Hindi Kavita – निकल जा अपनी राह पर

- प्रशांत मिश्रा 'रवि जी'
- प्रशांत मिश्रा 'रवि जी'



दिन-ब-दिन, तेरी आदत मुझको लगाए जा रहा है।
तुझे पाया नहीं अबतक, तुझे खोने का डर सताए जा रहा है।
मेरे हाथों से छीनकर, अपने हिसाब से जिंदगी चलाए जा रहा है।
तेरे आने से, दिल मेरा, अब उसको भुलाए जा रहा है।
कुछ हुआ है अलग, तेरे आने से, बताए जा रहा है।
एक बार फिर से, मुझको जीना, सिखाए जा रहा है। ———————————————— यदि आपको भी कविता, गीत, गजल और शेर ओ शायरी लिखने का शौक है तो उठाइए कलम और अपने नाम व पासपोर्ट साइज फोटो के साथ भेज दीजिए चेतना मंच की इस ईमेल आईडी पर- chetnamanch.pr@gmail.com
हम आपकी रचना को सहर्ष प्रकाशित करेंगे।दिन-ब-दिन, तेरी आदत मुझको लगाए जा रहा है।
तुझे पाया नहीं अबतक, तुझे खोने का डर सताए जा रहा है।
मेरे हाथों से छीनकर, अपने हिसाब से जिंदगी चलाए जा रहा है।
तेरे आने से, दिल मेरा, अब उसको भुलाए जा रहा है।
कुछ हुआ है अलग, तेरे आने से, बताए जा रहा है।
एक बार फिर से, मुझको जीना, सिखाए जा रहा है। ———————————————— यदि आपको भी कविता, गीत, गजल और शेर ओ शायरी लिखने का शौक है तो उठाइए कलम और अपने नाम व पासपोर्ट साइज फोटो के साथ भेज दीजिए चेतना मंच की इस ईमेल आईडी पर- chetnamanch.pr@gmail.com
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