधकर्ता शामिल हैं। डॉ. मोहंता बताते हैं कि उपचार के सही क्रम को क्रियान्वित करने पर पूर्ण पुनर्वास संभव है। रोबोट बिना थके इसे करने में सक्षम होंगे। रोबोट प्रशिक्षक पहनने योग्य उपकरण की तरह होंगे, जैसे कि एक्सोस्केलेटन, जो पैर को सहारा देता है। यह अंगों की गति के लिए समानांतर सामंजस्य के आधार पर कार्य करता है। इस नये डिजाइन ने गति उपचारों को एक बड़ा आयाम दिया है।
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गुड हैल्थ टिप्

ADHD
locationभारत
userचेतना मंच
calendar20 Oct 2022 04:29 PM
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  गुड हैल्थ टिप् अंजना भागी   कुछ विकार तो नजर आ जाते हैं । कुछ ऐसे होतेहैं याशरीर मेंबनने लगते हैं कि न तो परिवार न ही आस-पास के लोगयानीकोईभीसमझने मेंअसमर्थ रहते हैं ।परये भी सच है किपरेशान सभी होते हैं आज के समय में जब टीवी,मोबाइलइत्यादि,  इन्सानों का पर्याय बनने लगे हैं तो ये अनसुने विकार भीकुछ अधिक हीजन्म लेने लगे हैं । और परेशानियोंका कारण भी बनने लगे हैं । क्या है अटेंशन डेफिसिटह्यपेरेक्टिविटी डिसऑर्डर) मैंने बीएड में प्रवेश लिया, टीचिंग का मुझे अत्यधिक शौक था ।  बी.एड में टॉप किया ।  एकदम बड़िया स्कूल में अध्यापिका भी नियुक्त हो गई । पर मेरे इस जोश पर ग्रहण का सा  कार्य एक बहुत ही प्यारा, गोल – मटोल सूरत वाला, अच्छे खाते - पीते घर का बच्चा आशु कर रहा था । शक्ल इतनी भोली की बहुत ही प्यारा । शैतान इतना कि इंसान, सिवा उसको संभालने के और कुछ सोच ही न पाये  ।  कक्षा में अव्यवस्था फैलाने में आशु नंबर वन,  यदि कोई बच्चा उसकी शिकायत करता तो एक क्षण में आशु उस बच्चे को बुरी तरह पीट देता । डाँटो या समझाओ तो इतने भोले पन से मुझे देखता की मैं उसको डांट भी न पाती । कहीं मेरे पढ़ाने में ही तो कोई कमी नहीं । यह सोच यदि आशु को आगे बैठा  मैं उससे ही किताब पड़वाने की सोचती ।  तो वह पाँच मिनट में ही जमहाइयाँ  लेते हुए सो जाता । पूरी क्लास के बच्चे हंसने लगते और मैं सकपका जाती । चाइल्ड साइकोलॉजी में  इतने अच्छे नंबर पाकर भी मैं इस बच्चे को समझने में असमर्थ थी । हर प्रयत्न के बाद जब मैं दुखी हो जाती तब वह मुझे अपने  एक भोलेपन से हैरान कर देता । 6 वीं कक्षा के बाद मेरी अगली कक्षा भूतल से तीसरे माले पर होती थी । आशु  सिर्फ घंटी बजने का इंतजार करता  रहता । पहली टन होती और वो मेरा बैग, कापियाँ उठा तीसरे माले पर बेइंतहा तेजी से भागता जाता और पलक झपकते ही लौट भी आता । गुड हैल्थ टिप् मैं  भी प्यार से उसका गाल थपथपाती क्योंकि कितना भी रोको वो सुनता ही नहीं था । मुझे सचमुच ही उस पर बहुत लाड़ आ जाता । पर जब वो मेरी चलती क्लास में कभी भी आ बाहर से झाँकता तब मैं परेशान हो जाती । उसकी इस बात पर आए दिन  पिटाई होती पर वो न रुकता । खेल का पीरियड उसका सबसे पसंद का पीरियड़ था । क्रिकेट उसका पसंदीदा खेल । बैटिंग करता तो हैरान कर देता । चौके – छक्के उससे कम तो वो मारता ही नहीं था । लेकिन अपनी बैटिंग के साथ ही वो गेम छोड़कर चल पड़ता । दो छोटे ईंट के टुकड़े मैदान में से ढूंढ लेता । एक को जमीन  पर रख दूसरे से उसपर ज़ोर से मारता । फिर दूर वाले टुकड़े को पहले टुकड़े से यूं सारे ग्राउंड में अकेला खेलता घूमता रहता था । किसी से भी दोस्ती नहीं कोई बच्चा यदि नाराज हो आशु की शिकायत करता कि आशु  अपनी पारी खेल गया हमारी पारी में भाग जाता है  तो बस उसकी तो खैर ही नहीं एक पल में ही उस बच्चे को लात-घूंसे पिटाई शुरू कर देता ।  फिर आशु कि पिटाई होती पर आशु वैसे का वैसा ही । गुड हैल्थ टिप् 6वीं कक्षा में यह उसका 5वां स्कूल था । अब भी वह किसी सिफारिश से ही आया था । सभी उसको बेवकूफ, उधमी, सेलफिश कहते ।  पर नहीं वो तो कुछ अलग ही था । एक नंबर का आवेगशील, क्रोधी, बच्चा जिसका कोई भी दोस्त नहीं पढ़ने – लिखने से उसे कुछ भी लेना देना नहीं । उसके घर में उसके परिवार के लोग उसे कैसे पढ़ा पाते  थे ?  मैं हद से ज्यादा हैरान थी ।  वो इंग्लिश हिंदी कि रीडिंग कर लेता । कैसे  करता ?  जो भी किताब का पेज खोलता देखता इधर उधर और सारा ही पेज बोल देता । मुझे उस पर फिर लाड आ जाता । एक दिन तो हद ही हो गई । उसने एक बच्चे को मारा हिन्दी टीचर ने बिना आशु से कोई कारण जाने  आशु को दो चांटे जड़ दिये। उसने टीचर की कुर्सी उठाई और टीचर पर दे मारी । अब इससे आगे क्या लिखूँ । गुड हैल्थ टिप् उसके घर कॉल लगाई गई । प्रिन्सिपल ऑफिस में उसके माता – पिता हाथ जोड़ माफियाँ मांग रहे थे । वो बिलकुल चुप सबको देख रहा था । मुझे भी पता चला । मैं उसके माता- पिता आये हैं ये जान उनसे मिलने को प्रिंसिपल ऑफिस की और दौडी । मुझे बहुत अफसोस हुआ ये देखकर कि ऑफिस से बाहर आते ही उसके पापा ने बच्चे को चांटे पर चांटे मार के गाल सूजा दिये । पिटाई तो उसकी पहले भी बहुत हो चुकी थी । माँ कि आँखों से लगातार आंसू गिर रहे थे । मुझसे रहा ही नहीं गया मैंने बच्चे को गले से लगा लिया । वो छठी कक्षा का बच्चा छोटे बच्चे सा मेरे साथ लग गया बिलकुल निर्विकार । उसकी माँ रोती हुई बोलीं, मैडम कितना मार लो इसपर कोई असर ही नहीं होता । आप मेरा घर आकर देखें ये जब तक स्कूल में है तो चैन है । इसके अंदर घुसते ही सब इधर-उधर । सोता तो है ही नहीं । तब मैंने पूछा कि क्या आपने इसे कभी किसी साइकोलोजिस्ट को दिखाया है ? यकीन मानिए उन्होंने मुझे यूं घूरा जैसे मै दुनिया कि सबसे बदतमीज महिला हूँ । पर दो दिन बाद ही जब बच्चे के घर से फोन आया  कि  मैडम आप किसी क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट को जानती हैं  क्या ? मैंने उनको अपनी एक सहेली का फोन नंबर फॉरवर्ड कर दिया । जो  पहले क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट थी । अब बिहेवियरल साइकोलॉजी में पी.एच.डी कर प्रैक्टिस कर रही थी । बच्चे के माता – पिता उसको  चेक करवाने ले गये । अब तो लगभग एक साल हो गया अभी भी डॉक्टर से मिल रहे हैं । कारण उनका बच्चा अब मजे से किताब पढ़ता है । बच्चों के साथ खेलता है । यानि व्यस्त है । और तब ही मुझे ये भी पता चला कि बच्चा तो  अटेंशन डेफिसिट ह्यपेरेक्टिविटी डिसऑर्डर से पीड़ित था । यानी हद से ज्यादा इमपलसीव,हाइपर, कम नींद आना, किसी से भी न घुलना इत्यादि रोग का शिकार । आज छोटे-छोटे बच्चे भी इस डिसऑर्डर का शिकार हो रहे हैं इस डिस ऑर्डर  के कारण भी बहुत ही साधारण से हैं । लेकिन कभी – कभी लापरवाही से परिणाम गंभीर भी हो सकते हैं । क्यों होती है ये समस्या जेनेटिक्स (वंशानुगत) होती है ।  प्रीमेच्योर डिलीवरी वाले बच्चों में हो सकती है,  बच्चे का वजन, जन्म के समय यदि कम हो । ये भी इसके कारण में से एक है । बच्चों का टी.वी, फोन, स्क्रीन से ही चिपटे रहना यानी हरदम कार्टून, फिल्में, वीडियो/कंप्यूटर गेम खेलना,अब तो छोटे-2 बच्चे भी खाना  मोबाइल में वीडियो देखते हुए खाते हैं इन सबसे ही  बच्चों में कभी –कभी ध्यान, आभाव, सक्रियता का विकार उत्पन्न हो जाता है । गुड हैल्थ टिप् उपाय-   जब जागें तब ही सवेरा । इसलिए निराश न हों, बल्कि  उपाय अपनाएं । बच्चे की पिटाई नहीं उसे सपोर्ट करें, बच्चे कि अधिक सुनें । बच्चा कुछ बताना चाहे तो उसको बिना सुनें उसे उल्टा डांटना समझाना शुरू न करदें । बच्चे के हाथ में मोबाइल, टीवी या कंप्यूटर गेम  थमाने के स्थान पर अपना समय दें । क्योंकि कंप्यूटर गेम,आकर्षक तथा तत्काल पुरस्कार प्रदान करने वाले होते हैं उनका म्यूजिक, आवाजें बच्चों को अपने आस-पास की दुनिया से बेखबर कर, खेलने से दूर उन्हें टीवी या फोन की स्क्रीन पर ही हाइपरफोकस करवाने लगते हैं । उन्हें पता ही नहीं चलता कि कब वे वास्तविक दुनिया से बेखबर हो, साथी बच्चों के साथ खेलना, बच्चों से दोस्ती करना तक भूल जाते  हैं । ऐसे में माता – पिता पिटाई या डांटना छोड़  अटेंशन डेफिसिट ह्यपेरेक्टिविटी डिसऑर्डर विशेषज्ञों की सलाह लें । लेकिन यदि अभी इसकी शुरुआत ही है ।  तो बच्चों का स्क्रीन टाइम नियंत्रित करें:  यह समय एक घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए ।  चीन में तो यह कानून ही बन गया है । बच्चों को धीमा म्यूजिक सुनवाये। पार्क, बागों कि सैर को ले कर जाएँ । बच्चों में किसी कौशल का विकास करें । इन बच्चों के साथ कड़ा अनुशासन नहीं बल्कि इनमें कौशल विकास करने में भी मदद करें । किसी खेल में, खाना बनाने में कॉमेडी करने में कुछ भी स्क्रीन से इनका ध्यान हटवायेँ ।   माता-पिता अपने व्यवहार से उन्हें दूसरे बच्चों से अलग महसूस न करवाएं । आप उनको जिन बातों पर पीटते हैं , उन्हें तो सचमुच बोध ही नहीं होता कि उन्हें क्यों पीटा जा रहा है । बच्चे को पार्क ले जाएँ तथा आप उनकी व्यक्तिगत दोस्ती करवायेँ । बच्चे का पब्लिक में पीट कर अपमान न करें । बल्कि उसका आत्मविशवास जगाएँ और अपने बच्चे को ऐ.डी.एच.डी से मुक्ति दिलाएँ । आज भी गाँव देहात में परिवारों में  मिल कर रहते हैं बच्चे साथ खेलते हैं अत; उन्हें स्क्रीन टाइम को ज्यादा समय ही नहीं बचता ।