किस काम को करने के बाद व्यक्ति को जरुर नहाना चाहिए

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Chanakya Niti
locationभारत
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calendar30 Nov 2025 07:25 PM
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Chanakya Niti : इंसान द्वारा रोजाना कई तरह के कर्म यानि काम किए जाते हैं। कुछ काम ऐसे होते हैं जो ना चाहते हुए भी करने पड़ते हैं, लेकिन कुछ काम ऐसे होते हैं, जो साथी की संतुष्टि के लिए करने जरुरी होते हैं। इन काम कामों को करने के बाद व्यक्ति अपवित्र हो जाता है। मनुष्य के इन कर्मों को लेकर महान विद्वान और अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य ने स्पष्ट किया है कि मनुष्य को कुछ कर्मों को करने के बाद स्नान जरुर करना चाहिए।

Chanakya Niti

आपको बता दें कि आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र 'चाणक्य नीति' में साथी यानि पत्नी की संतुष्टि, परिवार के भरण पोषण, सुखी वैवाहिक जीवन और समाज के रहन सहन और खुश रहने के तौर तरीके बताएं है। यदि आज का इंसान आचार्य चाणक्य की नीतियों का अनुसरण करे तो वह सदा सुखी जीवन यापन कर सकता है। व्यक्ति के स्नान करने पर आचार्य चाणक्य ने लिखा है कि,

तैलाभ्यंगे चिताधूमे मैथुने क्षौर कर्मणि। तावद्भवतिचाण्डालो यावत्स्नानंन समाचरेत्॥

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि स्नान करके ही व्यक्ति पवित्र होता है वरना शूद्र (अपवित्र) है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि तेल लगाने पर, चिता का धुआं लगने पर, मैथुन (संभोग) करने पर तथा बाल कटाने पर जब तक मनुष्य स्नान नहीं कर लेता तब तक वह चाण्डाल होता है।

आशय यह है कि शरीर में तेल की मालिश करने के बाद, चिता का धुआं लग जाने पर संभोग करने के बाद तथा दाढ़ी नाखून या बाल कटाने के बाद नहाना आवश्यक है। इन कामों को करने के बाद व्यक्ति जब तक नहा नहीं लेता, तब तक चाण्डाल माना जाता है।

पानी एक औषधि है

पानी के महत्व पर बल देते हुए आचार्य चाणक्य लिखते हैं...

अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे तद् बलप्रदम् ॥ भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम् ॥

जल की गुणवत्ता बताते हुए आचार्य कहते हैं कि अपच की शिकायत होने पर पानी जी भरकर, जितना पिया जा सके, पानी पीना चाहिए। यह दवा का काम करता है। खाना पच जाने पर पानी पीने से शरीर की शक्ति बढ़ती है। भोजन करते समय बीच-बीच में पानी पीते रहने से यह अमृत का करता है और यही पानी यदि भोजन के तुरंत बाद पिया जाए तो यह विष का काम करता है। अतः भोजन के बीच-बीच में पानी पीते रहना चाहिए, तुरंत बाद नहीं।

ज्ञान को व्यवहार में लाएं

हतं ज्ञानं क्रियाहीनं हतश्चाज्ञानता नरः। हत निर्णायक सैन्यं स्त्रियो नष्टा भर्तृका॥

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस ज्ञान पर आचरण न किया जाए, वह ज्ञान नष्ट हो जाता है। अज्ञान से मनुष्य का नाश हो जाता है। सेनापति रहित सेना तथा बिना पति के स्त्री नष्ट हो जाती है। आशय यह है कि ज्ञान को व्यवहार में लाना चाहिए। ऐसा न करने पर वह ज्ञान नष्ट हो जाता है। अज्ञानी मनुष्य, बिना सेनापति की सेना तथा पति के बिना स्त्री नष्ट हो जाती है।

इसे विडम्बना ही समझें

वृद्धकाले मृता भार्या बन्धुहस्तगतं धनम्। भोजनं च पराधीनं तिस्त्र पुंसां विडम्बना॥

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु, धन का भाइयों के हाथ में चला जाना, भोजन के लिए भी पराधीनता, इसे पुरुष के लिए विडम्बना ही समझे। आशय यह है कि व्यक्ति के बुढ़ापे में पत्नी का मरना बड़े दुभाग्य की बात है। बुढ़ापे में पत्नी ही व्यक्ति की साथी होती है। धन पर भाइयों का कब्जा हो जाने पर व्यक्ति केवल कसमसाकर रह जाता है।

व्यक्ति को भूलकर भी नहीं करने चाहिए ये काम, नहीं तो होता है ऐसा 

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Chanakya Niti : इंसान द्वारा रोजाना कई तरह के कर्म यानि काम किए जाते हैं। कुछ काम ऐसे होते हैं जो ना चाहते हुए भी करने पड़ते हैं, लेकिन कुछ काम ऐसे होते हैं, जो साथी की संतुष्टि के लिए करने जरुरी होते हैं। इन काम कामों को करने के बाद व्यक्ति अपवित्र हो जाता है। मनुष्य के इन कर्मों को लेकर महान विद्वान और अर्थशास्त्री आचार्य चाणक्य ने स्पष्ट किया है कि मनुष्य को कुछ कर्मों को करने के बाद स्नान जरुर करना चाहिए।

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आपको बता दें कि आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र 'चाणक्य नीति' में साथी यानि पत्नी की संतुष्टि, परिवार के भरण पोषण, सुखी वैवाहिक जीवन और समाज के रहन सहन और खुश रहने के तौर तरीके बताएं है। यदि आज का इंसान आचार्य चाणक्य की नीतियों का अनुसरण करे तो वह सदा सुखी जीवन यापन कर सकता है। व्यक्ति के स्नान करने पर आचार्य चाणक्य ने लिखा है कि,

तैलाभ्यंगे चिताधूमे मैथुने क्षौर कर्मणि। तावद्भवतिचाण्डालो यावत्स्नानंन समाचरेत्॥

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि स्नान करके ही व्यक्ति पवित्र होता है वरना शूद्र (अपवित्र) है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि तेल लगाने पर, चिता का धुआं लगने पर, मैथुन (संभोग) करने पर तथा बाल कटाने पर जब तक मनुष्य स्नान नहीं कर लेता तब तक वह चाण्डाल होता है।

आशय यह है कि शरीर में तेल की मालिश करने के बाद, चिता का धुआं लग जाने पर संभोग करने के बाद तथा दाढ़ी नाखून या बाल कटाने के बाद नहाना आवश्यक है। इन कामों को करने के बाद व्यक्ति जब तक नहा नहीं लेता, तब तक चाण्डाल माना जाता है।

पानी एक औषधि है

पानी के महत्व पर बल देते हुए आचार्य चाणक्य लिखते हैं...

अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे तद् बलप्रदम् ॥ भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम् ॥

जल की गुणवत्ता बताते हुए आचार्य कहते हैं कि अपच की शिकायत होने पर पानी जी भरकर, जितना पिया जा सके, पानी पीना चाहिए। यह दवा का काम करता है। खाना पच जाने पर पानी पीने से शरीर की शक्ति बढ़ती है। भोजन करते समय बीच-बीच में पानी पीते रहने से यह अमृत का करता है और यही पानी यदि भोजन के तुरंत बाद पिया जाए तो यह विष का काम करता है। अतः भोजन के बीच-बीच में पानी पीते रहना चाहिए, तुरंत बाद नहीं।

ज्ञान को व्यवहार में लाएं

हतं ज्ञानं क्रियाहीनं हतश्चाज्ञानता नरः। हत निर्णायक सैन्यं स्त्रियो नष्टा भर्तृका॥

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस ज्ञान पर आचरण न किया जाए, वह ज्ञान नष्ट हो जाता है। अज्ञान से मनुष्य का नाश हो जाता है। सेनापति रहित सेना तथा बिना पति के स्त्री नष्ट हो जाती है। आशय यह है कि ज्ञान को व्यवहार में लाना चाहिए। ऐसा न करने पर वह ज्ञान नष्ट हो जाता है। अज्ञानी मनुष्य, बिना सेनापति की सेना तथा पति के बिना स्त्री नष्ट हो जाती है।

इसे विडम्बना ही समझें

वृद्धकाले मृता भार्या बन्धुहस्तगतं धनम्। भोजनं च पराधीनं तिस्त्र पुंसां विडम्बना॥

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि बुढ़ापे में पत्नी की मृत्यु, धन का भाइयों के हाथ में चला जाना, भोजन के लिए भी पराधीनता, इसे पुरुष के लिए विडम्बना ही समझे। आशय यह है कि व्यक्ति के बुढ़ापे में पत्नी का मरना बड़े दुभाग्य की बात है। बुढ़ापे में पत्नी ही व्यक्ति की साथी होती है। धन पर भाइयों का कब्जा हो जाने पर व्यक्ति केवल कसमसाकर रह जाता है।

व्यक्ति को भूलकर भी नहीं करने चाहिए ये काम, नहीं तो होता है ऐसा 

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Chanakya Niti : धन प्राप्त करने के लिए ऐसे लोग अपनाते हैं गलत तरीका

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calendar30 Nov 2025 04:45 AM
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Chanakya Niti : वर्तमान समय में धनवान व्यक्ति की ही सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। यदि आपके पास धन है तो रिश्तेदार और मित्र भी आपका साथ देंगे, लेकिन यदि धन नहीं है तो अपने ही छोड़कर चले जाते हैं। धन को लेकर आचार्य चाणक्य ने अपने नीतिशास्त्र चाणक्य नीति में काफी स्पष्ट रुप से लिखा है। चाण​क्य नीति के अनुसार धन ही नहीं एक वस्तु और है, जो इंसान का सबसे अनमोल गहना होता है। आचार्य चाणक्य ने धन कमाने वाले लोगों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। उनका कहना है कि धन कमाने के लिए लोग क्या करते हैं, यह उनके चरित्र पर निर्भर करता है।

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व्यक्ति के सम्मान और धन को लेकर आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र ''चाणक्य नीति के आठवें अध्याय में लिखा है कि

अधमा धनमिच्छन्ति धनं मान व मध्यमाः। रतमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम्।।1।।

यहां आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अधम धन की इच्छा करते हैं, मध्यम धन और मान चाहते हैं, किन्तु उत्तम केवल मान ही चाहते हैं। महापुरुषों का धन मान ही है। नीच लोगों के लिए धन ही सब कुछ होता है। इसे प्राप्त करने के लिए वे गलत सही हर तरीका अपना सकते हैं। औसत आदमी धन तो चाहता है, किन्तु अपमान के साथ नहीं, बल्कि सम्मान के साथ। अर्थात वह धन और सम्मान दोनों चाहता है। किन्तु महापुरुष धन की बिलकुल भी चाह नहीं करते। वे मान-सम्मान को ही महत्त्व देते हैं। मान-सम्मान ही उनका धन होता है।

दान का कोई समय नहीं

इक्षुरापः पयोमूलं ताम्बूलं फलमौषधम्। भक्षयित्वापि कर्त्तव्यास्नानदानादिकाः क्रियाः॥

यहां आचार्य चाणक्य स्नान, दान के लिए किसी वर्जना या समय की बाध्यता न मानते हुए कहते हैं कि ईख, जल, दूध, मूल, पान, फल और औषधि को खा लेने के बाद भी स्नान, दान आदि कार्य किए जा सकते हैं। आशय यह है कि गन्ना चूसने के बाद पानी या दूध पी लेने के बाद, पान चबा लेने के बाद, कोई कन्द मूल, फल या दवा खा लेने के बाद भी स्नान, पूजा, दान आदि कार्य किए जा सकते हैं। जबकि अन्य चीजें खा-पी लेने पर ये कार्य नहीं किये जाते।

यथा अन्न तथा सन्तान

दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते। यदन्नं भक्ष्यते नित्यं जायते तादृशी प्रजा॥

यथा अन्न तथा मन की चर्चा करते हुए आचार्य कहते हैं कि दीपक अन्धकार को खाता है और काजल पैदा करता है। अतः जो नित्य जैसे अन्न खाता है, वह वैसी ही सन्तान को जन्म देता है। व्यक्ति का भोजन जैसा होता है, वैसी ही उसकी सन्तान भी पैदा होती है। सात्विक भोजन करने से सन्तान भी योग्य और बुद्धिमान होगी तथा तामसी भोजन से मूर्ख सन्तान ही पैदा होगी। दीपक अन्धकार को खाता है, तो कालिमा ही पैदा करता है।

सबसे बड़ा नीच

चाण्डालानां सहस्त्रैश्च सूरिभिस्तत्वदर्शिभिः। एको हि यवनः प्रोक्तो न नीचो चवनात्परः॥

यवन को निम्नतम कोटि का मानते हुए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि तत्त्वदर्शी विद्वानों ने कहा है कि हजार चाण्डालों के बराबर एक यवन होता है। यवन से नीच कोई नहीं होता। आशय यह है कि विद्वान महापुरुषों के अनुसार एक हजार चाण्डालों के बराबर बुराइयां एक यवन में होती हैं। इसलिए यवन सबसे नीच मनुष्य माना जाता है। यवन से नीच कोई नहीं होता है। Chanakya Niti

व्यक्ति को भूलकर भी नहीं करने चाहिए ये काम, नहीं तो होता है ऐसा 

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